पाठ 100 : मूसा का ऊपर पर्वत पर जाना

इस्राएलियों कि कल्पना कीजिये जब उन्होंने पैदल लाल समुन्दर की यात्रा की। वे जानवरों के झुंड और तम्बुओं और बच्चों का एक विशाल समूह थे! यह एक देखने लायक दृश्य रहा होगा! कल्पना कीजिये वे क्या वार्तालाप करते जाते होंगे जब वे परमेश्वर के कार्यों को स्मरण कर रहे होंगे। उनमें से कुछ शायद उस दिन के विषय में बात करते होंगे जब सारी हवा में इतने सारे टिड्डी फैल गए थे। मिस्र पर सभी मिस्रवासियों की त्वचा संक्रमित करने वाले फोड़ों और लाखों मेंढ़कों के बारे में लोगों की बातचीत कि कल्पना कीजिए! यह देख कर कितना अजीब लगा होगा की सब मिस्र के लोगों के ऊपर घावों के साथ अत्याचार हो रहा था, जब किइस्राएलियों की त्वचा बिलकुल साफ़ थी। कितनी चमत्कारिक और महाकाव्य बातें हुईं, और उनके जीवन पूरी तरह से बदल गए थे। क्या इस्राएली अब परमेश्वर के महान कार्यों को याद करेंगे? जिस समय वे मरुभूमि से कूच कर रहे थे, तब क्या वे आगे परमेश्वर के महान वादे को याद रखेंगे, या वे बागी हो जाएंगे?

मिस्र से अपनी यात्रा करने के तीसरे महीने में इस्राएल के लोग सीनै मरुभूमि में पहुँचे। रेगिस्थान आमतौर पर गर्म स्थान होते हैं, और अब यह जून (वाल्टन, 105) की गर्मियों का महीना था। जिस समय वे विशाल चट्टानी भूमि के माध्यम से जा रहे थे, वे एक महान पहाड़ के किनारे पर आ पहुंचे। यह वही स्थान है जहां मूसा ने पहली बार एक जलती झाड़ी में यहोवा कि आवाज़ को सुना था। अब मूसा वहाँ फिर से अपने प्रभु से मिलेगा। जब मूसा पर्वत पर था तभी पर्वत से परमेश्वर ने उससे कहा: 

 

ये बातें इस्राएल के लोगों अर्थात् याकूब के बड़े परिवार से कहो, ‘तुम लोगों ने देखा कि मैं अपने शत्रुओं के साथ क्या कर सकता हूँ। तुम लोगों ने देखा कि मैंने मिस्र के लोगों के साथ क्या किया। तुम ने देखा कि मैंने तुम को मिस्र से बाहर एक उकाब की तरह पंखों पर बैठाकर निकाला। और यहाँ अपने समीप लाया। इसलिए अब मैं कहता हूँ तुम लोग मेरा आदेश मानो। मेरे साक्षीपत्र का पालन करो। यदि तुम मेरे आदेश मानोगे तो तुम मेरे विशेष लोग बनोगे। समस्त संसार मेरा है। तुम एक विशेष लोग और याजकों का राज्य बनोगे।’ मूसा, जो बातें मैंने बताई हैं उन्हें इस्राएल के लोगों से अवश्य कह देना।”

निर्गमन 19: 3 बी -6

 

परमेश्वर के ये शब्द केवल अलंकृत वादे नहीं थे। परमेश्वर कि ओर से आया हर शब्द शाश्वत और ठोस और अपरिवर्तनीय है। यह एक बहुत ही गंभीर प्रस्ताव था। यह इतिहास को बदलने जा रहा था। यह एक कानूनी अनुबंध कितरह एक वाचा था। इस सारी पृथ्वी का कर्ता, इस देश के भाग्य और भविष्य के लिए खुद को बाध्य करने के लिए तैयार था। यदि इस्राएली यहोवा के कानूनों और आदेशों का पालन करने में और वाचा के वादों को अपने पक्ष में रखने के लिए सहमत होते हैं, तो परमेश्वर उन सब को सर्वोच्च सम्मान देगा। वे उस परमेश्वर के अनमोल अधिकार होंगे जिसने सब कुछ रचा! 

 

यहोवा के साथ यह अनुबंध इस्राएल के लोगों को एक नए युग में लेकर आएगा। वे मिस्र में एक साथ रह सके क्यूंकि वे इब्राहिम किसंतान थे। उन्हें वितरित करने के लिए परमेश्वर के पराक्रम के काम किवजह से वे महान और राजसी अनुभवों में एक साथ बंधे रह सके। अब वे परमेश्वर के साथ एक गहरे रिश्ते से एक खास तरीके से बाध्य किये जाएंगे। इस रिश्ते की यह विशेषता थी किवे एक ऐसी प्रजा बन सके जो एक नए विचार के साथ एक दूसरे के साथ बंधे हुए थे जब वे अपनी आज्ञाकारिता के माध्यम से वे एक पूरा नया राष्ट्र लेकर आये। 

 

लेकिन अब इस्त्राएलियों को एक विकल्प बनाना था। क्या वे इस अनुबंध को स्वीकार करेंगे? क्या वे परमेश्वर के साथ बाध्य होंगे? क्या वे उसके सेवक बनेंगे? क्या वे अपने अपने जीवन को बदल कर उसकी इच्छा को पूरी करने का प्रयत्न करेंगे? यदि हां, तो वे दूसरे देशों कि तरह नहीं होंगे। इससे वह अनुबंध टूट जाएगा। इससे वाचा का उल्लंघन होगा। क्या वे परमेश्वर के रास्तों पर चलेंगे और अपने आप को इस दुनिया के बुरे कामों से अलग कर सकेंगे? क्या वे अपने स्वयं के जीवन के द्वारा परमेश्वर किसुंदरता और पवित्रता को प्रतिबिंबित करेंगे? क्या वे अन्य देशों के लिए राजअधिकारी के समान हो पाएंगे? 

 

इस्राएलियों ने पहले से ही परमेश्वर के उद्धार को देख लिया था। वे इब्राहीम के वंशज थे, और परमेश्वर ने उन्हें चुन लिया था और समुन्दर के माध्यम से उन्हें मुक्त किया था। वे इसके योग्य नहीं थे। प्रभु ने उन्हें परमेश्वर के बेटे और बेटियों होने के लिए चुना था। वे पहले से ही राजा के राजकुमार और राजकुमारियों थे। क्या वे भी उसके सेवक बनेंगे? क्या वे स्वेच्छा पूर्वक परमेश्वर की इस दुनिया को बदलने की योजना में भागी होंगे? प्रभु उन्हें अपने राजा के प्रति अपने प्रेम किमहानता को प्रकट करने का मौका दे रहा था। यहाँ एक मौका था किवे उसे अपना आभार उन सब बातों के लिए प्रकट कर सकें जो उसने उनके लिए की थीं। 

 

मूसा वापस पहाड़ के नीचे गया और इस्राएलियों को वह सब बताया जो परमेश्वर ने उससे कहीं थीं। उसने सारे बुज़ुर्गों और अन्य लोगों को इकट्ठा करके वह सब बताया जो परमेश्वर ने उसे बतायीं थीं। लोगों ने उत्तर दिया, “'हम लोग यहोवा कि कही हर बात मानेंगे।'" अनुबंध बंध चुका था और वाचा सुनिश्चित थी। एक महान राष्ट्र का जन्म हो गया था।