पाठ 84 : मिस्र को मूसा की यात्रा -एक अजीब कथा
मूसा जब मिद्यान में अपने परिवार के साथ था, परमेश्वर ने उसे बताया कि मिस्र में जो लोग उसे मारना चाहते थे वे सब मर चुके थे। उनमें से कोई भी उसके पीछे नहीं आएंगे जब वह वहां पहुंचेगा। इसलिए मूसा ने अपनी पत्नी और अपने पुत्रों को लिया और उन्हें गधे पर बिठाया। तब मूसा ने मिस्र देश कि वापसी यात्रा की। मूसा उस लाठी को अपने साथ ले गया जिसमें परमेश्वर कि शक्ति थी।
परमेश्वर ने मूसा को चेतावनी दी थी कि जब फिरौन मूसा कि बात नहीं मानेगा, परमेश्वर फिरौन के मन को कठोर करेगा ताकि वह मूसा को इंकार कर सके। परमेश्वर ऐसा क्यों करेगा? क्या वह नहीं चाहता था किफिरौन उसके लोगों को मुक्त करे? परमेश्वर ने कहा कि जितनी बार फिरौन इनकार करेगा वह एक चमत्कारी चिन्ह को दिखाएगा। जितना अधिक फिरौन कठोर बनेगा, उतना अधिक परमेश्वर इस बात का प्रमाण देगा किइस्राएलियों का परमेश्वर सच्चा और जीवित है।
परमेश्वर ने कहाकिफिरौन इस्राएलियों को नहीं जाने देगा, यहां तक किमूसा ने चेतावनी दी थी कियहोवा उसके पहलौठे और मिस्र के सभी पहलौठे पुत्रों किजान ले लेगा। मूसा को उसे यह बताना था किइस्राएल यहोवा का पहलौठा है, और फिरौन उसका दुष्प्रयोग कर रहा है।परमेश्वर सारी सृष्टि के ऊपर पवित्र राजा था, और वह इस छोटे राजा को अपने लोगों को जाने के लिए आदेश दे रहा था। यदि वह ऐसा नहीं करता है, तो फिरौन का अपना पहलौठा पुत्र मर जाएगा। कई वर्षों तक, मिस्र के लोग इस्राएलियों के नवजात बेटों को मार डाल रहे थे, और परमेश्वर उनके विरुद्ध अपने फैसले को रोके हुए था। जब न्याय का समय आया, इससे पहले की वह कुछ करे, उसने कई बार चेतावनी दी। कितना अनुग्रहकारी परमेश्वर है! उसे अनदेखा करना फिरौन की बेवकूफ़ी थी!
मूसा और उसका परिवार रेगिस्तान से यात्रा कर रहा था। वे रात को रुक कर अगली सुबह यात्रा पर निकल जाएंगे। एक रात वे ऐसी जगह रुके जहां कुछ भयावह और अजीब हुआ। बाइबिल बताती है किमूसा की भेंट परमेश्वर से हुई और वह उसके पीछे उसे मारने को आ रहा था। सिप्पोरा, मूसा की पत्नी भी वहां थी, और वह तुरंत हरकत में आई। वह जान गयी किमूसा ने अपने परमेश्वर को क्रुद्ध करने के लिए कुछ किया था। उसने चाकू लिया और अपने बेटे का खतना कर दिया। मूसा ने अभी तक यह नहीं किया था। उसने परमेश्वर के आदेश के दबाव को नजरअंदाज कर दिया था।
सिप्पोरा ने उस खतना से किये त्वचा के टुकड़े को लिया और उससे मूसा के पैर छुए। उसने कहा, "'तुम मेरे खून बहाने वाले पति हो।” इसलिए परमेश्वर ने मूसा को क्षमा किया और उसे मारा नहीं।
यह अपने सेवक के विरुद्ध में परमेश्वर के कार्य कि अजीब और घनघोर कहानी है। मूसा ने ऐसा क्या किया कि उसे मौत मिलनी चाहिए थी?
खैर, मूसा सारी सृष्टि के दिव्य राजा का राजदूत बनकर मिस्र में जाने वाला था। कई वर्षों पहले परमेश्वर ने खतना को एक पवित्र चिन्ह के रूप में दिया था। यह इब्राहीम के बच्चों के साथ उसकी वाचा का प्रतीक था। यह यहोवा के प्रति उनका सबसे अर्थपूर्ण चिन्ह था जो उन्हें अलग निर्धारित करता था। फिर भी मूसा ने अभी तक अपने ही बेटे का खतना नहीं किया था। अगर वह अपने ही परिवार में वाचा के प्रति आज्ञाकारी नहीं होता है, तो वह परमेश्वर के राष्ट्र के साथ ऐसा करने के लिए भरोसेमंद कैसे हो सकता है?
इन छोटी बातों में अनाज्ञाकारिता उस व्यक्ति के हृदय को दिखाती है जो आज्ञाकारी नहीं होना चाहता है। यह जानते हुए कि मूसा ने अपने बेटे का खतना नहीं करा के परमेश्वर कि आज्ञा को नहीं माना है, वह मिद्यान में अपने घर को छोड़ कर चला गया। परमेश्वर क्रोधित हुआ।लेकिन परमेश्वर के प्रकोप का एक व्यक्ति पर दो प्रभाव डाल सकता है। वे और कठोर और अधिक जिद्दी और पापी बन सकते हैं। या फिर यह परमेश्वर के प्रति एक अनुग्रह और श्रद्धालु भय को जगा सकता है! यह एक तरह से सूरज की तरह है। सूरज की गर्मी जब मिट्टी की एक गांठ पर पड़ती है तो क्या होता है? मिट्टी का क्या हो जाता है? वह इतनी कड़क हो जाती है की वह चटकने लगती है। क्या होता है जब सूरज मक्खन पर पड़ता है? क्या यह ठोस हो जाता है? या फिर वह नरम और पिघल जाता है? इस छोटी सी कहानी में, सूरज की रोशनी बिल्कुल वैसी ही थी। मिट्टी और मक्खन की प्रतिक्रिया अलग अलग थी, ठीक उसी तरह जिस तरह लोग एक दूसरे से भिन्न भिन्न तरीके से परमेश्वर के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं। कुछ फिरौन कि तरह उसके विरुद्ध पाप करने में कठोर हो जाते हैं। कुछ नरम होकर और बदल कर वही करते हैं जो परमेश्वर उनसे करने को कहता है। यह कहानी बताती है किमूसा मक्खन कितरह था। परमेश्वर का क्रोध उसे आज्ञाकारिता में उत्तेजित कर देता था।
बाइबिल एक पवित्र इंजील है, और इसमें दुनिया का सबसे बेहतरीन साहित्य सम्मिलित है। फिर भी कुछ कहानियां हमारी दुनिया को अजीब लग सकती हैं। परमेश्वर ऐसे काम करता है जो समझ से बाहर है, और वह ऐसे काम करने को कहता है जो दुनिया के लिए करना भारी है। हम शायद उन्हें गंभीरता से नहीं लेना चाहें। हम शायद अपनी आँखों से उन्हें देखना मांगें।
उसके वचन को पढ़ना उसके चरित्र का सम्मान करना है। यह स्मरण रखना ज़रूरी है की, जहां हमारे अपने मन परमेश्वर से बहुमूल्य उपहार हैं, वे बहुत सीमित हैं। कभी कभी यह सोचना प्रलोभक लगता है की हमारे मन परमेश्वर से ज्यादा जानते हैं। हम बाइबिल इसीलिए पढ़ते हैं ताकि हम तय कर सकें की क्या अच्छा है और क्या सही है, और क्या अजीब है। हम तय करते हैं उन चीज़ों के विषय जो हमें पसंद नहीं हैं। यह एक भयानक पाप है!
बाइबिल के जो भाग हमारे लिए समझना कठिन हैं, वही हमारे लिए आवश्यक हैं ताकि हम परमेश्वर की बातों को समझ सकें, और बाइबिल की मदद के बगैर हम नहीं समझ सकते हैं। जो कहानियां भ्रामक और अजीब लगती हैं, अक्सर वही हमारी कल्पना को पकड़ कर सकती हैं।परमेश्वर ने इसे ऐसे ही बनाया है। ये हमें परमेश्वर के विषय में और गहराई से सोचने में मजबूर करती हैं। जो कार्य वह करता है उन्हें जानने कि हममें उक्सुकता होने लगती है। जो विश्वास करते हैं वे इन कहानियों को लेकर उन पर विचार करते हैं। वे उनके बारे में प्रार्थना करते हैं और दूसरों कि बुद्धि कि खोज करते हैं। जो वफ़ादार हैं, वे इन कहानियों को अपने दिलों में बसा लेते हैं, और परमेश्वर कि धार्मिकता, और उसकी पवित्रता, और संप्रभुता, और प्रेम के विषय में सीखते हैं।
जब वह वचन में अपने विषय में उस तरीके से प्रकट करता है जिसे हम नहीं समझ पाते, तो यह उसका तरीका है हमारे ध्यान को खींचने का ताकि हम कुछ नया सीख पाएं। यदि हम विनम्रता के साथ उसे सम्मान देंगे और ईमानदारी इन कठिन भागों को समझने कि कोशिश करेंगे, वह बड़ी वफ़ादारी के साथ हमें अपने आप को, और ब्राह्माण को और हमारे हृदयों को दर्शाएगा।