कहनी १२९: स्वर्ग राज्य का आना 

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फरीसियों ने पुराने नियम का अध्ययन किया, और इसलिए वे कई अद्भुत सत्य को जानते थे। पुराने नियम के कई रहस्य थे जिन को छोड़ दिया गया था और इसलिए उनके पास बहुत से सवाल थे। वे यह विश्वास करते थे कि परमेश्वर अपनी पूरी सामर्थ में आकर इस्राएल देश को स्थापित करेगा। उन्होंने अपने नबियों को समझ लिया था और यह कि एक राजा दाऊद के सिंहासन पर फिर से बैठेगा। फरीसी अचंबित हुए, क्या यीशु जानता था कि यह सब कब होने जा रहा है? क्या वह भी इस योजना का हिस्सा था? यीशु जब उन सामर्थी चमत्कारों को कर रहे था और परमेश्वर के राज्य के विषय में प्रचार कर रहा था, उसने राष्ट्र को परमेश्वर के महान कार्यों को जो उसने पूर्व में किये थे उन्हें स्मरण दिलाया। सो उन्होंने उससे पूछा कि परमेश्वर का राज्य कब आएगा।

उसने उन्हें उत्तर दिया,
“'परमेश्वर का राज्य ऐसे प्रत्यक्ष रूप में नहीं आता। लोग यह नहीं कहेंगे,‘वह यहाँ है’, या ‘वह वहाँ है’, क्योंकि परमेश्वर का राज्य तो तुम्हारे भीतर ही है।'”

यीशु का क्या मतलब था? यीशु के रूप में परमेश्वर का राज्य उनके सामने खड़ा हुआ था! वह इस तरह से आया था जिसकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे। पूर्व में, परमेश्वर ने अपने वफ़ादार सेवकों को भेजा जैसे कि मूसा और दाऊद राजा और एलिजा और यशायाह, जो आकर परमेश्वर कि योजना को उसके लोगों को बताते। परन्तु वे तो केवल दूत थे जो परमेश्वर कि ओर प्रकाशित कर रहे थे। अब परमेश्वर स्वयं ही आ गया था। परमेश्वर का पुत्र ही राज्य था! उनके जीवन के द्वारा परमेश्वर ने श्रापित दुनिया को पहले चरण में तोड़ दिया था। स्वर्ग का महान राजकुमार अंधकार के राज्य पर आक्रमण कर के ज्योति के राज्य के लिए मार्ग खोल रहा था! पृथ्वी पर परमेश्वर का राज उन लोगों के जीवन में हो रहा था जिन्होंने अपने विश्वास यीशु पर डाला था! वे विश्वास करने से इंकार कर रहे थे, इसलिए वे देख भी नहीं सकते थे!

लेकिन वे यीशु कि ज्योति को देख पा रहे थे, उनके लिए और गहरी रहस्यमय बातें थीं जिन्हें वे सीख सकते थे। वे उस समान था जिस प्रकार वे एक छोटे से गुप्त द्वार से होकर छोटे, सक्रे रास्ते पर आ गए हों। लेकिन हर एक कदम पर, नयी और गहरी अद्भुद बातें प्रकाशित हो रही थीं। परमेश्वर कि गुप्त रहस्यमय बातें इन लोगों को प्रकाशित नहीं की जाएंगी जिनका विश्वास नहीं था। यह आदर उन लोगों के लिए था जो यीशु कि बातों को सुनते और विश्वास करते थे। वह जो विश्वास में एक छोटा सा कदम उठाएंगे उन्हें उन उत्तम चीज़ों कि तरफ लेकर जाएगा जो हमेशा बढ़ती ही जाएंगी। यीशु के चेलों ने वह पहले कदम उठाए थे। उसके लिए उन्होंने सब कुछ त्याग दिया था, जिस समय उनके देश के शक्तिशाली लोग यीशु के विरुद्ध होते जा रहे थे। जब परमेश्वर का राज्य आएगा, यीशु उन्हें उन गुप्त बातों को प्रकाशित करते जा रहे थे जो इस पृथ्वी पर होने जा रही थी। उसने उनसे कहा :

किन्तु उसने शिष्यों को बताया,
“'ऐसा समय आयेगा जब तुम मनुष्य के पुत्र के दिनों में से एक दिन को भी देखने को तरसोगे किन्तु, उसे देख नहीं पाओगे। और लोग तुमसे कहेंगे,‘देखो, यहाँ!’ या ‘देखो, वहाँ!’ तुम वहाँ मत जाना या उनका अनुसरण मत करना। “वैसे ही जैसे बिजली चमक कर एक छोर से दूसरे छोर तक आकाश को चमका देती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन होगा। किन्तु पहले उसे बहुत सी यातनाएँ भोगनी होंगी और इस पीढ़ी द्वारा वह निश्चय ही नकार दिया जायेगा।'" -लूका १७:२२-२५

इन वाक्यों में बहुत अद्भुद सूचनाएं हैं। यीशु ने भविष्य के लिए भविष्यवाणी की। ऐसा समय आएगा जब लोग मसीह के आने का इंतज़ार करेंगे। जब वह धार्मिकता में राज करेगा तब उन्हें उन दिनों की भूख होगी। लोग झूठे मसीह पर इशारा करेंगे, और उन्हें यीशु घोषित करेंगे। लेकिन अगली बार जब यीशु आएगा, वह गुप्त तरीके से नहीं आएगा। यदि वही होगा तो किसी को यह आश्चर्य करने कि ज़रुरत नहीं होगी क्यूंकि वह आकाश को अपनी महिमा से चमकदार कर देगा! यह वैसा होगा जो दानिएल ने मनुष्य के पुत्र के आने का वर्णनन पांच सौ साल पहले अपने चेलों से किया था:

“'रात को मैंने अपने दिव्य स्वप्न में देखा कि मेरे सामने कोई खड़ा है, जो मनुष्य जैसा दिखाई देता था। वह आकाश में बादलों पर आ रहा था। वह उस सनातन राजा के पास आया था।सो उसे उसके सामने ले आया गया। “वह जो मनुष्य के समान दिखाई दे रहा था, उसे अधिकार, महिमा और सम्पूर्ण शासन सत्ता सौंप दी गयी। सभी लोग, सभी जातियाँ और प्रत्येक भाषा—भाषी लोग उसकी आराधना करेंगे। उसका राज्य अमर रहेगा। उसका राज्य सदा बना रहेगा। वह कभी नष्ट नहीं होगा।'"    -दानिएल ७:१३-१४

आपने देखा किस प्रकार यीशु अपने को मनुष्य का पुत्र कहकर बुलाता है? यह उसका दानिएल कि इन आयतों में दिखाने का एक तरीका था, उसने कहा,"मैं ही वह मनुष्य का पुत्र हूँ!" जब यीशु अपने आने का वर्णन कर रहे थे, वह दिखा रहे थे कि कैसे वह भविष्यवाणियां पूरी हो रही थी।

यह वो गुप्त रहस्य हैं जो परमेश्वर इस सृष्टि को बनाने से पहले से जानता था। वह हमेशा से जानता था कि यह सब कैसे समाप्त होने जा रहा है, और यीशु कि पूर्ण विजय होगी। लेकिन वह विजय का मार्ग एक मोड़ लेने जा रहा था जिसके विषय में कोई नहीं जानता था, यहाँ तक कि उसके सबसे करीबी चेले भी। यहूदी लोग सोचेते थे कि क्या होगा यदि मसीह सैकड़ों सदालोन के लिए आ गया, लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा था कि वह मरने के लिए आएगा। और यीशु का यही मतलब था जब उसने कहा,"'किन्तु पहले उसे बहुत सी यातनाएँ भोगनी होंगी और इस पीढ़ी द्वारा वह निश्चय ही नकार दिया जायेगा।'"

हमारे लिए यह समझना ज़यादा आसान है, क्यूंकि हम पीछे मुड़ कर देख सकते हैं कि यीशु ने हमारे लिए क्रूस पर क्या किया। लेकिन उसके चेलों के लिए, वो बातें परेशान कर देने वाली थीं। उनकी कोई भी आशाएं ठीक नहीं बैठ रही थीं। चेले एक विजेता को नहीं समझ पाए जिसकी विजय उसके क्लेश उठाने के प्रति आज्ञाकारिता में थी। लेकिन क्लेश इस कहानी का अंत नहीं था। यीशु ने आगे समझाया कि उसके आने पर कैसा होगा:

“'वैसे ही जैसे नूह के दिनों में हुआ था, मनुष्य के पुत्र के दिनों में भी होगा। उस दिन तक जब नूह ने नौका में प्रवेश किया, लोग खाते-पीते रहे, ब्याह रचाते और विवाह में दिये जाते रहे। फिर जल प्रलय आया और उसने सबको नष्ट कर दिया।
“इसी प्रकार लूत के दिनों में भी ठीक ऐसे ही हुआ था। लोग खाते-पीते, मोल लेते, बेचते खेती करते और घर बनाते रहे। किन्तु उस दिन जब लूत सदोम से बाहर निकला तो आकाश से अग्नि और गंधक बरसने लगे और वे सब नष्ट हो गये।'"  -लूका १७:२६-२७

आपको नूह कि कहानी याद है? वह जहाज़ को सौ साल तक बनाता रहा। पृथ्वी के लोग जानते थे कि वह एक धर्मी पुरुष है, और वह उनको प्रचार करता था और पश्चाताप करने को कहता था। लेकिन वे उसकि नहीं सुनते थे। वे वर्षा आने तक के दिन तक अपने पापी तरीके से जीते रहे!

उसी प्रकार से, इब्राहिम भी अपने भतीजे लूत के साथ वायदे के देश में रहने के लिए आया। कई सालों तक, इब्राहिम परमेश्वर कि धार्मिकता पर स्थिर रहा, लेकिन काना के लोग अपने राहों से नहीं फिरे। उन्होंने सन्देश देने वाले कि नहीं सुनी, और जब उन्होंने अपेक्षा नहीं की, परमेश्वर का न्याय आग के समान उतर कर आया। केवल लूत और उसकी बेटियां बच गए।

यह बहुत दिलचस्प है कि जब यीशु लोगों के विषय में वर्णन दे रहे थे, उसने उनके पापों को नहीं बताया। विवाह करना, खेती बाड़ी करना, और घर बनाना, यह सब परमेश्वर कि ओर से दिए हुए कार्य हैं जो मानव जाती को करने हैं। हर एक कार्य उसकी पवित्र आज्ञाकारिता में किया जाने वाला कार्य है! लेकिन जब जीवन परमेश्वर से हट के जिया जाता है, तो जीवन के सारे कर्तव्य भी विद्रोहीपन को दर्शाते हैं। मनुष्य परमेश्वर के लिए बनाया गया था। केवल उससे प्रेम करना ही एक सही तरीका है। निर्भर करने का एक ही सही तरीका है उस पर निर्भर करना। नहीं तो हैम कहीं और निर्भर करने लगते हैं, और अपने ही दृर संकल्प और घमंड में भटक जाते हैं। उसकी सेवा करने कि चाह में सारे कर्तव्य पूरे होने चाहिए। सब कुछ उसकी पवित्र भक्ति में होकर होना चाहिए!