कहानी ७४: महत्वपूर्ण मोड़: एक चिन्ह की मांग

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यीशु और उसके चेले, भीड़ से घिरे हुए, कफरनहूम में थे। वे सब जब यीशु प्रचार कर रहे थे पतरस के घर में खचाखच भरे हुए थे। धार्मिक अगुवे यीशु को चुनौती देने के लिए यरूशलेम से आए थे। यीशु सबके सामने एक व्यक्ति को उसके अंधेपन से चंगा किया था और एक दुष्ट आत्मा को निकला था। जब धार्मिक अगुवे यीशु पर यह अद्भुद चमत्कार करने के लिए दोष लगा रहे थे, तो परमेश्वर ने अपने ही वाद विवाद से उनके वाद विवाद को नष्ट कर दिया। उस यह साबित कर दिया कि परमेश्वर कि और से है। इन सब संघर्ष के बीच, यह धार्मिक अगुवे किसी भी समय पश्चाताप कर सकते थे। ऐसे मौके पर, वे यीशु के आगे घुटनों पर आ सकते थे, जैसे कि पतरस ने किया था जब उसने मछलियों को जाल में फसने का चमत्कार देखा था। पूरे समय, यीशु उनके साथ बात चीत करता रहा, उनको बार बार मौका दे रहा था कि वे अपने पापों से पश्चाताप करें। उसके बजाय, वे उसे उत्तेजित कर रहे थे। इस बार उन्होंने एक चिन्ह कि मांग की। वे चाटे थे कि वे उन्हें एक शानदार चमत्कार दिखाय यह साबित करने के लिए कि वह कौन था।

यीशु उनके बनाय हुए योजनाओं के अनुसार चलने वाला नहीं था। जिस व्यक्ति को उसने उसके अंधेपन से और गूंगेपन से चंगे किया था वह  कमरे में ही था। हज़ारों लोगों ने उसका चमत्कार देखा था। कोई भी इस पर बेहेस नहीं कर सकता था कि चमत्कार नहीं हुए क्यूंकि वेसारे गलील भर में हुए थे। वह ऐसा क्या कर सकता था कि इन नीच और कठोर दिल वालों के लिए प्रयाप्त होता? इसके बजाय, यीशु ने उन को डांटा:

“इस युग के बुरे और दुराचारी लोग ही आश्चर्य चिन्ह देखना चाहते हैं। भविष्यवक्ता योना के आश्चर्य चिन्ह को छोड़कर, उन्हें और कोई आश्चर्य चिन्ह नहीं दिया जायेगा।”  और जैसे योना तीन दिन और तीन रात उस समुद्री जीव के पेट में रहा था, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी तीन दिन और तीन रात धरती के भीतर रहेगा। न्याय के दिन नीनेवा के निवासी आज की इस पीढ़ी के लोगों के साथ खड़े होंगे और उन्हें दोषी ठहरायेंगे। क्योंकि नीनेवा के वासियों ने योना के उपदेश से मन फिराया था। और यहाँ तो कोई योना से भी बड़ा मौजूद है!'"

वाह। क्या आपको महसूस हुआ कि यीशु किस बारे में बात कर रहे थे? वह अपने ही मृत्यु और जी उठने के बारे में एक भविष्यवाणी दे रहे थे! जब उस बड़ी मछली ने योना को निगल लिया था, यह दृश्या यीशु के मरने के समय कि तरह था। और जिस प्रकार योना तीन दिन बाद वापस लौटा, यीशु भी, मृत्यु पर जयवंत होने के पष्चात वापस आने वाला था! इससे बड़ा चिन्ह और कोई नहीं हो सकता था जो उसकी मर्ज़ी के खोजी थे।

जब परमेश्वर योना को वापस लाये, उन्होंने योना को निनवेह के लोगों को परमेश्वर का सुसमाचार सुनाने के लिए भेजा। वह इस्राएल के सबसे शक्तिशाली देश असीरिया कि राजधानी थी। जब निनवेह के लोगों ने योना के विषय में सुना तो वे अपने पापों के लिए बहुत पछताये। और क्यूंकि वे पछताये, वे परमेश्वर के न्याय से बच गए।

यीशु भी योना कि तरह गलील में प्रचार कर रहे थे, लेकिन वह यहूदी लोगों में प्रचार कर रहे थे। इस्राएल का राष्ट्र परमेश्वर के बच्चों कि तरह था! उनको बाइबिल और नबी दिए गए थे! उनके पास अब्राहम और मूसा के वाचा दिए गए थे! फिर भी जब वह आया, इनके हृदय इतने कठोर थे कि उन्होंने पश्चाताप करने से इंकार कर दिया। अश्शूरी एक मूर्तिपूजक, दुष्ट राष्ट्र था, लेकिन एक मात्र नबी से वचन सुनने के बाद उन्होंने विश्वास किया। अब परमेश्वर का बेटा अधिकार के साथ आया और वह अस्वीकार किया गया।

फिर यीशु ने एक और परदेशी के विषय में बताया जिसने परमेश्वर के वचन के बारे में सुना और विश्वास किया। रानी शीबा ने सुलेमान राजा कि बुद्धि के बारे में सुना था जब वह अपने पूरे प्रतिष्ठा में था। उसे सुनने के लिए वो येरूशलेम से मीलों यात्रा करके आयी थी। जब उसने यह सुना कि परमेश्वर कि ओर से उसे बुद्धि प्राप्त हुई है तो वह दंग रह गयी। यीशु सुलेमान राजा से कहीं अधिक महान था, लेकिन रानी शीबा कि तरह धार्मिक अगुवे अपने विश्वास में असफल रहे!

जब यीशु ने कहा कि न्याय के दिन, अश्शूर के लोग और रानी शीबा यहूदियों के अविश्वास के लिए न्याय करेंगे तो वे बहुत क्रोधित हुए। वे इस बात से बहुत अपमानित हुए यह सुनकर कि यीशु जो अपने को योना से ऊंचे दर्जे का बताता है, जो एक पराक्रमी नबी है, और सुलेमान से, जो के पराक्रमी राजा है! उसने मंदिर से भी अधिक अपने आप को महान घोषित किया था! यह यूं कहना था जैसे कि वह सब नबियों में सबसे महान है! या तो यीशु सबसे बड़ा सच बयान कर रहा है या फिर वह सबसे भयानक झूठ बोल रहा है। उसके चमत्कार कि सुंदरता, उसके शब्दों कि बुद्धि और उसके आत्मा का सशक्तिकरण काफी था यह साबित करने के लिए कि वह सच बोल रहा है।

यीशु ने यहूदी लोगों के भयानक अविश्वास के बारे में एक छोटी सी कहानी बताई;
“'जब कोई दुष्टात्मा किसी मनुष्य से बाहर निकलती है तो विश्राम को खोजते हुए सूखे स्थानों से होती हुई जाती हैं और जब उसे आराम नहीं मिलता तो वह कहती हैं, ‘मैं अपने उसी घर लौटूँगी जहाँ से गयी हूँ।’ और वापस जाकर वह उसे साफ़ सुथरा और व्यवस्थित पाती है। फिर वह जाकर अपने से भी अधिक दुष्ट अन्य सात दुष्टात्माओं को वहाँ लाती है। फिर वे उसमें जाकर रहने लगती हैं। इस प्रकार उस व्यक्ति की बाद की यह स्थिति पहली स्थिति से भी अधिक बुरी हो जाती है। इस दुष्ट पीढ़ी के साथ ऐसा ही होगा।'"

यीशु ने जैसे अद्भुद चमत्कार दिखाये और आश्चर्यजनक बदलाव उस समय के लोगों में लेकर आया, वह ऐसा था मनो वे अभिशाप के बंधन से मुक्त और साफ़ किये गए हों। परन्तु वे यीशु के विश्वास होने आप को भर नहीं रहे थे। उन्हें उसकी सहायता कि ज़रुरत थी और उन्हें उसके शक्ति का प्रदर्शन देखना अच्छा लगा, परन्तु वे उससे प्रेम नहीं करना चाहते थे। सो यीशु ने न्याय कि घोषणा कि। यीशु के समय के यहूदी जो यह समझते थे कि वे शुद्ध हैं, उन्हें इस बात का अनुमान नहीं था कि पहले से अधिक बुरे निकलेंगे।

हम यीशु कि सेवकाई में एक बहुत बड़ा मोड़ देखने वाले हैं। पहले, वह सुसमाचार को बड़े प्रताप के साथ प्रचार करने कि घोषणा कर रहा था। उसने धार्मिक अगुवों के सवालों को बुद्धि और सूझ भूझ के साथ जवाब दिया, उनको सचचाई कि ओर लेजाने के उद्देश्य से। अब से, वह अपने उपदेश बहुत ध्यान पूर्वक देने वाला था ताकि केवल वे जिनके ह्रदय परमेश्वर के साथ सही थे वे उसके उपदेश के अर्थ को समझ सकें।