पाठ 103 : अपने परमेश्वर से प्रेम करना

दस आज्ञाएं एक नियमों कि सूची से बढ़कर थे। वे यहोवा और उसके लोगों के बीच के वाचा का एक हिस्सा थे। यदि वे उनका आज्ञा पालन करते हैं, तो वे उसके कीमती संतान होंगे, और वह उन्हें दुनिया के लिए राज्य के याजक बना देगा।  

दस आज्ञाएं एक भविष्वाणी थे। वे इस्राएल और दुनिया के लोगों के लिए एक महान रहस्य को प्रकट कर रहे थे। यह एक परदे के समान था जो मानवता किआंखों और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बीच था, जब उन्होंने वाटिका में उसके विरुद्ध पाप किया था। परमेश्वर उन्हें आशीष देना चाहता था, और इसलिए परमेश्वर के रास्तों को प्रकट करने के लिए उसने थोड़ा सा पर्दा हटाया ताकि लोग उससे अच्छे और सिद्ध हो सकें। 

सीनै पर्वत कि गड़गड़ाहट ने यहोवा किताकत और शक्ति का प्रदर्शन किया। आज्ञाओं ने यहोवा के नैतिक और ईमानदार चरित्र का प्रदर्शन किया। इसने दिखा दिया की पृथ्वी का रचनेवाला वास्तव में कैसा है। यह अभी भी दिखाता है किउसे क्या पसंद है। यह सृष्टिकर्ता कोई एक नासमझ बल नहीं है। वह सोच समझ कर सब कुछ बनाता है। उसकी इच्छा सिद्ध है, और वह उसे पूरा करने में कार्यशील है। अपनी अच्छाई को अपने लोगों में दिखाने में वह बहुत उत्सुक था कि वे किस प्रकार अपना जीवन बिताते हैं। 

 

दस आज्ञाएं उम्मीदों की एक सूची है जो परमेश्वर ने इस्राएलियों को दी थी। ये उसकी अपेक्षा थी कि वे उसके प्रति अपने प्रेम को दिखा सकें। उसका एक भाग यह था की उन्हें एक दूसरे को किस प्रकार प्रेम दिखाना चाहिए। पहली चार आज्ञाओं में उनके लिए एक बहुत ही विशेष सबक है। अपने पवित्र परमेश्वर से प्रेम करने का सही तरीका सिखाया गया है। उन्हें उसके प्रति सम्पूर्ण रीती से समर्पित होना था। आइये इन्हें पढ़ते हैं: 

 

पहली आज्ञा: "तुम्हे मेरे अतिरिक्त किसी अन्य देवता को, नहीं मानना चाहिए।"

 

परमेश्वर ने इस्राएल को एक महान राष्ट्र बनाने के लिए इब्राहिम के बच्चों को बाहर निकाला। वह सही मायने में इस्राएल का राजा था, और वह राज्य का निर्माण कर रहा था! परमेश्वर ने पूरी सृष्टि को बनाया, उसने प्रत्येक इस्राएली को जीवन दिया था, और उन्हें मिस्रवासियों से बचाया था। भविष्य में, वह उन्हें वादा के देश लेकर आएगा। वे उसके कर्ज़दार थे। वह चाहता था किवे उसे पूरे तन, मन, और धन से उससे प्रेम करें। वह उनके जीवन में पहला स्थान चाहता था! 

 

केवल एक बहुत ही महान परमेश्वर ही इतनी अपेक्षा कर सकता था। इब्राहीम, जो सब इस्राएलियों का पिता था, जानता था की केवल परमेश्वर ही सब चीज़ के योग्य था। वह एक पवित्र भय के साथ परमेश्वर का भय मानता था, और इसीलिए वह उसका आज्ञाकारी था। जब परमेश्वर ने उसे वेदी पर अपने पुत्र इसहाक को बलिदान करने के लिए कहा, अपने बेटे कि जान की परवाह किये बगैर इब्राहीम ने उसका बलिदान चढ़ाने का फ़ैसला कर लिया था। उसे विश्वास था की जो परमेश्वर उससे और उसके पुत्र से चाहता है वह उनकी भलाई के लिए था, चाहे वह उसे ना भी समझ पाये। उसके हृदय में परमेश्वर के लिए अटूट प्रेम था जिस समय वह जंगल में अपने प्रिय पुत्र को बलिदान करने के लिए ले जा रहा था। परमेश्वर उसके विश्वास का परीक्षण कर रहा था। 

 

इब्राहीम ने परमेश्वर द्वारा दिए परीक्षण को पारित कर लिया था। वह जानता था की चाहे परमेश्वर ने उसे कुछ भी करने की आज्ञा दी थी, परमेश्वर अपने वादे को रखेगा। चाहे इब्राहीम अपने ही बेटे की जान ले लेता है, परमेश्वर फिर भी किसी न किसी तरह इसहाक के माध्यम से एक पूरे राष्ट्र को बना सकता है। परमेश्वर इब्राहीम के ज़बरदस्त विश्वास को सिद्ध मानता है। इब्राहीम ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे कि वह धर्मी बन गया, उसका भरोसा एक धर्मी परमेश्वर पर था जिससे की वह धर्मी बना। 

 

अब इस्राएलियों के पास अपने विश्वास को दिखाने का एक मौका था। उन्हें अपने जीवन को बलिदान करके परमेश्वर से अपने सम्पूर्ण जीवन से प्रेम करना था। उन्हें इस विश्वास से की परमेश्वर अपने वादे के अनुसार उनके लिए सब कुछ करेगा, उन्हें पूरे दिल से उसकी आज्ञाओं को मानना था। और उनके पिता इब्राहीम की तरह, उनके विश्वास को सिद्ध ठहराया जाएगा। 

 

दूसरी आज्ञा: "तुम्हें कोई भी मूर्ति नहीं बनानी चाहिए। किसी भी उस चीज़ की आकृति मत बनाओ जो ऊपर आकाश में या नीचे धरती पर अथवा धरती के नीचे पानी में हो। किसी भी प्रकार की मूर्ति की पूजा मत करो, उसके आगे मत झुको: क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ, और मैं उनसे घृणा करता हूँ।"

 

इस्राएल भिन्न भिन्न प्रकार के देवताओं से घिरा हुआ था। वे डरावने दिखने वाले बैल और शेर और भयावह इंसानों कि मूर्तियां बना रहे थे, और उनकी उपासना कर रहे थे। वे इन मूर्तियों से अपनी ज़रूरतों को मांग रहे थे। वे अपने ईश्वरों से फसलों के लिए बारिश और अपने पड़ोसियों के लिए शाप की मांग कर रहे थे। इन शैतानी मूर्तियों किशक्ति का उपयोग कर के वे मंत्र और जादुई मंत्र का उपयोग कर रहे थे। 

 

यहोवा ने अपने लोगों के लिए यह वर्जित किया। उन्होंने उसे एक समुन्द्र को विभाजित करते देखा था। उन्होंने धुंए और आग में उसकी भव्यता को देखा था। उन्होंने पहाड़ पर उसकी शक्ति को देखा था। यह ब्रह्मांड में पवित्र और शुद्ध शक्ति थी। परमेश्वर के अलावा कोई भी अन्य शक्ति दुष्ट है। और किसी भी अन्य शक्ति के पास जाने का कोई कारण नहीं था। और इससे भी बढ़कर अद्भुत यह है कि वह एक जलन करने वाला परमेश्वर था। वह उनके सम्पूर्ण प्रेम को चाहता था। यह कितना एक महान और अद्भुत उपहार है! और इतने अद्भुत प्रेम के आगे, दूसरे ईश्वरों किओर जाना यह कितना एक भयानक और प्रतिकारक कपट था। 

 

यहोवा ने केवल अन्य देवताओं की मूर्तियां बनाने के लिए मना किया। वह नहीं चाहता था किवे उसकी भी कोई मूर्तियां बनाएं! कोई भी तस्वीर उसकी महानता को दिखा नहीं सकती थी। उसकी उपासना करने के लिए उन्हें किसी भी तस्वीर या प्रतिमा की जरूरत नहीं थी। यहोवा सर्वशक्तिमान और सब जानने वाला परमेश्वर है। उन्हें केवल उससे विश्वास में प्रार्थना करने की आवश्यकता थी। उन्हें विश्वास होना चाहिए था कि चाहे वे कहीं भी क्यूँ ना हों, वह उनकी सुनता है। वे अपने पूरे दिल से हर समय उसकी उपासना कर सकते थे! 

 

तीसरी आज्ञा: तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के नाम का उपयोग तुम्हें गलत ढंग से नहीं करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति यहोवा के नाम का उपयोग गलत ढंग से करता है तो वह अपराधी है और यहोवा उसे निरपराध नहीं मानेगा।

यहोवा अपनी पवित्रता और सामर्थ में मनुष्य कि सोच से कहीं अधिक बढ़कर है, की उसका नाम भी इतना बहुमूल्य है। यह पवित्र है, और मनुष्य को उस नाम के आगे कांपना चाहिए क्यूंकि उसकी पहचान है जो सब पर विराजमान है! परमेश्वर इन पृथ्वी पर रहने वाले इस्राएलियों को कुछ सिखा रहा था, और जो इस श्रापित धरती से घिरे हुए थे। वह उन्हें उसके विषय में सिखा रहा था की उसके लिए किस प्रकार से सोचना है और बोलना है जो सर्वश्रेष्ठ है। वह इतना महान है की उसके लिए जो भी शब्द बोले जाएं उन्हें ध्यान पूर्वक बोले जाने चाहिए। वे एक सिद्ध परमेश्वर के लिए कभी भी ग़लत नहीं होने चाहिए।