कहनी ११२: समर्पण का पर्व: यीशु द्वारा जन्म से अंधे आदमी कि चंगाई
मिलापवाले तम्बू के पर्व के तीन महीने बीत चुके थे और अब समर्पण के पर्व का समय आ गया था।एक बार फिर, सभी तीर्थयात्त्री इस्राएल देश से यरूशलेम को यात्रा के लिए जाएंगे। पिछले पर्व की घटनाएं अभी भी लोगों के दिमाग में ताजा थीं। यीशु ने ठीक मंदिर के आंगन में, तेजस्वी घोषणाएं कीं। इसके बावजूद कि धार्मिक अगुवे उसे गिरफ्तार करना चाहते थे, कुछ भी ऐसा नहीं हुआ और लोगों को आश्चर्य हुआ।
तब से, वह और उसके चेले परमेश्वर के राज्य के बारे में उपदेश देते रहे और कोई भी उन चमत्कारों के विषय में इनकार नहीं कर सका। येरूशलेम में कितनो ने चंगाई पाई थी। उनके परिवारों में से कितने वहाँ थे?
सारा येरूशलेम यीशु के बारे में बात कर रहा था। लेकिन यीशु भीड़ या धार्मिक अगुवों के बारे में चिंतित नहीं था। उसका निरंतर ध्यान केवल अपने पिता की इच्छा को पूरी करने के लिए था। उसके विरुद्ध लोगों का बहस करना, लोगों कि भीड़ से घिरे रहना, और यहूदी अगुवों कि उसको मरवाने कि साज़िश, इन सब के बीच परमेश्वर ने अपने पुत्र से किया करने को कहा? यह एक ख़ूबसूरत कहानी है।
जब यीशु अपने शिष्यों के साथ यरूशलेम से जा रहा था, उसने एक अंधे आदमी को देखा। उसकी आंखों की आकृति से स्पष्ट था कि वह जन्म से ही अंधा था। क्या आप उसके माता पिता के दु: ख की कल्पना कर सकते हैं? इस आदमी के लिए दैनिक जीवन के संघर्ष महान रहे होंगे।
ना केवल उसे एक गंभीर विकृति से ग्रस्त होना पड़ा, बल्कि उसे अपमान की शर्म को भी सहना पड़ा होगा। हर कोई उसके अंधेपन को इस दृष्टी से देख रहा था कि परमेश्वर कि ओर से उसके परिवार के विरुद्ध न्याय मिला होगा। उनके पड़ोसी, अगुवे और अपने ही परिवार के सदस्य यह सोचते होंगे कि उन्होंने ऐसा क्या किया होगा जिसकी वजह से ऐसा भाग मिला। वे आपस में उनके गुप्त में किये कोई पाप के बारे में चर्चा करते थे। यदि बेटा ऐसा अँधा पैदा हुआ तो उसमें उसका क्या कसूर? नहीं, ज़रूर माँ बाप कि गलती रही होगी। उन्होंने ऐसा क्या किया होगा? और ऐसे ही परिवार कि पीड़ा को उन्होंने गपशप करके अपने द्वेष को ढांपने के लिए धार्मिक चोगा पहन लिया।
सबसे दुःख कि बात यह है कि वह अँधा आदमी और उसके माँ बाप भी उन बातों पर विश्वास करने लग गए थे। बिना जाने कि क्यूँ ऐसा हुआ, वे उस शर्म के बोझ को लिए जी रहे होंगे।उन्होने यह सब अपने ऊपर किसी तरह ली लिया होगा। वे परमेश्वर को बहुत कठोर और ना मॉफ करने वाला चेहरा समझने लगे थे। लेकिन यह परमेश्वर पिता के विषय में सही नहीं था और, यीशु इस झूठ को विपरीत में बदलने जा रहा था।
जब चेलों ने उस व्यक्ति को सड़क पर बैठे देखा, उन्होंने यीशु से पुछा, “हे रब्बी, यह व्यक्ति अपने पापों से अंधा जन्मा है या अपने माता-पिता के?”
यीशु ने उत्तर दिया,“'न तो इसने पाप किए हैं और न इसके माता-पिता ने बल्कि यह इसलिये अंधा जन्मा है ताकि इसे अच्छा करके परमेश्वर की शक्ति दिखायी जा सके।'"
परमेश्वर की नज़रों में, यह इस आदमी का अंधा होना कोई शर्म की बात नहीं थी। यह एक विशेषाधिकार था! परमेश्वर खुद उसके माध्यम से महिमा और सम्मान को प्राप्त करने जा रहा था ! यही सबसे सर्वोच्च बुलाहट है!
यीशु ने कहा,"उसके कामों को जिसने मुझे भेजा है, हमें निश्चित रूप से दिन रहते ही कर लेना चाहिये क्योंकि जब रात हो जायेगी कोई काम नहीं कर सकेगा। जब मैं जगत में हूँ मैं जगत की ज्योति हूँ।'”
आपको क्या लगता है जब यीशु ने यह कहा कि रात आ रही है? यदि दिन यीशु के इस पृथ्वी पर रहने के समय को दर्शाता है, तो इस का क्या अर्थ हुआ कि अंधकार आने वाला है? यीशु अपनी क्रूस पर होने वाली मृत्यु के बारे में कह रहे थे। जब तक वह इस पृथ्वी पर था, वह श्राप कि शक्ति को और उन्हें जो इसके कारण पीड़ित हुए, उस शक्ति को तोड़ेगा।
आपने देखा यीशु ने "हम" शब्द का प्रयोग किया? यह कार्य केवल यीशु का ही नहीं है, लेकिन उन सब का भी है जो उसके पीछे चलते हैं। उसके चेले इस योजना का एक हिस्सा थे। वे यीशु के बदलने देने वाली सामर्थ को दर्शाने वाले थे! लेकिन उस एक चेतावनी दी: एक दिन वह चला जाएगा और फिर कार्य करने का वक़्त नहीं रहेगा। यीशु के इस पृथ्वी पर समय समाप्त हो रहा था।
आप उसके उत्साह कि कल्पना कर सकते हैं? उसने ऐसा पहले कुछ भी नहीं देखा था! अचानक, जिन आवाज़ों को उसने जो अब तक सूनी थीं उनकी आवाज़ और चेहरे और आकार और रंग दिखने लगे! उसने देखा कि ना केवल सूरज गर्म है, लेकिन चमकीले पीले और गहरे नीले आकाश के सामने चमकता हुआ दिखा! खोज कि दुनिया अभी उसके सामने रखी हुई थी!