कहानी ७५: सच्चा परिवार
यीशु येरुशलम से धार्मिक अगुवों के विशाल विरोध के बाद वे भीड़ से वार्तालाप करते रहे। उस पूरे समय उनका परिवार नासरत से कफरनहूम को यात्रा करते रहे। उन्होंने सुना था कि यीशु गलील के अपने अंतिम उपदेश के दौरे से लौटे था, और अब वह अपने करीबी मित्रों में से एक के घर में था। यह सही समय था। वे उसे लेने के लिए जा रहे थे। यह मरियम और उसके दुसरे पुत्रों को स्पष्ट था कि यीशु के कुछ सही नहीं था। उसको पकड़ कर और घर वापस लाने कि उनकी योजना थी ताकि वह और कोई मुसीबत में न पड़े।
क्यूँ? यीशु ने ऐसा क्या किया था जो इतना पागल कर देने वाली बात थी? और उनके अपने परिवार यह क्यूँ नहीं समझ पा रहे थे कि वह पमेश्वर कि मर्ज़ी को पूरा कर रहे थे? मरियम क्या सोच रही थी ? क्या उन्होंने सुना था कि कैसे येरूशलेम से उससे पूछ ताछ करने के लिए अगुवे आ रहे थे? क्या उन्होंने सुना था कि फरीसी उसे मारने के लिए आ रहे थे? क्या उन्हें यह मालूम था कि इसके पश्चात् कि भीड़ उसके पीछे चल रही थी, परन्तु गलील के सारे शहर के लोगों ने पश्चाताप करने से इंकार कर दिया था? क्या वे यह सोचते थे कि उसको केवल सेवकाई ही करनी चाहिए जिससे कि वह सुरक्षित और प्रसिद्ध रहेगा? क्या वे कल्पना कर सकते थे कि वे उस पर नियंत्रण रख सकते थे? क्या उन्हें सच्च में लग रहा था कि वह मानसिक संतुलन खो रहा है? जो कुछ भी उनके दिमाग में चल रहा था, परमेश्वर कि मर्ज़ी को पूरा ना करने का उनका विचार था। यदि उसकी माँ और भाई उसके विरुद्ध होते हैं तो वह क्या करेगा?
जब मरियम अपने पुत्रों के साथ घर आयी, तो भीड़ होने के कारण वे अंदर नहीं घुस पाये। यीशु को बताया गया कि उनका परिवार द्वार पर है। यीशु जानता था कि वे क्यूँ आये हैं। वे परमेश्वर कि इच्छा के अनुसार नहीं चल रहे थे। वे कमज़ोर विश्वास के पल में जी रहे थे। सो उसने कहा, "कौन है मेरी माँ? कौन हैं मेरे भाई-बन्धु?” फिर उसने हाथ से अपने अनुयायिओं की तरफ इशारा करते हुए कहा, “ये हैं मेरी माँ और मेरे भाई-बन्धु। हाँ स्वर्ग में स्थित मेरे पिता की इच्छा पर जो कोई चलता है, वही मेरा भाई, बहन और माँ है।"
वाह! उनही कुछ वाक्यों में बहुत महत्वपूर्ण बयान है! यहूदी संस्कृति में, परिवार बहुत महत्वपूर्ण था। लेकिन अब, यीशु उन सभी पर उसके असली परिवार नहीं होने कि घोषणा कर रहे थे! वह कुल परिवार की एक पूरी नई समझ को परिभाषित कर रहे थे। यह सच है कि संबंध आनुवंशिकता और जन्म से नहीं आते हैं, लेकिन परमेश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण के आध्यात्मिक संबंधों के माध्यम से आते हैं! इस परिवार में सभी उम्र के लोगों, और पुरुषों और महिलाओं को शामिल किया गया था जो क़ीमती सदस्यों कि तरह थे।
मरियम और यीशु के भाईयों को परमेश्वर के परिवार का एक हिस्सा होने का अभिवादन था, लेकिन उन्होंने एक और रास्ता चुन लिया था। जो पुरुष और महिलाएं यीशु के साथ गलील में सब जगह गए, उस समूह में उसके परिवारों का नाम नहीं था।
क्या आपको बारह शिष्यों और महिलाओं के नाम याद है? उन्होंने ने उसे पालन और सेवा करने के लिए सब कुछ छोड़ दिया था। उन्होंने राज्य के काम में शामिल होने के लिए अपने जीवन का आत्मसमर्पण कर दिया। वे परमेश्वर की इच्छा को सीख रहे थे। लेकिन यीशु का परिवार महान अनादर के साथ उसके वचनों और कार्यों को ले रहा था। वे न केवल घर के बाहर खड़े थे, वे उसके उद्देश्य का समर्थन और प्यार करने वालों के समूह से बाहर थे! और अब वे परमेश्वर के पुत्र पर अधिकार का प्रयोग करने की कोशिश कर रहे थे|