कहानी १०३: अच्छा सामरी

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जब यीशु यहूदिया के शहर में प्रचार कर रहे थे, तब एक न्यायशास्त्री खड़ा हुआ और यीशु की परीक्षा लेने के लिये उससे सवाल करने लगा। वकील का दूसरा नाम शिक्षक भी है। ये लोग पुराने नियम कि व्यवस्था को पढ़ने में सारा जीवन व्यतीत कर देते थे। वह एक विशेषज्ञ था जिसके पास लोग परमेश्वर कि बातों को समझने के लिए आते थे। वह यीशु के पास अपने सवालों के उत्तर को जानने के लिए नहीं आता था बल्कि इसलिए आता था ताकि वह  प्रचारक को आज़मा सके जिसने सारे देश उल्टा पुल्टा कर दिया था।

उसने उससे पूछा, “'गुरु, अनन्त जीवन पाने के लिये मैं क्या करूँ?'”

इस पर यीशु ने उससे कहा, “व्यवस्था के विधि में क्या लिखा है, वहाँ तू क्या पढ़ता है?”

उसने उत्तर दिया,“‘तू अपने सम्पूर्ण मन, सम्पूर्ण आत्मा, सम्पूर्ण शक्ति और सम्पूर्ण बुद्धि से अपने प्रभु से प्रेम कर।’ और ‘अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार कर, जैसे तू अपने आप से करता है।’"

तब यीशु ने उस से कहाकि उसने ठीक उत्तर दिया है और वह ऐसा ही करे जिससे कि वह जीवित रहेगा। लेकिन वह नाखुश था। क्यूंकि दूसरों से उसी तरह प्रेम करना जिस तरह हम अपने आप से, ऐसा करना बहुत कठिन है! यह व्यक्ति दूसरों से ऐसे प्रेम नहीं करना चाहता था। क्यूंकि के में बहुत सी सीमाएं होती हैं। वह चुनने और निर्णय लेने को उचित ठहराना चाहता था।

उस न्यायधीश को यीशु ने एक कहानी बताई। यह बहुत स्पष्ट था। जब हम कहानी पढ़ते हैं, हमारे दिल उसके पात्र में घुस जाते हैं। कुछ पात्र अच्छे या साहसी या दयालू होते हैं और हम उनके समान  होना चाहते हैं। कभी कभी उस  कहानी कि तरह हम भी वैसे ही होना चाहते हैं। लेकिन कुछ पात्र मतलबी या डरपोक या भ्रष्ट होते हैं और हम उनसे नफ़रत करते हैं। यीशु जब इस कहानी को बतात हैं तो आप भी सोचिये कि कैसे पात्र बनना चाहते हैं। क्यूँ? उस न्यायधीश को कैसा लगा होगा जिस समय वह सुन रहा था?

यीशु ने उत्तर में कहा, “देखो, एक व्यक्ति यरूशलेम से यरीहो जा रहा था कि वह डाकुओं से घिर गया। उन्होंने सब कुछ छीन कर उसे नंगा कर दिया और मार पीट कर उसे अधमरा छोड़ कर वे चले गये।

“'अब संयोग से उसी मार्ग से एक याजक जा रहा था। जब उसने इसे देखा तो वह मुँह मोड़कर दूसरी ओर चला गया।उसी रास्ते होता हुआ एक लेवी भी वहीं आया। उसने उसे देखा और वह भी मुँह मोड़कर दूसरी ओर चला गया।

“किन्तु एक सामरी भी जाते हुए वहीं आया जहाँ वह पड़ा था। जब उसने उस व्यक्ति को देखा तो उसके लिये उसके मन में करुणा उपजी, सो वह उसके पास आया और उसके घावों पर तेल और दाखरस डाल कर पट्टी बाँध दी। फिर वह उसे अपने पशु पर लाद कर एक सराय में ले गया और उसकी देखभाल करने लगा। अगले दिन उसने दो दीनारी निकाली और उन्हें सराय वाले को देते हुए बोला, ‘इसका ध्यान रखना और इससे अधिक जो कुछ तेरा खर्चा होगा, जब मैं लौटूँगा, तुझे चुका दूँगा।’”    लूका १०:३०-३५

फिर यीशु ने उससे पुछा,“'बता तेरे विचार से डाकुओं के बीच घिरे व्यक्ति का पड़ोसी इन तीनों में से कौन हुआ?'”

उत्तर बहुत स्पष्ट था। जब हम उस पुजारी और लेवी के विषय में सोचते हैं जो इतना कठोर दिल के थे, (जो इस्राएल का एक अगुवा था) जिन्होंने उस लहूलुहान मरते हुए व्यक्ति को सड़क किनारे छोड़ दिया था, तो हमें नफरत हो जाती है। वे इस व्यक्ति कि बुरी हालत को देख कर इतने लापरवाह कैसे हो सकते हैं? वे कैसे परमेश्वर से प्रेम करने का ढ़ोंग कर सकते हैं और साथ ही परमेश्वर कि सृष्टि के प्रति ऐसा व्यवहार दिखा सकते हैं? वह न्यायधीश भी अपने आप उन धार्मिक अगुवों कि तरह देख सकता होगा जो परमेश्वर कि बनाई हुई सृष्टी को इतना हलके में लेते हैं।

लेकिन कहानी में एक मोड़ है। क्या आपको याद है कि सामरी कौन थे? वे इस्राएल के बीच शहर में रहते थे जिनसे यहूदी लोग नफ़रत करते थे। वे उनसे बेहद नफ़रत करते थे। वे उनसे इतना नफ़रत करते थे कि उनके नज़दीक ना आने के लिए मीलों दूर जाकर सफर करते थे। यह सच है कि सामरियों ने पुराने नियम के कुछ हिस्सों को लेकर उसे विकृत कर दिया था। फिर भी इस कहानी में, एक सामरी ही था जिसने परमेश्वर के दयावान ह्रदय को अपने कार्य से महिमा दी।

यदि कोई परमेश्वर के वचन को पढता है और फिर उसके अनुसार नहीं करता है तो क्या फ़ायदा? ऐसे ही यह न्यायधीश

एक पवित्र कार्य को सम्भव बनाना चाहता था: दुसरे इंसान से प्रेम करना।

यीशु ने यह स्पष्ट कर दिया था कि हमारा पडोसी वो है जिसके संपर्क में हम आते हैं। उस न्यायधीश ने पुछा कि किसे पडोसी मानना चाहिए। उसको यह पूछना चाहिए था कि वो किसका पड़ोसी बन सकता है! किसी दुसरे से प्रेम करने का जो हमें अवसर मिलता है वह परमेश्वर कि ओर से दिया हुआ दान है।हमारी सहानुभूति से, हम उसकी पवित्रता और करुणा कि खूबसूरती को प्रदर्शित करते हैं! जब आपने इस कहानी को पढ़ा, क्या आप उस सामरी कि तरह नहीं होना चाहते थे?

अंत में, उस न्यायधीश को मानना ही पड़ा। पडोसी वो नहीं होता जी हमारे बगल में रहता है या जिसका एक सा रंग या धर्म हो। जो व्यक्ति परमेश्वर के रूप में चमकना चाहता है वह हर उसको अपना पडोसी मानेगा जिसे परमेश्वर उसके सामने ले आता है। हमें यह नहीं पूछना चाहिए कि किसकी सेवा करनी है बल्कि य पूछना चाहिए कि हम किसके पडोसी बन सकते हैं। परमेश्वर के राज्य के लोगों के लिए, वैसा व्यक्ति नहीं होना चाहिए जो सड़क कि किनारे नाक चढ़ाके, बल्कि वैसा होना चाहिए जो झुक कर के किसी घायल और लहूलुहान के ऊपर दया दिखाये। क्या यीशु सुन्दर नहीं है ?