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कहनी १२१: एक शिष्य होने की कीमत 

यीशु जब परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाते हुए पेरी को गए, बड़ी भीड़ उसके साथ गयी जहां जहां वो गया। यीशु के विरुद्ध धार्मिक अगुवों ने शत्रुता कि लंबी रेखा खींची, लेकिन वह अपने देश का सबसे प्रसिद्ध शिक्षक था। आधे से ज़यादा लोग उसे मसीहा समझ रहे थे!

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कहनी १२२: खोई हुई भेड़ और खोया हुआ सिक्का

कभी कभी जब हम प्रभु यीशु के जीवन और शब्दों के बारे में पढ़ते हैं तो वह जंगली और अदम्य लग सकता है। वह अप्रत्याशित है। वह हमारी उम्मीद से बढ़कर करता है। ऐसा लगता है मनो वह एक दूसरी दुनिया से आया हो और अपने साथ उन अजीब रिवाज़ों और आस्थाओं को अपने साथ लाया हो।

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कहनी १२३: उड़ाऊ पुत्र 

धार्मिक अगुवे यीशु से परेशान थे कि वह पापियों और चुंगी लेनेवालों के साथ अपना समय बिताया करता है। वे यह नहीं देख पा रहे थे कि उनके घमंड और द्वेष के कारण वे इतने झुके और बिगड़े हुए कैसे हो सकते हैं।

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कहनी १२४: गरीबो के प्रति रवैया

यीशु अपने चेलों को शिक्षा दे रहे थे जब उन्होंने यह दृष्टान्त बताया:

"'फिर यीशु ने अपने शिष्यों से कहा,“एक धनी पुरुष था। उसका एक प्रबन्धक था उस प्रबन्धक पर लांछन लगाया गया कि वह उसकी सम्पत्ति को नष्ट कर रहा है। सो उसने उसे बुलाया और कहा,‘तेरे विषय में मैं यह क्या सुन रहा हूँ? अपने प्रबन्ध का लेखा जोखा दे क्योंकि अब आगे तू प्रबन्धक नहीं रह सकता।

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कहनी १२५: प्रभु की क्षमाशीलता

यीशु जब पेरी से जा रहे थे, उसने अपने चेलों को और सिखाया कि उसके पीछे चलने का मतलब क्या है। उसका समय निकट आ रहा था, और वह जानता था कि ये चेले उसके सन्देश को आगे लेकर जाएंगे। जो यीशु उन्हें दिखाना चाहते थे वो यह था कि उसके राज्य कि शिक्षाएं धार्मिक अगुवों से बहुत भिन्न थीं जैसा कि वे इस्राएल में रह कर जताते थे। सो उसने उन्हें चेतावनियां दीं जिससे कि वे समझ सकें।

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कहनी १२६: लाज़र की यात्रा

यहूदी अगुवे यीशु को गिरफ्तार करने और उसे मार डालने के लिए तैयार थे। हालात हाथ से बाहर हो रहे थे। इस दुष्ट उपदेशक की लोकप्रियता खतरनाक होती जा रही थी। येरूशलेम के अगुवे अपने अधिकार और प्रभाव को जाते देख रहे थे जब सारी भीड़ यीशु की बातों पर पूरा ध्यान लगा रहे थे।

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कहनी १२७: लाजर का आश्चर्य

यीशु अपने चेलों के साथ बैतनिय्याह को गया। यह एक खतरनाक निर्णय था, जो वास्तव में नहीं था! यहूदी अगुवे यीशु को मार देना चाहते थे, और येरूशलेम छोड़ कर वह यरदन नदी को चला गया। केवल अभी के लिए, यीशु का मित्र लाज़र मर रहा था, और यीशु उसकी सहायता के लिए जा रहा था।

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कहनी १२८: दस कोढ़ी की चंगाई

यीशु ने यहूदिया और पेरी से होते हुए इस्राएल के पूर्ण देश कि यात्रा की। अब उसे येरूशलेम कि अंतिम यात्रा पर निकलना था। गलील और समरिया के रास्ते से होते हुए वह दक्षिण को फसह के पर्व को मनाने के लिए गया। बहुत से यहूदी भी इस पर्व को मनाने के लिए जा रहे थे।

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कहनी १२९: स्वर्ग राज्य का आना 

फरीसियों ने पुराने नियम का अध्ययन किया, और इसलिए वे कई अद्भुत सत्य को जानते थे। पुराने नियम के कई रहस्य थे जिन को छोड़ दिया गया था और इसलिए उनके पास बहुत से सवाल थे। वे यह विश्वास करते थे कि परमेश्वर अपनी पूरी सामर्थ में आकर इस्राएल देश को स्थापित करेगा।

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कहनी १३०: यीशु के पास आना 

नूह और लूत इतने परिपूर्ण पुरुष नहीं थे, फिर भी वे परमेश्वर की सुनते थे। जब परमेश्वर कि दयापूर्ण चेतावनियां आई, उन्होंने उन पर ध्यान लगाया और बच गए। बाकी लोगों ने परमेश्वर की बातों का तिरस्कार किया और अपने भयानक अंत को चुन लिया। यह आदम और हव्वा के कारण बगीचे में किया हुआ पाप ही था।

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कहनी १३१: प्रार्थना कैसे करनी चाहिए 

जब लूका ने अपने सुसमाचार में इन बातों को लिखा, उसने यह सीखने का निश्चय किया कि किस प्रकार यीशु के चेलों को जीवन जीना चाहिए। पहले, यीशु ने दृष्टान्त के द्वारा समझाया। लूका ने कहा और यीशु ने दिया ".... उन्हें यह दिखाएं कि निरंतर प्रार्थना करें और कभी हार ना मानें।"

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कहनी १३२: पवित्र विवाह 

यीशु ने जब प्रार्थना के विषय में अपनी आश्चर्यजनक लेकिन उज्ज्वल, स्वच्छ शिक्षाओं को समाप्त किया, वे उत्तर के क्षेत्र से पेरी कि ओर गए। उन्होंने यरदन के उस पार, यहूदिया के क्षेत्र में सफ़र किया। फिर भीड़ उसे घेरी रही और वह उन्हें एक एक कर के चंगाई देता गया।

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कहनी १३३: छोटे बच्चे और अमीर युवा शासक

फिर लोग कुछ बालकों को यीशु के पास लाये कि वह उनके सिर पर हाथ रख कर उन्हें आशीर्वाद दे और उनके लिए प्रार्थना करे। किन्तु उसके शिष्यों ने उन्हें डाँटा।

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कहनी १३४: सबसे बड़ा और सबसे छोटा 

चेले जब यीशु को सुन रहे थे, वे उसकी हर बात का विश्वास कर रहे थे। उनकी आशा और भविष्य़ उसकी बातों पर निर्भर करता था। उन्होंने सब कुछ का त्याग कर दिया था क्यूंकि वे उसकी बातों को गम्भीरता से लेते थे! और यीशु ने उन्हें बहुतायत से इनाम देने का वायदा किया है।

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कहनी १३५: येरूशलेम के रास्ते

यीशु येरुशलेम कि ओर जा रहा था। जब वे जा रहे थे, वह उनके आगे आगे चल रहा था क्यूंकि उसे अपने कार्य के प्रति उत्सुकता थी। चेले अचंबित हुए और भय से भर गए। सब आराधनालये के मंसूबों को जानते थे। यीशु के लिए येरूशलेम एक खतरनाक जगह थी।

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कहनी १३६: बरतिमाई और जक्कई 

यीशु यरूशलेम के निकट पहुँच रहे थे। जब तक वे यरीहो पहुंचे, उसके चेलों के साथ एक बड़ी भीड़ मिल गयी थी। पूरे शहर में ऐसी उत्साहित भीड़ को देखना एक अनोखा दृश्य रहा होगा! बरतिमाई (अर्थ “तिमाई का पुत्र”) नाम का एक अंधा भिखारी सड़क के किनारे बैठा था।

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कहनी १३७: आम आदमी का और जक्कई का मिलान

मैं और मेरा परिवार जब येरूशलेम को जा रहे थे, तब हमें पता चला कि यीशु नासरी हमसे कुछ ही दूरी पर है। किसी को भी जल्दी चलने के लिए मुझे मनाने कि आवश्यकता नहीं पड़ी। सब उस मसीहा को देखने के लिए बहुत उत्तेजित थे! कोई भी प्रभु के महान दिन को छोड़ना नहीं चाहता था!

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कहनी १३८: दस मुहरों का दृष्टान्त

जिस रात यीशु जक्कई के घर में और उसके जीवन में गए, उस रात जक्कई ने बहुत जशन मनाया होगा! यीशु के चेलों के साथ और परिवारों के साथ जक्कई ने बड़ा भोज बांटा।

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कहानी १३९: विजयी प्रवेश

यहूदियों का फ़सह पर्व आने को था। बहुत से लोग अपने गाँवों से यरूशलेम चले गये थे ताकि वे फ़सह पर्व से पहले अपने को पवित्र कर लें। वे यीशु को खोज रहे थे। इसलिये जब वे मन्दिर में खड़े थे तो उन्होंने आपस में एक दूसरे से पूछना शुरू किया,कि आने वाले दिनों में क्या होगा।

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कहानी १४०: विजयी प्रवेश : यंत्रणा हफ्ते का पहला दिन (रविवार)

फसह के पर्व के लिए यीशु और उसके चेले बैतनिय्याह से येरूशलेम को गए। लाज़र को लेकर भीड़ इतनी उत्साहित थी कि वह उनके पीछे हर जगह चलती रही। यीशु और उसके चेले जब यरूशलेम के पास जैतून पर्वत के निकट बैतफगे पहुँचे तो यीशु ने अपने दो शिष्यों को यह आदेश देकर आगे भेजा।

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