कहानी ८०: एक अकेले बंदी कि स्वतंत्रता
प्रभु यीशु ने शक्तिशाली तूफान को शांत किया। वह और उसके चेले गदरेनियो नामक क्षेत्र को सागर के दूसरे पक्ष कि ओर रवाना हुए। यह गलील के दूसरी ओर था, और बहुत से अन्यजाती वहाँ रहते थे। जब वे नावों से बाहर आये, एक व्यक्ति जो कब्रों के आप पास घूमा करता था उनकी ओर आया।
वह एक स्थानीय शहर से था, लेकिन वे खतरनाक थे इसलिए उसे बाहर निकल दिया था।उसके अंदर दुष्टात्माओं का प्रवेश था। उसके हाथ और पाओं में जब हथकड़ी और बेड़ियाँ डाली जातीं, उसके भीतर कि दुष्टात्माएं उसकी बेड़ियों का चकनाचूर कर देती। वह उन्हें तोड़ देता था। कोई इतना ताक़तवर नहीं था कि उसे पकड़ कर रख सके या दूसरों को हानि पहुचने से रोक सकें। सो आस पास के नगरों के लोगों ने उसे बाहर निकल दिया था। वह कब्रों में नंगा और अकेला बहुत सालों से रह रहा था।
इस एक आदमी के आतंक की कल्पना कीजिये जो उसने उस क्षेत्र के लोगों के लिए फैलाई हुई थी। वह इतना हिंसक था कि कोई भी उस सड़क से जाता नहीं था। फिर भी दुष्टात्माओं का सबसे बुरा शिकार यह आदमी खुद था। कब्रों और पहाड़ियों में रात-दिन लगातार, वह चीखता-पुकारता अपने को पत्थरों से घायल करता रहता था। कितना भयंकर बंधन है यह! दुष्ट और उसके चेले पूरे मानव जाती को नष्ट कर देना चाहते हैं। यह हताश आत्मा दिखाना चाहती है कि हमारे साथ क्या कर सकती है।
जब उस व्यक्ति ने सबसे पहले यीशु को देखा, तब वह बहुत दूर था। उसके अंदर कि दुष्ट आत्माओं ने उसे यीशु के पास तेज़ी से भगाया। यीशु कि शक्तिशाली उपस्थिति उससे छुटकारा पाने के लिए काफी थी।
यीशु ने आज्ञा दी, "'ओ दुष्टात्मा, इस मनुष्य में से निकल आ।”उसके सामने प्रणाम करता हुआ गिर पड़ा, और ऊँचे स्वर में पुकारते हुए बोला, “सबसे महान परमेश्वर के पुत्र, हे यीशु! तू मुझसे क्या चाहता है? तुझे परमेश्वर की शपथ, मेरी विनती है तू मुझे यातना मत दे।”
सुस्त आत्माएं उसके गले और उसके मुंह का उपयोग करके बोल रही थीं। वे कितने अशिष्ट थे। ऐसा लगता था कि मानो वे कह रहीं हों,"तुम अपना काम करो!" क्यूंकि वे जानते थे कि यीशु कौन है। एक समय में वे स्वर्गदूत थे, जो स्वर्ग में परमेश्वर कि सेवा किया करते थे। सिंहासन पर बैठे हुए का वह पुत्र था! उन्होंने उसे उसके दिव्य महिमा में देखा हुआ था!
उन्हें यह भी पता था कि उनका मानवता पर अत्याचार और परेशान करने का उनका समय हमेशा के लिए नहीं रहने वाला था। दुष्ट आत्माओं का और दुष्ट मनुष्य के न्याय के लिए एक समय नियुक्त किया गया है। इस युग के समाप्त होने पर सब को दंड दिया जाएगा। इन दुष्ट आत्माओं को यह डर था कि परमेश्वर का पुत्र कहीं समय से पहले उन्हें सज़ा न देदे। आप ने यह ध्यान दिया कि उन्होंने उसके साथ बेहेस नहीं कि और ना ही यीशु पर अपनी कोई चाल चली? ये धोखेबाज, नीचे गिरे हुए, और गन्दी आत्माएं जानती थी कि वह कितना शक्तिशाली है, वह सृष्टिकर्ता है और वे उससे के साथ कोई खेल खेलने की कोशिश नहीं कर रहे थे।
तब यीशु ने उससे पूछा, “तेरा नाम क्या है?”
और उसने उसे बताया, “मेरा नाम लीजन अर्थात् सेना है क्योंकि हम बहुत से हैं।”
वाह। एक लीजन यानि ६००० रोमी सैनिक हो सकते हैं। इस भयानक नीच मनुष्य को बहुत सी शैतानी आत्माएं सताती थीं। वे यीशु से बिनती करती रहती थीं कि उन्हें वह पाताल में ना भेजे, जहां वे जानते थे कि उन्हें अनन्त पीड़ा में रहना पड़ेगा।
वहीं पहाड़ी पर उस समय कम से कम २००० सुअरों का एक बड़ा सा रेवड़ चर रहा था।दुष्टात्माओं ने उससे विनती की, “हमें उन सुअरों में भेज दो ताकि हम उन में समा जायें।” उस पाताल में जाने से तो यही बहतर था।
और उसने उन्हें अनुमति दे दी,"'चले जाओ!'"
फिर दुष्टात्माएँ उस व्यक्ति में से निकल कर सुअरों में समा गयी। उनकी दुष्ट उपस्थिति ने लुढ़कते-पुढ़कते पहाड़ी के नीचे जा गिराया। उन खुरों कि गरजनदार आवाज़ें, और उन असहाय पशुओं के चिल्लाने कि कल्पना कीजिये। उन सूअरों को चराने वालों के सदमे को जब उन्होंने अपने जानवरों को मौत के मूह में जाते देखा हो। दुष्ट आत्माएं ऐसी दुनिया चाहते थे। वे विक्षिप्तता को लेकर आये, कब्र का जीवन, पागलपन, आत्म घृणा और संपत्ति का कुल विनाश करना। उन सुअरों के मालिको का उस दिन भारी नुक्सान हुआ।
फिर रेवड़ के रखवालों ने जो भाग खड़े हुए थे, शहर और गाँव में जा कर यह समाचार सुनाया। तब जो कुछ हुआ था, उसे देखने लोग वहाँ आये। वे यीशु के पास पहुँचे और देखा कि वह व्यक्ति जिस पर दुष्टात्माएँ सवार थीं, कपड़े पहने पूरी तरह सचेत वहाँ बैठा है, और यह वही था जिस में दुष्टात्माओं की पूरी सेना समाई थी।
जब भीड़ ने उसे देखा तो वे दर गए। वे इस व्यक्ति के भयंकर व्यवहार के साथ बहुत सालों से रह रहे थे। उसको रोकना और अपने आप को उसके हिंसा और आतंक से बचाना उनके लिए काफी कष्टदायी रहा। उन्होंने अपने बच्चों को उससे बचा के रखा और उससे बचने के लिए दूसरे मार्ग से जाते थे। वे यह जानते थे कि इस व्यक्ति का पूर्ण रूप से सही होना अशंभव था। वे उस चमत्कार से जागरूक थे और वे डरे हुए थे।
जिन्होंने वह घटना देखि, वे भेद को बताने लगे कि कैसे यीशु ने उन दुष्ट आत्माओं को उस व्यक्ति के अंदर से निकली। उन्होंने बताया कि कैसे सुअर झील में जा गिरे। गेरसेनियो के लोग और उसके आस पास के क्षेत्र के लोग यीशु से बिनती करने लगे कि वो वहाँ से चला जाये। वे उसे उस क्षेत्र में नहीं चाहते थे।
सो यीशु नीचे कि ओर गया और एक कश्ती में बैठ गया। और फिर जब यीशु नाव पर चढ़ रहा था तभी जिस व्यक्ति में दुष्टात्माएँ थीं, यीशु से विनती करने लगा कि वह उसे भी अपने साथ ले ले। किन्तु यीशु ने उसे अपने साथ चलने की अनुमति नहीं दी। और उससे कहा, “अपने ही लोगों के बीच घर चला जा और उन्हें वह सब बता जो प्रभु ने तेरे लिये किया है। और उन्हें यह भी बता कि प्रभु ने दया कैसे की।”
इस आदमी के पागलपन ने उसके परिवार को इतने सालों से कितना दर्द्नाक बना दिया था। उसको अपने समक्ष में इतना शांत, एक संतुलित दिमाग के साथ देखना कितना आनंद समय रहा होगा। यीशु ने उसके जीवन को कितनी खूबसूरती से बहाल कर दिया था, और ना केवल उसी के लिए बल्कि उन सब के लिए भी जो उससे प्रेम करते थे। फिर वह चला गया और दिकपुलिस के लोगों को बताने लगा कि यीशु ने उसके लिये कितना बड़ा काम किया है। दिकपुलिस दस शहरों का एक क्षेत्र था जो गलील महासागर और इस्राएल देश कि यरदन नदी के दूसरी ओर था। लेकिन वह यहूदीयों द्वारा तुच्छ माना जाने वाला अन्यजातियों का क्षेत्र था। लेकिन अब, यह व्यक्ति जो बुराई के बंधन में था वह जाकर खोये हुओं को सुसमाचार को सुना रहा था। परमेश्वर ने उसे राजाओ के राजा और प्रभुओँ के प्रभु के विषय में बताने का सबसे पवित्र कार्य करने के लिए चुन लिया था!