कहानी ३७: लकवाग्रस्त की चंगाई

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कोढ़ी के चमत्कारी उपचार के बारे में शब्द दूर दूर तक फ़ैल गया। यीशु की लोकप्रियता बढ़ रहा थी, और नीचे दक्षिण यरूशलेम में लोग उसके बारे में अधिक से अधिक सुन रहे थे। याजक उत्सुक हो रहे थे। यह यीशु कौन था जो मंदिर में इतना साहसी हो गया था? गलील में इस चमत्कारी चंगाई के विषय में यह क्या अफवाह फ़ैल गई थी?

यीशु कोढ़ी को चंगा करने के कुछ दिनों के बाद, वह एक नाव पर चढ़ कर गलील के सागर को पार कर वापस कफरनहूम अपने शहर को चला गया। उसके घर आने के बारे में सबको जानने के लिए ज्यादा वक्त नहीं लगा।

फरीसी और कानून के शिक्षक गलील के सभी गांवों से आए थे। लेकिन न केवल स्थानीय धार्मिक नेता ही आये। यहूदिया और यरूशलेम से फरीसियों को भी भेजा गया था। वे आम जनता के लिए स्वर्ग के राज्य का प्रचार करने के लिए परिकल्पित इस आदमी की जाँच करना चाहते थे। वे यह परीक्षण करना चाहते थे की उसके उपचार शक्ति वास्तविक है या नहीं। यदि आवश्यक हो तो वे उसके सेवकाई पर रोक लगते यदि वह उनके विचार से सहमत नहीं था। ये लोग अपनेआप को धर्म के संरक्षक के रूप में खुद को देखते हैं। लेकिन क्या वे यहूदियों को अपने ही मसीहा से बचाएंगे? अब जब वह आ पहुंचा है तो क्या वे उसे पहचान लेते?

इस कहानी के दिन, यीशु कफरनहूम में एक घर में अध्यापन कर रहे था। इतने सारे लोग उस सुनने के लिए आये कि घर पूरी तरह से भर गया। लोग हर दरवाज़े से घुसे हुए थे, और किसी और को अंदर आने के लिए कोई जगह नहीं थी।

जैसे ही यीशु बोलने लगे, तो छत से एक आवाज़ हुई। कुछ लोगों ने यीशु के उल्लेखनीय चिकित्सा शक्ति के बारे में सुना था, और उनको लगा की वह उनके दोस्त को चंगा करने में सक्षम हो सकता है। वह एक लकवाग्रस्त हो गया था, और यह उसके संघर्ष को देखने के लिए दर्दनाक था। वे उसकी मदद करना चाहता थे। कितने शानदार दोस्त हैं!

कमरे के दरवाजे के माध्यम से अंदर आने का रास्ता नहीं था, लेकिन एक और रास्ता था। उस समय घरों की छतें फ्लैट थीं।वे मिट्टी की पट्टियों से बनाये गए थे। आम तौर पर यह करने के लिए अग्रणी घर के बाहर एक सीढ़ी लगाई जाती थी। ये समर्पित दोस्त अपने दोस्त को ऊपर छत पर उठा कर ले गए और मिट्टी के टाइल्स को हटाने लगे! उन्होंने कहा कि वे अपने मित्र को नीचे यीशु के पास लाएंगे!

कल्पना कीजीये कि एक कमरे में यीशु को बैठकर सुनना कैसा होगा। कल्पना कीजिये कि आप उन पुरुषों के पैरों कि आहट सुनते हैं, मिटटी की मेज़ों का खीचना और उठाना और मरे में थोड़ी रोशनी आना! अब कल्पना कीजिये कि एक चटाई कमरे के बीच में उतारी जा रही है। क्या आप अपने दिमाग में यह उस लकवाग्रस्त व्यक्ति को यीशु के चरणों पर लाकर डाला जा रहा है।यीशु अब इस व्यवधान के साथ क्या करने जा रहे हैं?

यीशु इन साहसी दोस्तों और टूटे हुए मनुष्य के विश्वास को देखकर विचलित हो गये। उसने उससे कहा, "'परेशान मत हो तुम्हारे पाप क्षमा हो चुके हैं।'"

वाह! यीशु ने उस व्यक्ति के सारे आसूं पोछ डाले जिसने सब घिनौने काम किये होंगे। परमेश्वर कि नज़र में वह अब सम्पूर्ण रूप से साफ हो चुका था।

जब फरीसियों और कानून के शिक्षकों ने सुना तो वे जानते थे की वास्तव उसका क्या मतलब है। उन्होंने सोचा, "'यह कौन व्यक्ति है जो ईश्वर कि निंदा कर रहा है? परमेश्वर के अलावा और कौन पापों को क्षमा कर सकता है?'" यह सच है कि केवल परमेश्वर के पास अधिकार है पापों को क्षमा करने का! यदि यीशु ऐसा करने का दावा कर रहा है तो वह स्वयं ही परमेश्वर होगा! यह ईश्वर कि निंदा है! यह सबसे घिनौना पाप है जो कोई कर सकता है। इससे परमेश्वर स्वयं अपमानित होते हैं! या तो यीशु सबसे बुरे पापी थे या फिर सच में वह परमेश्वर था! उसने स्पष्टिकरण के लिए जगह ही नहीं छोड़ी! इन अधिकारियों को कोई तो निर्णय लेना ही होगा। या तो वे उसे ईश्वर कि निंदा करने वाला कहते, जो मिर्त्यु के लायक पाप था, या फिर उसे प्रभु कहकर मान लेते।

यदि यह लोग यीशु को ऐसा कहते सुनते कि केवल परमेश्वर ही कर सकता है, तो वे उसे मान लेते। सबूत तो था। वह जहां भी जाता था वहाँ अद्भुद चमत्कार होते। बजाय इसके कि वे वहाँ खड़े रहते, वे इसकी अपने मनों में निंदा करते और गुस्सा होते। यीशु जानता था कि ये फरीसी क्या सोच रहे हैं। परमेश्वर का आत्मा उसके साथ था और उसे दिखा रहा जो उसे जानने की ज़रुरत थी। उसने उनसे कहा, "'तुम अपने मनों में बुरा क्यूँ सोच रहे हो? क्या कहना असान है, यह कि, तुम्हारे पाप क्षमा हो गये,' या, 'उठ, और चल'? परन्तु इसलिए कि तुम जान सको कि परमेश्वर के पास पाप क्षमा करने का अधिकार है.. '"

तब यीशु ने कुछ बहुत चमत्कारी और साहसी किया।उसने लकड़ा मारा हुए व्यक्ति से कहा, "'उठ, अपना बिस्तर ले और घर को जा'"

उस व्यक्ति ने ठीक वैसे ही किया जैसे कि यीशु ने आदेश दिया था। सब लोगों के सामने उठने के लिए कितने विश्वास कि ज़रुरत हुई होगी! लेकिन उसने किया। उसके सुकड़े हुए पैर जो इतने समय से बेकार थे, अब मज़बूत और सम्पूर्ण थे। उसने अपनी चटाई उठाई और सबके सामने से उठ कर चला गया! क्या आप उसकी ख़ुशी का अंदाजा लगा सकते हैं जब वह  के साथ घर को गया? कितने साल बीत  वह  जा नहीं पा रहा होगा? प्रभू यीशु ने उसे वो ताकत दी जो उस भयंकर बिमारी ने उससे छीन ली थी, और अब वह एक नए जीवन में प्रवेश कर रहा था!

आप सोचते होंगे कि वे सब लोग जिन्होंने ये अद्भुद चमत्कार देखे वे लोग अपना संतुलन ख़ुशी के मारे खो बैठे होंगे। आप सोचते होंगे कि कठोर से कठोर ह्र्दय यीशु को परमेश्वर कर के मान लेगा। लेकिन धार्मिक अग्वे घमंड से भरे हुए थे। मसीह के थे कि होना चाहिए, और उनके ह्रद्य कुछ भी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे।

ज़रा सोचिये, वे क्या थे। पृथ्वी का बनाने वाला उनके बीच में खड़ा है, और वे अपने विचारों में लगे हुए थे की परमेश्वर कैसा होना चाहिए! क्या वे अपने आप को धोका देते रहेंगे? क्या उनकी आँखें कभी खुलेंगी?

बाकी के यहूदी इतने कठोर दिल के नहीं थे। उन्होंने उस खूबसूरती को देखा जो उस लकवे से पीड़ित व्यक्ति के ठीक होने में दिखीऔर वे विस्मय और आश्चर्य से भर गए। वे प्रभु कि महिमा करने लगे और कहा, "'हमने आज बहुत आश्चर्य कर्म होते देखे!'"