कहानी ४७: परमेश्वर के राज्य में धन्य

पर्वत पर प्रवचन इन शब्दों के साथ शुरू होता है:

धन्य हैं वे जो हृदय से दीन हैं,
स्वर्ग का राज्य उनके लिए है।
धन्य हैं वे जो शोक करते हैं,
क्योंकि परमेश्वर उन्हें सांतवन देता है
धन्य हैं वे जो नम्र हैं
क्योंकि यह पृथ्वी उन्हीं की है।
धन्य हैं वे जो नीति के प्रति भूखे और प्यासे रहते हैं!
क्योंकि परमेश्वर उन्हें संतोष देगा, तृप्ति देगा।
धन्य हैं वे जो दयालु हैं
क्योंकि उन पर दया गगन से बरसेगी।
धन्य हैं वे जो हृदय के शुद्ध हैं
क्योंकि वे परमेश्वर के दर्शन करेंगे।
धन्य हैं वे जो शान्ति के काम करते हैं।
क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
धन्य हैं वे जो नीति के हित में यातनाएँ भोगते हैं।
स्वर्ग का राज्य उनके लिये ही है।” ‘
मत्ती ५ः३-१0

यह शब्द एक शिष्य बनने के लिए एक द्वार के समान है। यदि यीशु के अनुयायी एक दयालु और नम्र दिल के हैं, तो वे विशेष और शक्तिशाली मायनों में यीशु की सेवा करने में सक्षम हैं! प्रत्येक आयत में, परमेश्वर ने प्रत्येक आयत में से इन गुणों को बताया, और फिर वो बताता है कि जिनके पास वह है उनको लिए आशीष क्या है। आइये पहले से शुरू करते हैं।

आपको क्या लगता है कि मन के दीन हैं इसका क्या अर्थ है?

क्या इसका यह मतलब हुआ कि उनके पास धन नहीं है? क्या इसका मतलब हुआ की साहस और बल न होना? इनमें से कोई भी विचार यीशु के अनुसार सही नहीं बैठते।  पुराने नियम के यशायाह 57:15 बताता है कि मन के दीं का क्या अर्थ है। परमेश्वर ने कहा,”‘मैं एक ऊँचे और पवित्र स्थान पर रहा करता हूँ, किन्तु मैं उन लोगों के बीच भी रहता हूँ जो दु:खी और विनम्र हैं, जो मन से विनम्र हैं।'” परमेश्वर को पसंद आता है जब उसके बच्चे उसके पास विनम्र दिल से उसके पास आते हैं। वह उनको आनंद और सुख से भर देना चाहता है! वह उनको स्वर्ग का राज्य देता है! यशायाह 66:2 में, यीशु ने कहा,”‘परन्तु मैं उसी कि ओर दृष्टी करूंगा जो दीन और खेदित मन का हो, और मेरा वचन सुनकर थरथराता हो। ‘”

क्या आपको याद है कि जब पतरस को यह एहसास हुआ कि यीशु ही प्रभु है? वह सारी रात मछली पकड़ने के लिए बाहर परन्तु कुछ भी नहीं पकड़ा था, लेकिन तब यीशु ने उसे एक अद्भुत चमत्कार दिखाया। उन्होंने कहा कि पानी में एक बार और अपने जाल को दाल। पतरस ने बात मानी, और अचानक उसके जाल फिसलन वाली, चमकदार मछली से भर गए!

इस रमणीय चमत्कार ने पतरस की आँखें प्रभु कि महिमा में खुल गईं। वह पैरों पर गिर गया और बोला, “‘मैं पापी मनुष्य हूं, मुझ से दूर हो जाओ प्रभु।”‘जब पतरस ने यीशु के वैभव को देखा, उसने यह भी देखा कि वह कितना दीं और कमज़ोर था। वह तुरंत घुटनों पर गिरा और यीशु को दंडवत करा।

यह नहीं था कि पतरस एक योग्य इंसान नहीं था। वह तो परमेश्वर के रूप में बनाया गया था! परन्तु वह जानता था कि यीशु के उज्जवल, और उसकी पवित्र और सामर्थ के शुद्द्ता के सामने उसकी अच्छाइयां कुछ भी नहीं थीं। वह अपने ह्रदय कि दुष्टता को और अपने बिखरे हुए रास्तों को जानता था और वह दिल के गहराई से पश्चाताप करना चाहता था। उसे अपने पाप से बहुत घृणा थी, इसलिए वह उसके चरणों पर गिर पड़ा! और पतरस को अवश्य स्वर्ग का रह्या मिला! यह कितना सुन्दर दृश्य है जब यीशु अपने बच्चों को चाहते हैं कि वे उसके पास आयें! वो चाहता है कि हम मन के दीन हों !

येशु ने पर्वत पर सन्देश की शुरुआत इस बात को घोषित करते हुए कि की कोई भी मनुष्य परमेश्वर के पास नहीं आ सकता जब तक कि वह मन का दीं ना बने। केवल वे को नम्रता से आते हैं वे ही स्वर्ग के राज्य में स्वीकार किये जाएंगे। जब हम धार्मिकता को अपने ही सामर्थ और महिमा से हासिल करने कि कोशिश करते हैं, तब हम अपने आप को बहुत बड़े खतरे में डालते हैं। हमारे अपने सुख, या हमारी अपनी महिमा या आराम, घमंड और दूसरों के प्रती अभिमानी प्रतियोगिता, यह सब हमारे अंदर कि सब अच्छाइयों को नष्ट कर देगा जो हमारी नज़र में अच्छी हैं। कोई भी अपने धार्मिकता के कारण स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकता। हमें यीशु के सामने विनम्रता से और पश्चाताप के साथ आना चाहिए, और हमें उसके सामने दंडवत करते रहना चाहिए।

अगली आयत में यीशु ने कहा, “धन्य हैं वे जो विलाप करते हैं।” यीशु यह मत वे जो उसके साथ साथ चलते हैं उनको आँसूं रहना चाहिए? क्या हमें सरे दिन अपने ऊपर तरस ही खाते रहना चाहिए? बिलकुल नहीं। परन्तु हमें अपने पापों के लिए विलाप करना है।

हम जितना यीशु के करीब आते हैं और उसके सीखते हैं, हम उतना ही उसके प्रकाश, अद्भुद पवित्रता को समझ पाते हैं, और हम और भी अधिक अपने पापों के धब्बों को देख सकते हैं। अपने पापों के धब्बों को देखना यह हमारे लिए एक बहुत बड़ा तोहफा है। यह हमें अवसर देता है कि हम उन पापों के लिए दुखी हों और उनको परमेश्वर के पास  लेकर आयें। वो हमें धोकर साफ करेगा! वो हमें दुःख में तसल्ली देगा और और एक नया जीवन देगा! और हम  आत्मा से शुद्ध किये हुए जीवन को बिता सकते हैं।

छुटकारा पाये हुए के लिए एक और विलाप कि बात है जो उसके ह्रदय में सुन्दर लगे। जब हम संसार के लिए विलाप करते हैं, हम परमेश्वर के साथ खड़े होते हैं। यह दिखता है कि हम युद्ध में उसके पक्ष में हैं। यह ऐसा लगता है मानो उसकी आँखों से हम वो सब अपने चारों ओर देख रहे हैं जो हो रहा है। यह संसार सच में बहुत भयंकर है, और शैतान एक भयानक, दुष्ट शासक है। जब हम अन्याय, नफरत, द्वेष और हत्या के लिए शोकित होते हैं, हम परमेश्वर कि पवित्र को चाहने की इच्छा से सहमत होते हैं। जब हम किसी मासून के कष्टों पर और गरीब की भूख पर दुखी होते हैं, हमारे ह्रदय यीशु के सामान हो जाते हैं। जब हम इस पाप से भरे संसार में उस श्राप के कारण जी रहे होते हैं, उसकी ओर शोकित होने के लिए एक सच्चाई की प्रतिक्रिया होनी चाहिए।

जो अद्भुद वादा यीशु देता है जब हम इस संसार के लिए उसकी भयानक दशा के लिए शोकित होते हैं, तब हम उसमें तसल्ली पाते हैं। क्यूंकि आप देखिये, हम उसके भागीदार हो जाते हैं जब दुश्मन के अधिकार से बंधी आज़ाद होते हैं! हम यीशु के कार्य में भागिदार हो सकते हैं जब परमेशवर कि आत्मा उन सब लोगों को पाप के बंधन से छुड़ाती है। जब हम प्रार्थना और सेवा करते हैं, हम प्रभु को नया जीवन और आज़ादी लाते देख सकते हैं! और एक दिन, जब परमेश्वर , तब कोई दुःख या आँसू नहीं होंगे। विलाप सदा के लिए ख़त्म हो जाएगा!