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कहानी १०८: विशाल चेतावनियां - भाग १

जिस समय से यीशु ने अपनी सेवकाई शुरू कि और खानी में अब तक, ढाई साल से अधिक हो गए हैं। वह और उसके चेले स्वर्ग राज्य के सत्य का प्रचार और लुभावने चमत्कार और दया का दिल प्रतिपादन कृत्यों के माध्यम से सबसे उच्च परमेश्वर की शक्ति का प्रदर्शन, इस्राएल के शहरों और गांवों में जाकर किया।

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कहानी १०९: विशाल चेतावनियां: भाग II 

प्रभु यीशु ने अपने चेलों के लिए स्वर्ग के राज के लिए आशा दी थी। स्वर्ग का राजा चाहता है कि लोग उस पर पूर्ण रीति से भरोसा करें। यहां तक ​​कि उनकी सांसारिक संपत्ति को कम महत्व देते हुए परमेश्वर के कामों में इस पृथ्वी पर लगाना है।

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कहानी ११०: युद्ध

प्रभु का दिन आने वाला है, और जिस समय यीशु पृथ्वी पर चला करते था, वह उसकी अपेक्षा करते थे। वो दिन न्याय का दिन होगा और अविश्वास और विद्रोह के विरुद्ध में आग होगी। जो उस पर विश्वास करेंगे उनके लिए उद्धार का दिन होगा।

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कहनी १११: सुंदर सत्य, सुंदर चंगाई 

यीशु जब प्रचार करते जा रहे थे, वे उन भयानक विकृतियों और झूठ को खोलते जा रहे थे जिसने लोगों को भय और झूठे विश्वास में जकड़ा हुआ था। अपने स्वर्गीय पिता के विषय में झूठ सुनकर वह कितना अपमानित महसूस कर रहा होगा!

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कहनी ११२: समर्पण का पर्व:  यीशु द्वारा जन्म से अंधे आदमी कि चंगाई 

मिलापवाले तम्बू के पर्व के तीन महीने बीत चुके थे और अब समर्पण के पर्व का समय आ गया था।एक बार फिर, सभी तीर्थयात्त्री इस्राएल देश से यरूशलेम को यात्रा के लिए जाएंगे। पिछले पर्व की घटनाएं अभी भी लोगों के दिमाग में ताजा थीं।

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कहनी ११३: समर्पण का पर्व : जन्म से अँधा आदमी फरीसियों के साथ 

फिर उसके पड़ोसी और वे लोग जो उसे भीख माँगता देखने के आदी थे, उसे देख कर हैरान हुए। वह उस व्यक्ति के समान दिखता था जिसे वे हर रोज़ देखते थे लेकिन ऐसा कैसे हो सकता था? उन्होंने एक दूसरे से पुछा,“क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो बैठा हुआ भीख माँगा करता था?”

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कहनी ११४: अच्छा चरवाहा और चोर

यीशु ने तीन साल से फरीसियों और धार्मिक नेताओं का सामना किया था। यह और भी अधिक स्पष्ट होता जा रहा था कि उनके दिल विद्रोह और पाप में पक्के हो गए थे। परमेश्वर कि सच्चाई को सुनने के बाद उसको अस्वीकार कर देना ही बहुत खतरनाक बात है।

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कहनी ११५: अच्छा चरवाहा--भाग २ 

यीशु अपने चेलों को समझा रहे थे कि इस्राएल के देश में क्या हो रहा था। यदि यीशु ही मसीहा है, तो उसके और धार्मिक अगुवों के बीच क्यूँ ऐसा युद्ध था? क्या उन्हें एक साथ मिलकर काम नहीं करना चाहिए? यीशु ने समझाया कि, वे जो उसके हैं और अपने स्वर्गीय पिता कि आवाज़ को सुनते हैं, तो उन्हें पश्चाताप करके उसके पीछे चलना चाहिए।

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कहनी ११६: पुत्र को मारने की कोशिश

जब यीशु एक अच्छे चरवाहे के विषय में बोल रहा था, उसके सुनने वाले समझे कि वह इस बात का ऐलान कर रहा है कि वह मसीहा है। वे जानते थे कि वह अपनी उन भेड़ों के लिय अपनी जान देने का दावा कर रहा है जो उसकी सुनते हैं और विश्वास करते हैं।

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कहनी ११७: स्वर्ग राज्य में पहले और अंतिम

पेरा जाने के लिए यीशु येरूशलेम और यहूदी के क्षेत्र को छोड़ कर यात्रा पर निकल पड़े। समर्पण का पर्व खत्म हो चूका था, और साढ़े तीन महीने तक यीशु येरूशलेम को वापस नहीं आएगा। वहाँ बहुत अधिक खतरा था। यहूदी यीशु को मारना चाहते थे, और जो वक़्त परमेश्वर पिता ने यीशु को नियुक्त किया था जब उसे अपने प्राण देने होंगे, वो वक़्त अभी नहीं आया था।

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कहनी ११८: दो राजा

उस समय के आसपास, कुछ फरीसी यीशु के पास आये। उन्होंने उसे चेतावनी दी कि हेरोदेस राजा उसे मारना चाहता था। उन्होंने उसे उस क्षेत्र को छोड़कर जाने को कहा जहां वह रहता था और कहीं और चला जाये।

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कहनी ११९: राज्य पद 

फरीसी यीशु पर दोष लगाने के रास्ते ढूंढ रहे थे। वे इस ताक में थे कि वह ऐसा कुछ करे और वे उसके विरुद्ध में उस चीज़ को इस्तेमाल करें! बस उससे कोई नियम तुड़वा सकते। फिर वे उसे पूरे देश के सामने नीचा दिखाते और उसकी आवाज़ को शांत कर देते। सो उन्होंने साज़िश रची कि यीशु सबत के दिन आये।

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कहनी १२०: बड़ा भोज का पर्व

यीशु एक प्रभावशाली फरीसी के मेज़ पर बैठे थे। क्षेत्र के प्रभावशाली सम्मानित धार्मिक पुरुष भी उनके साथ शामिल हो गए थे। आम तौर पर, रात के खाने का निमंत्रण दोस्ती को दर्शाता है, लेकिन इस मामले में, यह काफी विपरीत था। इन लोगों ने यीशु को फंसाने के लिए उसे आमंत्रित किया था।

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कहनी १२१: एक शिष्य होने की कीमत 

यीशु जब परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाते हुए पेरी को गए, बड़ी भीड़ उसके साथ गयी जहां जहां वो गया। यीशु के विरुद्ध धार्मिक अगुवों ने शत्रुता कि लंबी रेखा खींची, लेकिन वह अपने देश का सबसे प्रसिद्ध शिक्षक था। आधे से ज़यादा लोग उसे मसीहा समझ रहे थे!

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कहनी १२२: खोई हुई भेड़ और खोया हुआ सिक्का

कभी कभी जब हम प्रभु यीशु के जीवन और शब्दों के बारे में पढ़ते हैं तो वह जंगली और अदम्य लग सकता है। वह अप्रत्याशित है। वह हमारी उम्मीद से बढ़कर करता है। ऐसा लगता है मनो वह एक दूसरी दुनिया से आया हो और अपने साथ उन अजीब रिवाज़ों और आस्थाओं को अपने साथ लाया हो।

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कहनी १२३: उड़ाऊ पुत्र 

धार्मिक अगुवे यीशु से परेशान थे कि वह पापियों और चुंगी लेनेवालों के साथ अपना समय बिताया करता है। वे यह नहीं देख पा रहे थे कि उनके घमंड और द्वेष के कारण वे इतने झुके और बिगड़े हुए कैसे हो सकते हैं।

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कहनी १२४: गरीबो के प्रति रवैया

यीशु अपने चेलों को शिक्षा दे रहे थे जब उन्होंने यह दृष्टान्त बताया:

"'फिर यीशु ने अपने शिष्यों से कहा,“एक धनी पुरुष था। उसका एक प्रबन्धक था उस प्रबन्धक पर लांछन लगाया गया कि वह उसकी सम्पत्ति को नष्ट कर रहा है। सो उसने उसे बुलाया और कहा,‘तेरे विषय में मैं यह क्या सुन रहा हूँ? अपने प्रबन्ध का लेखा जोखा दे क्योंकि अब आगे तू प्रबन्धक नहीं रह सकता।

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कहनी १२५: प्रभु की क्षमाशीलता

यीशु जब पेरी से जा रहे थे, उसने अपने चेलों को और सिखाया कि उसके पीछे चलने का मतलब क्या है। उसका समय निकट आ रहा था, और वह जानता था कि ये चेले उसके सन्देश को आगे लेकर जाएंगे। जो यीशु उन्हें दिखाना चाहते थे वो यह था कि उसके राज्य कि शिक्षाएं धार्मिक अगुवों से बहुत भिन्न थीं जैसा कि वे इस्राएल में रह कर जताते थे। सो उसने उन्हें चेतावनियां दीं जिससे कि वे समझ सकें।

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कहनी १२६: लाज़र की यात्रा

यहूदी अगुवे यीशु को गिरफ्तार करने और उसे मार डालने के लिए तैयार थे। हालात हाथ से बाहर हो रहे थे। इस दुष्ट उपदेशक की लोकप्रियता खतरनाक होती जा रही थी। येरूशलेम के अगुवे अपने अधिकार और प्रभाव को जाते देख रहे थे जब सारी भीड़ यीशु की बातों पर पूरा ध्यान लगा रहे थे।

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कहनी १२७: लाजर का आश्चर्य

यीशु अपने चेलों के साथ बैतनिय्याह को गया। यह एक खतरनाक निर्णय था, जो वास्तव में नहीं था! यहूदी अगुवे यीशु को मार देना चाहते थे, और येरूशलेम छोड़ कर वह यरदन नदी को चला गया। केवल अभी के लिए, यीशु का मित्र लाज़र मर रहा था, और यीशु उसकी सहायता के लिए जा रहा था।

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