कहानी ७२: मोड़
यीशु और उसके चेले गलील के सागर के आसपास के शहरों में गए। परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार वे उन सब को बताता था जो उसके पास आते थे। बारह शिष्य उसके साथ यात्रा को गए। उनके साथ महिलाओं का एक समूह भी गया। उनमें से कुछ यीशु के आभारी थे क्यूंकि उसने उनको बुरी आत्माओं और भयानक बिमारियों से चंगा किया था। मरियम मगदलीनी उनमें से एक थी। यीशु ने उसे सात दुष्ट आत्माओं से दमनकारी चंगुल से मुक्त किया था!
अन्य स्त्रियाँ यीशु को समर्थन देने के लिए आयीं क्यूंकि वह उनका प्रिय शिक्षक था। उनमें से एक जोन्ना थी। वह चूजा नाम के एक आदमी की पत्नी थी जो हेरोदेस के घर के कोषाध्यक्ष थी। एक और सुसन्ना थी, लेकिन वहाँ कई अन्य लोग थे। वे सब यीशु को समर्पित थे, और वे उसकी सेवकाई के लिए अपने निजी पैसे से समर्थन देते थे। इसके लिए भुगतान में मदद करने के विषय में आप सोच सकता है? यह इन महिलाओं का परमेश्वर के राज्य के बारे में घोषणा करने के कार्य में शामिल होना कितना अच्छा है। वे इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे, और वह उन्हें वहाँ चाहता था! ये उन कीमती लोगों में से थे जिन्हें परमेश्वर ने यीशु के चेहरे कि महिमा देखने के लिए आँखें दीं! यह एक अद्भुत समूह था जिसके साथ चले। यह एक सबसे सत्यवादी परिवार जैसा लगा होगा।
वे कफरनुम के शहर अपने घर गलील को वापस लौट आये। वे शायद वापस पतरस के घर लौट आये। लोगों की इतनी बड़ी संख्या जो उनके पीछे पीछे चली आयी थी, उनके पास खाने के लिए बैठने के लिए जगह नहीं थी। बहुतों को खड़े रहना पड़ा। मसीह की उपस्थिति चुंबकीय थी, और लोग एक भूख की तरह उसके पास आ रहे थे।
इस बीच, यीशु का परिवार नासरत से कफरनहूम के लिए एक यात्रा पर निकल पड़ा। वे यीशु को लेने के लिए आ रहे थे। उनको लगा कि उसका दिमाग ठीक नही है। अब जब वह वापस कफरनहूम में एक दोस्त के घर में था, वे उसे जब्त करके वापस ले जा रहे थे, चाहे उसकी मर्जी के खिलाफ हो।
यीशु जब घर के बाहर से उपदेश देने को निकले, तब एक व्यक्ति जिसके अंदर दुष्टात्मा थी उनके पास आया। इस आदमी पर दुष्ट आत्मा का कब्ज़ा इतना शक्तिशाली था कि वह उसके कारण अंधा और गूंगा था। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि उसका जीवन कितना मुश्किल रहा होगा? लेकिन यीशु ही मसीहा था! वह शाप के विनाश को तोड़ने के लिए परमेश्वर की आत्मा के द्वारा अभिषेक किया गया था।
जब यीशु ने उसे चंगा किया, तब भीड़ चकित रह गयी। आदमी देख सकता था! उसका अँधेरा हटा दिया गया था! वह आकाश के नीलापन और गलील के पानी पर चमकता हुआ पीला सूरज का मजा ले सकता था। वह उन के चेहरे देख सकता था जिनसे वह प्यार करता था, और वह अपनी खुद की आवाज में उनको यह बता सकता था कि वह उनसे कितना प्यार करता है। यह एक देखने लायक सुंदर परिवर्तन था। जब लोगों ने यह देखा तो वे सोचने लगे कि यह यीशु कौन है। यह एक अद्भुत संकेत था! क्या यह दाऊद की सन्तान हो सकता है? शक्तिशाली चमत्कार की व्याख्या करने का यही एक रास्ता था।
उस व्यक्ति का चंगाई का आनंद मनाते देख भीड़ धक् रह गई! क्या आप उत्साह और विस्तृत होने कि आवाज़ों को सुन सकते हैं और आंखों को देख कर चकित हों? लोग बहुत दिनों तक केवल वही बातें करते रहे। वे अपने गांवों और शहरों में लौटने के बाद बार उन्हीं बातों को दोहराते रहे। इस्राइल में हर कोई इस उल्लेखनीय युवक और उनके उल्लेखनीय कामों के बारे में और अधिक सुनते रहे।
फिर भी यीशु एक फरीसी नहीं था, और वह एक याजक भी नहीं था। वह सबत को नहीं मानता था, और उसे नहीं लगता कि वे उसके अधिकारी थे। यह क्या मतलब था? यदि यह यीशु परमेश्वर था, और उसने उनके नेतृत्व को अस्वीकार कर दिया था, तो उनके नेतृत्व का क्या मतलब था? लेकिन यदि वह परमेश्वर कि ओर से नहीं था, तो कहाँ से उसे लुभावनी शक्ति मिली?
फरीसियों ने भी चमत्कार के बारे में सुना था। परमेश्वर के यशस्वी चमत्कार का आनंद लेने के बजाय उन्होंने परमेश्वर के जीवते पुत्र कि ओर अपने ह्रदय कठोर कर लिए थे। उनके स्वयं के यहूदी भाइयों में से एक उस भयानक उत्पीड़न से चंगा हुआ था, लेकिन वे इसे अपने लिए धमकी समझ रहे थे। उनके शक को बढ़ाने के लिए उन्होंने लोगों को यह कहते सुना कि पता नहीं यीशु वही मसीहा है या नहीं।
येरूशलेम के मंदिर में भी यीशु कि सेवकाई धर्मशात्रियों को उत्तेजित कर रही थी। यह वही गुस्सेल शख्स था जिस ने गुस्से में मंदिर में सब कुछ उलट दिया था। वह क्या करना मांगता था? जाहिर है, उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता था। वह परमेश्वर के पवित्र नियम को कम समझ रहा था! वे यरूशलेम से लेखकों को यीशु का परीक्षण और सवाल करने के लिए भेजा, और यदि आवश्यक हो तो उसे चुप भी कराया जाये।
यह धर्मशात्री जानते थे कि उन्हें उस अद्भुद शक्ति जो यीशु में से बह कर निकलती है, उसका कारण बताना पड़ेगा, और उन्हें मालूम था कि परमेश्वर को छोड़ किसी और स्त्रोत से पता लगाना था! सो येरूशलेम के धर्मशात्रियों ने यीशु पर इलज़ाम लगाया कि वह भी शैतान का सहभागी है। उन्होंने ने कहा, "'यह दुष्टात्माओं को उनके शासक बैल्जा़बुल (शैतान का दूसरा नाम) के सहारे निकालता है।”
वाह! सबसे पहले यीशु ही के अपने परिवार ने कहा कि उसके अंदर दुष्टात्मा है। अब यहूदी राष्ट्र के धर्माधिकारी कि वह दुनिया के सभी दुष्ट आत्माओं के बल के संघटन। यीशु के अपने पक्ष में एक बहुत ही शक्तिशाली कुछ था: सच्चाई। उन में सत्य को स्पष्ट करने के लिए एक अद्भुत क्षमता थी।
"'यीशु को उनके विचारों का पता चल गया। वह उनसे बोला, “हर वह राज्य जिसमें फूट पड़ जाती है, नष्ट हो जाता है। वैसे ही हर नगर या परिवार जिसमें फूट पड़ जाये टिका नहीं रहेगा।तो यदि शैतान ही अपने आप को बाहर निकाले फिर तो उसमें अपने ही विरुद्ध फूट पड़ गयी है। सो उसका राज्य कैसे बना रहेगा? और फिर यदि यह सच है कि मैं बैल्ज़ाबुल के सहारे दुष्ट आत्माओं को निकालता हूँ तो तुम्हारे अनुयायी किसके सहारे उन्हें बाहर निकालते हैं? सो तुम्हारे अपने अनुयायी ही सिद्ध करेंगे कि तुम अनुचित हो। मैं दुष्टात्माओं को परमेश्वर की आत्मा की शक्ति से निकालता हूँ। इससे यह सिद्ध है कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट ही आ पहुँचा है।'"
वाह। यीशु बहुत प्रतिभाशाली थे। वह उन्हें दिखा रहे थे कि वे कितने अपने बहस करने में हास्यास्पद थे। वह कैसे एक दुसरे दुष्ट आत्मा के द्वारा शैतान कि ताक़त से दुष्ट आत्माओं को निकाल सकता था? इसका अर्थ यह होगा कि शैतान ने अपने आप को बदल दिया है! क्यों शैतान अपनी ही फ़ौज को नष्ट करेगा? जब यीशु ने यहाँ शब्द " घर " का इस्तेमाल किया, तो वह बस किसी भी घर के बारे में बात नहीं कर रहे थे। वे एक राष्ट्र पर नियंत्रित करने वाले एक शाही परिवार के बारे में बात कर रहे थे। राजा और उसके हाकिम जब एक दूसरे के खिलाफ हो जाते हैं, तो इस सिंहासन पर बाहर से आए हमलावरों के लिए दरवाजा खुल जाता है ! शैतान के अनुयायियों एकता में उसके साथ काम करते हैं। अंधेरे के राज्य और प्रकाश के राज्य के बीच सीमा स्पष्ट है, और यीशु ज्योति के साम्राज्य के लिए पूरी सामर्थ के साथ चल फिर रहा था! धार्मिक अगुवों ने भी परमेश्वर की शक्ति से दुष्ट आत्माओं को निकला था, सो उन्हें पता होना चाहिए था कि मसीह की शक्ति कहाँ से आई थी। उनके पास कोई भी ऐसा बहाना नहीं था।