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पाठ 84 : मिस्र को मूसा की यात्रा -एक अजीब कथा

मूसा जब मिद्यान में अपने परिवार के साथ था, परमेश्वर ने उसे बताया कि मिस्र में जो लोग उसे मारना चाहते थे वे सब मर चुके थे। उनमें से कोई भी उसके पीछे नहीं आएंगे जब वह वहां पहुंचेगा।

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पाठ 85 : मूसा और हारून की यात्रा

परमेश्वर कि योजनाएं हमेशा सही होती हैं। जब वह मूसा के साथ उस चमत्कारी, ज्वलंत झाड़ी के पास बात कर रहा था, वह मूसा के भाई, हारून को उसे जंगल में उसे लेने के लिए तैयार कर रहा था। परमेश्वर हमेशा अपने बच्चों को आशीर्वाद देने के लिए तैयार रहता है।

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पाठ 86 : महान पीड़ा के बीच परमेश्वर का महान वादा

मिस्री दास स्वामी और हिब्रू कार्य प्रबन्धक इस्राएल के लोगों के पास गए और उन्हें वही करने का आदेश दिया जो फिरौन उनसे चाहता था कि वे करें। उन्हें आज्ञा दी गयी की वे बाहर जाकर ईंटें बनाने के लिए भूसा इकट्ठा करें, लेकिन उन्हें उतना ही बनाना था जितना उन्होंने पहले बनाया था।

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पाठ 87 : क्या फिरौन कभी सीखेगा?

जब मूसा और हारून फिर से फिरौन किअदालत में पेश होने की तैयारी कर रहे थे, परमेश्वर ने उन्हें बहुत विशिष्ट निर्देश दिये। सटीक आज्ञाकारिता बहुत महत्वपूर्ण थी। परमेश्वर को मालूम था की फिरौन उन्हें एक चमत्कार दिखाने के लिए कहेगा। मूसा को हारून को बताना था की वह अपनी लाठी ज़मीन पर फेंक दे। परमेश्वर उसे एक सर्प में बदल देगा।

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पाठ 88 : मेंढकों और कुटकियों और डांसों की विपत्तियां भाग 1

परमेश्वर मिस्र के देवताओं पर युद्ध छेड़ने जा रहा था। फिरौन ने उनके लोगों को बंदी बना रखा था और वह उन्हें जाने नहीं दे रहा था। परमेश्वर अपने लोगों को रिहा करने के लिए एक शक्तिशाली काम कर सकता था, लेकिन उसके मन में एक बड़ी योजना थी।

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पाठ 89 : विपत्तियां भाग 2: मवेशी और फोड़े और ओलावृष्टि

फिरौन ने परमेश्वर कि शक्ति को अपने विरुद्ध में काम करते देखा था। जो क्लेश वह और उसके पूर्ववर्तियां दशकों से इस्त्राएलियों पर ला रहे थे, वे अब उसके ही लोगों द्वारा महसूस किया जा रहा था।

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पाठ 90 : विपत्तियां भाग 3: टिड्डियां और घोर अंधकार

जबकि फिरौन और उसके अधिकारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विरुद्ध अपनी हठीली लड़ाई के लिए ज़िम्मेदार थे, परमेश्वर स्वयं के लाभ के लिए उनके पापों का उपयोग कर रहा था। वह पूरी तरह नियंत्रण में था।

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पाठ 91 : अंतिमविपत्ति

परमेश्वर ने एक बार फिर फिरौन के हृदय को कठोर कर दिया। जब मूसा ने फिरौन से इस्राएलियों और उनके जानवरों को छोड़ने के लिए कहा ताकि वे रेगिस्तान में जाकर उपासना कर सकें, तो उसने इंकार कर दिया। वह लोगों को जाने नहीं दे रहा था।

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पाठ 92 : अंधेरी रात और उज्जवल भोर

मूसा ने इस्राएल के बुज़ुर्गों को बुलाया और वह सब बताया जो परमेश्वर ने उसे फसह के पर्व के विषय में बताया था। उसने उसे उसके लोगों के बीच जाकर वध के लिए भेड़ के बच्चे को चुनना था। उन्हें सुनिश्चित रूप से चौखट पर लहू को लगाना था।

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पाठ 93 : यहोवा अपने लोगों का चंडावल है

जब इस्राएली मिस्र को छोड़ने के लिए इकट्ठे हुए, तो वे एक बड़े पैमाने पर, अराजक समूह में नहीं गए। परमेश्वर ने पहले ही उन्हें संगठित कर दिया था। उसने उन्हें लड़ाई के लिए सशस्त्र और तैयार किया था। और एक सुंदर तरीके से उसने अपने लोगों का नेतृत्व किया।

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पाठ 94 : सागर के माध्यम से

मूसा ने अपनी बाहें लाल सागर के ऊपर उठाईं, जैसा परमेश्वर ने कहा था। और यहोवा ने पूर्व से तेज आँधी चला दी। आँधी रात भर चलती रही। समुद्र फटा और पुरवायी हवा ने जमीन को सुखा दिया। इस्राएल के लोग सूखी जमीन पर चलकर समुद्र के पार गए।

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पाठ 95 : एलीमेलेक की कहानी: एक यहूदी लड़का विपत्तियों का गवाह

शालोम! मेरे लोगों के लिए, इसका मतलब है शांति, और मेरे नए दोस्त, मैं तुम्हें एक आशीर्वाद देता हूँ। शालोम का अर्थ है की, मेरी इच्छा है किसर्वशक्तिमान परमेश्वर कि सिद्ध शांति तुम्हारे जीवन के हर क्षेत्र में हो। इसीलिए शालोम!

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पाठ 96 : एलीमेलेक की कहानी: लाल सागर

ऐसा लगता है मानो हमारा परमेश्वर पूरी दुनिया को एक बात साबित करना चाहता था। वे जान लेंगे कि वही है जो सब पर राज करता है। अपनी इच्छा को पूरी करने के लिए वह शक्ति के साथ कार्य करता है। मिस्र से भागते समय हमारे साथ जो हुआ वह चौंकाने वाली बात थी। हम जो उसके लोग हैं, हमारे लिए उससे एक सबक सीखने को मिला जो हमने अपनी आंखों के सामने देखा। और इसके बारे में अफवाहें सभी देशों में फ़ैल गयीं।

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पाठ 97 : मन्ना और बटेर

बाइबल हमें उन विचारों के विषय में बताती है जो परमेश्वर के लिए महत्वपूर्ण हैं। कहानी के अंत में, एक राष्ट्र के इस महान महाकाव्य कहानी के विषय में परमेश्वर बताता है किउसने वह सब क्यूँ किया।

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पाठ 98 : अमालेकियों के साथ युद्ध

इस्राइलियों ने अपने डेरे को समेटा और वापस पाप कि मरुभूमि की ओर चल पड़े। बादल का खम्बा उन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाता रहा, और उन्हें रपीदीम नामक जगह पर पहुंचाया। वहाँ कोई पानी नहीं था, और एक बार फिर वे मूसा से शिकायत करने लगे।

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पाठ 99 : पिता यित्रो की मुलाक़ात

इस्राएलियों किसमुन्द्र के माध्यम से शानदार मुक्ति के कुछ महीनों बाद, वे मिस्र से दूर मिद्यान को यात्रा करते हुए उस जगह पहुंचे जहाँ मूसा और उसकी पत्नी चालीस साल तक रहे। वे वापस उसी जगह जा रहे थे जहां मूसा ने अपने झुंड को चराया था।

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पाठ 100 : मूसा का ऊपर पर्वत पर जाना

इस्राएलियों कि कल्पना कीजिये जब उन्होंने पैदल लाल समुन्दर की यात्रा की। वे जानवरों के झुंड और तम्बुओं और बच्चों का एक विशाल समूह थे! यह एक देखने लायक दृश्य रहा होगा! कल्पना कीजिये वे क्या वार्तालाप करते जाते होंगे जब वे परमेश्वर के कार्यों को स्मरण कर रहे होंगे।

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पाठ 101 : यहोवा पर्वत से अपने लोगों से बातचीत करता है

इब्राहीम के बच्चों ने परमेश्वर के साथ एक वाचा को बनाया था। उसने उनके लिए एक वाचा बनाई, और वे अपने सम्पूर्ण जीवन से उसका सम्मान करेंगे। वे उसके पवित्र फरमान का पालन करेंगे, और वे उसके अनमोल अधिकार होंगे। वे दुनिया के पाप में गिरे राष्ट्रों के लिए एक पवित्र प्रजा होंगे।

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पाठ 102 :आज्ञाएँ

जिस समय पहाड़ी काँप उठी, पूरा राष्ट्र सीनै पहाड़ी के नीचे एकत्र हो गया। मूसा और हारून उस ज्वलंत बादल के बीच में चले गए जहां से परमेश्वर किआग लपटें बनकर निकल रहीं थीं।

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पाठ 103 : अपने परमेश्वर से प्रेम करना

दस आज्ञाएं एक नियमों कि सूची से बढ़कर थे। वे यहोवा और उसके लोगों के बीच के वाचा का एक हिस्सा थे। यदि वे उनका आज्ञा पालन करते हैं, तो वे उसके कीमती संतान होंगे, और वह उन्हें दुनिया के लिए राज्य के याजक बना देगा।

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