कहानी ६०: पहाड़ पर उपदेश - प्रार्थना में परमेश्वर के सम्मान  भाग II

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यीशु ने हमें प्रार्थना के लिए एक नमूना दे दिया। सबसे पहले हम स्तुति और आराधना में अपने पवित्र और सामर्थ परमेश्वर के पास आते हैं। फिर हम उसकी इच्छा जानने के लिए प्रार्थना करते हैं। लेकिन यीशु ने यह भी सिखाया कि हमारा जीवन और ज़रूरतें परमेश्वर को बहुत मायने रखता है। जो प्रार्थना उसने चेलों को सिखाई, वो कहता है :
"'हमारी रोज़ कि रोटी आज हमें दे।'"

यीशु के दिनों में, यहूदी लोग जो मजदूर थे, वे कई अमीर लोगों के स्वामित्व में खेतों में काम किया करते थे। वे अक्सर अपने परिवारों को खिला नहीं पाते थे क्यूंकि उनको कम भुक्तान मिलता था। उनको यह पता नहीं होता था कि वे अपने बच्चों को खाने के लिए पर्याप्त भोजन दे पाएंगे या नहीं। यीशु ने अपने चेलों से इन वास्तविक जरूरतों के लिए प्रार्थना करने को कहा। परमेश्वर उन प्रार्थनाओं को सुनता है। वह भरोसेमंद है!

भोजन हर इंसान कि एक दैनिक जरूरत है। लेकिन यही एक ज़रुरत नहीं जिसके लिए यीशु चाहता है कि उसके शिष्य प्रार्थना ना करें। वह अपने राज्य के लोगों को चाहता है कि सब बातों के लिए उस पर निर्भर रहे। प्रार्थना हमारा तरीका है कि हम अपने रजा से अपनी ज़रूरतों के लिए प्रार्थना करें। और कौन उनको पूरा कर सकता है? आपकी रोज़ कि ज़रूरतें कौन सी हैं जो आपको रोज़ के जीवन में मदद करती हैं? यीशु सब देखता है, और हमें बताया है कि हम उन सब बातों के लिए परमेश्वर पिता से कहें।

इस पापी दुनिया में हम सब कि एक और ज़रुरत है। यह रोटी शारीरिक रूप से हमारे लिए है जितनी महत्वपूर्ण है उतना ही आत्मिक रूप से हमारे लिए महत्वपूर्ण है। हमें प्रत्येक दिन उससे उन पापों के लिए परमेश्वर से माफी मांगने कि ज़रुरत है। यीशु नेअपने चेलों को प्रार्थना सिखाई, "हमारे अपराधों को क्षमा कर" क्यूंकि वह हमें शुद्ध और साफ़ करना चाहता है। परन्तु हमें उसके पास दीन होकर आना है। हमें पश्चाताप करना है, मानना है कि हम गलत हैं और अपना बचाव करते हैं जब हम यीशु के मार्ग में चलके अपने ही मार्ग में चलते हैं। हमें उसकी ज़िम्मेदारी लेनी होगी। हम दूसरों पर उन बातों का इलज़ाम नहीं लगा सकते जो हम स्वयं करते हैं। हर पाप जो हम करते हैं उसका हम स्वयं निर्णय लेते हैं। पाप कोई छोटी बात नहीं है, उसे हलके में नहीं लिया जा सकता। वह परमेश्वर के गुस्से को और जला देती है। वह हमारी आत्मा को नष्ट कर देती है और परमेश्वर लिए खड़े रहने को भी। यह घातक और विषैला होता है।

सच्चा पश्चाताप मतलब है कि वो सब जो पाप कि सामर्थ को हमारे जीवन से नष्ट कर देने के लिए ज़रूरी है। दूसरों को क्षमा करना उतना ही ज़रूरी है। उन्हें हमें अपने क्रोध और प्रताशोध से मुक्त करना चाहिए। जब हम ऐसा करते हैं तो हम स्वयं भी मुक्त हो जाते हैं।

जो प्रार्थना यीशु ने नमूने के तौर पे दी उसके आखरी दो पंक्तियों में यीशु सिखाता है कि इस पापी दुनिया में लोभ से कैसे निपटना है। उसने कहा:
"'हमें में परीक्षा में न डाल, लेकिन बुराई से बचा।'"

यीशु ने सिखाया कि हमें उसके पास प्रलोभन से सुरक्षा के लिए जाना चाहिए। हमें उससे इसे छिपाने की जरूरत नहीं है! "हमें आज़माइश से बचा" को इस तरह भी कहा जा सकता है 'हमें धार्मिकता में ले चल।" पाप करने के स्वभाव को नष्ट करने का सबसे अच्छा तरीका है कि सबसे धार्मिक कार्य करिये जो आप कर सकते हैं!

परमेश्वर ने शैतान के दुष्ट कामों से हमें छुटकारा पाने को कहा है। शैतान का दूसरा नाम है "अभियोक्ता" और "झूठ का पिता।" उसने हव्वा को धोखा दिया और दुष्ट ग़दर को परमेश्वर कि उत्तम दुनिया में ले आया। हर एक आज़माइश, पाप, नफरत, बीमारियां, और मृत्यु उस भयंकर निर्णय के कारण आया। और अब वह अपने भयानक सामर्थ से मनुष्यजाति पर अपना काम कर रहा है, लड़ाई और दुष्प्रयोग और संकट पर आनंद मनाता है। वह मनुष्य को पाप करने के लिए आज़माइश में डालता है, उनसे हत्या, व्यभिचार, दुसरे लोगों के साथ बेईमानी, करने के लिए आज़माइश में डालता है।

जब शैतान इंसान के ह्रदय में दुष्ट काम करता है, तो वह बहुत बड़े पाप, जैसे हत्या, को ह्रदय में पहले नहीं डालता। वह इससे शुरू करता है उनको यह बता के कि छोटे पाप करना ठीक है। यह वो पाप हैं जो ह्रदय में शुरू होते जिनको कोई देख नहीं सकता। वह अपने शिकार को दूसरों के प्रति नफरत और दुर्भावना को उनके ह्रदय में पैदा करता है। वो उनको बेकार कि बातों से लुभाता है। वह दुसरे पुरुषों को झूठ बोलकर कि दूसरी कि पत्नी को अभिलाषा से देखना गलत नहीं है। यह पाप करने के शांत तरीके हैं जो बाद में बड़े पाप बन जाते हैं। यह ह्रदय में विद्रोह पैदा करते हैं।

पहाड़ पर के उपदेश में यीशु उसके चेलों को अपने पापों को शुरुआत में ही पश्चाताप करके कम कर लेने को कहता है। पाप के लिए नफरत और शुधता के लिए चाहत इतनी मज़बूत होनी चाहिए कि अपने परमेश्वर को अपमानित करने से अच्छा है कि अपने हाथ को ही काट दो या आँख को ही निकाल दो!

हर दिन, हम परमेश्वर के पास इस प्रार्थना को लेकर आ सकते जो यीशु ने अपने चेलों को नमूने के तौर पर दी थी। वह लगातार हमें माफी और नए तरीकों से पाप दूर करने के लिए शक्ति देगा। हम पूरी तरह से उस पर निर्भर कर सकते हैं! परमेश्वर हमारी उन आक्रामक हमलों से बचाएगा जो शैतान और शैतानी ताक़तें हम पर वार करती हैं। हम अपने ही ह्रदय में ज्योति के राज्य के लिए अन्धकार के राज्य के विरुद्ध परमेश्वर के कार्य में जुड़ सकते हैं !

प्रार्थना के अंत में यीशु ने कहा, "'जब तुम मनुष्य को उनके पापों के लिए क्षमा करते हो जो वे तुम्हारे विरुद्ध करते हैं, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता तुम्हे भी क्षमा करेगा। परन्तु यदि तुम उनके पाप क्षमा नहीं करते, तुम्हारा पिता भी तुम्हारे पाप क्षमा नहीं करेगा।'" वाह। क्या कोई ऐसी बात है जिसके लिए तुम्हें परमेश्वर से क्षमा मांगने कि ज़रुरत है? क्या कोई है जिसे आपने क्षमा नहीं किया है? उसके बारे में अभी सोचिये! उसे सड़ने मत दीजिये!

जब आप क्षमा करते हैं तो यह याद रखना ज़रूरी है कि कभी कभी क्षमा करने में समय लग जाता है। कुछ पाप इतने दुःख देने वाले होते हैं और कुछ घाव इतने गहरे कि हमें बार बार क्षमा करते जाना पड़ता है। और कभी कभी वो इंसान भी बार बार पाप करते जाता है और इसीलिए हमें और अधिक कारण मिल जाता है क्षमा करने का। यह बहुत कष्टमय और कठिन है।

सबसे अद्भुद बात यह है कि हम उस परमेश्वर को निमंत्रण दे सकते हैं जिसने सारी शृष्टि बनाई। हम उसे प्रार्थना कर सकते हैं और उससे केह सकते हैं कि वो हमारी रक्षा करे और हमारे ह्रदय को परिवर्तित करे। अपनी ताक़त को क्रोध में और प्रतिशोध में व्यतीत करने के बजाय हम अपना भरोसा उस पर डाल दें। ज़रूरी यह है कि हर दिन या हर पल हम परमेश्वर के आगे उस व्यक्ति के लिए क्षमा मांग सकते हैं। जितनी बार हम क्षमा करने का निर्णय लेते हैं हम परमेश्वर के हाथों में उस परिस्थिति को दे देते हैं। हम बदला लेने के हक़ को छोड़ देते हैं और परमेश्वर पर निर्भर करते हैं कि वो अपने अच्छे और सिद्ध तरीके से कार्य करेगा।

वाह। क्या आप सोच सकते हैं कि कैसे विनम्रता और आज्ञाकारिता उस अन्धकार कि दुनिया में कैसे चमकता है? हमें परमेश्वर के शांति बनाने वाले बनना है, और हम विश्वास रखें कि वो हमें ऐसा करने में अपनी सामर्थ देने में सक्षम है। और वह हमें परमेश्वर के बेटे और बेटियां बनने के लिए आशीष देगा!