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कहानी २७: दाखरस का पानी में बदलना

यीशु ने पैदल यरदन नदी से ऊपर उत्तर क्षेत्र में गलील तक यात्रा की। यह लगभग ६० मील / किलो दूर था। उनकी यात्रा ने ३ दिन लिये होंगे। क्या यह दिलचस्प नहीं होगा कि उनकी बातें घर की ओर जाते सुनें ?

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कहानी ३२: प्रभु की आत्मा

फिर वह नासरत आया जहाँ वह पला-बढ़ा था ताकी वहाँ के लोगों को लोगों को यह शुभ सन्देश बता सके की परमेश्वर क्या कर रहा है। क्या वे यह विश्वास करते की वह यहाँ है?

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कहानी ३५: यीशु की चंगाई करने कि सामर्थ|

यीशु और उसके चेले जब गलील भर के शहरों और कस्बों को वापस चल दिए, तब यीशु अपने प्रचार और चंगाई के कार्य को करता रहा। सारी दुनिया से इस मशहूर जवान प्रचारक को लोग सुनने के लिए आने आये। वह क्या अचंभित बातें कर सकता था! कितनी उल्लेखनीय बातें वह बोलता था!

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कहानी ४२: हाथ जो चंगा हुआ

येरुशलम में यहूदियों के साथ अपने महान टकराव के बाद, यीशु अपने घर वापस गलील चेलों के साथ गया। एक दिन, यीशु और उसके चेले ग्रामीण इलाकों के अनाज क्षेत्रों से जा रहे थे।

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कहानी ४४: बारह चेलों का चुना जाना

यीशु चिकित्सा का और भीड़ को प्रचार करने का भारी मात्रा में कार्य कर रहे थे। गलील और यहूदिया से जो यहूदी लोग यीशु सेवकाई में शुरू से उसके पास, साथ अन्यजाति भी जुड़ गए जो मीलों दूर शहरों में। उन्होंने उसके विषय में सुना था जो चंगाई देता है, और वे गलील से यीशु को स्पर्श करने के लिए दूर दूर से आए थे।

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कहानी ४७: परमेश्वर के राज्य में धन्य

आपको क्या लगता है कि मन के दीन हैं इसका क्या अर्थ है?
क्या इसका यह मतलब हुआ कि उनके पास धन नहीं है?

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कहानी ४८: पर्वत पर उपदेश: धन्यता 

यीशु लगातार यह समझा रहे हैं कि वे लोग जो इस पृथ्वी पर हैं उनमें स्वर्ग के राज्य के लिए धन्य कौन है। यीशु ने मन के दीन और वे जो शोकित होते हैं उनके धन्यता के बारे में समझाया इसके बाद, उन्होंने कहा: "धन्य हैं वे नम्र जो पृथ्वी पर राज करेंगे।

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कहानी ५८: पहाड़ पर उपदेश: एक सच्चे दिल से परमेश्वर की सेवा करना

पहाड़ पर दिए उपदेश के पहले भाग में, यीशु ने उच्च और पवित्र नियम से सिखाया कि प्रेम ही सर्वोच्च लक्ष्य है। फिर उसने अपने चेलों उनको अमल करना सिखाया! स्वर्ग के राज्य के प्रेम को यीशु ने पहाड़ के उद्देश्य को शुद्ध और इंसानियत कि पवित्रता में दिखाया जो उसकी स्तुति करने में इच्छा रखता है।

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कहानी ६८: एक विधवा के लिए करुणा

यीशु सुसमाचार सुनाने और बीमारों को चंगाई देने के लिए ग्रामशेत्र के इलाकों में यात्रा कि। उन्होंने नव नियुक्त चेलों के साथ नाइन नामक एक शहर की यात्रा की। उनके पीछे एक बड़ी भीर चली आ रही थी।वे इस कट्टरपंथी, चिकित्सा शिक्षक के लिए पर्याप्त नहीं हो पा रहे थे।

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कहानी ६९: यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का यीशु से प्रश्न पुछा जाना

यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला क़ैद में था। आप यह देखिये कि, उसने हेरोदेस राजा से कुछ ऐसे प्रश्न पूछे जो उसे पसंद नहीं आये। हेरोदेस ने अपने ही भाई की पत्नी को लिया और उससे शादी कर ली थी। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने ऐसे घृणित काम कि निंदा कि, और हेरोदेस को बिल्कुल यह अच्छा नहीं लगा। तो उसने यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को क़ैद में डाल दिया।

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कहानी ७४: महत्वपूर्ण मोड़: एक चिन्ह की मांग

यीशु और उसके चेले, भीड़ से घिरे हुए, कफरनहूम में थे। वे सब जब यीशु प्रचार कर रहे थे पतरस के घर में खचाखच भरे हुए थे। धार्मिक अगुवे यीशु को चुनौती देने के लिए यरूशलेम से आए थे।

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कहानी ७९: यीशु का तूफान को शांत करना

यीशु ने जब दृष्टान्तों को बताना समाप्त किया, वह समुद्र तट से चला गया, लेकिन भीड़ ने उसका पीछा करना जारी रखा। वह अवश्य कितना थक गया होगा। एक दिन में उसने इतने शक्तिशाली कार्य किये।

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कहानी ८०: एक अकेले बंदी कि स्वतंत्रता

प्रभु यीशु ने शक्तिशाली तूफान को शांत किया। वह और उसके चेले गदरेनियो नामक क्षेत्र को सागर के दूसरे पक्ष कि ओर रवाना हुए। यह गलील के दूसरी ओर था, और बहुत से अन्यजाती वहाँ रहते थे। जब वे नावों से बाहर आये, एक व्यक्ति जो कब्रों के आप पास घूमा करता था उनकी ओर आया।

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कहानी ८१: याईर कि पुत्री और एक बीमार स्त्री

हाल ही में चेलों का यीशु के साथ कैसा नाटकीय क्षण रहा है! उन्होंने उसे शब्दो से तूफ़ान को थमते हुए देखा था। उन्होंने उसे एक खतरनाक इंसान को मानसिक रूप से स्थिर करते देखा। ऐसे चुंबकीय शिक्षक के भीतर से पूर्ण विजय निकल के आ रही थी।

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कहानी ८६: ५००० पुरुषों को खिलाना 

यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले कि मृत्यु के बाद चेले यीशु के पास वापस आ गए। वे सुसमाचार सुनाते हुए, दो दो कर के गलील के क्षेत्र में यात्रा करने लगे। इन्होने अपने सेवकाई के दौरान जो कुछ बीता उसे आकर यीशु को सुनाया। यीशु इन को परमेश्वर कि सामर्थ और अधिकार में प्रक्षिशण दे रहे थे।

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कहानी ९१: सुरुफ़िनीकी जाती कि स्त्री का विश्वास

फिर यीशु ने वह स्थान छोड़ दिया और सूर के आस-पास के प्रदेश को चल पड़ा। सूर भूमध्य सागर के किनारे बसा एक बड़ा शहर था। यह एक अन्यजातियों का शहर था। वह यहूदी दुश्मनो से अपने आप को दूर रख रहा था। वहाँ वह एक घर में गया। वह नहीं चाहता था कि किसी को भी उसके आने का पता चले।

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कहानी ९२: चार हज़ार लोगों को खिलाना

यीशु और उसके चेले गलील के सागर के किनारे थे, लेकिन वे दिकापुलिस में थे। यह दस शहरों का अन्यजातियों का शहर था। इस यहूदी क्षेत्र के बाहर था। वहाँ के लोग ऐसे थे जिनके साथ यहूदी बैठ कर भोजन नहीं करेंगे! फिर भी बड़ी भीड़ यीशु को देखने के लिए उमड़ रही थी। तीन दिन के बाद, यीशु को भीड़ पर तरस आया। उनके पास कुछ खाने को नहीं था!

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कहानी ९३: एक अंधा आदमी

चेले यीशु के संग बैतसैदा चले आये। वहाँ कुछ लोग यीशु के पास एक अंधे को लाये और उससे प्रार्थना की कि वह उसे छू दे। उसने अंधे व्यक्ति का हाथ पकड़ा और उसे गाँव के बाहर ले गया।

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कहानी ९६: स्वर्ग के राज्य में बड़ा कौन 

एक बार यीशु के शिष्यों के बीच इस बात पर विवाद छिड़ा कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। वे आपस में बहस कर रहे थे कि परमेश्वर के राज्य में कौन सबसे बड़ा होगा। यहूदी संस्कृति में, पद और हैसियत बहुत ज़रूरी थे। समाज में सब अपने पद को जानते थे।

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कहानी ९८: मिलापवाले तम्बू के पर्व पर यीशु येरूशलेम में: यीशु का आगमन 

येरूशलेम जाने के लिए जब यीशु और उसके चेलों ने गुप्त तरीके से रास्ता निकाला, तब यहूदी उसके आने कि इंतेजारी में थे। लोग आपस में यह बातें करते थे कि यदि वह एक अच्छा आदमी था या धोखेबाज़ जो लोगों को परमेश्वर से दूर ले जाना चाहता है।

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