पाठ 71 अज्ञात परमेश्वर का प्रकट होना।

पौलुस अपने मित्रों के लिए एथेंस में प्रतीक्षा कर रहा था। एथेंस पौलुस के समय में भी एक महान, प्राचीन शहर था। जब पौलुस एथेंस की जीवन शैली को देखकर बहुत परेशान हुआ सब जगह मूर्तियाँ थीं! उसे आराधनालय में जाकर यहूदियों को बताना होगा कि उनका मसीहा आ गया था। फिर वह बाज़ार में जाकर यूनानियों और अन्य अविश्वासियों को यह बताने की कोशिश करेगा कि, उन्हें मूर्तियों को नहीं दंडवत करना चाहिए। केवल एक ही परमेश्वर था। एक उद्धारकर्ता था जो उनके लिए मरा, और उन्हें केवल उस पर विश्वास करना चाहिए!

कुछ लोग अपना पूरा समय बाज़ार में ही बिताते थे। वे दार्शनिक थे जिन्हें स्तोईकी और इपिकूरी कहा जाता था। वे वहां बैठ कर उन विचारों पर चर्चा करते थे जो उनके अनुसार बहुत गहरे और गंभीर थे। वे पूरे दिन एक-दूसरे के साथ उस बात पर बहस करते थे जो सत्य था। पौलुस उस समूह में शामिल हो गया और उन्हें यीशु के विषय में वास्तविक सत्य को बताने लगा।

जब वे पौलुस की बात सुन रहे थे, वे उसका मज़ाक उड़ाने लगे और उससे तर्क करने लगे "यह अंटशंट बोलने वाला कहना क्या चाहता है?" उन्होंने घृणा भरी दृष्टी से कहा। दूसरों ने सोचा कि वह उन्हें विदेशी देवताओं के बारे में सिखाने की कोशिश कर रहा था क्योंकि वह यीशु और उसके पुनरुत्थान के विषय में प्रचार कर रहा था।

आखिरकार, पौलुस को अरियुपगु नामक पहाड़ी पर एक बैठक स्थान पर ले जाया गया। इसका नाम युद्ध के यूनानी देवता के नाम पर रखा गया था, और यह बैठक का एक महान, प्राचीन स्थान था। उन्होंने पौलुस को बोलने के लिए कहा। " क्या हम जान सकते हैं कि तू जिसे लोगों के सामने रख रहा है, वह नयी शिक्षा तू क्या है? तू कुछ विचित्र बातें हमारे कानों में डाल रहा है, सो हम जानना चाहते हैं। कि इन बातों का अर्थ क्या है?

पौलुस खड़ा हुआ और एथेंस के दार्शनिकों के सामने सुसमाचार को सुनाया। यह इस प्रकार आरंभ हुआ:

" हे एथेंस के लोगो में देख रहा हूँ तुम हर प्रकार से धार्मिक हो। घूमते फिरते तुम्हारी उपासना की वस्तुओं को देखते हुए मुझे एक ऐसी वेदी भी मिली जिस पर लिखा था, 'अज्ञात परमेश्वर' के लिये सो तुम बिना जाने ही जिस की उपासना करते हो, मैं तुम्हें उसी का वचन सुनाता है।

परमेश्वर, जिसने इस जगत की और इस जगत के भीतर जो कुछ है, उसकी रचना की वही धरती और आकाश का प्रभु है। वह हाथों से बनाये मन्दिरों में नहीं रहता। उसे किसी वस्तु का अभाव नहीं है सो मनुष्य के हाथों से उसकी सेवा नहीं हो सकती। वही सब को जीवन, साँसे और अन्य सभी कुछ दिया करता है।

एक ही मनुष्य से उसने मनुष्य की सभी जातियों का निर्माण किया ताकि वे समूची धरती पर बस जायें और उसी ने लोगों का समय निश्चित कर दिया और उस स्थान की, जहाँ वे रहे सीमाएँ बाँध दीं। उस का प्रयोजन यह था कि लोग परमेश्वर को खोजें। हो सकता है वे उसे उस तक पहुँच कर पा लें। इतना होने पर भी हममें से किसी से भी वह दूर नहीं हैं: क्योंकि उसी में हम रहते हैं उसी में हमारी गति है और उसी में है हमारा अस्तित्व। इसी प्रकार स्वयं तुम्हारे ही कुछ लेखकों ने भी कहा है, 'क्योंकि हम उसके ही बच्चे हैं।'

और क्योंकि हम परमेश्वर की संतान हैं इसलिए हमें यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि वह दिव्य अस्तित्व सोने या चाँदी या पत्थर की बनी मानव कल्पना या कारीगरी से बनी किसी मूर्ति जैसा है। ऐसे अज्ञान के युग की परमेश्वर ने उपेक्षा कर दी है और अब हर कहीं के मनुष्यों को वह मन फिराव ने का आदेश दे रहा है। उसने एक दिन निश्चित किया है जब वह अपने नियुक्त किये गये एक पुरुष के द्वारा न्याय के साथ जगत का निर्णय करेगा। मरे हुओं में से उसे जिलाकर उसने हर किसी को इस बात का प्रमाण दिया है। " (प्रेरितों 17:16-34) क्या आपने देखा कि यह भाषण प्रेरितों में पौलुस के अन्य संदेशों से भिन्न है? उसने पुराने नियम के विषय में बात नहीं की! ये पुरुष यहूदी नहीं थे, उन्होंने कभी पुराने नियम को नहीं पढ़ा था । यह एक अलग समूह था, इसलिए पौलुस को एक ऐसा सबक सिखाना पड़ा जिसे वे समझ पायें। पौलुस ने परमेश्वर के विषय में बताया जिसने सृष्टि की रचना की और वह हर किसी के निकट रहता है। यह सत्य है! हम जानते हैं कि आत्मा हर किसी के दिल में आती है जो यीशु पर अपना विश्वास रखते हैं। और कई सैकड़ों वर्षों से एक विशेष रूप से परमेश्वर की उपस्थिति इस्राएल देश के साथ थी। परन्तु परमेश्वर अभी भी पूरे ब्रह्मांड का परमेश्वर है। यीशु ने कहा कि परमेश्वर उन सभी छोटी चिड़ियों को भी देखता है जो भूमि पर गिर जाती हैं। पौलुस के भाषण में, उसने कहा कि परमेश्वर ही है जो प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और सांस देता है जिसकी उसे आवश्यकता होती है.... और उसने प्रत्येक व्यक्ति के लिए समय और उस स्थान को चुना है जहाँ उसे रहना होगा। उसी ने वह परिवार चुना जिसमें उसे रहना होगा। पौलुस की पत्री में वह कुलुस्सियों से कहता है कि पूरे ब्रह्मांड में सबकुछ निरंतर है और इसका अस्तित्व यीशु मसीह में है! चाहे कोई देश या कोई व्यक्ति इसे जानता है या नहीं, वे सब कुछ परमेश्वर की शक्ति और कृपा के प्रति देय हैं। यह बहुत लज्जा की बात है कि वे उसके पास अपने प्रेम और भक्ति के साथ नहीं जाते हैं!

ये पुरुष कई उन देवताओं पर विश्वास करते थे जिनके पास शक्ति थी। यहाँ तक कि, वे अपनी बुद्धि की शक्ति पर विश्वास रखते थे। उन्हें स्वयं की सोच पर अभिमान था। उनका मानना था कि वे स्वयं तय कर सकते हैं कि यदि एक सज्जा महान परमेश्वर वास्तव में सत्य था या नहीं! वास्तव में, वे सच खोजने की कोशिश भी नहीं कर रहे थे। लूका कहता है कि वे यूँही बेकार बैठ कर लोकप्रिय विचारों के बारे में बात करते रहते हैं। इससे वे स्वयं को होशियार समझते थे। परन्तु यहां उन्हें उसके विषय में बात करने का मौका मिला जो वास्तविकता थी, जिसमें शक्ति थी, और यह उन्हें परिवर्तित कर सकता था। क्या वे सुनने को तैयार होंगे?

पौलुस ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि केवल एक ही सच्चा परमेश्वर है जो सब पर राज करता है। उसने उन्हें परमेश्वर के विषय में उस तरह बताया जिस प्रकार वे समझ सकें। उसने उनकी कविता का उपयोग करके उन्हें परमेश्वर को समझने में मदद की।

जब सुनने वालों ने यह सुना कि यीशु मरे हुओं में से जी उठा है, तो उनमें से कुछ ने अविश्वास के साथ उपहास किया। उन्होंने सोचा कि यह एक हास्यास्पद विचार था । परन्तु अन्य लोग और सुनना चाहते थे। पौलुस महासभा से चला गया, और कुछ लोग उससे सीखते रहे। दमरिस नाम की एक महिला, दियनुसियस नाम के एक व्यक्ति और कई अन्य लोगों ने एथेंस में परमेश्वर को स्वीकार किया यह समझना कठिन है कि यह निर्णय दियुनुसियस और दमरिस के लिए कितना महत्वपूर्ण होगा। परमेश्वर ने दुनिया की रचना से पहले, उन्हें चुना था, पृथ्वी और सितारे उसके रचने से पहले ही उसके थे! पवित्र आत्मा ने उनके हृदय में कार्य किया ताकि जब उन्होंने पौलुस के संदेश को सुना, तो सत्य को जानने के लिए उनके पास देखने के लिए आँखें और सुनने के लिए कान होंगे। उन्हें विश्वास था कि परमेश्वर ने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया था। उस क्षण से, वे धर्मी ठहरे। ऐसा लगता है जैसे परमेश्वर ने पूरे ब्रह्मांड के सामने यह घोषित किया, "ये दोनों हमेशा मेरी आंखों में निर्दोष ठहरेंगे!" उन्हें परमेश्वर के पुत्रों के रूप में अपनाया गया । ऐसा लगता है जैसे वे पाप और लज्जा के गंदे कपड़े पहन रहे थे, और यीशु ने उन्हें उनके दिल की गहराई तक साफ़ कर दिया था, और फिर उन पर अपना उज्वल, श्वेत वस्त्र पहना दिया। उन्होंने मसीह की धार्मिकता को पहन लिया था। वे स्वतंत्र रूप से परमेश्वर के पास उस प्रकार आ सकते थे मानो उन्होंने कभी पाप नहीं किया हो। आध्यात्मिक दुनिया में, उन्होंने अंधकार के राज्य से प्रकाश के राज्य में प्रवेश कर लिया था!