पाठ 76 : याकूब की मृत्यु

याकूब ने जनजातियों के बारे में भविष्यवाणी के शब्दों के साथ अपने प्रत्येक पुत्र को आशीर्वाद दिया जो परमेश्वर के पवित्र राष्ट्र को बनाएंगे। ये लुभावनी आस्था के शब्द थे। याकूब को परमेश्वर पर उन अनदेखी बातों पर विश्वास था जो परमेश्वर उसके लिए करेगा। याकूब जानता था की वह बूढ़ा हो रहा है। अब समय आ गया था कि वह परमेश्वर की वाचा के वादों की विरासत को पारित करे, और उसके पुत्रों और वे जो उनके पीछे चलते थे, उन्हें विश्वास से वादों को पकड़े रहना होगा।

       

याकूब के पूरे कबीले मिस्र में रह रहे थे, उसे विश्वास था कि एक दिन, वे सब वादे के देश में वापस आएंगे। वह विदेशी देवताओं के साथ एक विदेशी देश में दफ़न होना नहीं चाहता था। वह परमेश्वर के पीछे चलने वाले अपने पिता कि कब्र में दफ़न होना चाहता था। एक सौ साल पहले, इब्राहीम ने अपनी प्यारी पत्नी सारा को दफ़नाने के लिए एक कब्र ख़रीदी थी। यह मम्रे के पास, मकपेला के क्षेत्र में था। इब्राहीम, इसहाक, और रिबका सभी वहां रखे गए थे। जब याकूब कि पत्नी लिआ की मृत्यु हो गई, वह उसे भी वहाँ लाया। याकूब यह जानने के लिए बहुत बेताब था कि वह अंत में अपने परिवार के साथ दफ़नाया जाएगा। 

 

उसने अपने बेटों से कहा, "जब मैं मरूँ तो मैं अपने लोगों के बीच रहना चाहता हूँ। मैं अपने पूर्वजों के साथ हित्ती एप्रोन के खेतों की गुफा में दफनाया जाना चाहता हूँ। वह गुफा मम्रे के निकट मकपेला के खेत में है। वह कनान देश में है। इब्राहीम ने उस खेत को एप्रोम से इसलिए खरीदा था।'"

 

अपने पुत्रों से बातें समाप्त करने के बाद याकूब लेट गया, पैरों को अपने बिछौने पर रखा और मर गया। (उत्पत्ति 49:33c) इसे दोबारा पढ़ें। क्या ये इंजील के शब्द और चित्र सुंदर नहीं हैं? यहां तक कि मृत्यु भी ईश्वर में आस्था की रोशनी में अनुग्रह और गरिमा के साथ भरी हुई है।

 

जब इस्राएल मरा, यूसुफ़ बहुत दुःखी हुआ। वह पिता के गले लिपट गया, उस पर रोया और उसे चूमा। यूसुफ़ ने अपने सेवकों को आदेश दिया कि वे उसके पिता के शरीर को तैयार करें (ये सेवक वैद्य थे।) यूसुफ़ शरीर को वापस कनान में ले जा रहा था, और उसे अच्छी तरह से परिरक्षित किया जाना था नहीं तो सड़न उसके पिता पर अपमान को लाएगा। 

 

शवरक्षालेप को पूरा करने के लिए चालीस दिन लग गए। तब मिस्र के लोगों को याकूब के जीवन का शोक करने के लिए सत्तर दिन लग गए। आमतौर पर एक राजा के जीवन का शोक करने के लिए इतने दिन लगते थे। याकूब की मृत्यु को मिस्र के शाही रूप से माना गया। वह यूसुफ़ का पिता था जिसने भुखमरी और बर्बादी से मिस्र को बचाया। अपने महान पिता का शोक करने के लिए याकूब के परिवार के लिए एक राहत का समय था। 

 

जब शोक करने का अलग निर्धारित समय समाप्त हो गया, यूसुफ़ अपने पिता को दिये वादे को पूरा करने की तैयारी करने लगा। वह कनान जाकर इब्राहीम और इसहाक की कब्र में उसे रख देगा। उसने फिरौन के शाही अदालत में जाकर अनुमति माँगी ताकि वह अपने पिता को सम्मानित करके वापस लौट आये। 

फिरौन ने कहा, "'अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो। जाओ और अपने पिता को दफनाओ।'” 

 

फिरौन के अधिकारी मिस्र से लेकर वादे के देश तक यूसुफ़ के साथ गए। पूरा शाही अदालत उसके साथ गया! उनके सुरुचिपूर्ण और गरिमामय परिधान में पुरुषों के महान जनसमूह की कल्पना कीजिये। रथ और घुड़सवार मिस्र के सबसे शक्तिशाली पुरुषों कि रक्षा के रूप में कार्य करने के लिए उन लोगों के साथ आये होंगे। यूसुफ़ का पूरा परिवार एक महान कारवां का हिस्सा था। केवल छोटे बच्चे और जानवर गोशेन में छोड़ दिये गए। 

उस जनसमूह ने यरदन नदी को पार किया और ये गोरन आताद को गए। उन्होंने वहां रुक कर के सात दिन तक यूसुफ़ के लिए शोक किया। यह शोक मनाने की विधि थी, और यह इतना उत्तेजित करने वाला स्थान था कि काननियों ने इस स्थान का नाम आबेल मिस्रैम रख दिया, जिसका अर्थ है "मिस्रियों का शोक।"  

तब यूसुफ़ और उसके भाई और उनके अन्य साथियों ने अब्राहम कि कब्र पर याकूब के शव को रख दिया। उन्होंने वादे के अनुसार अपने पिता को वहां दफ़ना दिया। कल्पना कीजिये कि याकूब के पुत्रों को कब्र में प्रवेश करने में कैसा लगा होगा। कल्पना कीजिये जब उन्होंने इब्राहीम और इसहाक, प्रेमिका सारा और लिआ की हड्डियों को देखा होगा। वे वाचा के लोग थे, और यह इस्राएल के बारह जनजातियों के लिए सम्मान कि बात होगी जब वे इसे आगे तक ले जाएंगे। जब वे याकूब को दफ़ना चुके, वे वापस मिस्र कि यात्रा को निकल पड़े।

 

जब उनके पिता कि मृत्यु हो गई, तब यूसुफ़ के भाई सोचने लगे कि वास्तव में क्या उसने उन्हें गुलामी में उसे बेचने के लिए उन्हें माफ़ कर दिया है या नहीं। शायद वह याकूब के मरने का इंतज़ार कर रहा था, और तब वह अपना बदला लेगा! सोचिये कब से वे इस भयानक भय और डर को लेकर चल रहे थे। यूसुफ कि क्षमा इतनी वास्तविक थी की उन्हें विश्वास करना कठिन हो रहा था। वे आपस में मिलकर योजना बनाने लगे की आगे उन्हें क्या करना चाहिए। अंत में, उन्होंने यूसुफ़ के लिए एक संदेश भेजा। उन्होंने कहा, "'तुम्हारे पिता ने मरने के पहले हम लोगों को आदेश दिया था। उसने कहा, ‘युसुफ से कहना कि मैं निवेदन करता हूँ कि कृपा कर वह उस अपराध को क्षमा कर दे जो उन्होंने उसके साथ किया।’ इसलिए अब हम तुमसे प्रार्थना करते हैं कि उस अपराध को क्षमा कर दो जो हम ने किया। हम लोग केवल तुम्हारे पिता के परमेश्वर के सेवक हैं।”'"

 

यूसुफ को संदेश प्राप्त हुआ, वह टूट गया और रोने लगा। कितना भयानक था यह देख कर की उन्होंने उसके प्यार पर भरोसा नहीं किया! क्या आपको लगता है कि परमेश्वर को भी ऐसा ही लगता होगा जब हमारे पाप क्षमा करने के लिए हम उस पर भरोसा नहीं करते हैं?

 

इस बीच, यूसुफ के भाई यह देख रहे थे कि अब वह क्या करेगा। जब उन्होंने उसके नम्र हृदय को देखा, तो वे उसके पैरों पर गिर गए। क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं? उसके दस भाई उसके सामने झुककर कहने लगे, “हम लोग तुम्हारे सेवक होंगे।'” क्या आप उनके पाप के ऊपर उस दु: ख की सुंदरता को देख सकते हैं? क्या आप उस सच्चे पश्चाताप की सुंदरता को देख सकते हैं? वे जानते थे की वे न्याय के हकदार थे, लेकिन यूसुफ उन्हें केवल दया देना चाहता था।

 

तब यूसुफ ने उनसे कहा, “डरो नहीं मैं परमेश्वर नहीं हूँ। तुम लोगों ने मेरे साथ जो कुछ बुरा करने की योजना बनाई थी। किन्तु परमेश्वर सचमुच अच्छी योजना बना रहा था। परमेश्वर की योजना बहुत से लोगों का जीवन बचाने के लिए मेरा उपयोग करने की थी और आज भी उसकी यही योजना है। इसलिए डरो नहीं। मैं तुम लोगों और तुम्हारे बच्चों की देखभाल करूँगा।” इस प्रकार यूसुफ ने उन्हें सान्त्वना दी और उनसे कोमलता से बातें कीं। अपने भाइयों के प्रति यूसुफ का प्रेम कितना महान और शक्तिशाली था। उसके जीवन को नष्ट करने के लिए उन्होंने अपनी शक्ति का उपयोग करने की कोशिश की थी, लेकिन परमेश्वर की शक्ति उसकी पवित्र वाचा के परिवार में अंतिम जीत थी। यूसुफ का प्रेम और क्षमा परमेश्वर की छवि एक मनुष्य के चेहरे पर झलक रही थी।

 

जहाँ शैतान के बीज, यानि शैतान के बच्चों ने हव्वा के बीज को नष्ट करना चाहा, वहीं परमेश्वर के बच्चे बहाली और दया की प्रतिनिधि कर रहे थे। कान, लेमेक, बाढ़ से पहले की पूरी मानव जाति, हाम, सदोम और अमोरा, और रूबेन, शिमोन, और लेवी के पाप, उन प्रदूशित हृदयों को दिखाते हैं जो परमेश्वर से दूर हैं।

 

हाबिल, सेठ, हनोक, नूह, शेम, इब्राहीम, हव्वा और याकूब और यहूदा के पछतावा परिवर्तन, और यूसुफ कि सिद्ध पवित्रता परमेश्वर कि महिमा को रौशन कर रहा है। दुनिया के स्वार्थी और हिंसक तरीकों के बजाय, वे परमेश्वर के पास विश्वास से आये। उनमें से प्रत्येक के माध्यम से, संसार आशीषित हुआ और परिवर्तित हो गया। उत्पत्ति कि पुस्तक अभी भी इस शापित दुनिया में चल रहे उस महान विभाजन के बारे में हमें सिखाती है। यह प्रत्येक व्यक्ति को इस प्रश्न के साथ छोड़ देता है की वे किस तरफ़ हैं। बीच में कोई जगह नहीं है।

यूसुफ अपने पिता के परिवार के साथ मिस्र में रहता रहा। यूसुफ एक सौ दस वर्ष तक जिया। जब यूसुफ मरने को हुआ, उसने अपने भाईयों से कहा, “मेरे मरने का समय आ गया। किन्तु मैं जानता हूँ कि परमेश्वर तुम लोगों की रक्षा करेगा। वह इस देश से तुम लोगों को बाहर ले जाएगा। परमेश्वर तुम लोगों को उस देश में ले जाएगा जिसे उसने इब्राहीम, इसहाक और याकूब को देने का वचन दिया था।” यूसुफ उन बातों के विषय में विश्वास से कहता था जिन्हें उसने अपनी आँखों से नहीं देखा था। लेकिन वह अपने पूर्वजों के साथ कब्र में दफ़न होने के लिए बहुत उतावला था! जब वादे के देश में जाने का समय आया तब उसने अपने भाइयों से प्रतिज्ञा ली कि वे उसकी हड्डियों को उनके साथ वापस लाएंगे। उन्होंने याकूब की तरह उसे भी शवलेप किया,और मिस्र में उसके शव को एक डिब्बे में रखा। 

 

परमेश्वर कि कहानी पर ध्यान करना। 

उत्पत्ति की पुस्तक का सबसे महान सबक यह है कि परमेश्वर आशीर्वाद देना चाहता था। उसने हमारे लिए यह  महान और भव्य ब्रह्मांड को बनाया। उसने हमें एक शानदार बगीचा दिया। और जब हम एक जाति के रूप में विफ़ल रहे और अभिशाप में अपने आप को डाल दिया, हमें फिर से आशीर्वाद देने के लिए उसने एक योजना को तैयार किया। उसने इब्राहीम के माध्यम से एक पवित्र राष्ट्र और याकूब के पुत्रों को ऊपर उठाया। परमेश्वर मानव इतिहास में एक भव्य स्तर पर काम कर रहा है। वह प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भी काम कर रहा है। यूसुफ के जीवन के समान वह हमारे जीवन के दिनों को देख  रहा है। क्या आपने उससे पुछा की आपके लिए उसकी क्या योजनाएं हैं? आप क्यों नहीं पूछते हैं? वह अपने उद्देश्यों के माध्यम से आपको किस तरह आशीर्वाद देना चाहता है उसके लिए उसे तलाशें। 

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार और स्वयं पर लागू करना।

वाह। यूसुफ ने अपने दासत्व को भी माना की वह परमेश्वर कि ओर से है, जिसका इरादा निरंतर आशीष देना है। यह एक लुभावना विश्वास है! यह यूसुफ को अपने लुभावनी क्षमा और दया को दिखाने के लिए शक्ति दे रहा था! अपने भाइयों के प्रति उसके कार्य उनके कार्यों के विपरीत थे। यूसुफ़ कान और लेमेक और हाम के विपरीत था। वह शैतान के बीज के विपरीत था। क्या आप देख सकते हैं की उत्पत्ति कि पुस्तक कैसे दोनों के बीच एक रेखा को खींच रही थी? परमेश्वर के सेवकों में से किसने अपने जीवन भर उसे सम्मानित किया? अपने पापों के कारण सेवकों में से किसे प्रमुख परिवर्तन से गुज़रना पड़ा? उन्हें परमेश्वर कि ओर से शक्तिशाली दया प्राप्त हुई। यदि परमेश्वर धैर्य और दया दिखाता है, तो हमें दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? हम कैसे यूसुफ की तरह हो सकते हैं?

 

अपने जीवित परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर। 

क्या आपके अभी के हालात दुख़दायी हैं? क्या ऐसे लोग हैं जिन्होंने आपके साथ बहुत ग़लत किया है? क्या पाप का कोई ऐसा रूप है जिसने आपको पकड़ रखा है? उत्पत्ति के हीरों की कहानियों से आपको महान आशा मिलनी चाहिए! आपके जीवन की कुछ बातें कहानी का अंत नहीं हैं! जो परमेश्वर का सम्मान करते हैं और वे जो उसे आग्रहपूर्वक खोजते हैं, उनके लिए महान आशीर्वाद है। यह एक खूबसूरत भजन है जो आपके विश्वास और आशा को उठाएगा, चाहे आपके साथ कुछ भी क्यूं ना हो रहा हो:

 

भजन संहिता 121

"मैं ऊपर पर्वतों को देखता हूँ।

किन्तु सचमुच मेरी सहायता कहाँ से आएगी
मुझको तो सहारा यहोवा से मिलेगा जो स्वर्ग
और धरती का बनाने वाला है।
परमेश्वर तुझको गिरने नहीं देगा।तेरा बचानेवाला कभी भी नहीं सोएगा।
इस्राएल का रक्षक कभी भी ऊँघता नहीं है।
यहोवा कभी सोता नहीं है।
यहोवा तेरा रक्षक है।
यहोवा अपनी महाशक्ति से तुझको बचाता है।
दिन के समय सूरज तुझे हानि नहीं पहुँचा सकता।
रात में चाँद तेरी हानि नहीं कर सकता।
यहोवा तुझे हर संकट से बचाएगा।
यहोवा तेरी आत्मा की रक्षा करेगा।
आते और जाते हुए यहोवा तेरी रक्षा करेगा।

यहोवा तेरी सदा सर्वदा रक्षा करेगा!"