कहनी १३८: दस मुहरों का दृष्टान्त
जिस रात यीशु जक्कई के घर में और उसके जीवन में गए, उस रात जक्कई ने बहुत जशन मनाया होगा! यीशु के चेलों के साथ और परिवारों के साथ जक्कई ने बड़ा भोज बांटा। पूरा यरियो इस खबर को सुनकर गूँज रहा था! पर्व मनाने के लिए जब वह जा रहा था, एक प्रसिद्ध प्रचारक ने यरियो के धार्मिक अगुवे ने उसे नज़रअंदाज़ किया ताकि वह जक्कई के साथ जो एक भ्रष्टाचारी कर वसूलने वाला था, उसके साथ शाम बिता सके!
यीशु ने उनके सामाजिक नियमों को तोड़ने का लोगों के सामने पूरे साहस के साथ उस बात को कहा। फरीसियों को कितना गुस्सा आया होगा! वे सम्मान और आदर के आदी थे। परन्तु यीशु ने उनके साथ समय को बरबाद नहीं किया। उन्होंने यह साबित कर दिया था कि उनके ह्रदय कितने कठोर हैं। यीशु उनके पास जाता था जिनके ह्रदय स्वर्ग राज्य के लिए तैयार थे।
अब येरूशलेम यरियो से केवल पन्द्रह मील दूर था। सोचिये जब जाते जाते लोगों को सूचना मिलती जा रही होगी। पूरा राष्ट्र यीशु को देख रहा होगा जब वह दाऊद के शहर कि ओर जा रहा था। जब वह येरूशलेम पहुँचेगा तब वह क्या करेगा?
इन सब बातों के बीच एक महान महिमा थी, और वह वो था जो प्रभु को चाहिए था। जक्कई ने वास्तव में पश्चाताप कर लिया था। सबूत उसके कार्य में मिल गया था। वह अपनी संपत्ति उन सब को वापस देने जा रहा था जिनसे उसने लिया था। ऐसा किसी ने कभी सुना था? यीशु ने अपने पिता कि इच्छा को इस तरह पूरा किया जब उसने जक्कई को उस पेड़ से नीचे बुलाया जिस पर वह बैठा था। परमेश्वर ने जक्कई के लिए एक उद्धार का रास्ता खोल दिया था, और वह बहुत ख़ूबसूरत था।
उसी दिन से, जक्कई अब लोगों को परेशान नहीं करेगा। बल्कि, वह परमेश्वर के प्रति भक्ति में, एक सम्मानित इंसान बन के, वह अपनी प्रतिष्ठा और महनत से दूसरों के बचाव और धार्मिकता में बिताएगा। जिन पर जक्कई ने अत्याचार किया था, वे उस व्यक्ति को अपने पक्ष में पाएगे जो बहुत शक्तिशाली और धार्मिक था। और ऐसे ही परमेश्वर का राज्य पृथ्वी पर फैलेगा। जब एक व्यक्ति में परिवर्तन आता है, तो वह संसार में भी परिवर्तन लाता है! परमेश्वर इन्ही सब बातों से प्रसन्न होता है।
जब यीशु यरीहो से येरूशलेम को जा रहा था, उसने एक और दृष्टान्त बताया। इस बात कि अफवाह फ़ैल गयी थी कि परमेश्वर का राज्य प्रकट होने वाला था। आख़िरकार, यीशु अपने आप को एक विजयी मसीहा के रूप में प्रकट करने वाला था! इस्राएल को अपनी अंतिम विजय मिलने वाली थी! आने वाले दिनों को लेकर लोगों में कितना उत्साह था! चमत्कार! विजय! सामर्थ! इस्राएल वो देश है जिसने परमेश्वर को असीरियों को एक रात में ही नष्ट करते देखा है! उनके पूर्वजों ने महासागर में मिस्र के रथों को जिनपर उनके साहसी सिपाही थे, डूबते हुए देखा। परन्तु लोग कुछ देख नहीं पा रहे थे। उस कहानी के नायक, राजा हिजकिय्याह और यशायाह नबी और मूसा, यह सब परमेश्वर के वो महान सेवक थे जो परमेश्वर कि वाणी को सुनते थे। वे सब परमेश्वर पर ठरते थे और आज्ञा मानते थे। वे परमेश्वर कि अगुवाई में चलकर उसके समय के लिए ठरते थे और उसके प्रति अपना प्रेम और आदर दिखाते थे। समय समय पर, यीशु आने वाले दिनों कि बात करता था। यीशु अपनी योजनाओं को लोगों के सामने प्रकट करता था लेकिन वे नहीं सुनते थे, इसलिए उन्हें मालूम नहीं था कि किस प्रकार आज्ञा माननी है। वास्तव में, वे इस संदेशवाहक को मारने वाले थे!
यीशु आने वाले समय के विषय में जानता था। परमेश्वर पिता ने उसे सृष्टि को बनाने से पहले ही तय कर दिया था। परन्तु लोग नहीं समझते थे, और इसीलिए उसने यह दृष्टांत कहा। कुछ बातों में, यह कहानी इस तरह बताई गयी है जिसमें उसका अर्थ रहस्य के साथ लिपटा हुआ है। परन्तु वास्तव में, जो भी यीशु को पूरे मन से ढूँढता है, जो भी ध्यानपूर्वक सुनता है, वही बुद्धि को पाएगा और इसीलिए यीशु ने इस तरह से सुनाया। जिनके सुनने के लिए कान हैं केवल वे ही वास्तव में सुन पाएंगे!
उसने कहा:
“'एक उच्च कुलीन व्यक्ति राजा का पद प्राप्त करके आने को किसी दूर देश को गया। सो उसने अपने दस सेवकों को बुलाया और उनमें से हर एक को दस दस थैलियाँ दी और उनसे कहा,‘जब तक मैं लौटूँ, इनसे कोई व्यापार करो।’ किन्तु उसके नगर के दूसरे लोग उससे घृणा करते थे, इसलिये उन्होंने उसके पीछे यह कहने को एक प्रतिनिधि मंडल भेजा,‘हम नहीं चाहते कि यह व्यक्ति हम पर राज करे।’
“किन्तु उसने राजा की पदनी पा ली। फिर जब वह वापस घर लौटा तो जिन सेवकों को उसने धन दिया था उनको यह जानने के लिए कि उन्होंने क्या लाभ कमाया है, उसने बुलावा भेजा। पहला आया और बोला,‘हे स्वामी, तेरी थैलियों से मैंने दस थैलियाँ और कमायी है।’ इस पर उसके स्वामी ने उससे कहा,‘उत्तम सेवक, तूने अच्छा किया। क्योंकि तू इस छोटी सी बात पर विश्वास के योग्य रहा। तू दस नगरों का अधिकारी होगा।’
“फिर दूसरा सेवक आया और उसने कहा,‘हे स्वामी, तेरी थैलियों से पाँच थैलियाँ और कमाई हैं।’ फिर उसने इससे कहा,‘तू पाँच नगरों के ऊपर होगा।’
“फिर वह अन्य सेवक आया और कहा,‘हे स्वामी, यह रही तेरी थैली जिसे मैंने गमछे में बाँध कर कहीं रख दिया था। मैं तुझ से डरता रहा हूँ, क्योंकि तू, एक कठोर व्यक्ति है। तूने जो रखा नहीं है तू उसे भी ले लेता है और जो तूने बोया नहीं तू उसे काटता है।’
“स्वामी ने उससे कहा,‘अरे दुष्ट सेवक, मैं तेरे अपने ही शब्दों के आधार पर तेरा न्याय करूँगा। तू तो जानता ही है कि में जो रखता नहीं हूँ, उसे भी ले लेने वाला और जो बोता नहीं हूँ, उसे भी काटने वाला एक कठोर व्यक्ति हूँ? तो तूने मेरा धन ब्याज पर क्यों नहीं लगाया, ताकि जब मैं वापस आता तो ब्याज समेत उसे ले लेता।’ फिर पास खड़े लोगों से उसने कहा,‘इसकी थैली इससे ले लो और जिसके पास दस थैलियाँ हैं उसे दे दो।’
“इस पर उन्होंने उससे कहा,‘हे स्वामी, उसके पास तो दस थैलियाँ है।’
“स्वामी ने कहा,‘मैं तुमसे कहता हूँ प्रत्येक उस व्यक्ति को जिसके पास है और अधिक दिया जायेगा और जिसके पास नहीं है, उससे जो उसके पास है, वह भी छीन लिया जायेगा। किन्तु मेरे वे शत्रु जो नहीं चाहते कि मैं उन पर शासन करूँ उनको यहाँ मेरे सामने लाओ और मार डालो।’” -लूका १९:१२-२७
इस दृष्टान्त में, यीशु ही राजा है। भीड़ और उसके चेलों कि आशा के विरुद्ध, यीशु कुछ समय के लिए जा रहा था। यीशु का यही मतलब था जब उसने कहा कि वह दूर एक शहर को जा रहा था। वह क्रूस पर चढ़ कर अपनी जान देने वाला था और फिर जी उठने वाला था, और फिर स्वर्ग को चला जाएगा। उसकी जय पूर्ण हो जाएगी। परन्तु उसके चेले परेशां होने वाले थे। उसकी जय पुराने नियम कि तरह क्यूँ नहीं होने वाली थी? यीशु ने आकर येरूशलेम में क्यूँ नहीं अपने सिंहासन को स्थापित किया?
वह करेगा, परन्तु पहले वह अपने पिता के पास गया, जहां उसे सारा अधिकार और सामर्थ प्राप्त हुआ। और जैसा कि उसने दृष्टान्त कहा, यीशु वापस आएगा। जब वह वापस आएगा तो क्या पाएगा? क्या पृथ्वी पर वो सेवक होंगे जिन्होंने उसके दान को पाकर उसकी महिमा के लिए इस्तेमाल किया?
प्रत्यक्ष रूप में, ऐसा होगा! दृष्टान्त में, दो सेवक थे जिन्होंने अपने अपने मुहरों को और बढ़ाया। एक मुहर लगभग तीन महीने कि एक मजदूर कि पगार होती है। जो सेवकों ने अपनी मुहर गुना और पांच गुना बढ़ाई, वे उन लोगों के समान है जिन्हें कि परमेश्वर चाहता है कि वे वैसा करें जब वह वापस आता है। निवेश को दस गुना बढ़ाना महान बुद्धि और वफादारी को प्रकट करता है!
हम अपने आप से पूछ सकते हैं: अब जबकि हमारे अंदर उद्धार का अनमोल तोहफा है, हमें कैसे जीना चाहिए? हमें प्रार्थना कैसे करनी चाहिए और उसके वचन कि खोज कैसे करनी चाहिए? हम दूसरों से किस प्रकार प्रेम करें? जब हम वफादारी के उन छोटे हिस्सों में जो परमेश्वर ने दीये हैं, उनमें कदम रखेंगे, तो वह उनका आदर करेगा और स्वर्ग में उनका प्रतिफल मिलेगा!
जो कोई भी यीशु पर भरोसा करेगा वह अनंतकाल के लिए उसके साथ होगा। यह हमारे सोच से भी बढ़कर एक बड़ा तोहफा है। परन्तु हर एक सेवक को मिलने वाला तोहफा अलग अलग फरमान का होगा जो वे पाएंगे, और यह निर्भर करता है कि वे अपना जीवन इस पृथ्वी पर कैसे बिताते हैं!
जिस सेवक ने अपने भी नहीं किया वह यह नहीं सोच पाया कि उसे अपने राजा के लिए कैसे परिश्रम करना चाहिए। जब अवसर मिले, उसने मूह मोड़ लिया। वह राजा के कठोर और उच्च दर्जे को लेकर बड़बड़ाता रहा, लेकिन वास्तव में, वह आलसी था! राजा ने उसे बहुत उदारता से अवसर दिए, लेकिन वह अपने तरस खा कर बड़बड़ाता रहा जबकि दूसरे दो सेवक अपने कामों में लगे रहे! फिर उसने परमेश्वर को अपने असफलता का कारण बनाया! अपने राजा कि आशीषों का यह कितना शर्मनाक दुष्प्रयोग तरीका था!
कई माइनों में, यीशु के पीछे चलने कि यह बहुत ही खतरनाक आज़माइश है। यीशु ने कहा,"'अपने क्रूस को उठाओ और मेरे पीछे हो लो।'" उसने कहा,"धन्य हो तुम क्यूंकि लोग तुम्हारा अपमान करेंगे।" यदि यीशु हमारे जीने का नमूना है, तो उसके पीछे चलने वालों को इस संसार से हट कर उस पूर्ण अलगाव को प्रकट करना चाहिए। विश्वास और कड़ी मेहनत को ऊंचा उठाने का मतलब है परमेश्वर कि उन बातों के मूल्य को और यीशु के जीवन को ऊंचा उठाना! उन बातों में, यीशु बहुतायत से और उदारता से देने वाला है। जब वह इस दुनिया कि चीज़ों को देने से इंकार करता है, तो वह हमारी मदद करता है कि हम स्वर्ग कि चीज़ों को पाने कि अभिलाषा करें। जिस व्यक्ति को एक मुद्र मिला वह उसके साथ कुछ नहीं करना चाहता था।
यीशु जानता था कि बहुत से उसके पीछे जो आएंगे वे उन मनुष्यों के समान होंगे जिनके पास दस, पांच, और एक मुद्रा थी। वह यह भी जानता था कि जब वह येरूशलेम को जाएगा, वहाँ एक और किस्म का व्यक्ति उसकी प्रतीक्षा में होगा। वह ज़हर और घृणा से भरा हुआ था। इस दृष्टान्त के पात्र जो राजा के पीछे दूर देश को गए ताकि उसके नेतृत्व को इंकार कर सकें, वे उन धार्मिक अगुवों के समान थे जो यीशु को मरवाने कि साज़िश कर रहे थे। वे यह मानते थे कि उनके पास राजा को बाहर करने के अधिकार है और जिसे वे चाहें उसे वे अपने अगुवा बना सकते हैं।
वे पूर्ण रूप से गलत थे। यीशु ही राजा था, जो हर तरह से सिद्ध और सच्चा था। ये छोटे मोटे उत्पीड़क उस नेक और दयालू अगुवे के ऊपर अपना अधिकार जमाना चाहते थे जिसे पूरा राष्ट्र वास्तव में चाहता था। दुष्ट का न्याय तो अवश्य ही होगा। हम इतिहास में देख सकते हैं कि न्याय का एक चरण हो चुका है। येरूशलेम उन लोगों सेअधिक तक नहीं टिक पाएगा जो यीशु को मार डालेंगे। रोम के लोग आएंगे और सब सर्वनाश कर जाएंगे। उन दिनों कि भयानक कहानियां यहूदी इतिहासकार, यूसफस द्वारा लिखी गई हैं। परन्तु एक और समय आएगा जब यीशु उनका न्याय करेगा जो उसकेउसके नियमों का पालन नहीं करते हैं। तब यह उत्पीड़क और दुष्ट व्यक्ति नहीं होंगे जिनके भयानक कार्यों को देखकर हम काँप जाते हैं। हर एक व्यक्ति को इस संसार में एक छोटा हिस्सा दिया गया जिसके ऊपर वह अधिकार रख सकता है। परमेश्वर ने ऐसे लोग बनाय हैं जिन्हें प्रेम दिखाना है और परिश्रम करना है। क्या वे अपने राजा का आदर सम्मान करेंगे? या वे अपने ही चीते उत्पीड़क बनके अपनी ही दुनिया के स्वार्थ और भय और परमेश्वर को इंकार करने वाले लोग बन जाएंगे?