कहानी ५३: पहाड़ी उपदेश: शादी पर राज्य के नियम
यीशु पहाड़ी उपदेश पर सिखा रहे थे। यह परमेश्वर के राज्य में एक सदस्य होने के मतलब पर एक भव्य पाठ था। यह उनके चाल चलन में दिखाई देगा। यीशु को अपने राज्य के सदस्यों से कहीं अधिक उत्तम और गहरे माप दंड की उपेक्षा थी - ऐसी जो दुनिया ने पहले कभी नहीं सुनी हो। उनके पास एक ऐसा प्रेम और सेवा भाव होगा जो बाकि की मानव दुनिया पूरी तरह से नहीं समझ पाएगी। यह दुनिया में सबसे अधिक योग्य और उच्च है क्यूंकि यह स्वर्गीय है।मसीह के माध्यम से, उनके बाहरी व्यवहार में बदलाव आएगा, और उनके भीतरी दिल के विचार और व्यवहार में भी! यह पर्याप्त नहीं है कि हम हत्या नहीं करें! मसीह के अनुयायियों को अपने द्वेष, घृणा और निंदा से भी छुटकारा पाना है! जब परमेश्वर की विधि इस दुनिया में पूर्ण विश्वासयोग्यता से जी जाती है, उसकी भिन्नता इतनी उज्ज्वल है और आश्चर्यजनक होती है कि वो परमेश्वर की अच्छाई की साक्षी देती है!
दूसरी बात जिस पर यीशु ने उपदेश दिया वो था इस्त्री - पुरुष सम्बन्ध की पवित्रता पर। परमेश्वर ने आदमी और औरत को शादी के लिए बनाया, ताकि उनका एक बहुत ही खास, अद्भुत मिलन हो सके। वे एक आत्मा बन जाते हैं! उनका एक दूसरे के लिए प्यार हर तरह से व्यक्त होता है। वे अपने को भावनात्मक, आत्मिक और शारीरिक रूप से एक दूसरे को देते हैं। यह ऐसा शारीरिक मिलन है जो वो किसी के साथ पा नहीं सकते है। और कमाल की बात यह है कि यह शारीरिक मिलन इस दुनिया में नई आत्माए लाती है। एक पति और पत्नी के बीच प्यार की शारीरिक अभिव्यक्ति बहुत शक्तिशाली है, और परमेश्वर का यह इरादा था कि यह एक पवित्र, रचनात्मक क्रिया हो जो प्रत्येक जोड़े के बीच विशेष और अद्वितीय हो! यह परमेश्वर की ओर से एक शानदार उपहार है!
केवल समस्या है - क्यूंकि यह बहुत शक्तिशाली और खुशी और चाहत से भरी है, पुरुष और महिलाए अक्सर पापी और स्वार्थी तरीकों से इसका दुरुपयोग करते है। वे उसका दुरूपयोग करते है जो विशिष्ट रूप से अकेले विवाह के लिए है और अपने को शारीरिक रूप से उनको दे देते है जिसके वो है नहीं। यह एक बहुत ही गंभीर पाप है। इसे व्यभिचार कहा जाता है, और परमेश्वर इसे सातवीं आज्ञा में स्पष्ट रूप से और कड़ाई से इसकी निंदा करतें है। उन्होंने कहा, "तू व्यभिचार न करना".
पर,परमेश्वर की इच्छा अपने बच्चों के विवाहों में यह है कि उनके पास एक ऐसी पवित्रता हो जो उनके मन और दिल के गहरे स्थानों तक चली जाए। तो फिर जब यीशु ने इस व्यवस्था को समझने का सही तरीका समझाया, तो उसन कहा"'... मैं तुम्हें बताता हूँ कि जो कोई एक औरत को बुरी दृष्टि से देखता है, तो उसने अपने दिल में उसके साथ व्यभिचार किया है ". बाप रे।
यह एक बहुत ही उच्च, चरम माप दंड है। सिर्फ परमेश्वर खुद जान सकते है कि कौन इस बात का अनुशरण कर रहा है। पर यीशु इस बात के लिए बहुत गंभीर थे। उसने अपने सुनने वालों को कहा कि अगर उनकी आँख उनको वासना में गिरने का कारण होती है, तो उन्हें अपनी आँख को काट कर फेक देना चाहिए! अगर उनके हाथ उनको पाप करने का कारण हो रहे है, तो उन्हें इसे काट देना चाहिए! क्या आपको लगता है कि यीशु वास्तव में चाहते थे कि वे अपने शरीर को नुकसान पहुंचाए? या फिर आपको यह लगता है कि वह इस परमेश्वर की दृष्टि में इस आज्ञा की महत्वपूर्णता और गंभीरता की ओर संकेत कर रहे थे? परमेश्वर वासना के पाप को बंद करने के लिए चरम उदाहरण का उपयोग कर रहे थे क्यूंकि वो जानते थे कि यह मानवता के दिल में कितनी गहरा और शक्तिशाली लहर है। यीशु जानते थे कि पुरुषों को शुद्ध रहने के लिए कितनी जी तोड़ मेहनत करनी होगी।
पाप का यह क्षेत्र इतना शक्तिशाली है कि इसे काटना होगा। यह एक पापी को परमेश्वर से इतना दूर घसीट लेगी कि से वे उसे नर्क के खतरे में डाल देगी। पाप न खेलने की और न लिप्त होने की वास्तु है। उसको ध्वस्त करके, रौंद कर पूरी तरह से बाहर फेकना है। परिणाम आश्चर्यजनक है। जब धर्मी लोग सम्मानजनक, मर्यादित आत्म नियंत्रण और संयम में खड़े होते हैं, तो कल्पना कीजिये कि वे अपने चरों ओर की दुनिया को कैसे बदल सकते है!
एक अच्छे आदमी में यह धार्मिकता एक उज्ज्वल प्रकाश है! वे अपने आसपास के सभी लोगों की सुरक्षा और पवित्रता बनाए रखते है! महिलाओं और लड़कियों को मसीह की सामर्थ अपने अगुए और मसीही भाइयों में देखकर कितना सुरक्षित लगेगा! वे युवा पुरुषों के लिए जो अपने इच्छाओं को नियंत्रित करना सीख रहे है - उनके लिए एक आशा का कितना बड़ा नमूना हैं! और उनके उदाहरण उनके इर्द गिर्द के पुरुषों के लिए कितना शक्तिशाली है जो वासना में गिर रहे है और अपने पापी स्वभाव से नियंत्रित हो रहे है!
नमक की तरह, धर्मी, शुद्ध पुरुष, पुरुषों और महिलाओं के बीच एक स्वस्थ, सिद्ध रिश्ते का स्वाद जगाते है। और जैसे नमक परिरक्षित करता है, ठीक उसी तरह धर्मी पुरुष उस अच्छाई को बरकरार रखते है जो वस्सना - ग्रसित पुरुषों में घिस कर खो गई है। वह पुरुष जो अपनी वासना को उनके समुदायों की महिलाओं को मजबूत सुरक्षा देने के लिए उनकी क्षमता को विकृत और नष्ट करने की अनुमति देते हैं, वो मनुष्य परमेश्वर के राज्य के मानक का उल्लंघन कर रहे हैं, और प्रभु यह सब देखता है।
लेकिन पुरुष इसमें अकेले नहीं हैं, महिलाओं को भी पवित्रता के लिए प्रयास करना चाहिए। वे पुरुषों की पवित्रता की रक्षा करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे अपने पोशाक और शुद्ध व्यवहार से पुरुषों की प्रलोभन से रक्षा में मदद कर सकती है।
यीशु के प्रचार का अगला विषय तलाक था। यीशु ने समझाया:
" यह कहा गया है, 'जो कोई अपनी पत्नी को त्यागता है, उसे अपनी पत्नी को तालाक का एक प्रमाण पत्र देना होगा' "
धार्मिक नेताओं ने अपने देश के लिए यह मानक रखा था। पुराने नियम में, परमेश्वर ने पतियों को तलाक की अनुमति दी थी, लेकिन उन्हें अपनी पत्नी में अशुद्धता का कोई प्रमाण देना था। यीशु के समय तक, धार्मिक नेताओं ने कुछ भी 'अशुद्ध' करार करने की अनुमति दे दी। उनमें से एक यह सिखाता था कि एक आदमी अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है अगर उसकी पत्नी ने गलती से खाना जला दिया! एक अन्य धार्मिक नेता ने यह सिखाया कि एक आदमी अपनी पत्नी को तलाक दे सकता था अगर उसे कोई अन्य, सुंदर महिला मिल जाए! उसे सिर्फ एक कागज के टुकड़े पर तालाक का बिल लिखना था। वो यह घोषित करता था यह शादी खत्म हो चुकी थी और पत्नी किसी और से शादी कर सकती थी।
प्यार का यह कितना सस्ता और स्वार्थी उदहारण था! क्या आप देख सकते है कि उनका शिक्षण कितना विकृत हो गया था? वे व्यर्थ के चीजों पर उच्च मानक रखते - जैसी की सबथ- जिससे उनका लोगों पर नियंत्रण हो जाए। लेकिन वे और पवित्र विधियां - जैसे परमेश्वर की विवाह के लिए पवित्र योजना - को कायम रखने में असमर्थ थे। इस प्रकार से उन्होंने पूर्ण रूप से प्यार के परमेश्वर का अपमान किया। यीशु की अपने बच्चों के लिए एक बहुत अधिक उम्मीद थी। उन्होंने कहा:
'' लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ, व्यभिचार को छोड़कर, अगर तुम अपनी पत्नी को तालाक देते हो, यह उसका एक व्यभिचारिणी होने का कारण ठहराती है, और जो कोई एक तलाकशुदा महिला से शादी करता है, व्यभिचार करता है. '"
वाह, यह एक बहुत ही उच्च माप दंड है, है नहीं? परमेश्वर वास्तव में चाहते है कि विवाह जीवनकाल का हो। यह दिल की कुल वाचंबधता की बात है, चाहे कुछ भी हो। परमेश्वर तालाक से घृणा करता है (मलाकी २ः१६)
परमेश्वर ने कहा कि तालाक करने का एकलौता, सही कारण है अगर पति या पत्नी ने व्यभिचार किया हो। इसमें एक समस्या है - एक बार एक जोड़ा तालाकशुदा हो जाए, उसे फिर से शादी करने का प्रलोभन होगा। जो उनको केवल एक जीवित व्यक्ति के साथ बांटना था, अब वह किसी अन्य व्यक्ति को दे देंगे । यह व्यभिचार करने का एक और तरीका है!
परमेश्वर के प्रति हमारे समर्पित आज्ञाकारिता से, हम निर्णय लेते है कि हम एक कैसी दुनिया का निर्माण करने जा रहे है। क्या हम ऐसी दुनिया बनाएंगे जहाँ प्यार कमजोर, भंगुर, और स्वार्थीपन में अपनी इच्छाओं की पूर्ती में लगा हो - वहां जहां जब हालात कठिन हो जाए तो हम छोड़ने के लिए तैयार हो जाए? या फिर क्या मसीह के अनुयायी उससे सशक्त हो कर एक ऐसी दुनिया का निर्माण करे जहाँ प्यार शक्तिशाली, मजबूत और अटूट है?
यीशु परम बलिदान में अपने प्यार को उंडेलने आया था। यह वह प्रकार का प्यार है जो विवाह की वाचा वादा करने के लिए रची गई। यह प्रतिबद्धता ही वही प्रकार का प्यार है जो स्वर्ग के राज्य के योग्य है। जैसे जैसे यीशु के शिष्य अपने विवाह में इस समर्पित प्यार को दर्शाएंगे, यह निश्चित है कि यह चरम अच्छाई बाकी दुनिया के लिए नमक की तरह होगी । कौन इस बात को नहीं समझता है की आजीवन प्यार शुद्ध और सच है? परमेश्वर के राज्य की आज्ञाकारी प्रजा, हर समुदाय में विवाह की उज्ज्वल आशा को उन्नत करने के लिए बनी थी।