कहनी १२३: उड़ाऊ पुत्र
धार्मिक अगुवे यीशु से परेशान थे कि वह पापियों और चुंगी लेनेवालों के साथ अपना समय बिताया करता है। वे यह नहीं देख पा रहे थे कि उनके घमंड और द्वेष के कारण वे इतने झुके और बिगड़े हुए कैसे हो सकते हैं। इसलिए यीशु ने दृष्टान्त के द्वारा उन्हे परमेश्वर कि सिद्ध और उज्जवल आशा को प्रकट किया जो परमेश्वर हा एक पापी को देना चाहता है जो पश्चाताप करेगा। उसने स्वर्ग राज्य कि आशा के विषय में सिखाया:
“'एक व्यक्ति के दो बेटे थे। सो छोटे ने अपने पिता से कहा, ‘जो सम्पत्ति मेरे बाँटे में आती है, उसे मुझे दे दे।’ तो पिता ने उन दोनों को अपना धन बाँट दिया।
“अभी कोई अधिक समय नहीं बीता था, कि छोटे बेटे ने अपनी समूची सम्पत्ति समेंटी और किसी दूर देश को चल पड़ा। और वहाँ जँगलियों सा उद्दण्ड जीवन जीते हुए उसने अपना सारा धन बर्बाद कर डाला। जब उसका सारा धन समाप्त हो चुका था तभी उस देश में सभी ओर व्यापक भयानक अकाल पड़ा। सो वह अभाव में रहने लगा। इसलिये वह उस देश के किसी व्यक्ति के यहाँ जाकर मज़दूरी करने लगा उसने उसे अपने खेतों में सुअर चराने भेज दिया। वहाँ उसने सोचा कि उसे वे फलियाँ ही पेट भरने को मिल जायें जिन्हें सुअर खाते थे। पर किसी ने उसे एक फली तक नहीं दी।
“फिर जब उसके होश ठिकाने आये तो वह बोला,‘मेरे पिता के पास कितने ही ऐसे मज़दूर हैं जिनके पास खाने के बाद भी बचा रहता है, और मैं यहाँ भूखों मर रहा हूँ। सो मैं यहाँ से उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा: पिताजी, मैंने स्वर्ग के परमेश्वर और तेरे विरुद्ध पाप किया है। अब आगे मैं तेरा बेटा कहलाने योग्य नहीं रहा हूँ। मुझे अपना एक मज़दूर समझकर रख ले।’ सो वह उठकर अपने पिता के पास चल दिया।
“अभी वह पर्याप्त दूरी पर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया और उसके पिता को उस पर बहुत दया आयी। सो दौड़ कर उसने उसे अपनी बाहों में समेट लिया और चूमा। पुत्र ने पिता से कहा, ‘पिताजी, मैंने तुम्हारी दृष्टि में और स्वर्ग के विरुद्ध पाप किया है, मैं अब और अधिक तुम्हारा पुत्र कहलाने योग्य नहीं हूँ।’
“किन्तु पिता ने अपने सेवकों से कहा,‘जल्दी से उत्तम वस्त्र निकाल लाओ और उन्हें इसे पहनाओ। इसके हाथ में अँगूठी और पैरों में चप्पल पहनाओ। कोई मोटा ताजा बछड़ा लाकर मारो और आऔ उसे खाकर हम आनन्द मनायें। क्योंकि मेरा यह बेटा जो मर गया था अब जैसे फिर जीवित हो गया है। यह खो गया था, पर अब यह मिल गया है।’ सो वे आनन्द मनाने लगे।
“अब उसका बड़ा बेटा जो खेत में था, जब आया और घर के पास पहुँचा तो उसने गाने नाचने के स्वर सुने। उसने अपने एक सेवक को बुलाकर पूछा, ‘यह सब क्या हो रहा है?’ सेवक ने उससे कहा, ‘तेरा भाई आ गया है और तेरे पिता ने उसे सुरक्षित और स्वस्थ पाकर एक मोटा सा बछड़ा कटवाया है!’
“बड़ा भाई आग बबूला हो उठा, वह भीतर जाना तक नहीं चाहता था। सो उसके पिता ने बाहर आकर उसे समझाया बुझाया। पर उसने पिता को उत्तर दिया, ‘देख मैं बरसों से तेरी सेवा करता आ रहा हूँ। मैंने तेरी किसी भी आज्ञा का विरोध नहीं किया, पर तूने मुझे तो कभी एक बकरी तक नहीं दी कि मैं अपने मित्रों के साथ कोई आनन्द मना सकता। पर जब तेरा यह बेटा आया जिसने वेश्याओं में तेरा धन उड़ा दिया, उसके लिये तूने मोटा ताजा बछड़ा मरवाया।’
“पिता ने उससे कहा, ‘मेरे पुत्र, तू सदा ही मेरे पास है और जो कुछ मेरे पास है, सब तेरा है। किन्तु हमें प्रसन्न होना चाहिए और उत्सव मनाना चाहिये क्योंकि तेरा यह भाई, जो मर गया था, अब फिर जीवित हो गया है। यह खो गया था, जो फिर अब मिल गया है।” सो वे जश्न मनाने लगे।'"
इस कहानी में क्या पिता का प्रेम अद्भुद नहीं है? यही प्रेम हमारा आसमानी बाप अपने सभी बच्चों से भी करता है। आपने उस पुत्र कि आत्मा को देखा जब वह अपने पिता के पास लौट के आया? क्या वह कुछ मांग रहा था या असभ्य था? क्या उसने एक पुत्र होने के सब अधिकार कि अपेक्षा की? क्या वह आत्म दया को मांग रहा था? या उसने स्वीकार किय अकी उसने पाप किया है? जब वह पुत्र अपने पिता के पास आया, वह एक वास्तविक पश्चाताप कि आत्मा में आया। वह जानता था कि उसने आपनी सारे संपत्ति खो दी है। उसने कहा कि वो सब के लिए जो कुछ उसने बरबाद किया है उसके लिए हर परिणाम को सहने को तैयार है। वह जानता था कि उसे घर आकर काम करना होगा और उन सब पापी बातों को पीछे छोड़ना हओ उसका भाई इससे प्रसन्न नहीं था। फिर यीशु ने कहा:
“अब उसका बड़ा बेटा जो खेत में था, जब आया और घर के पास पहुँचा तो उसने गाने नाचने के स्वर सुने। उसने अपने एक सेवक को बुलाकर पूछा,‘यह सब क्या हो रहा है?’ सेवक ने उससे कहा, ‘तेरा भाई आ गया है और तेरे पिता ने उसे सुरक्षित और स्वस्थ पाकर एक मोटा सा बछड़ा कटवाया है!’
“बड़ा भाई आग बबूला हो उठा, वह भीतर जाना तक नहीं चाहता था। सो उसके पिता ने बाहर आकर उसे समझाया बुझाया। पर उसने पिता को उत्तर दिया,‘देख मैं बरसों से तेरी सेवा करता आ रहा हूँ। मैंने तेरी किसी भी आज्ञा का विरोध नहीं किया, पर तूने मुझे तो कभी एक बकरी तक नहीं दी कि मैं अपने मित्रों के साथ कोई आनन्द मना सकता। पर जब तेरा यह बेटा आया जिसने वेश्याओं में तेरा धन उड़ा दिया, उसके लिये तूने मोटा ताजा बछड़ा मरवाया।’
“पिता ने उससे कहा,‘मेरे पुत्र, तू सदा ही मेरे पास है और जो कुछ मेरे पास है, सब तेरा है। किन्तु हमें प्रसन्न होना चाहिए और उत्सव मनाना चाहिये क्योंकि तेरा यह भाई, जो मर गया था, अब फिर जीवित हो गया है। यह खो गया था, जो फिर अब मिल गया है।’” --लूका १५:११-३१
यदि आप बड़े भाई होते तो क्या आप भी नाराज़ होते? क्या आप समझ सकते हैं कि वह क्यूँ नाराज़ हुआ होगा? यह कितना निराशाजनक है कि इतने सालों सेवा करने के बाद, आपका छोटा भाई यह सब जश्न को पता है जब कि वह परिवार को छोड़ के गया था! लेकिन वह पुत्र उन आशीषों को भूल गया जो उसे सदा मिलती रही हैं। उसे अपने पिता के करीब रहने का मौका था! उसने परिवार के लिए बहुत मेहनत की थी। यह जीवन की बहुमूल्य चीज़ थी। और उसे वह सब कुछ सम्पत्ति में मिला जो उसका पिता उसे दे रहा था। इसे अच्छी तरह कमाया गया था, परन्तु यह बहुत बड़ी आशीष थी। उसे कभी भी उसके भाई के गलत निर्णयों पर दुखी नहीं होना पड़ेगा। लेकिन जिस बड़ी चीज़ को रहा था, उसका पिता समझ गया था। जब उसके भाई ने विद्रोह किया, तो वह जिस हालत में जी रहा था वह मृत्यु कि ओर ले जाता है। पापमय बातें उन लोगों के साथ दोस्ती कराता है जो उन कामों में साथ देते हैं, और यह महान बरबादी और शरीर और आत्मा को खतरा देती हैं। उसके अपने विद्रोहीपन में, उसका भाई एक मरे हुए व्यक्ति के समान था, और यह एक सच्चा चमत्कार था कि उसकी परिस्थितियां इतनी बुरी हो गईं कि उसे वापस घर को लौटना पड़ा। उस भाई ने अपने आप से यह पुछा होगा कि उस भाई के जीवन के बारे में चिंता करने से अधिक वह परिवार में अपने पद और इज़ज़त को लेकर क्यूँ अधिक चिन्तित था? वह अपने खोए हुए भाई को देख कर क्यूँ नहीं खुश था?
यीशु के समय के फरीसी और धार्मिक अगुवों ने भी यही सवाल किया होगा, विशेष कर के इस दृष्टान्त को सुनने के बाद।