पाठ 81 सूर में पौलुस का समय
इफिस की कलीसिया के प्राचीनों को जो कुछ पौलुस के हृदय में था उन्हें बताने के बाद, उसने उनके साथ घुटने टेके और मिलकर प्रार्थना की। जब वे विदा हो रहे थे, वे गले लग कर बहुत रोये और चुंबन देकर विदा हुए। वे यह सुनकर बहुत दुखी थे कि वे अब कभी पौलुस को नहीं देख पाएंगे। उन्होंने उसे जहाज तक जाकर विदा किया। शोकाकुल विदाई के बाद लूका पौलुस साथ गया। वे कोस में आए और फिर रुदुस के द्वीप पर पहुंचे। फिर वे पतरा गए। वहां से उन्होंने एक जहाज ढूंडा जो उन्हें फीनीके पहुंचेगा। वे साइप्रस द्वीप होते हुए अंत में सीरिया में सूर शहर में उतरे। सूर में शिष्य थे, और इसलिए वे वहां सात दिनों तक रहे, ताकि वे उन्हें मसीह के साथ चलने के लिए प्रोत्साहित कर सकें। हमें नहीं मालूम कि पौलुस ने क्या कहा था क्योंकि इस वर्णन का प्रेरितों में अभिलेख नहीं किया गया है। । हम उन बातों को जानते हैं जो उसने दूसरों को लिखे थे जिनका एक ही विचार था । गलातियों को अपने पत्र में, पौलुस ने लिखा:
" किन्तु भाईयों, तुम्हें परमेश्वर ने स्वतन्त्र रहने को चुना है। किन्तु उस स्वतन्त्रता को अपने आप पूर्ण स्वभाव की पूर्ति का साधन मत बनने दो, इसके विपरीत प्रेम के कारण परस्पर एक दूसरे की सेवा करो। क्योंकि समूचे व्यवस्था के विधान का सार संग्रह इस एक कथन में ही है "अपने साथियों से वैसे ही प्रेम करो, जैसे तुम अपने आप से करते हो। " किन्तु आपस में काट करते हुए यदि तुम एक दूसरे को खाते रहोगे तो देखो! तुम आपस में ही एक दूसरे को समाप्त कर दोगे।
किन्तु मैं कहता हूँ कि आत्मा के अनुशासन के अनुसार आचरण करो और अपनी पाप पूर्ण प्रकृति की इच्छाओं की पूर्ति मत करो।
"अब देखो हमारे शरीर की पापपूर्ण प्रकृति के कामों को तो सब जानते हैं। वे हैं! व्यभिचार अपवित्रता, भोगविलास, मूर्ति पूजा, जादूटोना, बैर भाव, लड़ाई- झगड़ा, डाह, क्रोध, स्वार्थीपन, मतभेद, फूट, ईर्ष्या, नशा, लंपटता या ऐसी ही और बातें। अब में तुम्हें इन बातों के बारे में वैसे ही चेता रहा हूँ जैसे मैंने तुम्हें पहले ही चेता दिया था कि जो लोग ऐसी बातों में भाग लेंगे, वे परमेश्वर के राज्य का उत्तराधिकार नहीं पायेंगे। जबकि पवित्र आत्मा, प्रेम, प्रसन्नता, शांति, धीरज, दयालुता, नेकी, विश्वास, नम्रता और आत्मसंयम उपजाता है। ऐसी बातों के. - विरोध में कोई व्यवस्था का विधान नहीं है। उन लोगों ने जो यीशु मसीह के हैं, अपने पापपूर्ण मानवस्वभाव को वासनाओं और इच्छाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया - है। क्योंकि जब हमारे इस नये जीवन का स्रोत आत्मा है तो आओ आत्मा के ही अनुसार चलें। हम अभिमानी न बनें। एक दूसरे को न चिडायें। और न ही परस्पर ईर्ष्या रखें।
"हे भाईयों, तुममें से यदि कोई व्यक्ति कोई पाप करते पकड़ा जाए तो तुम आध्यात्मिक जनों को चाहिये कि नम्रता के साथ उसे धर्म के मार्ग पर वापस लाने में सहायता करो। और स्वयं अपने लिये भी सावधानी बरतो कि कहीं तुम स्वयं भी किसी परीक्षा में न पड़ जाओ। परस्पर एक दूसरे का भार उठाओ। इस प्रकार तुम मसीह की व्यवस्था का पालन करोगे। यदि कोई व्यक्ति महत्त्वपूर्ण न होते हुए भी अपने को महत्त्वपूर्ण समझता है तो वह अपने को धोखा देता है। अपने कर्म का मूल्यांकन हर किसी को स्वयं करते रहना चाहिये। ऐसा करने पर ही उसे अपने आप पर, किसी दूसरे के साथ तुलना किये बिना, गर्व करने का अवसर मिलेगा। क्योंकि अपना दायित्त्व हर किसी को स्वयं ही उठाना है।
"" सो जैसे ही कोई अवसर मिले, हमें सभी के साथ भलाई करनी चाहिये, विशेषकर अपने धर्मभाइयों के साथ।'
गलष्तयो 5: 13-16; 5: 19-6: 5, 10
आत्मा ने शिष्यों को चेतावनी दी कि यदि पौलुस यरूशलेम जाएगा तो उसे खतरा होगा। उन्होंने बहुत कोशिश की कि वह न जाये। वे जानते थे कि उसे सताया जाएगा। परन्तु पौलुस जानता था कि उसे जाना ही होगा। यहाँ पौलुस कुरिन्युस के लोगों को यीशु के लिए सताए जाने के विषय में लिखता है:
हम स्वयं अपना प्रचार नहीं करते बल्कि प्रभु के रूप में मसीह यीशु का उपदेश देते हैं। और अपने बारे में तो यही कहते हैं कि हम यीशु के नाते तुम्हारे सेवक है। क्योंकि उसी परमेश्वर ने, जिसने कहा था, अंधकार से ही प्रकाश चमकेगा " वही हमारे हृदयों में प्रकाशित हुआ है, ताकि हमें यीशु मसीह के व्यक्तित्व में परमेश्वर की महिमा के ज्ञान की ज्योति मिल सके।
"किन्तु हम जैसे मिट्टी के पात्रो में यह सम्पत्ति इस लिये रखी गयी है कि यह अलौकिक शक्ति हमारी नहीं; बल्कि परमेश्वर की सिद्ध हो। हम हर समय हर किसी प्रकार से कठिन दबावों में जीते हैं, किन्तु हम कुचले नहीं गये हैं। हम घबराये हुए हैं किन्तु निराश नहीं हैं। हमें यातनाएँ दी जाती हैं किन्तु हम छोड़े नहीं गये हैं। हम झुका दिये गये हैं, पर नष्ट नहीं हुए हैं। हम सदा अपनी देह में यीशु की मृत्यु को हर कहीं लिये रहते हैं। ताकि यीशु का जीवन भी हमारी देहों में स्पष्ट रूप से प्रकट
हो। यीशु के कारण हम जीवितों को निरन्तर मौत के हाथों सौंपा जाता है ताकि यीशु का जीवन भी नाशवान शरीरों में स्पष्ट रूप से उजागर हो। "
2 कुरिन्थियों 4:5-11
पौलुस जानता था कि यीशु के लिए जीने की उसकी इच्छा से भले ही उसे बताया जाये, उसके अपने परमेश्वर और उद्धारकर्ता को महान महिमा मिलेगी। क्रूस पर उसकी मृत्यु के द्वारा मसीह का प्रेम शानदार रूप से प्रदर्शित हुआ। इसके द्वारा पूरे ब्रह्मांड में उसे महान महिमा मिली। इसलिए पौलुस के सताव के द्वारा परमेश्वर के प्रति उसका प्रेम और निष्ठा प्रदर्शित हुआ, और जिसके द्वारा यीशु को भी सम्मान- मिला।
जब पौलुस और लूका का सूर में यीशु के शिष्यों से विदा लेने का समय आया, तो वे शहर के बाहर समुद्र तट तक उनके पीछे गए। उनकी पत्रियां और बच्चे भी आए, और हर कोई रेत पर घुटने टेककर प्रार्थना करने लगा। ऐसा लगता है कि मसीह की आत्मा अक्सर यह चाहती है कि उसके लोग प्रार्थना के द्वारा एक-दूसरे के साथ अपने रिश्तों को सील करें। जब उन्होंने अंततः एक दूसरे से अलविदा कहा और पौलुस और लूका जहाज़ पर पहुंचे तो सभी परिवार वापस चले गए। प्रेरित पौलुस के साथ एक सप्ताह बिताया उनके जीवन के यादगार रहा होगा!