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कहानी ३४: गलील की पहली यात्रा

नासरी के लोग कफरनहूम के लोगों से कितने अलग थे! वे सुनते थे और मानते थे और चंगाई पाते थे! क्या आप लोगों की उत्तेजना कि कल्पना कर सकते हैं ?

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कहानी ३५: यीशु की चंगाई करने कि सामर्थ|

यीशु और उसके चेले जब गलील भर के शहरों और कस्बों को वापस चल दिए, तब यीशु अपने प्रचार और चंगाई के कार्य को करता रहा। सारी दुनिया से इस मशहूर जवान प्रचारक को लोग सुनने के लिए आने आये। वह क्या अचंभित बातें कर सकता था! कितनी उल्लेखनीय बातें वह बोलता था!

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कहानी ३६: चुंगी लेने वाले की बुलाहट

यीशु एक बार फिर समुद्र के तट के किनारे चल रहा था। गलील के पानी के चारों ओर पहाड़ों का दिखना कितना सुन्दर दृश्य था। यह शहय पतझर का समय रहा होगा, लेकिन इस्राएल का मौसम सर्दियों में भी समान्य होता है। जब वह था, भीड़ उसके पीछे हो ली। और वह उनको परमेश्वर के राज्य के, में सुना रहा था।

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कहानी ३७: लकवाग्रस्त की चंगाई

कोढ़ी के चमत्कारी उपचार के बारे में शब्द दूर दूर तक फ़ैल गया। यीशु की लोकप्रियता बढ़ रहा थी, और नीचे दक्षिण यरूशलेम में लोग उसके बारे में अधिक से अधिक सुन रहे थे।

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कहानी ३८: यीशु की पूछताछ

यहूदी रीति के अनुसार यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के चेले और फ़रीसी उपवास कर रहे थे। यह यहूदी कानून का हिस्सा के अनुसार नहीं थी। जब यहूदी लोग बाबुल में निर्वासन से लौटे तब से यह परंपरा चल रही थी।

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कहानी ४३ः भीड़ का आना

प्रभु यीशु फरीसियों के निकट जाने से पीछे हटते हैं, लेकिन भीड़ उनके पीछे हो लेती है।

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कहानी ७२: मोड़ 

यीशु और उसके चेले गलील के सागर के आसपास के शहरों में गए। परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार वे उन सब को बताता था जो उसके पास आते थे। बारह शिष्य उसके साथ यात्रा को गए। उनके साथ महिलाओं का एक समूह भी गया।

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कहानी ७३: महत्वपूर्ण मोड़: सच्चा फल

धार्मिक अगुवे यीशु से निपटने के लिए यरूशलेम से आए थे। उन्होंने गलील में इतने अद्भुद चमत्कार किये कि उनके खिलाफ कोई नहीं बोल सकता था। भीड़ उसे दाऊद का पुत्र समझने लगी थी। क्या वह उनका आने वाला राजा था? उसकी शक्ति कहां से आयी थी?

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कहानी ७५: सच्चा परिवार

यीशु येरुशलम से धार्मिक अगुवों के विशाल विरोध के बाद वे भीड़ से वार्तालाप करते रहे। उस पूरे समय उनका परिवार नासरत से कफरनहूम को यात्रा करते रहे। उन्होंने सुना था कि यीशु गलील के अपने अंतिम उपदेश के दौरे से लौटे था, और अब वह अपने करीबी मित्रों में से एक के घर में था।

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कहानी ७७: स्वर्ग राष्ट्र के दृष्टान्त: बीज का बढ़ना, सरसों का बीज, और खमीर

यीशु ने दृष्टान्तों में परमेश्वर के राज्य के बारे में बताना शुरू कर दिया था। जब उसने राज्य के विषय में पहले सिखाया, उसने उस अभिशाप के विरुद्ध लड़ने वाले युद्ध के विषय में चेतावनी दी जो आदम और हव्वा के कारण इस दुनिया में आया।

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कहानी ७९: यीशु का तूफान को शांत करना

यीशु ने जब दृष्टान्तों को बताना समाप्त किया, वह समुद्र तट से चला गया, लेकिन भीड़ ने उसका पीछा करना जारी रखा। वह अवश्य कितना थक गया होगा। एक दिन में उसने इतने शक्तिशाली कार्य किये।

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कहानी ८०: एक अकेले बंदी कि स्वतंत्रता

प्रभु यीशु ने शक्तिशाली तूफान को शांत किया। वह और उसके चेले गदरेनियो नामक क्षेत्र को सागर के दूसरे पक्ष कि ओर रवाना हुए। यह गलील के दूसरी ओर था, और बहुत से अन्यजाती वहाँ रहते थे। जब वे नावों से बाहर आये, एक व्यक्ति जो कब्रों के आप पास घूमा करता था उनकी ओर आया।

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कहानी ८१: याईर कि पुत्री और एक बीमार स्त्री

हाल ही में चेलों का यीशु के साथ कैसा नाटकीय क्षण रहा है! उन्होंने उसे शब्दो से तूफ़ान को थमते हुए देखा था। उन्होंने उसे एक खतरनाक इंसान को मानसिक रूप से स्थिर करते देखा। ऐसे चुंबकीय शिक्षक के भीतर से पूर्ण विजय निकल के आ रही थी।

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कहानी ८३: नासरत में वापसी और चेलों का भेजा जाना

कफरनहूम में अन्धे और मूक के उपचार के बाद, यीशु वापस नासरत अपने गृहनगर कि ओर गया।ऐसा करना एक बहुत साहसिक और बहादुरी का काम था। मसीह के विषय में हमने पिछली बार जो पढ़ा, नगरवासी एक चट्टान उसे दूर फेंकने की कोशिश में थे! यह कहानी शायद इस कहानी के होने के एक साल या डेढ़ साल पहले कि है।

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कहानी ८४: शिष्यों का भेजा जाना 

यीशु के जीवन के विषय में पढ़ते समय आपनी ध्यान दिया होगा कि, मत्ती के अध्याय पूरी तरह से मिल गए हैं। उद्धारण के लिये, हमने पांचवे अध्याय से लेकर सांतवे अध्याय को पड़ने से पहले आठवे अध्याय को पढ़ा।

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कहानी ८६: ५००० पुरुषों को खिलाना 

यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले कि मृत्यु के बाद चेले यीशु के पास वापस आ गए। वे सुसमाचार सुनाते हुए, दो दो कर के गलील के क्षेत्र में यात्रा करने लगे। इन्होने अपने सेवकाई के दौरान जो कुछ बीता उसे आकर यीशु को सुनाया। यीशु इन को परमेश्वर कि सामर्थ और अधिकार में प्रक्षिशण दे रहे थे।

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कहानी ८७: एक प्रकार का राजा

मत्ती कि किताब को जब आप पढ़ेंगे, आप देखेंगे कि पतरस को अधिक ध्यान दिया जा रहा था। वह इस प्रकार से कहानियों को बयान करता है कि उससे लगता है कि वह यीशु के करीबी मित्र है और चेलों का अगुवा भी।

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कहानी ९०: फरीसियों, सदूकियों, और हेरोदेस का खमीर

यीशु ने जीवन की रोटी होने का दावा किया था, और इसके विषय में शब्द जल्दी से फैल गया। उनके शिक्षण की खबर यरूशलेम पहुंच गयी और यहूदी अगुवों को क्रोधित कर दिया।लेकिन वे क्या कर सकता थे? उसने हर बहस के ऊपर विजय पाई, और भीड़ ने उसकी चँगाइयों को पसन्द किया।

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कहानी ९१: सुरुफ़िनीकी जाती कि स्त्री का विश्वास

फिर यीशु ने वह स्थान छोड़ दिया और सूर के आस-पास के प्रदेश को चल पड़ा। सूर भूमध्य सागर के किनारे बसा एक बड़ा शहर था। यह एक अन्यजातियों का शहर था। वह यहूदी दुश्मनो से अपने आप को दूर रख रहा था। वहाँ वह एक घर में गया। वह नहीं चाहता था कि किसी को भी उसके आने का पता चले।

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कहानी ९२: चार हज़ार लोगों को खिलाना

यीशु और उसके चेले गलील के सागर के किनारे थे, लेकिन वे दिकापुलिस में थे। यह दस शहरों का अन्यजातियों का शहर था। इस यहूदी क्षेत्र के बाहर था। वहाँ के लोग ऐसे थे जिनके साथ यहूदी बैठ कर भोजन नहीं करेंगे! फिर भी बड़ी भीड़ यीशु को देखने के लिए उमड़ रही थी। तीन दिन के बाद, यीशु को भीड़ पर तरस आया। उनके पास कुछ खाने को नहीं था!

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