कहानी ७०: विद्रोह और पश्चाताप के बीच अंतर
केवल धार्मिक अगुवे थे जिन्होंने ने परमेश्वर के सन्देश को यूहन्ना और यीशु के द्वारा सुनने से इंकार किया। इस्राएल के देश में बहुत से लोग ने भी उन्हें ठुकराया। यीशु ने उनके बारे में भीड़ से कहा ;
“आज की पीढ़ी के लोगों की तुलना मैं किन से करूँ? वे बाज़ारों में बैठे उन बच्चों के समान हैं जो एक दूसरे से पुकार कर कह रहे हैं," '
हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजायी,
पर तुम नहीं नाचे।
हमने शोकगीत गाये,
किन्तु तुम नहीं रोये।’
बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना आया। जो न औरों की तरह खाता था और न ही पीता था। पर लोगों ने कहा था कि उस में दुष्टात्मा है। फिर मनुष्य का पुत्र आया। जो औरों के समान ही खाता-पीता है, पर लोग कहते हैं, ‘इस आदमी को देखो, यह पेटू है, पियक्कड़ है। यह चुंगी वसूलने वालों और पापियों का मित्र है।’ किन्तु बुद्धि की उत्तमता उसके कामों से सिद्ध होती है।”
क्या आपने समझा कि यीशु क्या क्या कह रहे थे? परमेश्वर कि आत्मा ने दोनों यूहन्ना और यीशु कि सेवकाई पर अधिकार ले, लेकिन दोनों भिन्न भिन्न तरीकों से। योहन्ना विलाप करते हुए और उपवास वे जो उससे बात करते थे यह दुष्ट आत्मा से ग्रस्त है। फिर जब यीशु ने पापियों को आनंद दिया और सीने से लगाया तब वे उसे ही पापी करार देने लगे! यदि किसी का ह्रदय यह तय कर लेता है कि जो कुछ परमेश्वर कि ओर से आएगा उसे ठुकराना ही है, तो जो कुछ भी उसके सेवक करेंगे वे उसमें गलतियां निकालेंगे! लेकिन जिनको परमेश्वर की पवित्र आत्मा का ज्ञान दिया गया है वे यह बात समझेंगे कि यूहन्ना और यीशु कि सेवकाई दोनों परमेश्वर के सामर्थी और प्रभावशाली मर्ज़ी के द्वारा दिया गया है।इस्राइल के प्रभावशाली धार्मिक परिवार में जो भी पैदा हुआ उसके कारण परमेश्वर के बच्चों को नहीं दिखाया गया, परन्तु उनके द्वारा जो जिन्होंने ने परमेश्वर के वचन को परमेश्वर के दासों द्वारा सुना और विश्वास किया।
यीशु ने गलील भर में शहरों की यात्रा की और सभी प्रकार के चमत्कार दिखाए। लेकिन फिर भी, कई लोगों ने पश्चाताप नहीं किया! परमेश्वर का पुत्र उन के लिए सामर्थी वचन लेकर आया, लेकिन अपने ह्रदयों में उसके कार्य नहीं होने दिया। सो यीशु उन शहरों को उनके पश्चाताप के अभाव के कारण ताड़ना देने लगा। उन्होंने कहा;
"'अरे अभागे खुराजीन, अरे अभागे बैतसैदा तुम में जो आश्चर्यकर्म किये गये, यदि वे सूर और सैदा में किये जाते तो वहाँ के लोग बहुत पहले से ही टाट के शोक वस्त्र ओढ़ कर और अपने शरीर पर राख मल कर खेद व्यक्त करते हुए मन फिरा चुके होते। किन्तु मैं तुम लोगों से कहता हूँ न्याय के दिन सूर और सैदा की स्थिति तुमसे अधिक सहने योग्य होगी। और अरे कफरनहूम, क्या तू सोचता है कि तुझे स्वर्ग की महिमा तक ऊँचा उठाया जायेगा? तू तो अधोलोक में नरक को जायेगा। क्योंकि जो आश्चर्यकर्म तुझमें किये गये, यदि वे सदोम में किये जाते तो वह नगर आज तक टिका रहता। पर मैं तुम्हें बताता हूँ कि न्याय के दिन तेरे लोगों की हालत से सदोम की हालत कहीं अच्छी होगी।”
प्रभु का दिन आ रहा है, वास्तव में, वह आ ही रहा है। यीशु के समय से लेकर आज कि तारिख तक जब भी किसी शहर में यीशु का सुसमाचार सुनाया जाता है, लोगों के पास चुनाव करने का और कोई रास्ता नहीं होता बजाय इसके कि वे चुनाव करें। उन्हें अपने पापों से पश्चाताप करके यीशु के पास आ जाना चाहिए या फिर वे उसे ठुकरा। चाहे लोग यह समझें कि वे सुनने के लिए बहुत व्यस्त हैं या वे उसे अनदेखा कर रहे हैं क्यूंकि वे मानते हैं कि यीशु को छोड़ और कोई भी रास्ता है आराधना करने का, वह आ रहा था। यीशु मसीह के सुसमाचार के बारे में पीछे से किसी भी शहर में घोषित किया जाता है तो भगवान पृथ्वी आज तक , लोगों को एक विकल्प बनाने के लिए कोई विकल्प नहीं है सभी तरह से चला गया . वे अपने पाप का पश्चाताप और प्रभु यीशु को चालू करने के लिए चयन करना होगा , या वे उसे खारिज कर रहे हैं . लोग उन्हें सुनने के लिए अभी बहुत व्यस्त हैं या वे मसीह से एक और रास्ता विश्वास करते हैं और पूजा करने के लिए चाहते हैं , क्योंकि वे उसे अनदेखा कर रहे हैं लगता है, भले ही वे सभी निर्माण के भगवान उन्हें करने की पेशकश कर रहा है पर बाहर याद कर रहे हैं , और कहा कि एक बहुत है भयानक पाप . और यह वास्तव में उस अवसर को खो रहे हैं जो सृष्टिकर्ता उन्हें देना चाहता है। और इसका अंजाम बहुत भयानक है। क्यूंकि प्रभु का दिन नज़दीक है, और सुरक्षित होने का एक ही रास्ता है और वो है परमेश्वर के छुटकारे से! प्रभु यीशु इन लोगों को अपने महान उद्धार को दे रहे थे,वे परमेश्वर के समय को महिमा द्वारा तोड़ने के गवाह थे, और उनके ह्रदय आनंदित नहीं थे! वे नम्रता और श्रद्धा में अपने घुटनों पर नहीं आये! उनके ह्रदय पूर्ण रूप से कठोर थे।
"'परम पिता, तू स्वर्ग और धरती का स्वामी है, मैं तेरी स्तुति करता हूँ क्योंकि तूने इन बातों को, उनसे जो ज्ञानी हैं और समझदार हैं, छिपा कर रखा है। और जो भोले भाले हैं उनके लिए प्रकट किया है।'"
“'मेरे परम पिता ने सब कुछ मुझे सौंप दिया और वास्तव में परम पिता के अलावा कोई भी पुत्र को नहीं जानता। और कोई भी पुत्र के अलावा परम पिता को नहीं जानता। और हर वह व्यक्ति परम पिता को जानता है, जिसके लिये पुत्र ने उसे प्रकट करना चाहा है'"।
वाह! पृथ्वी के लोग जो परमेश्वर के द्वारा चुने, वे वो लोग थे जिन्होंने ने यीशु के वचन को सुना था और उस पर विश्वास किया था। वे परमेश्वर को अधिक आनंद देते थे! वे परमेश्वर के वचन थे! जो भी उनके द्वारा परवर्तित नहीं होता था इस बात को साबित करते थे कि वे परमेश्वर के उन लोगों में से नहीं हैं जिन्हें उसके पुत्र ने प्रकट करने को चुना था! यीशु ने आगे कहा;
"'हे थके-माँदे, बोझ से दबे लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें सुख चैन दूँगा। मेरा जुआ लो और उसे अपने ऊपर सँभालो। फिर मुझसे सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा मन कोमल है। तुम्हें भी अपने लिये सुख-चैन मिलेगा। क्योंकि वह जुआ जो मैं तुम्हें दे रहा हूँ बहुत सरल है। और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है।'”
यह कितना सुन्दर वादा है! यीशु के समय कि धार्मिक अगुवे और फरीसी लोगों पर भयंकर बोझ डालते थे। वे कठोर नियम और कानून बनाते थे और गहरी सतर्कता से वे लोगों पर लागू करते थे। परमेश्वर के पवित्र शास्त्र में सारे नये नियमों के कारण यहूदी लोग इस डर में रहते थे कि वे कहीं पाप न कर बैठें। वह अनुग्रह का एक नया वाचा लेकर आ रहा था, जिस में उसके चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर कि मॉफी और करुणा मुफ्त थी। यह आनंद मानाने का विशाल कारण है!
अपनी सेवकाई में इस समय से, यीशु उनसे जो परमेश्वर के वचन को नहीं सुनते थे और पश्चाताप भी नहीं करते थे बहुत दिलेरी से बात करने लगा। उसके यह कठोरता वास्तव मं उसके प्रेम था। एक समय आएगा जब इन लोगों के पास पश्चाताप करने को समय नहीं मिलेगा, और वे सब नाश हो जाएंगे। यदि यीशु के अद्भुद चमत्कार और उसके बहुमूल्य शिक्षण उन्हें नहीं बदल सके, तब शायद न्याय के दिन कि चेतावनियां! यीशु यहूदी लोगों को बार बार समय दे रहा था कि वे मसीह को अपना लें। क्या वे एक राष्ट्र हो कर अपने उद्धारकर्ता के पास लौट आएंगे?