कहानी ३०: सामरी औरत

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केवल यूहन्ना के चेले ही नहीं थे जिन्होंने यीशु की लोकप्रियता को देखा। फरीसियों का भी उस पर ध्यान जा रहा था। सच तो यह था की यीशु स्वयं नहीं परन्तु उसके चेले बपतिस्मा दे रहे थे।

कहीं उसी समय राजा हेरोदेस को मालूम पड़ा की यूहन्ना ने उसके खिलाफ बात की थी। यह उस हेरोदेस राजा का पुत्र था जिसने यीशु के जन्म के बाद छोटे बालकों को मरवाया था। यह नया दावेदार राजा अपने पिता से कुछ कम नहीं था। वह बहुत दुष्ट काम कर रहा था, और वह नहीं चाहता था की यूहन्ना उसके विषय में चर्चा करे सो उसने उसे जेल में डाल दिया। यीशु को यूहन्ना के जेल जाने के विषय में मालूम हो गया था। उसे यह भी मालूम हो गया था की फरीसी उसकी सेवकाई में दिलचस्पी ले रहे हैं तो वह यहूदिया छोड़ उत्तर की ओर वापस गलील को चला गया।

क्या आप समझ सकते हैं कि लोग सारे देशभर में कैसी बातें कर रहे थे? यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला जैल में था, और यह यीशु को मालूम हो गया था, इसलिए वह वापस उत्तर कि ओर चला गया। ये पुरुष कौन थे? क्या वे परमेश्वर कि ओर से भेजे गए थे? क्या उनकी सेवकाई समाप्त हो गयी थी?

यीशु गलील कि ओर सफ़र कर यात्रा कर रहा था, तब वह एक सामरिया नामक क्षेत्र से गुज़रा। यह लगभग बयालीस मील उत्तर यरूशलेम की ओर था। अब यह बहुत दिलचस्प है की यीशु सामरिया के रास्ते पर गया। यहूदि लोग आमतौर पर इस राह से नहीं जाते थे। यहूदी लोग सामरी के लोगों को पसंद नहीं करते थे। जब वे उत्तर में गलील के यहूदी क्षेत्र और दक्षिण में यहूदिया के बीच यात्रा करते थे, तब वे सामरिया के क्षेत्र से बचने के लिए लंबे और विशेष राह से जाते थे!

कई सालों पहले, उनके अपने यहूदी रिश्तेदार सामरी क्षेत्र में रह चुके थे। पूर्व में यह इस्राएल का उत्तरी राज्य कहलाया जाता था। उत्तरी राज्य के यहूदियों ने नीच दुष्टता करके परमेश्वर से दूर हो गये थे। उनके पाप और मूर्तियों की पूजा भीषण था। परमेश्वर ने अपने निर्भय नबियों के द्वारा उन्हें चेतावनी दी थी, परन्तु फिर भी वे बदलने से इनकार करते रहे। उनके राजा उनसे गहरे पाप कराते रहे, और अंत में, परमेश्वर का न्याय उनपर नीचे उतर कर आया। उसने उत्तरी राज्य पर असीरिया देश को आक्रमण करने के लिए भेजा और जो यहूदी वहाँ रहते थे उनको क़ैदी बनाएं। वे उन्हें ग़ुलाम बनाकर काम करने के लिए दूर शहरों में भेजते थे। केवल थोड़े ही थे जिनको उसी शहर में रहने कि अनुमति थी। तब असीरियों ने उन लोगों को यहूदियों के बीच बसा दिया जिनको वे दूर देशों से पकड़ कर लाये थे।

यहूदी लोग उन सब को अन्यजाती कहते थे जो इब्राहिम के वंश के नहीं थे और जो उनकी बाइबिल को नहीं मानते थे। बाइबिल के द्वारा उन्हें अन्यजातियों से शादी और उनकी मूर्ती पूजा करने से मना किया गया था। जितने यहूदी पीछे रह गए थे उन्होंने परमेश्वर की आज्ञाओं को नहीं माना। वे परदेसियों के हाथों में गिर गए, उनके बच्चों से शादी करने और उनकी मूर्तियों की पूजा करने लगे। उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विषय में झूठी साक्षी दी। वे तोरा पर विश्वास करते थे, परन्तु पुराने नियम के शेष भाग पर नहीं। वे कहते थे की मूसा केवल एक नबी है। वे यह भी कहते थे की येरूशलेम का पवित्र मंदिर नहीं परन्तु उनका अपना पहाड़, गरीज़िम की चोटी परमेश्वर कि आराधना के लिए चुना हुआ था।

यहूदिया में दक्षिण के यहूदी लोग उन्हें पसंद नहीं थे। उत्तरी राज्य के यहूदियों ने परमेश्वर के रास्ते पर चलने से विश्वासघात किया और उस वायदे के देश का अपना हिस्सा खो दिया। जो पीछे रह गए थे उनका विश्वासघात और भी गम्भीर था क्युंकि उन्होंने झूठे ईश्वरों कि पूजा को सच्चे और एकमात्र परमेश्वर के साथ मिला दिया था। यीशु के आने के समय तक, दुष्मनी सालों साल तक होती रही।

लेकिन यीशु इस दुनिया की समस्याओं और प्रति घृणा से बंधा नहीं था। उन्होंने ने केवल अपने पिता की इच्छा को पूरा किया जो स्वर्ग में है, और उसके द्वारा परमेश्वर एक बहुत बड़ा कार्य करने जा रहा था। यीशु अपने चेलों को सामरिया के क्षेत्र से ले गया। वे सिकार नामक क्षेत्र पहुंचे। यहूदियों को यह स्थान स्मरण आया क्युंकि यह उस देश के निकट था जो उनके परदादा याकूब ने अपने पुत्र युसूफ को दिया था। वह एक युसूफ नामक कुआँ था, और जब वे वहाँ पहुंचे, यीशु ने विश्राम किया। दोपहर का वक़्त हो चला था और यीशु यात्रा कर के थक चुके थे। उस बीच, उसके चेले कुछ भोजन ढूंढ़ने चले गए।

जब यीशु वहाँ बैठे थे, तब एक स्त्री वहाँ पानी लेने के लिए आई। यह एक अअनुचित समय था उसके आने का। ऐसे दिन के सबसे गरम समय पर इतने भारी पानी से भरे घड़े उठाने कि क्या आवश्यकता थी? वह और स्त्रियों के साथ शाम के ठन्डे में क्युं नहीं आई? और स्त्रियों के साथ ना आने का एक कारण था। एक बहुत ही बुरी स्त्री होने का इसका नाम खराब हो रखा था। और सबसे दुःख कि बात यह थी की वह इसके लायक थी।

जब यीशु ने उसे देखा तो उससे कहा, "क्या तुम मुझे पानी दोगी?"

उस स्त्री को अचंभा हुआ। यहूदी सामरियों से बात नहीं करते थे।! और वे ऐसी स्त्री से बात नहीं करते थे! उसने उससे पुछा "आप एक यहूदी हैं और मैं एक सामरी। आप मुझसे पानी के लिए कैसे पूछ सकते हैं?"

जो बात यह स्त्री नहीं समझ पायी वह यह थी कि यीशु पानी के लिए नहीं पूछ रहे थे। वे उसके ह्रदय कि गहराई को खोजने जा रहे थे। सो उसने कहा, "तुम परमेश्वर के उस इनाम के विषय में जानती हो और यह भी की कौन तुमसे पानी मांग रहा है, तुमने उससे माँगा होता तो वह तुम्हे जीवन का जल देता,"।

यह कितना अजीब उत्तर था। आपको क्या लगता है कि यीशु का क्या मतलब होगा? सवाल वह पूछ रहा था कि, उसे कौन से जीवन के जल के विषय में उससे पूछना चाहिए था? बहुत बार यीशु लोगों से बहुत कठिन प्रश्न पूछते थे जिनका कि कोई सही उत्तर नहीं था। वे उसे रोज़ करने वाली बातों के रूप में उत्तर नहीं दे सकते थे। वे यह सोचने पर मजबूर हो जाते थे कि वह क्या कह रहा है। उन्हें गहरायी में जाने के अवसर मिलता था, और जो वह जानते थे उससे भी महान सच्चाई को जानने का अवसर मिला।यीशु इस सामरी औरत को एक मौका दे रहे थे की वह उसे एक सामान्य यहूदी आदमी से भी बारह कर देखे। वह उसे यह दिखाना चाह रहे थे कि वही मसीहा थे !

उस स्त्री ने उससे वापस पुछा, "स्वामी, आपके पास पानी निकालने के लिए कुछ भी नहीं है और कुआं बहुत गहरा है। आप इस जीवन देने वाले जल को कहाँ से लाओगे? क्या आप हमारे पिता यकूब से भी महान हैं जिसने हमें यह कुआं दिया और स्वयं उसने इसमें से पीया, जैसे कि उसके पुत्रों और जानवरों ने किया?"

यह स्त्री नहीं समझ पाई कि यीशु क्या कह रहे हैं। असल में वह झगड़ा करना चाहती थी। वह यह जानती थी की यदि कोई भी सामरी पुरुष याकूब को पिता कहकर पुकारेगा तो यहूदी इससे बहुत क्रोधित हो जाएंगे! यह उनके देश के महान पिता के प्रती अपमान था। वह चुने हुओं में से एक नहीं थी!

यीशु उसके साथ बहस करने के लिए नहीं आया था। वह उसे सच्चाई दिखने के लिए आए थे। सो उसने कहा, " हर एक जो इस कुआँ का पानी पीता है, उसे फिर प्यास लगेगी। किन्तु वह जो उस जल को पियेगा, जिसे मैं दूँगा, फिर कभी प्यासा नहीं रहेगा। बल्कि मेरा दिया हुआ जल उसके अन्तर में एक पानी के झरने का रूप ले लेगा जो उमड़-घुमड़ कर उसे अनन्त जीवन प्रदान करेगा।” इसे दुबारा पढ़ें। यीशु का क्या अर्थ था? अपने ऐसे किसी जल के विषय में सुना है जो हमेशा के लिए प्यास को बुझा देता हैं? क्या आपको लगता है कि वह सच्चे जल कि बात कर रहा है ?या वह और किसी चीज़ को सम्बोधित करने के लिए उस जल का उपयोग कर रहा है? यह कैसा स्त्रोत है जिसके विषय में यीशु ने कहा कि उसके अंदर से उछल कर निकलेगा?

स्त्री ने उससे कहा, "स्वामी, मुझे यह जल दीजिये ताकि मुझे यहाँ बार बार पानी लेने के लिए न आना पड़े। "

यीशु उसे जीवन का जल देने के लिए योजना बना रहे थे,परन्तु उसके जीवन के कुछ क्षेत्र पाप से भरे हुए थे। सो उसने कहा, "जा, अपने पतियों को मेरे पास ला। "

उसने कहा,"मेरे पास कोई पति नहीं हैं। "

तब यीशु ने कहा, "तू ठीक कहती है कि तेरे पास कोई पति नहीं है। तुम्हारे पास पांच पति हो चुके हैं, और अब जिसके साथ तू रह रही है वह भी तेरा पति नहीं है। तूने अभी जो कहा वह सही है।"

उसने कहा, "स्वामी, मैं यह जानती हूँ कि आप एक नबी हैं। हमारे बाप- दादे पहर्डों पर अराधना करते थे, लेकिन आप यहूदी लोग येरूशलेम में जाकर अराधना करने को कहते हैं।"

वह स्त्री जानती थी कि जो यीशु उसके विषय में कह रहे हैं वह सत्य है, लेकिन वह उसके बारे में बात नहीं करना चाहती थी। सो उसने विषय ही बदल दिया! वह दूसरे विषय पर इस यहूदी मनुष्य से बहस करना चाहती थी जो उसके जीवन और पाप के बारे में उससे अधिक समझता था।

येरूशलेम में मंदिर बनाने के लिए परमेश्वर ने अपने लोगों को दिशा बहुत ही स्पष्ट रूप से दिखाया था। पूरा कार्य होने के पश्चात राजा सुलेमान के कर्मचारियों ने जश्न मनाया। इस उल्लसित जश्न के बीच उन्होंने जीवते परमेश्वर की उपस्थिति को मंदिर पर उतरते देखा। फिर भी यह स्त्री झूठ से यह दावा कर रही थी कि परमेश्वर का पवित्र स्थान गेरिज़िम की चोटी है। यदि उसने ऐसा अन्य यहूदियों से कहा होता, तो वे गुस्से से लाल हो जाते! लेकिन यीशु के पास उस दिन के लिए बड़ी योजनाएं थीं और वह किसी भी रीति से विचलित नहीं होने वाला था।

"'हे स्त्री, मेरा विश्वास कर कि समय आ रहा है जब तुम परम पिता की आराधना न इस पर्वत पर करोगे और न यरूशलेम में। तुम सामरी लोग उसे नहीं जानते जिसकी आराधना करते हो। पर हम यहूदी उसे जानते हैं जिसकी आराधना करते हैं। क्योंकि उद्धार यहूदियों में से ही है। पर समय आ रहा है और आ ही गया है जब सच्चे उपासक पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई में करेंगे। परम पिता ऐसा ही उपासक चाहता है। परमेश्वर आत्मा है और इसीलिए जो उसकी आराधना करें उन्हें आत्मा और सच्चाई में ही उसकी आराधना करनी होगी।”'
यूहन्ना ४ः२१-२४

वाह! यीशु बहुत सी महत्वपूर्ण बातों की घोषणा इस उलझन में फंसी और टूटी हुई महिला से कर रहे थे। सबसे पहले,उन्होंने उसे पिता की आराधना करने को कहा। उन्होंने ने उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जैसे की उसके पास परमेश्वर के लिए कुछ भेंट हो या वह इसके योग्य है। उसके संभावना परमेश्वर के साथ अभी खत्म नहीं हुईं थीं।

सैकड़ों वर्ष के लिए , स्वयं यीशु ने यरूशलेम के मंदिर में अराधना करने को ठहराया था। लेकिन अब प्रभु यीशु ने यह घोषित कर दिया था कि सब कुछ बदलने जा रहा था। परमेश्वर एक नया काम करने जा रहा था।  यरूशलेम का मंदिर अब कभी भी सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर की अराधना करने के लिए नहीं रहेगा।  परमेश्वर चाहता था कि जो उसकी अराधाना करने को आएं वे आत्मा और सच्चाई के साथ आएं। उस स्त्री का बहस करना अब मायने नहीं रखता था क्युंकि गेरिज़िम की चोटी या वह मंदिर भी कोई मायने नहीं रखने वाला था।  यीशु यह घोषित कर रहे थे की हज़ारों साल की मंदिर में आराधना करने के बाद , परमेश्वर कुछ बहुत ही अलग करने वाला था। दुनिया अब बदलने वाली थी !

जब वह स्त्री सुन रही थी, वह यह सोच रही थी कि यह व्यक्ती कौन है जो ऐसी घोषणा कर रहा था। "'मैं जानती हूँ की मसीहा आ रहा है।  जब वह आएगा , तब वह हमें सब बातें समझा देगा। '"

यीशु ने सबसे आश्चार्यपूर्ण बात कही ,"'मैं जो तुमसे बोलता हुईं ,मैं ही वह हूँ। '" वाह ! यीशु ने आखिरकार यह घोषित कर दिया था की वह वास्तव में कौन हैं! लेकिन क्यों उन्होंने वह समय उस महिला के होते चुना? उन्होंने अभी तक किसी जो स्पष्ट नहीं किया था! उन्होंने क्यूँ इस बदचलन औरत के साथ इतने खुलकर बात की और दूसरों के साथ पहेलियों से? जो भीड़ बपतिस्मा लेने को आई थी उनको भी उसने नहीं बताया था। उन्होंने चेलों को भी नहीं बताया था। फिर भी उन्होंने ने एक टूटी हुई, शर्मनात विदेशी स्त्री को घोषित किया को एक पाप का जीवन व्यतीत कर रही थी। क्यों ?

यूहन्ना का इस कहानी को बताने का एक कारण यह था , की वह जानता था की उसके समय के यहूदी यह विचार नहीं पसंद कारेंगे की मसीहा यहूदियों के अलावा सब के लिए आया था। यदी वे इस कहानी को पर्हते तो वे यह पसंद नहीं करते की वह एक सामरी से बात करता था। और उन्हें और भी नहीं अछा लगता की वह उस स्त्री से बातें करता है जिसे स्वयं सामरी लोगों ने अस्वीकार कर दिया था। परन्तु यही वो सन्देश है जो सारे यहूदी और सब लोगों को सुनने की ज़रुरत थी। यीशु ने अपने सारे समय के नियमों को पार करके इन लोगों को प्रेम की महानता दिखाई।मसीह का अनुग्रह किसी के भी कल्पना से कहीं ज़यादा था , और वह छोटे से भो छोटे मनुष्य के ऊपर उंडेला जाने वाला था। प्रभू यीशु स्वर्ग के राज्य के द्वार को खोलने वाला था , और वह सबको निमंत्रित कर रहा था जो उसपर विश्वास करते। बड़े से बड़े पापी का भी स्वागत था! इस अकेली, टूटी स्त्री को मसीह ने सबसे पहले अपने आप को दर्शाया था!

जैसे ही यीशु ने यह बात कहकर की वही मसीहा है, उसके चेले उसके पास चले आये। वे यह देखकर अचम्भा हुए की यीशु एक स्त्री से बात कर रहे हैं।पुरुष किसी भी स्त्री से बात नहीं कर सकते थे जिसे वे नहीं जानते थे।लेकिन उनमें से किसी ने भी यीशु से नहीं पुछा की वह क्या बात कर रहा है या उसे क्या चाहिए था।

उस स्त्री ने यीशु की बातें सुनी और उठ कर के शहर की ओर दौड़ गयी। वह इतनी जल्दी में थी कि अपना घड़ा वहीं छोड़ दिया। वह नगर के लोगों को बताने लगी की,"आओ और उस पुरुष को देखो  बारे में सब कुछ बताया है जो मैंने किया। क्या यही यीशु हो सकता है?'" यह इस स्त्री की हिम्मत की बात थी कि उसने उन सब लोगों को बताया जो इतने सालों से उसे धुतकारते थे। उसका क्या विश्वास और नम्रता थी की अपने पाप के विषय में सब लोगों को बताया ताकी उस अनजान व्यक्ती की महिमा कर सके जो उसे कुएं के पास मिला।! यह कितनी सुन्दर बात है की उस स्त्री के द्वारा मसीह का पूरी दुनिया में पहला सन्देश पहुंचे, जिसका जीवन पाप के श्राप के कारण बिखर गया था! वह पाप के श्राप को ख़तम करने के लिए आया था, और उसके ह्रदय की चंगाई उन आशीशों का चिन्ह है जो आने वाले हैं!

नगरवासियों ने यीशु के गवाही द्वारा सुनी और उसे मिलनेके लिए चले गए। इस बीच, यीशु के चेलों ने उसे कुछ खाने को कहा जो वे अपने साथ लाये थे। यीशु ने कहा,"मेरे पास खाने के लिए ऐसा भोजन है जिसके बारे में तुम कुछ भी नहीं जानते। '"

इससे चेले भ्रमित हो गए। मुझे भी यह भ्रमित कर देता ! उसके क्या मतलब था? उन्होंने ने एक दूसरे से पुछा,"'क्या किसी ने उसके लिए भोजन लाया होगा?'"

यीशु जानता था की वे समझ नहीं पाये हैं, सो उसने उनको समझाया ;

“मेरा भोजन उसकी इच्छा को पूरा करना है जिसने मुझे भेजा है। और उस काम को पूरा करना है जो मुझे सौंपा गया है। तुम अक्सर कहते हो, ‘चार महीने और हैं तब फ़सल आयेगी।’ देखो, मैं तुम्हें बताता हूँ अपनी आँखें खोलो और खेतों की तरफ़ देखो वे कटने के लिए तैयार हो चुके हैं। वह जो कटाई कर रहा है, अपनी मज़दूरी पा रहा है। और अनन्त जीवन के लिये फसल इकट्ठी कर रहा है। ताकि फ़सल बोने वाला और काटने वाला दोनों ही साथ-साथ आनन्दित हो सकें। यह कथन वास्तव में सच है: ‘एक व्यक्ति बोता है और दूसरा व्यक्ति काटता है।’मैंने तुम्हें उस फ़सल को काटने भेजा है जिस पर तुम्हारी मेहनत नहीं लगी है। जिस पर दूसरों ने मेहनत की है और उनकी मेहनत का फल तुम्हें मिला है।”

जैसे जैसे नगरवासी यीशु को सुनने के लिए आये, उन्होंने यीशु की बातों का प्रमाण दिया की वे सत्य हैं। बहुतों ने उस पापी स्त्री की बातों को  यीशु पर विश्वास किया।  उसने कहा ," उसने वह सब कुछ बताया जो मैंने किया था !" उसके पाप मान लेने की सच्चाई और स्वतंत्रता ने उसके सभी पड़ोसियों के दिलों के चीर के रख दिया था। उन्होंने ने उसके जीवन को देखा था , इसलिए वे उस समर्थ को समझ पाये जो यीशु ने कुएं पर दिखाई !

क्यूंकि बहुतेरे ह्रदय परमेश्वर के राज्य के लिए पलट रहे थे सो ये घटनाएं यीशु के ह्रदय के लिए एक बड़े भोज के सामान थीं। सामरिया के लोगों ने यीशु से रुकने के लिए बिनती की। बहुत कुछ था सीखने के लिए! सो उनके साथ यीशु और उसके चेलों ने दो दिन और बिताये।  उसने अपनी सिद्ध बुद्धि के द्वारा सिखाया , और अधिक लोग उस पर विश्वास कर .उन्होंने उस स्त्री से कहा "हम केवल इसीलिए नहीं विश्वास करते कि तुमने जो कहा ,हमने स्वयं ही सुन लिए है , और अब हम भी जान गए हैं कि सच में यह मनुष्य इस दुनिया का उद्धारकर्ता  है। '"

वाह! फसल वास्तव में बहुत अच्छा था! उनके दिल खुले थे और परमेश्वर का वचन सुनने के लिए तैयार थे !

क्या आप इस बात कि कल्पना कर सकते हैं की यह कितना अद्बुध होगा जब हम यीशु के पास बैठ कर उसकी बातों को सुनेंगे जो वह हमें सिखाएगा? उस कमरा का कैसा उज्जवल और मुक्त वातावरण हुआ जब लोगों ने अपने ह्रदयों के बोझ को रखा और अपने उद्धारकर्ता को जानने की वह अद्बुध राहत महसूस की? यह वे लोग थे जो सैकड़ों सालों से यहूदियों द्वारा अस्वीकार किये जा रहे थे, और अब वह मसीहा उनके पास बाहें फैलाये आ गया था। उसने उनको अपने राज्य में स्वागत किया , और विश्वास के साथ उन्होंने प्रवेश किया ! स्वर्गदूतों ने उस दिन कितना जश्न मनाया होगा!

उस दिन के बाद , यीशु ने प्रचार करना शुर किया।  वह उस सुसमाचार को सुनना चाहता था, जो परमेष्वर के उस योजनाः के विषय में है को परमेश्वर अन्धकार के राज्य में वह उद्धार लाना चाहता है जो इस दुनिया में आ गया था। यीशु ने कहा कि पुराने नियम की भविष्यवाणियों का पूरा होने का समय आ गया था।  यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने वह राह तैयार कर दिया था, और अब वह आ गया था ! यीशु ने पुकार कर कहा ,"पश्चाताप करो! क्युंकी परमेश्वर का राज्य आ गया है ! सुसमाचार पर विश्वास करो !'"
प्रभु यीशु ने कितना चाहा होगा कि वे उसके वचनों पर विश्वास करें! उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना न था जब उन्होंने विश्वास किया! यही वो महान प्यार है जिसके लिए वह आया था!