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कहानी ४: दाऊद की वाचा और यशायाह का अभिषेक

परमेश्वर ने इसराइल के लोगों को अपनी क़ीमती चीज़ होने के लिए बुलाया था। उनके पास परमेश्वर द्वारा चुने जाने का गौरवशाली सम्मान था, फिर भी वे उनके खिलाफ विद्रोह करते रहे। उनके दिल उतने पापी थे जितने आदम और हव्वा के बाकि बच्चों के थे! कभी कभी इस्राएल अपने पापों से पश्चाताप करते थे और वापस व्यवस्था की और लौट जाते।

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कहानी २४: (यूहन्ना बतिस्मा देने वाला ) परमेश्वर का बेटा

भीड़ यूहन्ना पर उमड़ती जा रही थी, और उसने यरदन नदी के पानी में सब पश्चाताप करने वालों को बपतिस्मा दिया। लोग उसके परमेश्वर कि आत्मा से भरे हुऐ निडर घोषणाओं को देख सकते थे, और वे आश्चर्य करने लगे कि वह कौन है।

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कहानी २७: दाखरस का पानी में बदलना

यीशु ने पैदल यरदन नदी से ऊपर उत्तर क्षेत्र में गलील तक यात्रा की। यह लगभग ६० मील / किलो दूर था। उनकी यात्रा ने ३ दिन लिये होंगे। क्या यह दिलचस्प नहीं होगा कि उनकी बातें घर की ओर जाते सुनें ?

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कहानी २९: यूहन्ना बपतिस्मा देने वाली घटना

यरूशलेम से जाने के बाद, यीशु और उसके चेले यहूदी पहाड़ी क्षेत्र से बाहर चले गए। यीशु ने वहाँ अपने चेलों के साथ समय बिताया और उन्हें बपतिस्मा दिया जो उनके पास आये। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला लोगों को ऐनोन के क्षेत्र में बपतिस्मा दे रहा था।

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कहानी ३०: सामरी औरत

केवल यूहन्ना के चेले ही नहीं थे जिन्होंने यीशु की लोकप्रियता को देखा। फरीसियों भी उस पर ध्यान दे रहे थे। सच तो यह था की यीशु स्वयं नहीं परन्तु उसके चेले बपतिस्मा दे रहे थे।

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कहानी ३१: गलील में मसीह की सेवकाई

प्रभु काना के शहर उत्तरी सामरिया से होते हुए गया। यह वही जगह थी जहान यीशु ने एक विवाह में पानी से दाखरस बनाया था। यह उसका पहला चमत्कार था, और इस्राएल की दुल्हन के आगमन का प्रचार कर रहा था।

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कहानी ३४: गलील की पहली यात्रा

नासरी के लोग कफरनहूम के लोगों से कितने अलग थे! वे सुनते थे और मानते थे और चंगाई पाते थे! क्या आप लोगों की उत्तेजना कि कल्पना कर सकते हैं ?

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कहानी ३५: यीशु की चंगाई करने कि सामर्थ|

यीशु और उसके चेले जब गलील भर के शहरों और कस्बों को वापस चल दिए, तब यीशु अपने प्रचार और चंगाई के कार्य को करता रहा। सारी दुनिया से इस मशहूर जवान प्रचारक को लोग सुनने के लिए आने आये। वह क्या अचंभित बातें कर सकता था! कितनी उल्लेखनीय बातें वह बोलता था!

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कहानी ३९: कुंड के पास वह व्यक्ति

यहूदियों का एक और पर्व आया था, और इसलिए यीशु अपने पिता की आराधना करने के लिए यरूशलेम को गया। यरूशलेम सैकड़ों वर्ष पहले बनाया गया था और वह ऊंची दीवारें से घिरा हुआ था और कुछ ... / साल से बना हुआ था। इन दीवारों के ऊंचे फाटक थे ताकि लोग उस पवित्र नगर में आ सकें।

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कहानी ४७: परमेश्वर के राज्य में धन्य

आपको क्या लगता है कि मन के दीन हैं इसका क्या अर्थ है?
क्या इसका यह मतलब हुआ कि उनके पास धन नहीं है?

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कहानी ४८: पर्वत पर उपदेश: धन्यता 

यीशु लगातार यह समझा रहे हैं कि वे लोग जो इस पृथ्वी पर हैं उनमें स्वर्ग के राज्य के लिए धन्य कौन है। यीशु ने मन के दीन और वे जो शोकित होते हैं उनके धन्यता के बारे में समझाया इसके बाद, उन्होंने कहा: "धन्य हैं वे नम्र जो पृथ्वी पर राज करेंगे।

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कहानी ५१: पहाड़ी उपदेश: व्यवस्था के लिए सही आज्ञाकारिता

यीशु ने पहाड़ी उपदेश में धन्य वचन प्रचार किये। फिर उन्होंने सिखाया कि जो सुन्दर विनम्रता और निर्भरता उनके अशिक्षित किये हुए लोग दिखाएंगे वह नमक और प्रकाश की तरह होगा।

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कहानी ५२: पहाड़ी उपदेश : हत्या के प्रति राज्य कानून

यीशु ने पुराने नियम के कानून और भविष्यवाणियों को समय के अंत तक अटूट और सच्चा रहने के लिए घोषित कर दिया। अपने स्वयं जीवन में भी, यीशु ने पूर्णता में होकर अपने आसमानी बाप के आज्ञाकारी होते हुए इन को माना।

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कहानी ५९: पहाड़ पर उपदेश: प्रार्थना में परमेश्वर का सम्मान

जब यीशु पहाड़ पर अपने उपदेश को सिखा रहे थे, वह कि परमेश्वर कैसे चाहता है कि प्रार्थना करनी चाहिए। उसने एक प्रार्थना सिखाई जो वे उसे एक नमूने के तौर पर उपयोग कर सकते थे। यीशु यह नहीं चाहते थे उसके चेले प्रार्थना को एक भजन कि तरह दोहराएं।

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कहानी ६०: पहाड़ पर उपदेश - प्रार्थना में परमेश्वर के सम्मान  भाग II

यीशु ने हमें प्रार्थना के लिए एक नमूना दे दिया। सबसे पहले हम स्तुति और आराधना में अपने पवित्र और सामर्थ परमेश्वर के पास आते हैं। फिर हम उसकी इच्छा जानने के लिए प्रार्थना करते हैं।

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कहानी ६१: पृथ्वी पर धन? या स्वर्गीय धन?

पहाड़ पर के अपने उपदेश में, यीशु ने एक सच्चे शिष्य के गुण दिखाए। जो आत्मा से दीन हैं, यही है जो परमेश्वर के प्रति उस भक्ति को जीवन के शुरुआत को दर्शाता है।

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कहानी ६२: चिंता मत करो!

पहाड़ पर के उपदेश को आइये याद करते हैं। जब हम एक छोटे खंड को देखते हैं, बड़ी तस्वीर को भी याद रखना महत्वपूर्ण है। कैसे यह अद्भुत विचार एक पूरे को बनाने के लिए एक साथ काम करते हैं! कैसे वे स्वर्ग के राज्य में जीवन का वर्णन करने के लिए एक साथ आते हैं?

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कहानी ७०: विद्रोह और पश्चाताप के बीच अंतर

केवल धार्मिक अगुवे थे जिन्होंने ने परमेश्वर के सन्देश को यूहन्ना और यीशु के द्वारा सुनने से इंकार किया। इस्राएल के देश में बहुत से लोग ने भी उन्हें ठुकराया।

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कहानी ७६: फसल का दृष्टान्त

यीशु स्वर्ग के राज्य के बारे में दृष्टान्तों में अपने चेलों से बात करने लगा था। बाकि कि भीड़ वहाँ थी जब यीशु नाव से प्रचार कर ही रहे थे, परन्तु अधिकतर लोगों के लिए यह कहानियां रहस्मय थीं।

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कहानी ८२: दो अन्धे और एक गूंगे कि चंगाई

यीशु ने लोगों की कड़ी हार्दिकता के बावजूद गलील में सुसमाचार को सुनाता रहा। वो पश्चाताप जिससे परमेश्वर के लोगों को उनके उद्धारकर्ता के आने पर चिह्नित होना चाहिए था?

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