पाठ 67 : यूसुफ के निवास्थान में
जब वे यूसुफ के घर पर पहुंचे तो वे उसके कोषाध्यक्ष के पास गए, जो पूरे घर का मुख्य सेवक था। वह यूसुफ के सुंदर और सुरुचिपूर्ण घर के बाहर खड़ा था। वे भयभीत होकर उसके पास गया और उसे सारा हाल बताया की कैसे उन्होंने रास्ते में अपनी बोरियों में चांदी पाई। उन्होंने ज़ोर दिया कि वे मिस्र के लोगों को देने जा रहे थे। उन्होंने समझाया किवे नहीं जानते की कैसे उनकी बोरियों में वह चांदी आई।उन्होंने कहा कि वे ना केवल उस चांदी को वापस लेकर आये, बल्कि और अनाज खरीदने के लिए वापस आए हैं।
यूसुफ के कोषाध्यक्ष को मालूम था की क्या हो रहा है। यूसुफ ने इस दिन के लिए विशेष तैयारी की थी।किन्तु सेवक ने उत्तर दिया, “डरो नहीं, मुझ पर विश्वास करो। तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने तुम लोगों के धन को तुम्हारी बोरियों में भेंट के रूप में रखा होगा। मुझे याद है कि तुम लोगों ने पिछली बार अन्न का मूल्य मुझे दे दिया था।”
जब वह कोषाध्यक्ष अपने प्रभु के बारे में बोल रहा था, तो क्या याकूब का परमेश्वर उसके लिए एक अजनबी के समान था? नहीं। ऐसा मालूम पड़ता है की यूसुफ का यह सेवक भी परमेश्वर का सेवक बन गया था।
जब युसूफ का सेवक उसके भाइयों को शांति के बोल कह चुका, तो वह शिमोन को वापस लाया। मिस्र में लौटने के बाद भाइयों ने बहुत साहस दिखाया। वे अपने भाई के क़ातिल के रूप में आये थे, लेकिन वे जल्द पुरस्कृत किये गए। कहां एक समय वे अपने भाई को बेचने के लिए एक जुट हो गए थे, और अब वे अपने परिवार और भाई को बचाने के लिए एक साथ थे।
आप सोच सकते हैं कि कैद से मुक्त होने के बाद शिमोन को कैसा लगा होगा? क्या आप सोच सकते हैं की अपने भाइयों को देख कर उसे कितनी राहत महसूस हुई होगी?
याकूब के पुत्रों को यूसुफ के घर में महान शिष्टाचार दिया गया। उनके पैरों को धोने के लिए उसके सेवक उनके लिए पानी लाये। उनके गधों कि भी देखभाल हुई।
यूसुफ का घर उन्हें कितना भव्य लग रहा होगा! उन्हें तम्बुओं में रहने की आदत हो गयी थी!
जब तक यूसुफ दोपहर को घर नहीं आया, उन्होंने याकूब के भेजे उपहारों को तैयार किया। उसने कमरे में जैसे ही प्रवेश किया, वे सब उस शक्तिशाली मनुष्य के सामने झुक कर प्रणाम किया। युसूफ के गेहूं के ढेरों का पहला स्वप्न सच हो गया था। वे सभी ग्यारह भाई उसके चरणों पर थे।
यूसुफ ने उनसे सबसे पहले उनकी सलामती के बारे में पूछा। उसका दूसरा सवाल उन्हें अजीब लगा होगा। यूसुफ ने कहा, “तुम लोगों का वृद्ध पिता जिसके बारे में तुम लोगों ने बताया, ठीक तो है? क्या वह अब तक जीवित है?” अपने प्रिय पिता से इतने सालों दूर रहने के दर्द को क्या आप महसूस कर सकते हैं?
उसने प्रत्येक भाई के चेहरे पर नज़र घुमाई, और उसकी आँखें बिन्यामीन के ऊपर आकर ठहर गईं।यूसुफ ने कहा, “क्या यह तुम लोगों का सबसे छोटा भाई है जिसके बारे में तुम ने बताया था?” तब यूसुफ ने बिन्यामीन से कहा, “परमेश्वर तुम पर कृपालु हो।” यूसुफ भावनाओं के कारण इतना अभिभूत हो गया कि वह कमरे से बाहर चला गया। इतने सालों की कैद और अलगाव के बाद, उनकी निकटता को देख उसके आँसू आगये। वह अपने कमरे में चला गया जहां वह रो सके। जब वह रो चुका, उसने अपने आप को संभाला और अपना चेहरा धोया। उसने अपने नौकरों को आदेश दिया कि उन्हें भोजन परोसा जाये।
कब तक यूसुफ रुकेगा अपने भाइयों को बताने के लिए की वह वास्तव में कौन था? उसे बेचने के लिए क्या वह उनसे अपना अंतिम बदला लेगा? क्या वह अपने पिता को अपने जीवित होने कि ख़बर देगा?
परमेश्वर कि कहानी पर ध्यान करना।
यह कितनी अद्भुत बात है जब परमेश्वर किसी मनुष्य के जीवन में काम करता है। यूसुफ कि इन कहानियों में परमेश्वर का उल्लेख नहीं है, लेकिन यह परमेश्वर की ही कहानी है। जब हम यूसुफ के कामों को देखते हैं, तो हमें यह समझना है की वह परमेश्वर के सिद्ध रूप को जी रहा है। यदि यूसुफ धर्मी है, तो परमेश्वर कैसा है? आप उसके बारे में जैसी विचारधारणा रखते हैं वह किस प्रकार प्रभावित करता है?
मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।
एक व्यक्ति के विषय में जानने के लिए कि वह भविष्य में क्या करेगा, उसके अतीत को समझना होगा की उसने कैसे काम किये होंगे। कभी कभी लोग यहूदा की तरह बदल जाते हैं। परमेश्वर पापियों के हृदय में परिवर्तन लाना चाहता है। परन्तु किसी के विषय में हम तभी अपेक्षा कर सकते हैं जब उसके जीवन के विषय में मालूम हो की वह किस प्रकार का व्यक्ति अपने अतीत में रहा है। यूसुफ अपने इन भाइयों के साथ क्या करेगा? अतीत में परमेश्वर के प्रति उसकी आज्ञाकारिता के आधार पर, आपको क्या लगता है कि वह करेगा?
यूसुफ ने अपने भाइयों को एक विशेष मौका दिया था। वे ईर्ष्या के भयानक रूप में थे। लेकिन इन कहानियों में, वह उन्हें अपने दिलों में बदलाव को दिखाने के लिए एक रास्ता दे रहा था। उनके अतीत को देखते हुए, उनकी असफलता और दोबारा पाप करने की उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। याकूब के लिए और बिन्यामीन और पूरे परिवार के प्रति चिंता करना इस बात का प्रतीक है की परमेश्वर का उनके दिलों में गहरे परिवर्तन का एक शक्तिशाली काम शुरू हो गया था।
हमारे जीवित परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर।
यीशु ने कहा,"धन्य हैं वे जो शोक करते हैं,
क्योंकि परमेश्वर उन्हें सांतवन देता है।"
यूसुफ के आँसू इतने सालों कि अस्वीकृति और भयंकर नुक्सान के कारण बहते जा रहे थे। अभिशाप उसके परिवार के पापों के कारण, उसके जीवन में भयानक युद्ध छेड़ रहा था। फिर भी पूरी घटना के दौरान, हम यूसुफ के कड़वाहट या क्रोध के विषय में नहीं सुनते हैं। उसने अपने दर्द को क्रोध या दिल कि कठोरता से नहीं ढाँपा। उसने अपने जीवन में पाप के दर्द का सामना किया और उस शोक को महसूस किया। उसने ईमानदारी से परमेश्वर को बताया कि उसे किस प्रकार यह भयानक बातें प्रभावित कर रही हैं, और परमेश्वर उसे सामर्थ और आशीषों से निरंतर भरता रहा जिससे किवह क्षमा और धार्मिकता में बढ़ता चला गया। पाप और मृत्यु के संसार में परमेश्वर के मुसाफिर होते हुए यह कितनी ख़ूबसूरत एक प्रक्रिया है। हमें अपने सारे घाव और कमज़ोरियों को उसके पास लाना चाहिए !
जिन दर्द और चोट के कारण आपने शोक किया है, क्या आप उनसे स्वंत्र हुए हैं? क्या आपने अपने उद्धारकर्ता के साथ अपने दर्द का शोक किया है? प्रभु यीशु ने वादा किया है कि वह आपको शांति देगा। उन कठिनाइयों के विषय में सोचिये।उनके बारे में हिम्मत के साथ उन सब बातों के लिए प्रार्थना कीजिये, और यीशु को आपके हृदय को नर्म करने की अनुमति दीजिये। इस के लिए अलग समय निर्धारित करें! यूसुफ के समान खुल कर विलाप कीजिये। प्रभु यीशु मसीह के प्रेम में होकर इन बातों के लिए मिलकर शोक मनाना और चंगाई पाना कितना सामर्थी है।