पाठ 77 स्किवा के सात पुत्र और जलते हुए सूचीपत्र

पौलुस इफिसुस में ढाई वर्ष तक रहा। यह संभवतः वर्ष 53 ईस्वी में सितंबर के महीने से 56 वर्ष के वसंत की शुरुआत का समय था। उसने पूरे क्षेत्र के पुरुषों को तुरन्नुस की पाठशाला में शिक्षा दी। वे दूर यात्रा करके उन तथ्यों को सुनने के लिए आते थे जो पौलुस उन्हें बताता था कि किस प्रकार यीशु का आना पुराने नियम की भविष्यवाणियों के अनुसार था। उसने उन्हें बताया कि परमेश्वर पिता का उन सभी को अपनी पवित्र आत्मा भेजना जो उस पर विश्वास करते थे, क्या मायने रखता है। शायद उसने इस प्रकार समझाया कि कैसे परमेश्वर ने इस्राएल के यहूदी राष्ट्र के द्वारा विदेशों में सुसमाचार की विश्वव्यापी घोषणा के लिए सेवकाई का विस्तार किया था।

उस समय के दौरान पौलुस को परमेश्वर द्वारा दी गई सामर्थ जबरदस्त थी। उसमें बीमारियों को चंगा करने की और दुष्टआत्माओं को बाहर निकालने की क्षमता थी। उसने सुसमाचार के संदेश को जबरदस्त सामर्थ के साथ सुनाया ताकि बहुत लोग यीशु पर विश्वास ला सकें। उसकी सेवकाई इतनी आश्चर्य करने वाली थी कि दूसरे लोग उसकी नकल करने की कोशिश करने लगे। कुछ यहूदी जो सिक्कवा के सात पुत्र कहलाते थे, दुष्टआत्माओं को बाहर निकालने के लिए प्रभु यीशु के नाम का उपयोग करने की कोशिश कर रहे थे। इनमें से एक पुरुष प्रधान याजक था। उन्होंने कहा,

" मैं तुम्हें उस यीशु के नाम पर जिसका प्रचार पौलुस करता है, आदेश देता हूँ।" एक दिन, जब वे एक दुष्टात्मा को बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे, तो दुष्टात्मा ने तुरंत उत्तर दिया। उसने कहा, "यीशु को मैं जानती हूँ, और पौलुस को भी पहचानती हूं, परन्तु तुम कौन हो?" (एनआईवी) वाह क्या आप कल्पना कर सकते हैं?

जिस व्यक्ति में दुष्टात्मा की शक्ति थी, वह बहुत शक्तिशाली था क्योंकि दुष्टात्मा उसके अंदर थी। वह एक क्रोधित, दुष्टात्मा थी। वह उन पर झपटा और उसने उन पर काबू पा कर उन दोनों को हरा दिया! वह उनके साथ ऐसा करता रहा जब तक कि वे सब लहूलुहान होकर घर से बाहर नहीं निकल गए।

इफिसुस के यहूदियों और यूनानियों ने इसके बारे में सुना और वे डर गए। यह तथ्य कि दुष्टात्माएं जानती थीं कि यीशु कौन है (वे जानते थे कि वह ईश्वर था।) उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें मसीह को कितना सम्मान देना चाहिए। जिन लोगों ने पहले मसीह पर विश्वास किया था, वे अपने दिलों के सारे पापों के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए। उनमें से कई शैतान के प्रथाओं में चल रहे थे, भले ही उन्हें यीशु में उद्धार मिल गया था। इस तथ्य ने कि दुष्टात्माएं यीशु और पौलुस को शक्तिशाली आध्यात्मिक अधिकारियों के रूप में पहचानती थीं, उन्हें डरा दिया!

उन्होंने अपने बुरे कामों से पश्चाताप किया जिन्हें उन्होंने गुप्त रखा हुआ था। जब हमें लगता है कि हम परमेश्वर से अपना पाप छुपा सकते हैं, तो हम वास्तव में उसका सम्मान नहीं कर रहे हैं या यह सोचते हैं कि वह इसे देख नहीं सकता, है ना? यदि हम पाप करते हैं और उसे मानते नहीं, तो ऐसा लगता है मानो हम कह रहे हैं कि हम विश्वास नहीं करते कि परमेश्वर सब कुछ जानता है! यह पाप में जुड़ जाता है! इन पुरुषों को एहसास हुआ कि उन्हें अपने पूरे हृदय से परमेश्वर का सम्मान करने की आवश्यकता है। उन्होंने उन किताबों और पोथियों को बाहर फेंका जो उन्होंने जादू-टोना करने के लिए उपयोग किया था और जिनसे परमेश्वर घृणा करता था पोथियाँ उनके खरीदने के लिए बहुत महंगी थीं क्योंकि उनके द्वारा वे महान शक्ति को पाने के लिए सीखते थे। उन्होंने उन्हें सब जनता के सामने जला दिया, यह दिखाते हुए कि वे अपने पाप को रोकने के बारे में गंभीर थे। वे वास्तव में यीशु के लिए अपना जीवन बदलना चाहते थे। उन्होंने अपनी सत्ता को अपने नियंत्रण में रखने की इच्छा के ऊपर परमेश्वर की शक्ति को सम्मान दिया। परमेश्वर ने उनकी आज्ञाकारिता को आशीष दी। इफिस में पुरुषों के हृदय में परमेश्वर ने जो कुछ किया था, उसके द्वारा और लोग परमेश्वर के विषय में सीखने लगे।

परमेश्वर का वचन दुनिया भर में सामर्थ के साथ फैल रहा था। इस समय, पौलुस ने इफिसुस से यात्रा करने की योजना बनाई। वह वापस यरूशलेम जाना चाहता था। वह मकिदुनिया और आसिया से होकर उन कलीसियाओं में जाना चाहता था जिनकी उसने आरंभ करने में

• सहायता की थी। वह वहां के लोगों से प्रेम करता था और उन्हें यीशु के लिए दृढ़ रहने के लिए प्रोत्साहित करना चाहता था। यरूशलेम के बाद, वह रोम जाना चाहता था। वह वहां कभी नहीं गया था, परन्तु रोम दुनिया के सबसे महान साम्राज्य की राजधानी थी।

पौलुस ने इफिसुस छोड़ने से पहले, अपने भाइयों तीमुथियुस और इरास्तुस को अपने आगे मकिदुनिया भेज दिया। वे कुरिन्थुस गए और वहां उसकी प्रतीक्षा की। पौलुस जल्द ही उनसे जुड़ जाएगा और वे वहां के विश्वासियों के साथ सर्दियों में कुरिन्थुम में बिताएंगे। क्या आपको याद है कि उन्हें कितनी परेशानी झेलनी पड़ी थी? उनके लिए भला था कि सब कुछ ठीक करने के लिए उनके पास विश्वासी भाई हो। इसलिए शायद पौलुस ने रोम को अपना पत्र लिखा। उसके बाद, वे एक साथ यरूशलेम की यात्रा पर निकल गए। हालांकि, तीमुथियुस और इरास्तुस से मिलने के पहले, इफिमुस में पौलुस को कुछ परेशान कर देने वाली बातों को ठीक करना था।