कहानी ४०: मसीह और पिता

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तीनो सुसमाचारों में से यूहन्ना की किताब आखरी किताब थी। यूहन्ना प्रभु यीशु के चचेरे भाई और उनके तीन शिष्यों में से एक था। वही एक चेला था जो यीशु के साथ क्रूस तक गया। जब यीशु क्रूस पर चढ़े हुए थे, तब उन्होंने अपनी माँ मरियम, को यूहन्ना के हाथ में सौंप दिया था। यूहन्ना किताब के अंत में वह सुसमाचार लिखने का कारण बताता है।"'और जो बातें यहाँ लिखी हैं, वे इसलिए हैं कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र, मसीह है। और इसलिये कि विश्वास करते हुए उसके नाम से तुम जीवन पाओ।'"(यूहन्ना २०ः३१)यूहन्ना प्रेरित यीशु के विषय में एक बहुत ही सामर्थ भरा, जो है कि वास्तव में यीशु कौन था। जिस समय यीशु ने यह सन्देश दिया तब वह यरूशलेम में था। यीशु ने तभी उस व्यक्ति को चंगा किया था जो तालाब के पास था। धार्मिक अग्वे बहुत नाराज़ थे क्यूंकि यीशु ने सबत के दिन उस व्यक्ति को अपने बिस्तर को उठा कर चलने को कहा था! फिर वे नाराज़ थे कि यीशु ने अपने आप को परमेश्वर का पुत्र कहा! वह अपने आप को परमेश्वर का पुत्र कह रहा था। वे इतने नाराज़ थे कि वे यीशु को मारने के लिए तरीके ढूंढ़ने लगे। लेकिन यीशु ने निडर होकर उनको जवाब दिया। उसने जो कहा उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। जैसे आप पढ़ते हैं यीशु के आखरी तीन वाक्यों को निकालिये ;

“मैं तुम्हें सच्चाई बताता हूँ, कि पुत्र स्वयं अपने आप कुछ नहीं कर सकता है। वह केवल वही करता है जो पिता को करते देखता है। पिता जो कुछ करता है पुत्र भी वैसे ही करता है। पिता पुत्र से प्रेम करता है और वह सब कुछ उसे दिखाता है, जो वह करता है। उन कामों से भी और बड़ी-बड़ी बातें वह उसे दिखायेगा। तब तुम सब आश्चर्य करोगे। जैसे पिता मृतकों को उठाकर उन्हें जीवन देता है, वैसे ही पुत्र भी जिन्हे वह चाहता है उन्हें जिलाता है। पिता किसी का भी न्याय नहीं करता किन्तु उसने न्याय करने का अधिकार बेटे को दे दिया है।  जिससे सभी लोग पुत्र का आदर वैसे ही करें जैसे वे पिता का करते हैं। जो व्यक्ति पुत्र का आदर नहीं करता वह उस पिता का भी आदर नहीं करता जिसने उसे भेजा है।'"

आप को यह समझ में आया? ये यहूदी केवल यीशु के विरुद्ध ही नहीं जा रहे थे। वे उस परमेश्वर के भी विरुद्ध जा रहे थे जिसने यह पूरी सृष्टि बनाई! यीशु पुरे साहस से यह बता रहे थे कि वे ही परमेश्वर हैं! आगे वह कहता है ;

“मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ जो मेरे वचन को सुनता है और उस पर विश्वास करता है जिसने मुझे भेजा है, वह अनन्त जीवन पाता है। न्याय का दण्ड उस पर नहीं पड़ेगा। इसके विपरीत वह मृत्यु से जीवन में प्रवेश पा जाता है।'"

कितना आश्चर्यजनक है, है कि नही? हमें केवल विश्वास करना है! यह इतना साधारण है! परन्तु यहूदी यही नहीं करना चाहते थे।तब यीशु ने कहा ;

"'मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ कि वह समय आने वाला है बल्कि आ ही चुका है-जब वे, जो मर चुके हैं, परमेश्वर के पुत्र का वचन सुनेंगे और जो उसे सुनेंगे वे जीवित हो जायेंगे क्योंकि जैसे पिता जीवन का स्रोत है। वैसे ही उसने अपने पुत्र को भी जीवन का स्रोत बनाया है। और उसने उसे न्याय करने का अधिकार दिया है। क्योंकि वह मनुष्य का पुत्र है।'"

इस पर आश्चर्य मत करो कि वह समय आ रहा है जब वे सब जो अपनी कब्रों में है, उसका वचन सुनेंगे और बाहर आ जायेंगे। जिन्होंने अच्छे काम किये हैं वे पुनरुत्थान पर जीवन पाएँगे पर जिन्होंने बुरे काम किये हैं उन्हें पुनरुत्थान पर दण्ड दिया जायेगा।

मैं स्वयं अपने आपसे कुछ नहीं कर सकता। मैं परमेश्वर से जो सुनता हूँ उसी के आधार पर न्याय करता हूँ और मेरा न्याय उचित है क्योंकि मैं अपनी इच्छा से कुछ नहीं करता बल्कि उसकी इच्छा से करता हूँ जिसने मुझे भेजा है।"'