कहनी १३५: येरूशलेम के रास्ते

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यीशु येरुशलेम कि ओर जा रहा था। जब वे जा रहे थे, वह उनके आगे आगे चल रहा था क्यूंकि उसे अपने कार्य के प्रति उत्सुकता थी। चेले अचंबित हुए और भय से भर गए। सब आराधनालये के मंसूबों को जानते थे। यीशु के लिए येरूशलेम एक खतरनाक जगह थी। जब वे दाऊद के शहर के पास पहुँच रहे थे उन्हें कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। पूरे राष्ट्र में बहुत तनाव फैला हुआ था कि कैसे सब कुछ होगा। इन सब के बीच, यीशु उन बातों के बीच चमकते हुए पत्थर के समान बना रहा। वह इतनी दृढ़ता के साथ कैसे खतरे का सामना कर सकता था?

उनके सफ़र के बीच, यीशु उन बारह चेलों को एक तरफ ले गया। एक बार फिर उसने आने वाली बातों के विषय में चेतावनी दी। उसके लिए यह सब बहुत स्पष्ट था। उसने कहा,
“'सुनो, हम यरूशलेम पहुँचने को हैं। मनुष्य का पुत्र वहाँ प्रमुख याजकों और यहूदी धर्म शास्त्रियों के हाथों सौंप दिया जायेगा। वे उसे मृत्यु दण्ड के योग्य ठहरायेंगे। फिर उसका उपहास करवाने और कोड़े लगवाने को उसे गै़र यहूदियों को सौंप देंगे। फिर उसे क्रूस पर चढ़ा दिया जायेगा किन्तु तीसरे दिन वह फिर जी उठेगा।'”

यीशु वास्तव में जानते थे कि क्या होने वाला था। कैसे? उसने वचन को पढ़ा और जान गया। वह भविष्यवाणियों को समझ गया। और पवित्र आत्मा उसकी अगुवाई करने के लिए था। पवित्र आत्मा ने पिता कि योजनाओं को उसे प्रकट किया और उन्हें पूरा करने के लिए उसे अपने पिता पर पूरा भरोसा था। परमेश्वर ने सब कुछ अपने नियंत्रण में किया हुआ था। आराधनालय और सभी पात्र परमेश्वर कि इच्छा को पूरी कर रहे थे चाहे वे ऐसा करना चाहते थे या नहीं। यीशु उन लोगों के ह्रदय कि दुष्ट बातों को भी अपने सिद्ध योजना को पूरा करने के लिए उपयोग करने वाला था।

परन्तु जब वह आने वाली बातों के विषय में विस्तार से बता रहा था, यीशु के चेले समझ नहीं पाये। क्या यीशु के मृत्यु के बारे में सोचना इतना भयंकर था? या उसके जी उठने कि घोषणा को समझना इतना अनोखा था? चेले केवल इतना ही समझ पा रहे थे कि मसीहा आकर राज करेगा। और वे इसी उद्देश्य से जुड़ना चाहते थे! वे यीशु को ऐसा ही मनुष्य के पुत्र के समान देखना चाहते थे। वे और कुछ नहीं सोच पा रहे थे।

चेलों और उन वफादार लोगों के बीच चल रही बात चीत कि कल्पना कीजिये जो वे यीशु के साथ साथ रह्कर कर रहे थे।

क्या वे अपेक्षा कर रहे थे कि याशु अपनी अधिकार कि कुर्सी कैसे लेगा? क्या वे अद्भुद चमत्कारों कि अपेक्षा कर रहे थे? वे यह सोच रहे थे कि वह रोमी राज को कैसे समाप्त करेगा? वे कैसे अद्भुद चमत्कारों को देखने कि आशा कर रहे थे? क्या यह आकर्षक नहीं होगा उस समय में वापस जा कर उनके साथ एक  दो मील येरूशलेम कि ओर चलने में?

फिर जब्दी के बेटों की माँ अपने बेटों समेत यीशु के पास पहुँची। यह स्त्री ना केवल यीशु के दो चेलों कि रिश्तेदार थी, वे यीशु कि चाची थी! जब वह अपने दो बेटों के साथ यीशु के पास आयी, उसने उसके आगे झुक कर दण्डवत किया। यह एक अनुरोध करने का तरीका था। क्यूंकि वह कुछ मांगने जा रही थी। उसके बेटों ने कहा,"गुरु, हम चाहते हैं कि तू वही करे जो हम चाहते हैं।"

उन्होंने बहुत साहस दिखाया। उन्हें क्या चाहिए था? यीशु ने उससे पूछा,“'तू क्या चाहती है?'”
वह बोली,“मुझे वचन दे कि मेरे ये दोनों बेटे तेरे राज्य में एक तेरे दाहिनी ओर और दूसरा तेरे बाई ओर बैठे।”

तो यह उनका लक्ष्य था! एक बार यीशु अपने राज को स्थापित कर लेता वे  अपनी सम्मान के स्थान को सुरक्षित करना चाहते थे। यीशु जब अपने राज्य के विषय में बोल रहे थे, वे समझ रहे थे कि वह उस दिन कि बात कर रहा है जब वह दाऊद के सिंहासन पर बैठेगा। और यीशु ने इसका इंकार नहीं किया क्यूंकि एक दिन ऐसा होने जा रहा था। वह उन सब भविष्यवाणियों को पूरा करेगा जो उस दिन के लिए की गयी हैं जब दाऊद का वंशज उस युगानुयुग के सिंहासन पर बैठेगा। परन्तु यह भविष्य में हज़ारों सालों के लिए होने जा रहा था! इस बीच बहुत काम है करने को!

यूहन्ना और याकूब और उनकी माँ उन बातों को नहीं देख पा रहे थे जो यीशु के पूर्ण राज्य के आने से पहले आने वाली थीं। वे केवल इतना जानते थे कि यदि वो बारह चेले जी सिंहासन पर बैठ कर इस्राएल के राष्ट्र का न्याय करेंगे, ये दोनों भी सिंहासन के सबसे उच्च स्थान में बैठना चाहते थे।

निश्चय ही यूहन्ना और याकूब के पास यह मानने का अच्छा कारण था कि उन्हें अवश्य चुन लिया जाएगा। आखिरकार, वे उसके चचेरे भाई थे! और जिस समय यीशु के पास बारह चेले थे, उसका तीन के साथ एक गहरा सम्बन्ध था और ये दो भाई उसका हिस्सा थे। फिर भी यह सुरक्षित अभिलाषा यीशु कि राह से बहुत दूर था। उन्होंने यीशु को यह कहते नहीं सुना कि आखिर वाले पहले हो जाएंगे और पहले आखिर हो जाएंगे!

यीशु ने उत्तर दिया,“'तुम नहीं जानते कि तुम क्या माँग रहे हो। क्या तुम यातनाओं का वह प्याला पी सकते हो, जिसे मैं पीने वाला हूँ?'” बाइबिल परमेश्वर के स्वर्गीय कामों को प्याले के चिन्ह के स्वररूप में वर्णन करती है। प्याला परमेश्वर कि योजना को दर्शाता है जो एक व्यक्ति या एक समूह के लिए है, जो वह उन पर उंडेलता है। कभी यह आशीष का प्याला होता है। और दूसरे समय यह परमेश्वर के क्रोध को दर्शाता है जो उसका पाप के विरुद्ध में उठता है। यीशु जानता था कि  आगे क्रूस के लिए क्या होने जा रहा है। परमेश्वर के राज्य कि मुकुट महिमा के पहले, वह परमेश्वर के उस महान दुःख के प्याले से पियेगा। उस पूर्ण विजय के लिए परमेश्वर कि स्वर्गीय योजना उस विनाशकारी पराजय के सामान दिखेगी। क्या याकूब और यूहन्ना उसके पीछे जाना चाहेंगे?

उन्होंने उत्तर दिया,"हाँ, हम कर सकते हैं।"

यीशु उनकी कमज़ोरियों को जानता था। लेकिन वह जानता था कि उसके विजय के बाद क्या होगा। उसकी मृत्यु और जी उठना पवित्र आत्मा के लिए रास्ता बनाएगा ताकि वह याकूब और यूहन्ना के ऊपर उंडेला जाये। उन्हें उन बातों का बलिदान करने कि सामर्थ दी जाएगी जो इस संसार कि हैं ताकि वे परमेश्वर के साथ युगानुयुग के लिए रह सकें। वह उनके लिए मार्ग तैयार करेगा ताकि वे उसके समान बन सकें।

यीशु उनसे बोला,“'निश्चय ही तुम वह प्याला पीयोगे। किन्तु मेरे दाएँ और बायें बैठने का अधिकार देने वाला मैं नहीं हूँ। यहाँ बैठने का अधिकार तो उनका है, जिनके लिए यह मेरे पिता द्वारा सुरक्षित किया जा चुका है।'”

यीशु जानता था कि उसके जीना और मरना उसके चेलों के लिए इस संसार में जीने के लिए क्या माएने रखेगा। वे उसके दुःख के प्याले को पियेंगे। नए नियम के अंत तक, हम पढ़ेंगे कि कैसे याकूब जो सबसे पहला चेला है यीशु के नाम के लिए मारा जाएगा। उसके बाद यूहन्ना भी सताया जाएगा। जिस समय बाकि चेले सुसमाचार के लिए अपनी जान गवा देंगे, यूहन्ना कलीसिया को बढ़ते हुए देखेगा। यूहन्ना को यीशु के प्रति वफादार होने कि सज़ा में एक टापू पर निर्वासित कर दिया जाएगा। इसके पहले कि परमेश्वर उसे वापस लाये, वह बाइबिल की पांच पुस्तक लिख चुका होगा।

जब आप यीशु के वचन को पढ़ते हैं, क्या आपको एहसास होता है कि उसकी तस्वीर औरों से अधिक विशाल थी? जो उनके समय में हो रही थीं, वे उन बातों में ही सीमित थे। परन्तु पवित्र आत्मा कि सामर्थ से, यीशु सब समय कि योजनाओं को समझ पा रहे थे। वह इस जागरूकता में जी रहा था कि भविष्य में अनंत जीवन का एक बेहतर जीवन है। वह अपने पिता के पास वापस उस सिंहासन पर बैठने के लिए जा रहा था, और उसके चेले उसके साथ होंगे। उसके पिता के पास उन सब के जीवन के लिए योजना थी। उसकी योजना उनके लिए अनंतकाल के जीवन के लिए है, परन्तु वह योजनाएं उसकी अद्भुद इच्छा में छुपी हुई थीं। सबसे अद्भुद बात यह है कि हम भी उन बातों को  देखने के लिए वहाँ होंगे!

जब दूसरे चेलों को पता चला कि याकूब और यूहन्ना ने क्या माँगा, वे बहुत क्रोधित हुए। उनका घमंड और  प्रतियागिता करने कि भावना सब कुछ नीचे आ गया। स्वर्ग राज्य में याकूब और यूहन्ना ऊंचा दर्जा पा रहे थे, और वे यीशु को पाने के लिए घरेलु रिश्तों का उपयोग कर रहे थे। चेलों ने कितनी जल्दी पापी मनुष्य के रास्तों को अपना लिया। यदि परमेश्वर पर पूरे भरोसे करने के योग्य था, तो उसे इस बात के लिए भरोसा किया जा  सकता था। फिर भी उन्हें भरोसा नहीं था। क्या परमेश्वर के अगुवों को इस तरह से व्यवहार  करना चाहिए था? वे फरीसियों कि तरह दिख रहे थे!

यीशु ने उनसे कहा:
“'तुम जानते हो कि गैर यहूदी राजा, लोगों पर अपनी शक्ति दिखाना चाहते हैं और उनके महत्वपूर्ण नेता, लोगों पर अपना अधिकार जताना चाहते हैं। किन्तु तुम्हारे बीच ऐसा नहीं होना चाहिये। बल्कि तुम में जो बड़ा बनना चाहे, तुम्हारा सेवक बने। और तुम में से जो कोई पहला बनना चाहे, उसे तुम्हारा दास बनना होगा। तुम्हें मनुष्य के पुत्र जैसा ही होना चाहिये जो सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने और बहुतों के छुटकारे के लिये अपने प्राणों की फिरौती देने आया है।'”  -मत्ती २०:२५b-२८

परमेश्वर के राज्य में सब कुछ उल्टा पुल्टा था। वास्तव में, परमेश्वर के राज्य में सब कुछ सही है, और इस संसार कि चीज़ें उलटी पुल्टी हैं! अधिकतर समाज में, दास और बंधी दूसरों कि देखभाल में लगे रहते हैं, परन्तु उन्हें सबसे कम दर्जा और दयालुता मिलती हैं। जो कोई भी परमेश्वर के राज्य के लिए ऐसी ही विनम्रता से जीयेगा वह सबसे महान होगा। और जिस समय यीशु अपनी जान देने के लिए तैयार हो रहा था, उसने साबित किया कि वह सबसे महान सेवक है।