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पाठ 69 पौलुस के सन्देश का परिणाम और अंतिम समय

पौलुस और सीलास रात को चित्रालुनीके से बिरीया शहर को गए। यह बहुत लम्बी पैदल यात्रा थी। उनके मस्तिष्क में कितने विचार आ रहे होंगे। वे शिष्य जिनमें से प्रेम करते थे और जिन्हें पीछे छोड़ दिया था, वह कोशित भीड, जल्दी से बच निकलना, यह सब । वे यहूदी जिन्होंने उथल-पुथल मचाई थी उनके द्वारा संसार में मसीहा आने वाला था!

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पाठ 70 बिरीया के माननीय लोग

पौलुस और सीलास मार्ग से होते हुए बिरीया नामक एक शहर में पहुंचे। जब वे वहां पहुंचे, तो वे यहूदी आराधनालय में गए। क्या वे बहादुर नहीं हैं? लगभग हर शहर में, वे पहले आराधनालय में गए, लेकिन लगभग हर बार यहूदी उनके लिए परेशानी पैदा कर देते थे! फिर भी, जहाँ भी वे गए, कुछ यहूदी यीशु को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में जान जाते थे थिस्सलुनीके के लोगों की तुलना में विरीया के लोग अपने चरित्र में अधिक सम्मानजनक और महान थे।

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पाठ 71 अज्ञात परमेश्वर का प्रकट होना।

पौलुस अपने मित्रों के लिए एथेंस में प्रतीक्षा कर रहा था। एथेंस पौलुस के समय में भी एक महान, प्राचीन शहर था। जब पौलुस एथेंस की जीवन शैली को देखकर बहुत परेशान हुआ सब जगह मूर्तियाँ थीं! उसे आराधनालय में जाकर यहूदियों को बताना होगा कि उनका मसीहा आ गया था।

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पाठ 72 पौलुस का कुरिन्युस में लम्बा ठहरना

पौलुस एथेंस में नए विश्वासियों को छोड़ कर कुरिन्थुस नामक शहर में चला गया। उस शहर में विभिन्न देवताओं के नाम कम से कम बारह मंदिर थे। यह एक ऐसा शहर था जहां गंदी अनैतिकता एक सामान्य बात थी और पूरे यूनान में "कुरिन्थुस" शब्द के दो अर्थ जाने जाते थे। इस शहर में सब कुछ बहुत बुरा (एनआईवीएसटी 1774 ) होता था।

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पाठ 73 सीरिया को जाना

सीरिया जाने के डेढ़ साल पहले पौलुस कुरिन्दुस में रहता था। उसके प्रिय मित्र प्रिस्किल्ला और अक्किला उसके साथ गए। जब वे किंखिया नामक एक शहर में थे, पौलुस ने शपथ अनुसार सिर मुंडाया।

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पाठ 74 इफिसुस को जाने वाला मार्ग

जब प्रिस्किल्ला और अकिला अभी भी कुरिन्युस में अपुल्लोस की सेवा कर रहे थे, तब पौलुस सारे प्रदेश से होकर समुद्र से दूर के क्षेत्र में लम्बी यात्रा पर था। वह इफिस के रास्ते जा रहा था, लेकिन यह पहले की तुलना में एक अलग मार्ग था। इस मार्ग पर जाने से वह कुछ पुरुषों के एक समूह से मिला जिन्होंने कहा कि वे शिष्य थे।

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पाठ 75 कुरिन्थियों के नाम पत्री

जब पौलुस इफिसुस में था, उसने जाना कि कुरिन्थुस की कलीसिया में समस्याएं थीं। उसके लिए उनसे मिलना असंभव था, जिस प्रकार कुरिन्दुस में रहते हुए वह थिस्सलुनीकियों की यात्रा नहीं कर सका। इसलिए जिस प्रकार उसने थिस्सलुनीकियों को पत्र लिखे थे वैसे ही उसने उन्हें भी पत्र लिखे ।

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पाठ 76 कुरिन्थियों के नाम पत्रियाँ

कुरिन्युस की कलीसिया उसी भ्रष्ट, दुष्ट तरीके से पेश आ रही थी जिस प्रकार बाकी दुनिया करती थी। यीशु ने कहा कि सबसे बड़ी आज्ञा परमेश्वर से अपने सारे मन, आत्मा, और बल से प्रेम करना है। उसने कहा कि एक दूसरे से प्रेम करना दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा दी।

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पाठ 77 स्किवा के सात पुत्र और जलते हुए सूचीपत्र

पौलुस इफिसुस में ढाई वर्ष तक रहा। यह संभवतः वर्ष 53 ईस्वी में सितंबर के महीने से 56 वर्ष के वसंत की शुरुआत का समय था। उसने पूरे क्षेत्र के पुरुषों को तुरन्नुस की पाठशाला में शिक्षा दी। वे दूर यात्रा करके उन तथ्यों को सुनने के लिए आते थे जो पौलुस उन्हें बताता था कि किस प्रकार यीशु का आना पुराने नियम की भविष्यवाणियों के अनुसार था।

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पाठ 78 इफिस में उपद्रव

लगभग उसी समय पौलुस ने जब तीमुथियुस और इरास्तुस को कुरिन्य भेजा ताकि वे उसकी प्रतीक्षा करें और यरूशलेम जाने की योजना बनायें, इफिसुस में कलीसिया के लिए बड़ी परेशानियां शुरू हो गयीं। इफिसुस एक बड़ा शहर था जिसमें रोम की अरतिमिस नाम की देवी के लिए एक विशाल मंदिर बनाया गया था। यह शहर का गौरव था।

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पाठ 79 तूफ़ान को शांत करना

"इफिसियों का अरतिमिस महान है।" इफिसुस के लोग उस महान रंगशाला में चिल्ला रहे थे वे यीशु मसीह के नाम के विरूद्ध विद्रोह में अपनी देवी अरतिमिस के नाम को ले रहे थे। जब इफिसुस के लोग मसीह पर विश्वास करने लगे तब अरतिमिस की मूर्तियों की बिक्री बहुत कम हो गई।

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पाठ 80 पौलुस और उसके मित्रों की आगे यात्रा

त्रोआस में जोखिम भरी शाम के बाद, पौलुस के साथी एक जहाज़ पर चढ़कर अस्सुस के लिए रवाना हुए। लूका उनके साथ था। वे वहां पौलुस से मिलने जा रहे थे, परन्तु वह वहां आप ही पैदल जाने वाला था। पौलुस असोस में नाव पर अपने मित्रों से जुड़ गया और वे लेस्बोस द्वीप पर स्थित मिलेस के बंदरगाह कि ओर गए।

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पाठ 81 सूर में पौलुस का समय

इफिस की कलीसिया के प्राचीनों को जो कुछ पौलुस के हृदय में था उन्हें बताने के बाद, उसने उनके साथ घुटने टेके और मिलकर प्रार्थना की। जब वे विदा हो रहे थे, वे गले लग कर बहुत रोये और चुंबन देकर विदा हुए। वे यह सुनकर बहुत दुखी थे कि वे अब कभी पौलुस को नहीं देख पाएंगे।

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पाठ 82 यरूशलेम को जाने वाला मार्ग

सूर से निकलकर शिष्य जलयात्रा करके पतुलिमयिस में उतरे। वहां कुछ विश्वासी भाई थे, और इसलिए वे वहां गए। क्या यह अद्भुत बात नहीं कि जहाँ कहीं भी यरूशलेम में पौलुस उतरता था वहां भेंट करने के लिए मसीही भाई और बहन होते थे? प्रेरितों की किताब की शुरुआत में लिखा है कि, दुनिया में एक सौ बीस विश्वासी थे।

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पाठ 83 यरूशलेम में मसीही प्राचीनों से पौलुस की भेंट

यरूशलेम में मसीही भाइयों ने पौलुस और लूका और अन्यों को प्रेम से मिले। दूसरे दिन पहुँचने के बाद, वे यीशु के भाई याकूब के पास गए, जो यरूशलेम की कलीसिया का मुखिया था। कलीसिया के प्राचीन भी वहां थे। यह एक विशेष समय होगा।

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पाठ 84 पौलुस और यरूशलेम के सनकी पुरुष

पौलुस ने अपने प्रिय मित्र लूका के साथ यरूशलेम की यात्रा की। पवित्र आत्मा ने उसे विभिन्न कलीसियाओं में उसके मित्रों के माध्यम से चेतावनी दी कि उसके पहुँचने पर उसे बंधी बनाया जाएगा। उसके आने के एक दिन बाद, यहूदा और प्राचीन ने उससे भेंट की। उन्हें कितना अजीब लग रहा होगा।

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पाठ 85 मंदिर में पौलुस

पौलुस यरूशलेम के मंदिर में था। पूरा शहर उसके विरुद्ध आक्रोश में था। रोमी सैनिक वास्तव में पौलुस को अपने कंधों पर उठाकर ले गए ताकि भीड़ उसे मार न सके। तब पौलुस ने एक बहुत ही अजीब बात की। उसने पूछा कि क्या वह वापस जाकर भीड़ से बात कर सकता है।

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पाठ 86 खोये हुओं के प्रति पौलुस में यीशु का प्रेम

जब पौलुस बोल रहा था, तब भीड़ चिल्लाने और कपड़े फेंकने और आकाश में धूल उड़ाने लगी। इसे अपने दिमाग में चित्रित कीजिये। एक अकेला व्यक्ति, उस कोधित भीह के सामने साहसपूर्वक खड़ा हुआ है, जो बहुत क्रोधित दिख रही है। कल्पना कीजिए कि रोमी सैनिक क्या सोच रहे थे।

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पाठ 87 रोमी नागरिकता स्वर्ग के नागरिक की रक्षा करता है

जब रोमी सरदार ने देखा कि धोखाधड़ी की भीड़ का क्रोध और बढ़ता जा रहा था, तो उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे पौलुस को बैरकों में से लाकर उसे कोड़े लगायें। सरदार यह जानना चाहता था कि पौलुस ने ऐसा क्या कहा जिससे यरूशलेम का पूरा शहर क्रोधित हो गया था।

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पाठ 88 पौलुस की ज्ञानपूर्ण व्याकुलता

सरदार को सोचना होगा कि पौलुस नामक इस व्यक्ति को कैसे संभाला जाए। वह एक रोमी नागरिक था जिसने यूनानी और एक यहूदी से बात की जो इब्रानी भाषा बोलते थे ।

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