पाठ 61 : यूसुफ और पोतीपर की पत्नी

यूसुफ पोतीपर के घर में एक दास के रूप में मिस्र में रह रहा था। बाइबिल बताती है कि परमेश्वर युसूफ के साथ था, जिसका मतलब है की यूसुफ को आशीर्वाद देने के लिए वह उसके साथ था। चाहे वह एक ग़ुलाम था और वादे के देश से बहुत दूर था, परमेश्वर कि सुरक्षा और देखभाल उसके लिए नहीं बदला था। यूसुफ जो कुछ भी करता था वह उसमें क़ामयाब होता था। परमेश्वर उसकी सभी परिस्थितियों में कार्य कर रहा था। 

 

यह याद रखें की, हमें युसूफ के जीवन को यहूदा के जीवन के विपरीत देखना है, जिसने कनानी स्त्रियों से विवाह किया था। वह जानबूझकर परमेश्वर और अपने लोगों से दूर चला गया! यहूदा के लिए यह कैसे काम हुआ? क्या उसके जीवन से ऐसा लगता था की परमेश्वर की कृपा और अच्छाई उसके साथ थी?क्या आपको याद है कि किस प्रकार परमेश्वर ने उसके दोनों बेटों के जीवन को घटा दिया था ताकि उनके द्वारा और पाप ना हो सके?

इस बीच, पोतीपर समय के साथ यूसुफ पर नज़र रखे हुए था। ऐसा लगता था की यूसुफ का परमेश्वर अपने गुलाम को विशेष आशीर्वाद दे रहा था, और यह मिस्र के शासक के लिए एक महान गवाह था। यूसुफ सम्माननीय था और बहुत परिश्रमी था। 

 

पोतीपर उसके अन्य नौकरों से अधिक यूसुफ के पक्ष में था।उसने युसूफ को अपना व्यक्तिगत सेवक निर्धारित किया।परमेश्वर कौशल और क्षमता के साथ यूसुफ को आशीर्वाद दे रहे थे। सो पोतीपर ने और अधिक यूसुफ पर भरोसा करना सीखा। उसने युसूफ को अपने पूरे परिवार का प्रभारी बना दिया। युसूफ को पोतीपर की संपत्ति में सब चीज़ों की देखभाल करनी थी। पोतीपर को यूसुफ की वफादारी पर पूरा विश्वास था बस उसे उसके रोज़ के खाने कि चिंता। परमेश्वर यूसुफ को आशीर्वाद देते रहे, और पोतीपर के घर में सब कुछ उसकी देखरेख में समृद्ध हो रहा था। 

 

 यूसुफ बहुत ही खूबसूरत बन गया। पोतीपर कि पत्नी ने उस ख़ूबसूरत दिखने वाले ग़ुलाम को देखा जिस पर उसके पति को पूरी तरह से भरोसा था। वह युसूफ के ऊपर इस प्रकार हावी होने लगी जिस प्रकार केवल एक पति अपनी पत्नी के साथ हो सकता है। वह अपने पति के स्वयं के दास के साथ उसके पति को धोखा देने की कोशिश कर रही थी! यह कितना अपमानजनक और घिनौना था! अपने पति के लिए सम्मान और आदर कहां था? उसकी गरिमा कहां थी? 

 

यूसुफ एक बहुत धर्मी व्यक्ति था। उसने मना कर दिया। दिन प्रति दिन, वह महिला यूसुफ के पीछे पड़ी रही, लेकिन यूसुफ ताक़तवर था। उसने कहा, “मेरा मालिक घर कि अपनी हर चीज़ के लिए मुझ पर विश्वास करता है। उसने यहाँ की हर एक चीज़ की ज़िम्मेदारी मुझे दी है। मेरे मालिक ने अपने घर में मुझे लगभग अपने बराबर मान दिया है। किन्तु मुझे उसकी पत्नी के साथ नहीं सोना चाहिए। यह अनुचित है। यह परमेश्वर के विरुद्ध पाप है।” युसूफ ने पूरे घराने के आदर और विशेषाधिकार को समझा। उसके परमेश्वर ने यह उसे प्रदान किया था, और वह अपने सच्चे स्वामी का अनादर नहीं करना चाहता था। यह पोतीपर के खिलाफ एक भयानक पाप होगा, और यूसुफ दोनों के प्रति वफ़ादार था। 

 

एक दिन, यूसुफ अपना काम करने घर में गया। घर में और कोई नौकर नहीं था। पोतीपर की पत्नी उसके पास आई और उसके बरसती को पकड़ा। उसने उससे उस चीज़ कि मांग की जो उसे चाहिए था। एक बार फिर, माननीय यूसुफ ने इन्कार कर दिया और उस भयानक प्रलोभिका के पास से भाग गया। किन्तु यूसुफ घर से बाहर भाग गया और उसने अपना अंगरखा उसके हाथ में छोड़ दिया। अपने क्रोध और अस्वीकृति में उसने सब कर्मचारियों को बुलाया और उस पर हमला करने के लिए यूसुफ पर आरोप लगाया। उसने कहा कि वह चिल्लाई जिससे वह भाग गया। जब तक पोतीपर घर नहीं आया, वह उसकी बरसती को लेकर बैठी रही। उसने अपने पति को झूठ दोहराया, और वह गुस्से में हो गया। 

 

बाइबिल इस बात को स्पष्ट नहीं करती है कि पोतीपर किसके के साथ गुस्से में था। सबूत यूसुफ के खिलाफ था, इसलिए वह दंडित किया गया। पोतीपर ने युसूफ को उस क़ैद में डाला जहां राजा के कैदियों को रखा गया था। फिर भी ऐसे अपराध के लिए मृत्यु ही दी जाती थी, और पोतीपर एक शक्तिशाली व्यक्ति था। वह युसूफ को मरवा सकता था। शायद दया दिखाने के कारण उसने युसूफ को एक अधिनियम के रूप में राजा के जेल में डाल दिया। शायद पोतीपर अपनी पत्नी के मनहूस चरित्र को समझ गया था और पूरी सजा से यूसुफ को संरक्षित किया! लेकिन फिर भी, यह एक भयानक अन्याय था। जेल यूसुफ के लिए नहीं था। वहाँ उसके साथ क्या होगा? क्या वह क़ैद में शिथिल हो जाएगा? क्या वह हमेशा के लिए वहां होगा? 

 

यूसुफ जब जेल में था, परमेश्वर अपने सेवक को उसकी दया दिखाते रहे। जेल किप्रबंधक के साथ उसका पक्ष करते रहे। प्रबंधक ने युसूफ को अन्य सभी कैदियों का प्रभारी बना दिया। परमेश्वर ने यूसुफ को हर प्रकार से इतनी आशीष दी, कि उसके सभी काम पूरी तरह से उत्कृष्ट होते थे। पोतीपर कि तरह, प्रबंधक को भी यूसुफ के होते हुए किसी बात की चिंता नहीं करनी पड़ती थी। 

 

एक बार फिर, पापी लोगों के हाथों यूसुफ के साथ एक भयंकर बात हुई। यूसुफ बिलकुल दीन और अकेला था। लेकिन एक बार फिर परमेश्वर ने चारों ओर सब कुछ बदल दिया और उसे ऊपर उठाया। परमेश्वर यूसुफ के साथ थे, लेकिन यूसुफ को इन सभी कठोर असफलताओं के विरुद्ध में महान विश्वास रखना था। जीवन किमहान जोखिम में, यूसुफ को परमेश्वर के उच्चतम देखभाल में विश्वास करना था। वह यह मानता था की परमेश्वर इतिहास के प्रभारी थे। वह यह मानता था कि परमेश्वर उसके जीवन का मार्गदर्शक हैं और उसके जीवन की रखवाली करेंगे। उत्कृष्टता के साथ सेवा करने के लिए वह और मज़बूत होगया। अपने विनम्र आज्ञाकारिता में, यूसुफ एक ताकतवर नेता के शक्तिशाली आंतरिक गुणों में बढ़ रहा था! 

 

युसूफ के कई सैकड़ों सालों के बाद, उसके विश्वास की सामर्थ पर एक सुंदर कविता लिखी गई। यह सबसे फेल भजन है। वहां ऐसा लिखा है; 

 

भजन संहिता 1 

सचमुच वह जन धन्य होगा
यदि वह दुष्टों की सलाह को न मानें,
और यदि वह किसी पापी के जैसा जीवन न जीए
और यदि वह उन लोगों की संगति न करे जो परमेश्वर की राह पर नहीं चलते।
वह नेक मनुष्य है जो यहोवा के उपदेशों से प्रीति रखता है।
वह तो रात दिन उन उपदेशों का मनन करता है।
इससे वह मनुष्य उस वृक्ष जैसा सुदृढ़ बनता है
जिसको जलधार के किनारे रोपा गया है।
वह उस वृक्ष समान है, जो उचित समय में फलता
और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं।
वह जो भी करता है सफल ही होता है। 

किन्तु दुष्ट जन ऐसे नहीं होते।

दुष्ट जन उस भूसे के समान होते हैं जिन्हें पवन का झोका उड़ा ले जाता है।

इसलिए दुष्ट जन न्याय का सामना नहीं कर पायेंगे।

सज्जनों की सभा में वे दोषी ठहरेंगे और उन पापियों को छोड़ा नहीं जायेगा।
ऐसा भला क्यों होगा? क्योंकि यहोवा सज्जनों की रक्षा करता है

और वह दुर्जनों का विनाश करता है। 

 

परमेश्वर कि कहानी पर ध्यान करना।  

यूसुफ एक उल्लेखनीय व्यक्ति है। सेवा करने के लिए उसने अपने जीवनकिभयानक स्थितियों को उसे किसी भी पर्कार से रोकने कि अनुमति नहीं दी। उसने यह कैसे किया? उसने क्लेश और द्वेष से अपने को कैसे मुक्त किया? इस प्रकार की प्रभावी सेवा के साथ सेवा करने के लिए उसे कहाँ से ताकत मिली? यूसुफ परमेश्वर के साथ अपनी स्थिति के बारे में सुनिश्चित था! परमेश्वर भी बुरी स्थितियों में, उसे शक्ति और उद्देश्य देने आये, और यूसुफ ने अपने परमेश्वर की इच्छा को स्वेच्छा से माना! उसने डर के बजाय अपनी कड़ी मेहनत के साथ परमेश्वर की महिमा और आदर देने का फैसला किया! यह एक शानदार क्षमता है! 

 

क्या आप किसी ऐसे समय के बारे में सोच सकते हैं, जब डर के आगे अपने दे देना चाहते थे, लेकिन आप परमेश्वर पर विश्वास और साहस रखने का फैसला किया? क्या ऐसा समय आया जब आपने गलत व्यवहार होने के बावजूद सेवा करना उचित समझा? 

 

मेरी दुनिया, मेरे परिवार, और स्वयं पर लागू करना।  

परमेश्वर ने युशुफ को इतनी क्षमताओं और एक धर्मी दृष्टिकोण के साथ आशीर्वाद दिया की उसका जेल प्रबंधक भी उस पर पूरा विश्वास करने लगा। क्या यह एक अद्भुत बात नहीं है? सोचिये कैसे यूसुफ जब अपने उच्च परमेश्वर के बारे में प्रबंधक को बताता होगा तब वह कैसे उसे सुनता होगा? यूसुफ के जीवन से प्रभु को महिमा मिलती थी! क्या आप परमेश्वर की महिमा परिस्थितियों में रहकर दे सकते हैं जिसमें की उसने आपको डाला है? 

 

हमारे जीवित परमेश्वर के प्रति हमारा प्रत्युत्तर।  

यहाँ एक ख़ूबसूरत प्रार्थना जिसकी मदद से आप परमेश्वर के पास आ सकते हैं। इनमें कोई जादुई शब्द नहीं हैं। यह केवल एक नमूना है जो आपको दिखाएगा कि किस प्रकार आप अस्वीकृत होकर के भी यीशु के पास आ सकते हैं।  

 

"मेरे प्रिय प्रभु यीशु, 

मुझे जीवन देने के लिए मैं आपकी स्तुति करता हूँ। मैं धन्यवाद करता हूँ कि आपने मुझे अपनी छवि में बनाया है। मुझसे प्रेम करने के लिए और मेरे लिए एक योजना बनाने के लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूँ। धन्यवाद करता हूँ की मेरे पैदा होने से पहले से ही आपने मुझे संभाला है। मैं इस जीवन को स्वीकार करता हूँ जो आपने मुझे दिया है, और मैं अपने आप को आपकी योजनाओं के आगे समर्पित होता हूँ।  मेरे उद्धारकर्ता, मुझे अपनी पवित्र योजना के लिए इस्तेमाल कर। मुझे सम्मान और गरिमा के साथ आपकी छवि को सहन करने कि शक्ति दे। मैं दुष्ट के हर एक झूठ को अस्वीकार करता हूँ जो उसने मुझसे कराने की कोशिश की है। मैं हर उस धोखा देने वाली बातों को अस्वीकार करता हूँ जो मुझे बताती हैं की मेरा कोई मूल्य नहीं है। मैं इस बात को मानता हूँ की मैं पवित्र हूँ और सर्वशक्तिमान परमेश्वर, आपने मुझसे प्रेम किया है और मेरा मूल्य आपकी ओर से आया है। आपका धन्यवाद प्रभु। आमीन।"