पाठ 76 कुरिन्थियों के नाम पत्रियाँ
कुरिन्युस की कलीसिया उसी भ्रष्ट, दुष्ट तरीके से पेश आ रही थी जिस प्रकार बाकी दुनिया करती थी। यीशु ने कहा कि सबसे बड़ी आज्ञा परमेश्वर से अपने सारे मन, आत्मा, और बल से प्रेम करना है। उसने कहा कि एक दूसरे से प्रेम करना दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा दी। जब पौलुस इफिशुस में सेवा कर रहा था, उसने सुना कि कुरिन्थुस के लोग कई बातों में एक-दूसरे से प्रेम नहीं कर रहे थे।
उनके प्रेम कि कमी का एक उदाहरण प्रभु भोज था जिसका वे दुरुपयोग कर रहे थे। यीशु ने यह बहुमूल्य परंपरा अपने शिष्यों को उस रात में सिखाई जब उसे गिरफ्तार करके उस पर मुकदमा होना था। यीशु ने बहुत दुःख के साथ उस रात, अंतिम रोटी अपने शिष्यों के साथ खाई। जब वे खा रहे थे, यीशु ने रोटी का एक टुकड़ा लिया और कहा:
"लो, इसे खाओ, यह मेरी देह है। "
फिर उसने प्याला उठाया और धन्यवाद देने के बाद उसे उन्हें देते हुए कहा, "तुम सब इसे थोड़ा थोड़ा पिओ। क्योंकि यह मेरा लहू है जो एक नये वाचा की स्थापना करता है। यह बहुत लोगों के लिये बहाया जा रहा है। ताकि उनके पापों को क्षमा करना सम्भव हो सके। मैं तुमसे कहता हूँ कि मैं उस दिन तक दाखरस को नहीं चबुंगा जब तक अपने परम पिता के राज्य में तुम्हारे साथ नया दाखरस न पी लूँ। फिर वे फसह का भजन गाकर जैतून पर्वत पर चले गये।"
मत्ती 26:26ब 30
यीशु ने अपने शिष्यों को उसे स्मरण रखने के लिए और उसके चले जाने के बाद भी एक दूसरे के साथ सहभागिता साझा करने के लिए यह शक्तिशाली प्रथा को दिया। यह उस वाचा का चिन्ह था जिसे उसने अपने लहू के द्वारा खरीदा था। कलीसिया के लिए प्रभु भोज एक पवित्र समय है जिसे उन्हें अपने प्रभु यीशु को एक परिवार के रूप में दिखाना है कुरिन्युस में, इस पवित्र समय को तुच्छ जाना था। कुछ सदस्य पहले से नशे में हो जाते थे। पूरी दुनिया में, प्रारंभिक कलीसिया अक्सर इकट्ठा होकर सहभागी होती थी। कुरिन्थुस में, कलीसिया के कुछ धनवान सदस्य एक साथ मिलकर एक महान भोज करते थे। तब दरिद्र सदस्यों को आने दिया जाता था और कलीसिया एक साथ सहभागिता का पर्व मनाती थी। दरिद्र को पर्व में नहीं आने दिया जाता था और कलीसिया के लिए उन्हें भूखा छोड़ दिया गया। पौलुस क्रोधित हुआ कि दरिद्र को इस तरह अपमानित किया जा रहा था। ऐसा लगता है कि कुरिन्थुस की कलीसिया के उन घृणास्पद सदस्य यीशु को उसी तरह धोखा दे रहे थे जैसे कि पहले अंतिम रात्रिभोज की रात यहूदा ने धोखे से यीशु को पकड़वाया था। पौलुस ने उनके विषय में कहा " अतः जो कोई भी प्रभु की रोटी या प्रभु के प्याले को अनुचित रीति से खाता पीता है, वह प्रभु की देह और उस के लहू के प्रति अपराधी होगा। व्यक्ति को चाहिये कि वह पहले अपने को परखे और तब इस रोटी को खाये और इस प्याले को पिये। क्योंकि प्रभु के देह का अर्थ समझे बिना जो इस रोटी को खाता और इस प्याले को पीता है, वह इस प्रकार खा पी कर अपने ऊपर दण्ड को बुलाता है। 1 कुरिंथियों 11:27-29
कुरिन्थुस की कलीसिया में कई लोगों में अपने भाइयों और बहनों के प्रति प्रेम में उतनी ही कमी थी जितनी यीशु के साथ, जब उसके स्वयं के लहू और देह का अपमान किया जा रहा था। इसने प्रभु भोज को अशुद्ध कर दिया। पौलुस व्यक्तिगत रूप से कलीसिया को ताड़ना देने के लिए कुरिन्दुस नहीं जा सका, इसलिए उसने उन्हें एक पत्र लिखा। बाद में उसी पत्री में उसने उन्हें यह दिखाने की कोशिश की कि मसीह का प्रेम कलीसिया में वास्तव में कैसा है:
और इन सब के लिए उत्तम मार्ग तुम्हें अब मैं दिखाऊँगा। यदि मैं मनुष्यों और स्वर्गदूतों की भाषाएं तो बोल सकूँ किन्तु मुझमें प्रेम न हो, तो मैं एक बजता हुआ घड़ियाल या झंकारती हुई झाँझ मात्र हूँ। यदि मुझमें परमेश्वर की ओर से बोलने की शक्ति हो और मैं परमेश्वर के सभी रहस्यों को जानता होऊं तथा समूचा दिव्य ज्ञान भी मेरे पास हो और इतना विश्वास भी मुझमें हो कि पहाड़ों को अपने स्थान से सरका सकूँ, किन्तु मुझमें प्रेम न हो तो मैं कुछ नहीं हूँ। यदि मैं अपनी सारी सम्पत्ति थोड़ी-थोड़ी कर के ज़रूरत मन्दों के लिए दान कर दूं और अब चाहे अपने शरीर तक को जला डालने के लिए सौंप दूँ किन्तु यदि मैं प्रेम नहीं करता तो। इससे मेरा भला होने वाला नहीं है।
प्रेम धैर्यपूर्ण है, प्रेम दयामय है, प्रेम में ईर्ष्या नहीं होती, प्रेम अपनी प्रशंसा आप नहीं करता। वह अभिमानी नहीं होता। वह अनुचित व्यवहार कभी नहीं करता, वह स्वार्थी नहीं है, प्रेम कभी झुंझलाता नहीं, वह बुराइयों का कोई लेखा-जोखा नहीं रखता। बुराई पर कभी उसे प्रसन्नता नहीं होती। वह तो दूसरों के साथ सत्य पर आनंदित होता है। वह सदा रक्षा करता है, वह सदा विश्वास करता है। प्रेम सदा आशा से पूर्ण रहता है। वह सहनशील है।
प्रेम अमर है। जबकि भविष्यवाणी का सामर्थ्य तो समाप्त हो जायेगा, दूसरी भाषाओं को बोलने की क्षमता युक्त जीमें एक दिन चुप हो जायेंगी, दिव्य ज्ञान का उपहार जाता रहेगा, क्योंकि हमारा ज्ञान तो अधूरा है, हमारी भविष्यवाणियाँ अपूर्ण हैं। किन्तु जब पूर्णता आयेगी तो वह अधूरापन चला जायेगा।
जब मैं बच्चा था तो एक बच्चे की तरह ही बोला करता था, वैसे ही सोचता था और उसी प्रकार सोच विचार करता था, किन्तु अब जब मैं बड़ा होकर पुरूष बन गया हूँ, तो वे बचपने की बातें जाती रही है। क्योंकि अभी तो दर्पण में हमें एक धुंधला सा प्रतिबिंब दिखायी पड़ रहा है किन्तु पूर्णता प्राप्त हो जाने पर हम पूरी तरह आमने-सामने देखेंगे। अभी तो मेरा ज्ञान आंशिक है किन्तु समय आने पर वह परिपूर्ण होगा। वैसे ही जैसे परमेश्वर मुझे पूरी तरह जानता है। इस दौरान विश्वास, आशा और प्रेम तो बने ही रहेंगे और इन तीनों में भी सबसे महान है प्रेम।"
1 कुरिंथियों 12:31ब- 13:13