पाठ 98 : अमालेकियों के साथ युद्ध

इस्राइलियों ने अपने डेरे को समेटा और वापस पाप कि मरुभूमि की ओर चल पड़े। बादल का खम्बा उन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाता रहा, और उन्हें रपीदीम नामक जगह पर पहुंचाया। वहाँ कोई पानी नहीं था, और एक बार फिर वे मूसा से शिकायत करने लगे। मूसा ने उनसे कहा, “'तुम लोग मेरे विरुद्ध क्यों हो रहे हो? तुम लोग यहोवा कि परीक्षा क्यों ले रहे हो?"' लोग मूसा से बहुत नाराज़ थे, एक मात्र इंसान जिसके पास उतनी ही सामर्थ थी जितनी उनके पास। लेकिन लोग और अधिक गुस्सा और परेशान होते गए। एक बार फिर वे उसे मरुभूमि में उन्हें लाने के लिए उस पर आरोप लगा रहे थे की वह उन्हें और उनके परिवारों और जानवरों समेत मरने के लिए वहां लाया है। वे इत्यधिक क्रोधित थे की मूसा को लगा की वे उसे मार डालेंगे। सोचिये यह कितना भयानक होगा। 

 

लेकिन मूसा जानता था कि सही व्यक्ति कौन है जिसके पास वह जा सकता था। मूसा ने यहोवा को पुकारा, “'मैं इन लोगों के साथ क्या करूँ? ये मुझे मार डालने को तैयार हैं।'” 

 

परमेश्वर ने मूसा को आज्ञा दी कि वह अपनी छड़ी को लेकर कुछ बुज़ुर्गों के साथ अपने डेरे से कुछ दूर चला जाये। यहोवा उसके साथ था। होरेब नामक स्थान पर एक विशाल पत्थर था, और मूसा को वहां जाकर उसे अपनी छड़ी से मारना था। परमेश्वर ने कहा की वह लोगों को पीने के लिए चट्टान से पानी को निकालेगा। मूसा ने वैसा ही किया जैसा यहोवा ने कहा था। यह भी एक अच्छा विचार है! वह अपने साथ बुज़ुर्गों को ले गया, और यकीनन पर्याप्त पानी बह कर निकल आया। यह दो लाख लोगों और जानवरों के पीने के लिए पर्याप्त था। चाहे लोग परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह कर रहे थे और उसके चुने हुए दास को अस्वीकार कर रहे थे, फिर भी परमेश्वर उनके लिए उपलब्ध करा रहा था। कितना एक दयालु और अनुग्रह परमेश्वर है! मूसा ने उस स्थान का नाम "मस्सा" और "मरीबा" रखा जिसका अर्थ है "परीक्षण" और "विद्रोह।" क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं ऐसा क्यूँ? 

जिस समय इस्राएली वहां रह रहे थे, उनके ऊपर अमालेकियों ने आक्रमण किया। मूसा ने यहोशू नामक एक व्यक्ति को कहा कि वह कुछ लोगों को लेकर युद्ध के लिए जाये। जब वे लड़ रहे थे, मूसा ने परमेश्वर द्वारा दी गयी छड़ी को लेकर एक पहाड़ी पर खड़े होकर अपने दोनों हाथों को हवा में उठाए रखा था। राष्ट्र के अगुवे के हाथों का ऊपर उठाये रखने का अर्थ था किउन्हें यहोवा की मदद की लगातार ज़रूरत थी। उनका विश्वास तलवार या उनके आदमियों की शक्ति में नहीं था, लेकिन परमेश्वर कि शक्ति में था। इस्राएली जान गए कि उनका सच्चा अगुवा कौन है। परमेश्वर ने अपने सेवक, मूसा, के हाथों के माध्यम से जीत दिलाई। मूसा निरंतर परमेश्वर की ओर ताकता रहा, और परमेश्वर उसे विशेष शक्ति और अधिकार देता रहा। 

 

अगली सुबह, मूसा, हारून, और हूर नामक एक व्यक्ति उस पहाड़ी पर चढ़ गए जहां से उन्हें युद्ध दिखाई पड़ता था। यहोशू जब अमालेकियों से लड़ने के लिए इस्राएलियों का नेतृत्व कर रहा था, मूसा अपने हाथों को ऊपर उठाये रखता था। जब भी मूसा अपने हाथों को नीचे करता था, तो इस्राएली हारने लगते थे। लेकिन जब वह उन्हें वापस ऊपर उठाता था, वे जीतने लगते थे। कुछ देर के बाद, मूसा के हाथ थकने लगते। हारून और हूर उसके बैठने के लिए एक पत्थर ले आये, और फिर उन्होंने उसके हाथों को ऊपर उठाये रखा। वे सूरज के ढलने तक वैसे ही खड़े रहे।यहोशू और उसके आदमियों ने अमालेकियों को हराया। वाह! कितनी अद्भुत जीत है!

 

परमेश्वर ने मूसा से इस कहानी को लिखने के लिए कहा ताकि इसे याद रखा जाये। वह चाहता था की विशेष रूप से यहोशू इसे सुने! उसने मूसा को बताया की वह पूरी तरह से अमालेकी के लोगों का सफ़ाया कर देगा। 

 

"मूसा ने एक वेदी बनायी और उसका नाम “यहोवा निस्सी” रखा। मूसा ने कहा, “मैंने यहोवा के सिंहासन की ओर अपने हाथ फैलाए। इसलिए यहोवा अमालेकी लोगों से लड़ा जैसा उसने सदा किया है।”

 

यह बहुत दिलचस्प है कि मूसा ने इस कहानी को लिखा। एक दिन, मूसा इन सब कहानियों को लिखेगा। वह बाइबल किपहली पांच पुस्तकों का लेखक है! परमेश्वर के वचन को परमेश्वर के लोगों को सुनाने वाला वह केवल एक नबी ही नहीं था। उसने समस्त काल के लिए कुछ सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखीं।