पाठ 65 : युसूफ का चतुर प्रेम

यूसुफ जब पहले अपने भाइयों से मिला था वे गुस्से में थे और क्रूर थे। जबकि उसने अपने जीवन के लिए उनसे भीख मांगी थी, फिर भी उन्होंने दूषित व्यापारियों के हाथ उसे बेच दिया था। अब जब वे मिस्र में उसके सामने खड़े थे, वे कनान की लंबी यात्रा के कारण गंदे और थक चुके थे। उसके खानाबदोश भाई उससे कितने भिन्न लग रहे थे। उसे क्या करना चाहिए? 

                 

उसके भाई उसे कभी नहीं पहचानेंगे। वह एक राजा के कपड़ों में था। उसने अपनी दाढ़ी मुंडा रखी थी और मिस्र कि तरह बाल कटवाए हुए थे। एक शक्तिशाली अधिकारी कि तरह उसमें आत्मविश्वास भी था। 

 

यूसुफ ने अपने भाइयों के सामने खुद को प्रकट नहीं करना चाहा। उसकी चुप्पी उन्हें धोखा देने या उन्हें आहत करने के लिए नहीं थी। धोखा देना अतीत में याकूब और उसके पुत्रों का तरीका था, लेकिन यूसुफ का दिल अलग था। वह बुद्धिमानी से देख रहा था यदि उसके भाई विश्वास के योग्य थे या नहीं। उनसे दोस्ती करने के लिए और आशीर्वाद देने के लिए वह अपनी पहचान को गुप्त रखे रहा। वह उनकी परीक्षण करने जा रहा था, लेकिन यूसुफ का परीक्षण करना प्यार का परीक्षण था। परमेश्वर ने यूसुफ को मिस्र को बचाने के लिए उसे एक योजना दी थी। अब उसके परिवार को चंगा करने के लिए उसके पास एक योजना थी। 

 

उसने उनके साथ क्रूरता से बात की। उसने कहा, “तुम लोग कहाँ से आए हो?” 

भाईयों ने उत्तर दिया, “हम कनान देश से आए हैं। हम लोग अन्न खरीदने आए हैं।”

 

यूसुफ ने उन सपनों को याद किया जिन्हें उसने अपने भाईयों के बारे में देखा था। सपने में, गेहूं की ग्यारह ढेरों ने उसके सामने दंडवत किया था। अब केवल दस भाई उसके सामने थे। केवल बिन्यामीन वहां नहीं था। सपना पूरा करने के लिए, उन्हें बिन्यामीन को मिस्र में लेकर आना था। तब यूसुफ ने उन्हें घर लौटने और बिन्यामीन को वापस लाने के लिए एक कहानी बनाई। सबसे पहले, उन पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। उसने कहा कि वे अपने परिवार के लिए अनाज पाने के लिए मिस्र में नहीं आये थे। उसने कहा “तुम लोग अन्न खरीदने नहीं आए हो। तुम लोग जासूस हो। तुम लोग यह पता लगाने आए हो कि हम कहाँ कमजोर हैं?”

 

उसके बेचारे भाई उलझन में पड़ गए। वे इस बात पर ज़ोर देते रहे की वे केवल अनाज खरीदने के लिए आये थे। उन्होंने समझाया कि वे अपने परिवार के लिए अनाज खरीदने आये थे ताकि वे भूखमरी से बच सकें और यह कि वे ईमानदार लोग थे। युसूफ उन पर झूठ बोलने का आरोप लगाता रहा और उन पर दबाव डालता रहा ताकि उसे अपने परिवार के बारे में और जानकारी मिल सके जिससे वह बेहद प्यार करता था। एक बार वे यह कबूल लें कि उनका एक छोटा भाई भी है, तो युसूफ उसे लाने के लिए कह सकता है। 

 

भाईयों ने कहा, “नहीं हम सभी भाई हैं। हमारे परिवार में बारह भाई हैं। हम सबका एक ही पिता हैं। हम लोगों का सबसे छोटा भाई अभी भी हमारे पिता के साथ घर पर है और दूसरा भाई बहुत समय पहले मर गया। हम लोग आपके सामने सेवक की तरह हैं। हम लोग कनान देश के हैं।”

यूसुफ उन पर झूठ बोलने का आरोप लगाता रहा। उसने उनसे कहा कि वह मिस्र में उन्हें बंदी बना कर रखेगा। केवल एक को जाने कि अनुमति दी जाएगी, और केवल इसलिए की वह सबसे छोटे भाई को वापस ला सके! यूसुफ बिन्यामीन को देखने के लिए बहुत बेताब था, जो उसकी प्यारी माँ, राहेल का दूसरे बेटा था। 

 

यूसुफ ने तीन दिनों के लिए अपने सभी भाइयों को जेल में डाल दिया। तीसरे दिन वह उन के पास गया और कहा कि उसका मन बदल गया है। उसने ऐसा इसीलिए कहा क्यूंकि उसे परमेश्वर का भय था, और वह जानता था की उन्हें अपने भूख से मर रहे परिवारों के लिए अनाज ले जाना है। उसने एक को छोड़ बाकि सभी को जाने की अनुमति दे दी। नौ भाई अनाज पहुंचा सकते थे। यह साबित करने के लिए कि वे जासूस नहीं हैं, उनमें से एक को कैद में रखा जब तक बाकि भाई वापस मिस्र में लौट नहीं आते। उन्हें यह चुनाव करना था कि कौन उनमें से पीछे रहेगा। 

 

जब वे दस भाई आपस में चर्चा कर रहे थे, वे निश्चित थे कि जो कुछ उन्होंने युसूफ के साथ किया था यह सब उसी के कारण हो रहा है। उनके पाप का अपराध बोध और शर्म उनके साथ अभी भी था। उन्होंने कहा, "'हम लोगों ने उसके कष्टों को देखा जिसमें वह था। उसने अपनी रक्षा के लिए हम लोगों से प्रार्थना की। किन्तु हम लोगों ने उसकी एक न सुनी। इसलिए हम लोग दुःखों में हैं।'"

 

याकूब के पुत्र जानते थे कि दुनिया एक शक्तिशाली परमेश्वर द्वारा चलाई जाती है। पाप और पाप की सज़ा को अलग नहीं किया जा सकता है। पाप के निष्पक्ष परिणाम के लिए वे परमेश्वर पर निर्भर कर सकते थे। वे जानते थे की उनका पाप उन पर आ रहा था। जो पाप उन्होंने युसूफ के विरुद्ध किया था उसकी सज़ा परमेश्वर इस मिस्र के अधिकारी के द्वारा दे रहा था। जिस समय वे इस जीवन और मृत्यु कि स्थिति का सामना कर रहे थे, उनके दिल थरथरा रहे थे। उनका पछतावा यह संकेत कर रहा था कि वे सही मायने में परमेश्वर के न्याय में विश्वास करने लगे थे। यह विश्वास और आशा की एक किरण थी। 

 

रूबेन गुस्से में था। उसने उनसे कहा, “मैंने तुमसे कहा था कि उस लड़के का कुछ भी बुरा न करो। लेकिन तुम लोगों ने मेरी एक न सुनी। इसलिए अब हम उसकी मृत्यु के लिए दण्डित हो रहे हैं।”

 

यह सब चर्चे यूसुफ के सामने चल रहे थे, लेकिन उन्हें नहीं लगा कि वह समझ सकता था। वे यहूदी भाषा में बात कर रहे थे, और उन्हें लगा कि वह मिस्र का है। वह उन से मिस्र कि भाषा में बात करता था। वे उसे समझ सकें इसके लिए उसने दुभाषिया का इस्तेमाल किया। 

 

जब वह अपने भाइयों को शर्मिंदा होकर बात करते सुन रहा था जो उन्होंने किया था, वह वहां से अलग हट कर रोने लगा। उस भयानक विश्वासघात और अस्वीकृति के तेरह साल के बाद उसने कितनी रिहाई पाई। उनका पछतावा भी उनके दिल के परिवर्तन के लिए दरवाजा खोल रहा था। परमेश्वर के परिवार का फिर से समान्य होना अधिक से अधिक संभव होता जा रहा था। 

 

जब यूसुफ का रोना समाप्त हुआ, वह उनके पास वापस आया। रूबेन उनमें सबसे बड़ा पुत्र था, और इसलिए यूसुफ को ग़ुलामी में बेचने की ज़िम्मेदारी उसके कन्धों पर आई। लेकिन जिस समय यूसुफ उनकी बातचीत सुन रहा था, तो पहली बार उसे यह पता चला कि रूबेन उसे बचाने के लिए अपने भाइयों के खिलाफ लड़ा था। शिमोन उसके बाद था। उसके पास अधिकार था और फिर भी यूसुफ के प्रति क्रूरता को रोकने के लिए उसने अपने छोटे भाइयों को रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया था। 

 

यूसुफ ने शिमोन को बंधवा कर उसे जेल में डाल दिया था। फिर वह बाकियों को वापस याकूब और उनके परिवारों में भेजने के लिए तैयार हुआ। उसने उनके गदहे पर अनाज की बोरियों को लदवा दिया। फिर उसने अपने नौकरों को आदेश दिया की जिस चांदी से वे अनाज खरीदने आये थे उसे वापस उनकी बोरियों में डाल दें। वह उन्हें फ़साने के लिए ऐसा कर रहा था। 

 

यूसुफ एक बार फिर अपने भाइयों का परीक्षण कर रहा था। क्या वे सही मायने में पछतावा करने वाले पुरुष थे? उनके अनियंत्रित ईर्ष्या के कारण उन्होंने अपने ही भाई को फेंक दिया था, और यह उनके लिए बहुत खतरनाक और नीच साबित हो रहा था। वे अब क्या अपने भाई शिमोन के प्रति वफ़ादार साबित होंगे, या फिर वे मिस्र के एक जेल में यूं ही उसे दुर्बल होने के लिए छोड़ देंगे? क्या वे नि: स्वार्थ वापस उसे लेने के लिए आएंगे चाहे उन पर अपराधियों के रूप में आरोप लगाया जाए? यूसुफ अपने भाइयों के भीतर उस परिवर्तन को देखने के लिए अपनी शक्ति का बुद्धिमानी से इस्तेमाल कर रहा था। 

 

परमेश्वर कि कहानी पर ध्यान करना।  

यह कितना उल्लेखनीय है की यूसुफ कि बुद्धि, जो एक जीवित परमेश्वर का सेवक है, पूरे क्षेत्र के सभी देशों के लोगों को बचाने के लिए इस्तेमाल किजा रही थी। यह मसीह कि अपनी मृत्यु और जी उठने की एक छोटी सी तस्वीर है। उनकी जय के द्वारा सारी पृथ्वी पर हर भाषा, देश, और जनजाति के लोगों के लिए मुक्ति पा ली गयी है। 

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।  

क्या अपने बेटों के प्रति याकूब का रवैया बदला है? क्या अभी भी वह पक्षपात कर रहा था? रूबेन और यहूदा ने उनके पिता की कमज़ोरी किप्रतिक्रिया कैसे की?

 

हमने पहले पढ़ा कि यूसुफ का जीवन यीशु के जीवन कि तरह कई मायनों में एक समान है। जिस प्रकार यहूदा ने बिन्यामीन कि खातिर अपनी जान को समर्पण किया, क्या यह आपको येशु के बारे में स्मरण दिलाता है? यहूदा किस प्रकार उस व्यक्ति से भिन्न था जिसने अपने परिवार को कनानियों के बीच रहने के लिए छोड़ दिया था? आप उसके परिवर्तन को कैसे देखते हैं?

 

हमारे जीवित परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर। 

आप परमेश्वर किआत्मा की मदद से अपने दिल को खोजने के लिए इस प्रार्थना को कर सकते हैं। जब आप प्रत्येक अंक को देखते हैं, एक पल के लिए रुक कर परमेश्वर कि वाणी को सुनने का अभ्यास करें। कभी कभी वे आपको बाइबिल की विशेष आयतों को याद दिलाएंगे। कभी कभी सही काम करने के लिए ये आपके मस्तिष्क में स्मरण दिलाएंगे। कभी कभी उन बातों को याद दिलाएंगे जो होने वाली हैं। प्रत्येक प्रश्न के बाद रुकें ताकि आत्मा आपका मार्गदर्शन कर सके।  

 

1. परमेश्वर मेरी मदद करें की मैं अपने जीवन में आपकी उपस्थिति को महसूस कर सकूँ और आपकी इच्छा को स्मरण रखूँ। मेरी मदद करें किमैं आपकी उपस्थिति को महसूस कर सकूँ।  

2. परमेश्वर मेरी मदद करें कि मैं अपनी पहचान और उद्देश्य के लिए आप पर भरोसा करने के मतलब को समझ सकूँ। मुझे दिखाएँ कि आपसे अलग हो कर मेरी पहचान क्या हो सकती है। आपकी सुरक्षा और सच्चाई के आलावा सुरक्षित महसूस करने के लिए मुझे किन अच्छी परिस्थितियों किआवश्यकता है?  

3. हे प्रभु, मुझे दिखाएँ कि मेरे हृदय में क्या चल रहा है। मेरी मदद करें कि मैं आपके साथ अपने विचारों को लेकर सच्चा बना रहूँ। 

4. प्रभु यीशु, मेरी मदद करेंकिमैं समझ सकूँ कि आप मेरे जीवन में क्या कर रहे हैं, और सहयोग देने के लिए मेरी मदद करें। जो बातें कल हुईं या पिछले सप्ताह में हुईं हैं उनसे आपकी मर्ज़ी को अपने जीवन में समझने के लिए स्पष्ट करें।