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कहानी ४०: मसीह और पिता

तीनो सुसमाचारों में से यूहन्ना की किताब आखरी किताब थी। यूहन्ना प्रभु यीशु के चचेरे भाई और उनके तीन शिष्यों में से एक था। वही एक चेला था जो यीशु क्रूस तक गया। जब यीशु क्रूस पर चढ़े हुए थे, तब उन्होंने अपनी माँ मरियम, को यूहन्ना के हाथ में सौंप दिया था। यूहन्ना किताब के अंत में वह सुसमाचार लिखने का कारण बताता है।

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कहानी ४१: सुनो जो वो कहता है|

यीशु उन यहूदियों को अपने वचन सुनते रहे जो उसे मारने चाहते थे
“यदि मैं अपनी तरफ से साक्षी दूँ तो मेरी साक्षी सत्य नहीं है।

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कहानी ४२: हाथ जो चंगा हुआ

येरुशलम में यहूदियों के साथ अपने महान टकराव के बाद, यीशु अपने घर वापस गलील चेलों के साथ गया। एक दिन, यीशु और उसके चेले ग्रामीण इलाकों के अनाज क्षेत्रों से जा रहे थे।

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कहानी ४३ः भीड़ का आना

प्रभु यीशु फरीसियों के निकट जाने से पीछे हटते हैं, लेकिन भीड़ उनके पीछे हो लेती है।

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कहानी ४४: बारह चेलों का चुना जाना

यीशु चिकित्सा का और भीड़ को प्रचार करने का भारी मात्रा में कार्य कर रहे थे। गलील और यहूदिया से जो यहूदी लोग यीशु सेवकाई में शुरू से उसके पास, साथ अन्यजाति भी जुड़ गए जो मीलों दूर शहरों में। उन्होंने उसके विषय में सुना था जो चंगाई देता है, और वे गलील से यीशु को स्पर्श करने के लिए दूर दूर से आए थे।

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कहानी ४५ः पहाड़ी उपदेश: धन्य वचन

जितना कि यह पहाड़ी उपदेश पढ़ा और माना जाता है वैसे ही कुछ ही बाइबल के पद हैं जिनको इसी कि तरह माना जाता है। यह मत्ती की पुस्तक में पांच अध्याय से सात अध्याय के बीच में पाया जाता है। इसमे कुछ एक मनुष्य के हाथों लिखे सुंदर आदर्श शामिल हैं।

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कहानी ४६: पर्वत पर सन्देश : धन्यजन

यीशु ने पर्वत पर सन्देश दिया अपने लोगों को यह सीखने के लिए कि उनको परमेश्वर के राज्य के लिए कैसे जीना चाहिए। इस पाप से भरी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर कि सेवा करना आसान नहीं है! एक दिन, जो उस पर विश्वास करते हैं आसमान पर उठा लिए जाएंगे, जहाँ हम पाप के द्वारा फिर कभी लुभाय नहीं जाएंगे।

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कहानी ४७: परमेश्वर के राज्य में धन्य

आपको क्या लगता है कि मन के दीन हैं इसका क्या अर्थ है?
क्या इसका यह मतलब हुआ कि उनके पास धन नहीं है?

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कहानी ४८: पर्वत पर उपदेश: धन्यता 

यीशु लगातार यह समझा रहे हैं कि वे लोग जो इस पृथ्वी पर हैं उनमें स्वर्ग के राज्य के लिए धन्य कौन है। यीशु ने मन के दीन और वे जो शोकित होते हैं उनके धन्यता के बारे में समझाया इसके बाद, उन्होंने कहा: "धन्य हैं वे नम्र जो पृथ्वी पर राज करेंगे।

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कहानी ४९: पर्वत पर उपदेश: शुद्ध मन वालों के लिए आशीषें

यीशु जब उन लोगों के विषय में सिखा रहे थे जो स्वर्ग के राज्य में अशिक्षित होंगे उन्होंने एक और बात कही, "'धन्य हैं वे जो हृदय के शुद्ध हैं क्योंकि वे परमेश्वर के दर्शन करेंगे।'"

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कहानी ५१: पहाड़ी उपदेश: व्यवस्था के लिए सही आज्ञाकारिता

यीशु ने पहाड़ी उपदेश में धन्य वचन प्रचार किये। फिर उन्होंने सिखाया कि जो सुन्दर विनम्रता और निर्भरता उनके अशिक्षित किये हुए लोग दिखाएंगे वह नमक और प्रकाश की तरह होगा।

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कहानी ५२: पहाड़ी उपदेश : हत्या के प्रति राज्य कानून

यीशु ने पुराने नियम के कानून और भविष्यवाणियों को समय के अंत तक अटूट और सच्चा रहने के लिए घोषित कर दिया। अपने स्वयं जीवन में भी, यीशु ने पूर्णता में होकर अपने आसमानी बाप के आज्ञाकारी होते हुए इन को माना।

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कहानी ५३: पहाड़ी उपदेश: शादी पर राज्य के नियम

यीशु पहाड़ी उपदेश पर सिखा रहे थे। यह परमेश्वर के राज्य में एक सदस्य होने के मतलब पर एक भव्य पाठ था। यह उनके चाल चलन में दिखाई देगा। यीशु को अपने राज्य के सदस्यों से कहीं अधिक उत्तम और गहरे माप दंड की उपेक्षा थी - ऐसी जो दुनिया ने पहले कभी नहीं सुनी हो।

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कहानी ५४: पहाड़ी उपदेश: वादों के बारे में राज्य के नियम

परमेश्वर ने अपने सुनने वालों के साथ जो अगला राज्य आदर्श बांटा वो शपथ लेने के बारे में था।

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कहानी ५५: पहाड़ी उपदेश: न्याय के बारे में राज्य के नियम - भाग २

यीशु ने पहाड़ी उपदेश में फिर मूसा द्वारा व्यवस्थाविवरण की पुस्तक में दी गई व्यवस्था पर बात की। यह कहती थी: "एक आंख के बदले एक आंख, एक दाँत के बदले एक दाँत।"

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कहानी ५६: पहाड़ी उपदेश: तुम किसे प्यार करते हो?

जब यीशु ने पहाड़ी उपदेश पढ़ाया, तो उन्होंने छह प्रकार के तरीके बताये जिससे उनके समय के यहूदी नेता और पूरी यहूदी संस्कृति ने पुराने नियम के उच्च और पवित्र व्यवस्था को विकृत करके उसका दुरुपयोग किया।

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कहानी ५७: पहाड़ी उपदेश: तुम किसे प्यार करते हो? - भाग २

जैसे जैसे यीशु अपने भोंकते हुए, स्पष्ट उपदेश को दे रहे थे, वे प्यार के मतलब के बारे में बात करने लगे। उन्होंने बोला कि ऐसे किसी व्यक्ति को इनाम नहीं मिलना चाहिए जो उन लोगों को प्यार करे जो उसे वापस प्यार करें। यह आसान है! यहां तक ​​कि कर लेने वाले भी यही करते है!

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कहानी ५८: पहाड़ पर उपदेश: एक सच्चे दिल से परमेश्वर की सेवा करना

पहाड़ पर दिए उपदेश के पहले भाग में, यीशु ने उच्च और पवित्र नियम से सिखाया कि प्रेम ही सर्वोच्च लक्ष्य है। फिर उसने अपने चेलों उनको अमल करना सिखाया! स्वर्ग के राज्य के प्रेम को यीशु ने पहाड़ के उद्देश्य को शुद्ध और इंसानियत कि पवित्रता में दिखाया जो उसकी स्तुति करने में इच्छा रखता है।

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कहानी ५९: पहाड़ पर उपदेश: प्रार्थना में परमेश्वर का सम्मान

जब यीशु पहाड़ पर अपने उपदेश को सिखा रहे थे, वह कि परमेश्वर कैसे चाहता है कि प्रार्थना करनी चाहिए। उसने एक प्रार्थना सिखाई जो वे उसे एक नमूने के तौर पर उपयोग कर सकते थे। यीशु यह नहीं चाहते थे उसके चेले प्रार्थना को एक भजन कि तरह दोहराएं।

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कहानी ६०: पहाड़ पर उपदेश - प्रार्थना में परमेश्वर के सम्मान  भाग II

यीशु ने हमें प्रार्थना के लिए एक नमूना दे दिया। सबसे पहले हम स्तुति और आराधना में अपने पवित्र और सामर्थ परमेश्वर के पास आते हैं। फिर हम उसकी इच्छा जानने के लिए प्रार्थना करते हैं।

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