कहनी १२७: लाजर का आश्चर्य

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यीशु अपने चेलों के साथ बैतनिय्याह को गया। यह एक खतरनाक निर्णय था, जो वास्तव में नहीं था! यहूदी अगुवे यीशु को मार देना चाहते थे, और येरूशलेम छोड़ कर वह यरदन नदी को चला गया। केवल अभी के लिए, यीशु का मित्र लाज़र मर रहा था, और यीशु उसकी सहायता के लिए जा रहा था। फिर भी यीशु ने जाने से पहले बहुत दिन तक रुका रहा। क्यूँ? यह परमेश्वर कि इच्छा थी कि लाज़र मरे ताकि यीशु उसे कब्र से बाहर निकाल सके। इससे परमेश्वर कि महिमा होगी, और बहुत लोग विश्वास करेंगे, और उसके मित्रों का विश्वास भी बढ़ेगा। परमेश्वर के काम कई बार अनोखे लगते हैं, लेकिन उसका समय और कारण उत्तम होते हैं।

जब यीशु बैतनिय्याह पहुँचा, उन्हें पता चला कि लाज़र मर गया है, जैसा कि यीशु ने कहा था। लाज़र को कब्र में रखे चार दिन हो चुके हैं। बैतनिय्याह यरूशलेम से लगभग तीन किलोमीटर दूर था। भाई की मृत्यु पर मार्था और मरियम को सांत्वना देने के लिये बहुत से यहूदी लोग आये थे। इन स्त्रियों के दुःख कि कल्पना कीजिये। वे कितनी परेशां हो रही होंगी। उनका अपना प्रिया यीशु, जो दूसरों को चंगाई देता था और दूसरों को मुर्दों में से जिलाता था, उसने आने से इंकार कर दिया है। वह लाज़र को बचा सकता था! और अब चार दिन बाद, वह पहले आने वालों में से भी नहीं था जो आकर उनकी सुद्धि लेता।

जब मार्था ने सुना कि यीशु आया है तो वह उससे मिलने गयी। जबकि मरियम घर में ही रही। वहाँ जाकर मारथा ने यीशु से कहा,“हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता तो मेरा भाई मरता नहीं। पर मैं जानती हूँ कि अब भी तू परमेश्वर से जो कुछ माँगेगा वह तुझे देगा।”

यीशु ने उससे कहा,“'तेरा भाई जी उठेगा।”

मार्था ने उससे कहा,“मैं जानती हूँ कि पुनरुत्थान के अन्तिम दिन वह जी उठेगा।” उसने नहीं समझा कि लाज़र उसी दिन जी उठने वाला है! 

यीशु ने उससे कहा,'“मैं ही पुनरुत्थान हूँ और मैं ही जीवन हूँ। वह जो मुझमें विश्वास करता है जियेगा। और हर वह, जो जीवित है और मुझमें विश्वास रखता है, कभी नहीं मरेगा। क्या तू यह विश्वास रखती है।'”

वह यीशु से बोली,“हाँ प्रभु, मैं विश्वास करती हूँ कि तू मसीह है, परमेश्वर का पुत्र जो जगत में आने वाला था।”

उसने घोषित कर दिया था, और इसलिए यह उसके लिए सच्च हो गया था। यह उज्जवल था और अनंतकाल के लिए था। यीशु ने उसके विश्वास को स्वीकार कर लिया था। यह उन धार्मिक अगुवों के बहस और सवालों के सामने कितना सुन्दर और साधारण था।

जब यीशु ने कहा कि वे जो उस पर विश्वास करते हैं वे कभी नहीं मरेंगे, तो क्या उसका मतलब शारीरिक मृत्यु से था? हम जानते हैं कि यह सच नहीं है। सभी चेले मर चुके हैं, और मार्था और मरियम भी। लेकिन उनकी मृत्यु हमेशा के लिए नहीं थी, यह केवल इस श्रापित दुनिया से निकल कर उस दूसरी दुनिया में जाने के लिए था। और वह दूसरी दुनिया, जहां यीशु राज करता है, वह एक शानदार जगह है!

फिर इतना कह कर वह वहाँ से चली गयी और अपनी बहन को अकेले में बुलाकर बोली,“गुरू यहीं है, वह तुझे बुला रहा है।” जब मरियम ने यह सुना तो वह तत्काल उठकर उससे मिलने चल दी।

जब बाकी के लोगों ने उसे ऐसे जल्दी में घर के अंदर जाते देखा, तब वे भी उसके पीछे चल दिए। यीशु अभी भी उसी स्थान में था जहां मार्था उसे मिली थी, और इसलिए वह  गाव में अभी नहीं गया था। मरियम जब वहाँ पहुँची जहाँ यीशु था तो यीशु को देखकर उसके चरणों में गिर पड़ी और बोली,“हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता तो मेरा भाई मरता नहीं।”

इन दोनों मित्रो का दुःख कितना बड़ा था जब वे यीशु का इंतज़ार कर रहे थे। उन्होंने कितना दुःख सहा! यीशु ने अपने प्रिया मित्र पर नज़र डाली और श्राप के कारण मौत पर रोया। उसने देखा कि बाकी के परिवार जन लाज़र को खो देने के दुःख से रो रहे हैं, जो कि एक सिद्ध व्यक्ति था। बाइबिल बताती है कि यीशु "कि आत्मा तड़प उठी" उसे उनकी पीड़ा से नफ़रत थी! फिर भी जब वह उनके दुःख को देख कर उस समय के लिए दुखी था, वह जानता था कि आनंद अभी आना है।

इस पर जिन्होंने यीशु के आसूँ देखे वे कहने लगे,“देखो! यह लाज़र को कितना प्यार करता है।” लेकिन दूसरे केवल शिकायत करने लगे।

मगर उनमें से कुछ ने कहा,“यह व्यक्ति जिसने अंधे को आँखें दीं, क्या लाज़र को भी मरने से नहीं बचा सकता?” वे नहीं समझ पाये कि परमेश्वर का एक ऊंची योजना थी जो वह प्रकट करने जा रहा था। जो दुःख लाज़र, मरियम और मार्था को मिला, उसके बाद वे प्रभु को महिमा देने जा रहा हैं!

तब यीशु अपने मन में एक बार फिर बहुत अधिक व्याकुल हुआ और कब्र की तरफ गया। यह एक गुफा थी और उसका द्वार एक चट्टान से ढका हुआ था। लाज़र उसके अंदर था। यीशु ने उन्हीन पत्थर को हटाने को कहा। मार्था बोल उठी। वह अपने भाई कि यादों को अपमानित नहीं करना चाहती थी।

मार्था ने कहा,“हे प्रभु, अब तक तो वहाँ से दुर्गन्ध आ रही होगी क्योंकि उसे दफनाए चार दिन हो चुके हैं।”

यीशु ने उससे कहा,“'क्या मैंने तुझसे नहीं कहा कि यदि तू विश्वास करेगी तो परमेश्वर की महिमा का दर्शन पायेगी।'”

तब उन्होंने उस चट्टान को हटा दिया। और यीशु ने अपनी आँखें ऊपर उठाते हुए कहा,“'परम पिता मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ क्योंकि तूने मेरी सुन ली है। मैं जानता हूँ कि तू सदा मेरी सुनता है किन्तु चारों ओर इकट्ठी भीड़ के लिये मैंने यह कहा है जिससे वे यह मान सकें कि मुझे तूने भेजा है।'” 

यह एक बहुत ही अद्भुद प्रार्थना थी! यीशु जिस वार्तालाप को हमेशा अपने पिता के साथ करता था उसे ऊँची आवाज़ में कहा। यीशु यह दर्शा रहे थे कि लाज़र को जिलाना उसका परमेश्वर के प्रति प्रतिक्रिया थी, और उसे पूरा विश्वास था कि पिता उसे वह करने के लिए पूरी सामर्थ देगा!

उसने ऊँचे स्वर में पुकारा,“'लाज़र, बाहर आ!'” वह व्यक्ति जो मर चुका था बाहर निकल आया। उसके हाथ पैर अभी भी कफ़न में बँधे थे। उसका मुँह कपड़े में लिपटा हुआ था।

यीशु ने लोगों से कहा,“'इसे खोल दो और जाने दो।'”

लाज़र जी उठा था! थोड़े समय का दुःख था, परन्तु वह जी उठा था, और आनंद आ गया था। आप सोच सकते हैं कि मार्था और मरियम कैसे नाची होंगी? मृत्यु के श्राप ने यीशु के मित्रों को दुःख में दाल दिया था, लेकिन यीशु जीवन को वापस ले आया था। जिस समय वह पाप के शक्तिशाली असर को उल्टा कर रहा था, यीशु ने अपने उज्जवल महिमा को इस्राएल को प्रकट किया। यह परमेश्वर का राज्य था! और यीशु के मित्र उनमें से पहले थे जिन्होंने उसके नाम कि खातिर दुःख सहा था।

यीशु अपने आप को बलिदान होने के लिए दे रहा था, और यह स्पष्ट हो गया था कि उसके चेले भी परमेश्वर कि इच्छा के आगे समर्पित होने के लिए बुलाय गए हैं। यह एक ऐसी विनम्रता है जिसमे एक गहरे विश्वास कि आवश्यकता है। एक समय आता है जब लगता है कि बाहरी बातें संसार कि बातों से अधिक महत्वपूर्ण हैं। यह मानना ज़रूरी है कि परमेश्वर सामर्थी है, और इस दुनिया के बाद एक अनंतकाल का जीवन है, और एक आशा कि वह उन्हें बहुतायत से इनाम देगा जो पूरी लगन से उसे खोजते हैं।

जब यीशु ने मार्था से बात की और उससे पूछा की यदि वह विश्वास करती है, तो वह इसलिए नहीं था कि उसे विश्वास नहीं था। वह उसके विश्वास को उसमें और गहराई से खीचने के लिए ऐसा पूछ रहा था। उसे यीशु पर भरोसा करना था चाहे उसकी सबसे कीमती चीज़ कब्र में बंधी हुई थी। और जिस समय पूरा परिवार यीशु कि सामर्थ में मृत्यु से जीवन कि और जा रहा था, उनकी पहचान यीशु कि पहचान के साथ और भी गहरायी से बंध गयी थी। वह उनके लिए जीवन और आशा बन गया था! आशा कि कितनी अद्भुद छवि हम मृतोत्थान में देखते हैं जो एक दिन हमें अनंतकाल में ले जाएगा!

लाज़र अब जीवित और कुशल था। सोचिये इसके विषय में कैसे खबर फैली होगी। जो व्यक्ति वास्तव में मर गया था, वह यीशु के द्वारा जिलाया गया। येरूशलेम के यहूदि इसके सबसे पहले गवाह बने। उसमें कोई दोराय नहीं थी। लाज़र चार दिन से मृत था, और अब वह जीवित था।

राष्ट्र के लोग यहूदी अगुवों से जवाब मांगेंगे। इस यीशु के पास ऐसे सामर्थ कैसे हो सकती थी जब वह परमेश्वर कि ओर से नहीं था? यदि वह परमेश्वर कि ओर से था और मसीहा था, तो फिर इन अगुवों को क्या हुआ है? वे क्यूँ परमेश्वर के सेवक को मारना चाहते थे? क्या वे मनश्शे कि तरह थे जिन्होंने यशाया नबी को मार दिया था? जिस राजा कि स्मरणशक्ति से सारा इस्राएल नफ़रत करता था? जब यहूदी अगुवे यीशु के पास आये उसे शांत करने के लिए, और यीशु एक परमेश्वर के पुत्र कि तरह उस सामर्थ के साथ खड़ा हुआ था और निडर होकर सच्चाई को घोषित कर रहा था, इससे यह प्रकट हो रहा था केवल एक ही पक्ष सही हो सकता था। क्या यहूदी अगुवे पश्चाताप करेंगे? क्या वे इसे स्वीकार करेंगे कि मसीहा वास्तव में आया था? क्या परमेश्वर के पवित्र लोग विश्वास करेंगे?

बहुत से यहूदी जो मरियम और मार्था कि सुद्धि लेने आये थे, उन्होंने विश्वास किया जो उन्होंने देखा। अन्य लोग फरीसियों के पास गए और उसके विषय में बताया। वे येरूशलेम के महायाजक के पास गए और उन सब बातों के विषय में बताया। यह एक गम्भीर समस्या थी। अगर यह आदमी यीशु, सब लोगों को धोखा देता रहेगा, तो उसे रोकना मुश्किल हो जाएगा। स्पष्ट रूप से, फरीसी उसे रोक नहीं पा रहे थे।

फिर महायाजकों और फरीसियों ने यहूदियों की सबसे ऊँची परिषद बुलाई। और कहा,“हमें क्या करना चाहिये? यह व्यक्ति बहुत से आश्चर्य चिन्ह दिखा रहा है।" यह एक ईमानदार सवाल था। वे चमत्कारों को कैसे समझा सकते थे?

दूसरों ने कहा,"यदि हमने उसे ऐसे ही करते रहने दिया तो हर कोई उस पर विश्वास करने लगेगा और इस तरह रोमी लोग यहाँ आ जायेंगे और हमारे मन्दिर व देश को नष्ट कर देंगे।” वे इस बात का दावा कर रहे थे कि यीशु ज़बरदस्ती करके रोमियों को इस्राएल से निकाल देगा। वे मंदिर को नष्ट कर देंगे और राष्ट्र को खतम करके सब कुछ शांत कर देंगे। अगले कुछ हफ़्तों के अध्ययन में, यह बहुत स्पष्ट हो जाएगा कि यह सब कितना हास्यास्पद था। रोमी लोग यीशु के विषय में इतना नहीं जानते थे और उससे उनको कोई परेशानी नहीं थी। पिलातुस, जो रोम का सरदार था, वह यीशु को नहीं जानता था। लेकिन इन यहूदी अगुवों के पास अच्छा बहन था यीशु को मरवाने का, और वे इसे मानने को तैयार नहीं थे कि वे उससे जलते थे।

फिर कैफा बोल उठा। वह यहूदी कौम का महायाजक था। अपने सत्र पूरे पर वह अठारा साल तक राज कर चूका होगा। उसे यह पद इतने सालों इसलिए नहीं मिला कि वह एक सच्चा अगुवा था या परमेश्वर उसके राज से प्रसन्न था। वह और उसका ससुर अन्नास मंदिर में और आयहूदी धर्म पर एक बहुत राजवंशीय अधिकार सम्भाल रहे थे, अपने अधिकार को पकड़े रहने के लिए भ्रष्टाचार और हेरा फेरी का उपयोग कर रहे थे। उन्होंने परमेश्वर कि ओर से दिए हुए कार्य को जो उसने अपने लोगों के लिए दिया, अपने स्वार्थ के लिए उपयोग किया। यीशु में, उन्हें एक नया दुश्मन मिल गया था जिस पर उनका कोई नियंत्रण नहीं था। वे उस पर अपने पूरे अधिकार को नहीं चला पाये।

महायाजक कैफा ने उनसे कहा,“तुम लोग कुछ भी नहीं जानते। और न ही तुम्हें इस बात की समझ है कि इसी में तुम्हारा लाभ है कि बजाय इसके कि सारी जाति ही नष्ट हो जाये, सबके लिये एक आदमी को मारना होगा।”

कैफा ने पहले ही निर्णय ले लिया था। यीशु को मरना था। उसे एक सिद्द परिक्षण देने का उसका कोई इरादा नहीं था। दोनों पक्ष कि बातों को सुनने का कोई इरादा नही था। जो इस पर अपनी आवाज़ उठाते थे उनको शांत कर दिया जाता था।

जिस प्रकार कैफा ने बोला वह कितना दिलचस्प था। यीशु को मरना आवश्यक था ताकि राष्ट्र बच सके। परन्तु कैफा ने परमेश्वार कि ओर से दी हुई बुद्धि से कहा। सबसे ऊंचे महायाजक ने इस्राएल के महायाजक को इस भविष्यवाणी को घोषित करने के लिए नियमित किया था, चाहे वह यीशु के पीछे चलता है या नहीं। यीशु वास्तव में राष्ट्र के लिए मरने वाला था। जिस समय यूहन्ना इस कहानी को लिख रहा था, वह च्चता था कि हम निश्चित रूप से इसे समझ लें। उसने कहा कि यीशु ना केवल इस्राएल के देश के लिए मरा, परन्तु उन सब परमेश्वर के बच्चों के लिए जो इस संसार में तितर बितर हैं। वह हमारे विषय में कह रहा था!

इस घोषणा का व्यंग्य यह है कि जिस बात को कैफा टालना चाहता था, वही बात सच्च हुई। कई सालों पश्चात्, यूहन्ना इसके विषय में जान जाता जब वह इस कहानी को लिख रहा था। उसे यह बहुत आश्चार्यजनक लगा होगा। 70 AD में, रोमी राज ने येरूशलेम पर कब्ज़ा कर लिया था और उसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया था, और इस्राएल देश अगले दो सौ साल तक मौजूद नहीं होगा।

यहूदियों के आराधनालय ने अपने महायाजक के साथ निर्णय ले लिया था। उस समय से, वे साज़िश कर रहे थे कि कैसे सब करेंगे। क्यूंकि यह इतना आसान नहीं था। उनके पास कोई भी कानूनी कारण नहीं था यीशु को मरवाने का। उसने कुछ भी गलत नहीं किया था। वे उसे किसी भी प्रकार के धोखे में नहीं पकड़ सकते थे, लेकिन वे फिर भी रुकने वाले नहीं थे। और इस्राएल में बहुत लोग यीशु पर विश्वास करते थे। यदि वे यीशु को लोगों के सामने पकड़ते हैं, तो दंगे हो जाएंगे। फिर भी वह लोगों से घिरा हुआ रहता था। वे उसे बिना जाने कैसे पकड़ सकते थे?

यहूदियों के आराधनालय कि योजना के विषय में सबको पता लग गया था। अचानक सब कुछ बहुत खतरनाक हो गया था। यीशु यहूदी लोगों के बीच में अब नहीं जा सकता था। इस्राएल में बहुत से थे जो इस आराधनालय के पक्ष में होकर कुछ फ़ायदा उठा सकेंगे। यरूशलेम छोड़कर वह निर्जन रेगिस्तान के पास इफ्राईम नगर जा कर अपने शिष्यों के साथ रहने लगा।