पाठ 61 : यूसुफ और पोतीपर की पत्नी

यूसुफ पोतीपर के घर में एक दास के रूप में मिस्र में रह रहा था। बाइबिल बताती है कि परमेश्वर युसूफ के साथ था, जिसका मतलब है की यूसुफ को आशीर्वाद देने के लिए वह उसके साथ था। चाहे वह एक ग़ुलाम था और वादे के देश से बहुत दूर था, परमेश्वर कि सुरक्षा और देखभाल उसके लिए नहीं बदला था।

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पाठ 62 : पिलानेहारा और पकानेहारा

यूसुफ ने कई सालों जेल की काल कोठरी में बिताया। फिर भी वह ईमानदारी और वफ़ादारी के साथ परमेश्वर की सेवा करता रहा। उसकी पीड़ा के बीच में उसका परमेश्वर उसके साथ था, और उसे यह भरोसा था की उसके लिए परमेश्वर की कोई योजना अवश्य थी।

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पाठ 63 : फिरौन के समक्ष में यूसुफ

यूसुफ मिस्र के राजा के जेल में एक वफ़ादार सेवक के रूप में काम करता रहा। एक समय में, उसने फिरौन के पिलानेहारा और मुख्य पकानेहारा के सपनों की व्याख्या की थी। उसकी व्याख्याएं आश्चर्यजनक तरीके से एक दम सही थीं।

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पाठ 64 : मिस्र में यूसुफ का जीवन

फिरौन ने युसूफ को पूरे मिस्र का अधिकारी बना दिया था। उसने अपनी मुद्रिका उतार कर युसूफ को पहना दी। अंगूठी एक मोहर थी जिसे पिघले मोम के लिए दबाया जाता था। कोई पत्र या पुस्तक पर उस अंगूठी की मोहर फिरौन के द्वारा दिए आदेश के बराबर था। यूसुफ देश में सबसे शक्तिशाली निर्णय निर्माता था!

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पाठ 65 : युसूफ का चतुर प्रेम

यूसुफ जब पहले अपने भाइयों से मिला था वे गुस्से में थे और क्रूर थे। जबकि उसने अपने जीवन के लिए उनसे भीख मांगी थी, फिर भी उन्होंने दूषित व्यापारियों के हाथ उसे बेच दिया था। अब जब वे मिस्र में उसके सामने खड़े थे, वे कनान की लंबी यात्रा के कारण गंदे और थक चुके थे। उसके खानाबदोश भाई उससे कितने भिन्न लग रहे थे। उसे क्या करना चाहिए?

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पाठ 66 : मिस्र की खतरनाक वापसी यात्रा

यूसुफ के भाइयों ने अन्न को अपने गधों पर लादा और वहाँ से चल पड़े। वे सभी भाई रात को ठहरे और भाईयों में से एक ने कुछ अन्न के लिए अपनी बोरी खोली और उसने अपना धन अपनी बोरी में पाया। अचानक, वह बहुत डर गया।

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पाठ 67 : यूसुफ के निवास्थान में

जब वे यूसुफ के घर पर पहुंचे तो वे उसके कोषाध्यक्ष के पास गए, जो पूरे घर का मुख्य सेवक था। वह यूसुफ के सुंदर और सुरुचिपूर्ण घर के बाहर खड़ा था। वे भयभीत होकर उसके पास गया और उसे सारा हाल बताया की कैसे उन्होंने रास्ते में अपनी बोरियों में चांदी पाई।

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पाठ 68 : अनाज की एक बोरी में एक चांदी का पात्र

जुदाई के इतने वर्षों के बाद, यूसुफ के भाई उसके निवास्थान में बैठे थे, और यूसुफ आँसुओं के साथ अति अभिभूत था। बिन्यामीन को देखकर वह फूट फूट कर रोया। अपने आप को संभालने के लिए वह कमरे से बाहर चला गया।

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पाठ 69 : यूसुफ का अपने आप को प्रकट करना

जब यूसुफ ने अपने भाइयों को बताया कि वह वास्तव में कौन था, वे घबराहट के कारण कुछ नहीं बोल पाए। इतने सालों पहले, वह बिलकुल अकेला था, उन्होंने उसे एक सूखे कुण्ड में फेंक दिया था और एक ग़ुलाम बनने के लिए उसे बेच दिया था।

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पाठ 70 : मिस्र में वाचा के परिवार का प्रवेश

याकूब और उसका घराना जब मिस्र की ओर यात्रा को निकले, उसने यहूदा को यूसुफ़ के पास पहले भेजा। परिवार की आवश्यकता थी कि कोई उन्हें गोशेन जाने के लिए दिशा-निर्देश करे और भव्य पुनर्मिलन के लिए तैयार करे।

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पाठ 71 : याकूब का अपने पुत्रों को आशीर्वाद देना

इस्राएल कि ताकत निरंतर कम होती चली गयी। यूसुफ को मालूम हुआ कि वह भयंकर रूप से बीमार होता जा रहा था। उनके दादा से मिलाने के लिए वह गोशेन में उसके दोनों पुत्र मनश्शे और एप्रैम को ले आया।

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पाठ 72 : शाप के रूप में याकूब का आशीर्वाद

एक बार याकूब ने यूसुफ के पुत्रों पर इन विस्तृत और शक्तिशाली आशीर्वाद को देने के बाद, उसने अपने सभी पुत्रों को बुलवाया। उसने कहा, "''मेरे सभी पुत्रो, यहाँ मेरे पास आओ। मैं तुम्हें बताऊँगा कि भविष्य में क्या होगा।'" तब याकूब ने प्रत्येक पुत्र को, बड़े से छोटे को, परमेश्वर कि दृष्टि में जो कुछ होने जा रहा है उसके विषय में बताया।

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पाठ 73 : यहूदा का शाही आशीर्वाद

दूसरे पुत्र को परमेश्वर का दिया आशीर्वाद रूबेन, शिमोन, और लेवी से बिलकुल भिन्न था। यह पुत्र यहूदा था। हम इसके विषय में पढ़ेंगे की किस प्रकार उसका विस्तृत आशीर्वाद इस्राएल और दुनिया के देश को बदल देगा। ये उल्लेखनीय आशीर्वाद अनंत काल तक जारी रहेंगे!

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पाठ 74 : बिल्हा और जिल्पा द्वारा जनजाति पर आशीर्वाद

यह कितना दिलचस्प है किउत्पत्ति कि पुस्तक दुनिया के निर्माण के साथ शुरू हुई। परमेश्वर ने अपने शक्तिशाली शब्द से शून्य से पूरे ब्रह्मांड को बनाया। अब, उत्पत्ति के अंत में, याकूब अपने पुत्रों को आशीर्वाद दे रहा है। ये आशीर्वाद भी, परमेश्वर के वचन हैं।

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पाठ 75 : राहेल की धन्य औलाद

याकूब ने अगला आशीर्वाद अपने पुत्र यूसुफ के लिए दिया। यूसुफ के पुत्र एप्रैम और मनश्शे पहले से ही धन्य हो गए थे, और उनमें से प्रत्येक याकूब के बेटे और उनके जनजाति बराबर माने जाएंगे। क्यूंकि यूसुफ को अपने पिता से विरासत के दो भाग प्राप्त हुए, इसीलिए उसे दो में गिना जाएगा।

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पाठ 76 : याकूब की मृत्यु

याकूब ने जनजातियों के बारे में भविष्यवाणी के शब्दों के साथ अपने प्रत्येक पुत्र को आशीर्वाद दिया जो परमेश्वर के पवित्र राष्ट्र को बनाएंगे। ये लुभावनी आस्था के शब्द थे। याकूब को परमेश्वर पर उन अनदेखी बातों पर विश्वास था जो परमेश्वर उसके लिए करेगा।

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पाठ 77 : उत्पत्ति की समीक्षा: बाइबल कैसे पढ़ें

उत्पत्ति में जो हमने सीखा उसकी बड़ी तस्वीर को एक साथ याद करें। मानव जाति के लिए परमेश्वर की एक अद्भुत योजना है। परमेश्वर ने उनके लिए सौंदर्य और ज्योति का एक ब्रह्मांड बनाया, और एक आदर्श वाटिका में दो जीवित पहले दो मनुष्यों को रखा। उनको अपनी छवि में बनाया। उसने उन्हें इसीलिए बनाया ताकि वह उनसे प्रेम कर सके और वे भी एक निकट संबंध में होकर उससे वापस प्रेम कर सकें। वह पूरी तरह से उनके पूर्ण विश्वास का हक़दार था।

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पाठ 78 : उत्पत्ति से निर्गमन तक

जब यूसुफ के भाई मिस्र में याकूब के साथ गए, तब पूरे परिवार में केवल सत्तर लोग थे। उन्हें मिस्र में उच्च सम्मान मिला क्यूंकि वे यूसुफ से सम्बन्ध रखते थे। उनके कई बच्चे हुए। चार सौ साल तक मिस्र में परिवार में वृद्धि होती रही। परमेश्वर ने इब्राहीम के साथ कीये अपने वादे को सम्मानित किया। आकाश में जितने तारे थे उतने उसके वंशज थे। वहां 600,000 पुरुष थे और स्त्रियाँ और बच्चे और भी अधिक थे।

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प्रस्थान : पाठ 1

इब्राहीम, सारा, और इसहाक: परमेश्वर कि वाचा परिवार के ये तीन सदस्यों के साथ शुरू हुआ। परमेश्वर ने इब्राहीम से वादा किया की वह उसे कई राष्ट्रों का पिता बनाएगा। अकाल के कारण जब याकूब मिस्र के लिए अपने बेटों के साथ निकला, उसके परिवार के सत्तर सदस्य थे।

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पाठ 80 : फिरौन की बेटी का हृदय

याकूब के ग्यारह पुत्र उसके साथ मिस्र को गए। यूसुफ वहाँ पहले से ही था। उनके बच्चों के बच्चे हुए, और उनके भी और बच्चे हुए। चार सौ साल बाद, इस्राएलियों कि दो लाख से अधिक संख्या हो गयी। फिरौन इसी बात को लेकर बहुत चिंतित था!

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