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कहानी ३०: सामरी औरत

केवल यूहन्ना के चेले ही नहीं थे जिन्होंने यीशु की लोकप्रियता को देखा। फरीसियों भी उस पर ध्यान दे रहे थे। सच तो यह था की यीशु स्वयं नहीं परन्तु उसके चेले बपतिस्मा दे रहे थे।

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कहानी ३१: गलील में मसीह की सेवकाई

प्रभु काना के शहर उत्तरी सामरिया से होते हुए गया। यह वही जगह थी जहान यीशु ने एक विवाह में पानी से दाखरस बनाया था। यह उसका पहला चमत्कार था, और इस्राएल की दुल्हन के आगमन का प्रचार कर रहा था।

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कहानी ३७: लकवाग्रस्त की चंगाई

कोढ़ी के चमत्कारी उपचार के बारे में शब्द दूर दूर तक फ़ैल गया। यीशु की लोकप्रियता बढ़ रहा थी, और नीचे दक्षिण यरूशलेम में लोग उसके बारे में अधिक से अधिक सुन रहे थे।

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कहानी ३९: कुंड के पास वह व्यक्ति

यहूदियों का एक और पर्व आया था, और इसलिए यीशु अपने पिता की आराधना करने के लिए यरूशलेम को गया। यरूशलेम सैकड़ों वर्ष पहले बनाया गया था और वह ऊंची दीवारें से घिरा हुआ था और कुछ ... / साल से बना हुआ था। इन दीवारों के ऊंचे फाटक थे ताकि लोग उस पवित्र नगर में आ सकें।

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कहानी ४२: हाथ जो चंगा हुआ

येरुशलम में यहूदियों के साथ अपने महान टकराव के बाद, यीशु अपने घर वापस गलील चेलों के साथ गया। एक दिन, यीशु और उसके चेले ग्रामीण इलाकों के अनाज क्षेत्रों से जा रहे थे।

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कहानी ६७: रोमन सूबेदार की आस्था

मत्ती में पहाड़ पर उपदेश इसलिए लिखा गया ताकि वो सब बातें दिखा सके जो यीशु ने सिखाईं जब वह गलील में ग्रामीण इलाकों में गया। मत्ती ने यीशु के शिक्षण को एकत्र कर दिया ताकि उस तस्वीर को समझ सकें जो स्वर्ग के राज्य के जीवन के विषय में बताती है। उन में से बहुत विचार लूका कि किताब में भी हैं, लेकिन वे उसकी किताब में फैले हुए हैं।

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कहानी ७३: महत्वपूर्ण मोड़: सच्चा फल

धार्मिक अगुवे यीशु से निपटने के लिए यरूशलेम से आए थे। उन्होंने गलील में इतने अद्भुद चमत्कार किये कि उनके खिलाफ कोई नहीं बोल सकता था। भीड़ उसे दाऊद का पुत्र समझने लगी थी। क्या वह उनका आने वाला राजा था? उसकी शक्ति कहां से आयी थी?

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कहानी ८०: एक अकेले बंदी कि स्वतंत्रता

प्रभु यीशु ने शक्तिशाली तूफान को शांत किया। वह और उसके चेले गदरेनियो नामक क्षेत्र को सागर के दूसरे पक्ष कि ओर रवाना हुए। यह गलील के दूसरी ओर था, और बहुत से अन्यजाती वहाँ रहते थे। जब वे नावों से बाहर आये, एक व्यक्ति जो कब्रों के आप पास घूमा करता था उनकी ओर आया।

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कहानी ८१: याईर कि पुत्री और एक बीमार स्त्री

हाल ही में चेलों का यीशु के साथ कैसा नाटकीय क्षण रहा है! उन्होंने उसे शब्दो से तूफ़ान को थमते हुए देखा था। उन्होंने उसे एक खतरनाक इंसान को मानसिक रूप से स्थिर करते देखा। ऐसे चुंबकीय शिक्षक के भीतर से पूर्ण विजय निकल के आ रही थी।

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कहानी ८२: दो अन्धे और एक गूंगे कि चंगाई

यीशु ने लोगों की कड़ी हार्दिकता के बावजूद गलील में सुसमाचार को सुनाता रहा। वो पश्चाताप जिससे परमेश्वर के लोगों को उनके उद्धारकर्ता के आने पर चिह्नित होना चाहिए था?

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कहानी ८६: ५००० पुरुषों को खिलाना 

यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले कि मृत्यु के बाद चेले यीशु के पास वापस आ गए। वे सुसमाचार सुनाते हुए, दो दो कर के गलील के क्षेत्र में यात्रा करने लगे। इन्होने अपने सेवकाई के दौरान जो कुछ बीता उसे आकर यीशु को सुनाया। यीशु इन को परमेश्वर कि सामर्थ और अधिकार में प्रक्षिशण दे रहे थे।

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कहानी ९१: सुरुफ़िनीकी जाती कि स्त्री का विश्वास

फिर यीशु ने वह स्थान छोड़ दिया और सूर के आस-पास के प्रदेश को चल पड़ा। सूर भूमध्य सागर के किनारे बसा एक बड़ा शहर था। यह एक अन्यजातियों का शहर था। वह यहूदी दुश्मनो से अपने आप को दूर रख रहा था। वहाँ वह एक घर में गया। वह नहीं चाहता था कि किसी को भी उसके आने का पता चले।

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कहानी ९३: एक अंधा आदमी

चेले यीशु के संग बैतसैदा चले आये। वहाँ कुछ लोग यीशु के पास एक अंधे को लाये और उससे प्रार्थना की कि वह उसे छू दे। उसने अंधे व्यक्ति का हाथ पकड़ा और उसे गाँव के बाहर ले गया।

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कहानी ९५: विश्वास की कमी

अगले दिन, यीशु के रूपांतरण होने के बाद वे पहाड़ से पतरस, याकूब और यूहन्ना के साथ जब वापस आये तो, भीड़ बाकी के चेलों को घेरी हुई थी। कुछ शास्त्री, जो धार्मिक अगुवे थे जो उनके साथ बहस कर रहे थे।

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कहानी ९९: मिलापवाले तम्बू का पर्व : यीशु का जीवन जल देना 

मिलापवाले तम्बू का पर्व शुरू हो चुका था और सब यही सोच रहे थे कि यीशु कब आएगा और इस बात कि अफवाह फैलाई गई थी कि यहूदी अगुवे उसे मरवा देंगे। वह आया और बहुत साहस और सफाई के साथ बोला।

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कहनी १११: सुंदर सत्य, सुंदर चंगाई 

यीशु जब प्रचार करते जा रहे थे, वे उन भयानक विकृतियों और झूठ को खोलते जा रहे थे जिसने लोगों को भय और झूठे विश्वास में जकड़ा हुआ था। अपने स्वर्गीय पिता के विषय में झूठ सुनकर वह कितना अपमानित महसूस कर रहा होगा!

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कहनी ११२: समर्पण का पर्व:  यीशु द्वारा जन्म से अंधे आदमी कि चंगाई 

मिलापवाले तम्बू के पर्व के तीन महीने बीत चुके थे और अब समर्पण के पर्व का समय आ गया था।एक बार फिर, सभी तीर्थयात्त्री इस्राएल देश से यरूशलेम को यात्रा के लिए जाएंगे। पिछले पर्व की घटनाएं अभी भी लोगों के दिमाग में ताजा थीं।

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कहनी ११३: समर्पण का पर्व : जन्म से अँधा आदमी फरीसियों के साथ 

फिर उसके पड़ोसी और वे लोग जो उसे भीख माँगता देखने के आदी थे, उसे देख कर हैरान हुए। वह उस व्यक्ति के समान दिखता था जिसे वे हर रोज़ देखते थे लेकिन ऐसा कैसे हो सकता था? उन्होंने एक दूसरे से पुछा,“क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो बैठा हुआ भीख माँगा करता था?”

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कहनी ११४: अच्छा चरवाहा और चोर

यीशु ने तीन साल से फरीसियों और धार्मिक नेताओं का सामना किया था। यह और भी अधिक स्पष्ट होता जा रहा था कि उनके दिल विद्रोह और पाप में पक्के हो गए थे। परमेश्वर कि सच्चाई को सुनने के बाद उसको अस्वीकार कर देना ही बहुत खतरनाक बात है।

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कहनी ११५: अच्छा चरवाहा--भाग २ 

यीशु अपने चेलों को समझा रहे थे कि इस्राएल के देश में क्या हो रहा था। यदि यीशु ही मसीहा है, तो उसके और धार्मिक अगुवों के बीच क्यूँ ऐसा युद्ध था? क्या उन्हें एक साथ मिलकर काम नहीं करना चाहिए? यीशु ने समझाया कि, वे जो उसके हैं और अपने स्वर्गीय पिता कि आवाज़ को सुनते हैं, तो उन्हें पश्चाताप करके उसके पीछे चलना चाहिए।

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