पाठ 75 कुरिन्थियों के नाम पत्री
जब पौलुस इफिसुस में था, उसने जाना कि कुरिन्थुस की कलीसिया में समस्याएं थीं। उसके लिए उनसे मिलना असंभव था, जिस प्रकार कुरिन्दुस में रहते हुए वह थिस्सलुनीकियों की यात्रा नहीं कर सका। इसलिए जिस प्रकार उसने थिस्सलुनीकियों को पत्र लिखे थे वैसे ही उसने उन्हें भी पत्र लिखे । बड़ा अंतर यह है कि जब पौलुस ने विस्मलुनीकियों को लिखा, तो वह उनसे बहुत प्रसन्न था। तीमुथियुस उनसे भेंट करके लौटा ही था और पौलुस को उनके विषय में अद्भुत बातें बतायीं कि वे एक दूसरे से कितना प्रेम करते थे। भले ही वे थिस्सलोनिका के लोगों द्वारा सताए गए थे जिन्होंने पौलुस को वहां से निकाला था, वे पवित्र, आज्ञाकारी जीवन जीने के द्वारा परमेश्वर का सम्मान कर रहे थे।
पौलुस ने कुरिन्थुस से एक बहुत अलग कहानी सुनी थी। कलीसिया के विभिन्न सदस्य एक दूसरे के साथ लड़ रहे थे। कलीसिया विभाजित हो रही थी क्योंकि लोग पक्ष ले रहे थे। उनमें से कुछ मूर्तिपूजक अदालतों में एक-दूसरे पर मुकदमा चला रहे थे। उनमें से कई अनैतिक जीवन भी जी रहे थे। वे पाप करते थे परन्तु पश्चाताप नहीं करते थे। उन्हें कोई परवाह नहीं थी कि परमेश्वर अपमानित होगा। वे एक- दूसरे से प्रेम नहीं करते थे।
कुरिन्थस के लोगों के विरुद्ध कुछ बातें थीं। वे एक ऐसे शहर में रहते थे जहां बहुत पाप था। लोगों के पाप के कारण सबकुछ संक्रमित हो गया था। नए विश्वासी जितना यीशु मसीह की शक्ति में अपने जीवन को शुद्ध रखना चाहते थे, उतना ही वे संसार की चीजों में फसकर पाप में वापस जा रहे थे। बजाय इसके कि वे अपने बदलाव और परिवर्तन के लिए अपने उद्धारकर्ता पर निर्भर करें, कुरिन्थुस के कई विश्वासी वैसे ही जीते रहे मानो उन्होंने कभी भी यीशु के उद्धार को नहीं पाया है।
उदाहरण के लिए, कुरिन्थुस एक रोमी उपनिवेश था। उन दिनों, सभी शहर रोम में अगुओं के चाहिते बनना चाहते थे। यह एक महान प्रतिष्ठा और सम्मान का प्रतीक था। कुरिन्थुस एक बहुत ही संपन्न शहर था। कुरिन्धुम के कई प्रभावशाली लोग चाहते थे। कि उनका शहर रोम के साथ 'विशेष संबंध बनाये। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण था कि रोम के साथ उनका संबंध किसी भी अन्य शहरों कि तुलना में बेहतर था रि के लोगों के लिए यह प्रतियोगिता सच थी। यदि आप एक नेता बनना चाहते हैं, तो आपके पास बहुत पैसा और शिक्षा होनी चाहिए, और आपको शहर के लिए सामग्री खरीदनी होगी। तब हर कोई आपका आदर करेगा और आपका विशेष आदर-सम्मान करेगा। वे आपके नाम की मूर्तियाँ बनायेंगे और जब आप सड़क पर चलेंगे, तो हर कोई रुक कर आपको आदर देते हुए यह दिखाएगा कि आप एक प्रतिष्ठित व्यक्ति है।
हर कोई प्रभावशाली महसूस करना चाहता है, और हर कोई हमेशा दूसरों कि तुलना में अधिक प्रतिष्ठित लोगों के साथ मित्रता बनाना चाहता है। यदि आपके मित्रों के पास पैसा है, तो वे आपको अधिक प्रतिष्ठित बनाने के लिए कुछ पैसा दे सकते हैं। यदि आपको किसी कारण से अदालत जाना पड़े, और यदि आप प्रतिष्ठित है, तो न्यायाधीश आपके पक्ष में फैसला लेगा। परन्तु यदि अदालत में आपके विरुद्ध कोई और है जो आपसे अधिक प्रतिष्ठित है, तो वह आपको पराजित करा देगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन निर्दोष है और कौन सही है। अदालते न्यायोचित नहीं होतीं हैं। अक्सर अदालत प्रतिष्ठित लोगों का पक्ष बहुत ही अन्यायपूर्ण रूप (क्लार्क 181) से लेती है। सोचिये यह कितना एक डरावना जीवन होगा। चाहे आपका कितना भी अच्छा जीवन हो, एक बुरा व्यक्ति आपको जेल में डलवा सकता है क्योंकि वे आपसे अधिक शक्तिशाली हैं। ये परमेश्वर के तरीकों के समान बिलकुल नहीं थे।
कुरिन्थस में, लोग उनकी परवाह करते थे जिन्हें वे कुछ देते थे। यदि आपके परिवार के पास पैसा या सही मित्र नहीं हैं, तो आप का सम्मान नहीं किया जाएगा, और आपकी आवश्यकता के समय वे शायद आपकी मदद नहीं करेंगे क्योंकि आपके पास कुछ भी नहीं है जो आप उन्हें वापस दे सकें! परन्तु यदि कोई आपकी मदद करता है, तो आप सब के सामने उनके विषय में अच्छी बातें बोलेंगे पौलुस ने यीशु के संदेश को कुरिंथियों को सुनाया, और कई विश्वासी बन गए थे। नए विश्वासी एक कलीसिया के परिवार के रूप में मिलने लगे। उन्हें एक-दूसरे से प्रेम करना था। परन्तु बहुत चुनौतियां थीं। नए विश्वासी जो एक साथ आए थे, वे शहर के बहुत अलग समूहों से थे। उन्हें इकट्ठा लाना बहुत मुश्किल था। कुछ बहुत धनवान थे, कुछ दरिद्र थे। धनवान को बहुत उच्च पद दिया जाता था। दरिद्र उनके लिए कुछ नहीं कर सकते थे। शायद दरिद्रों के प्रति दयालु और प्रेमपूर्ण होना स्वाभाविक नहीं था। यह शायद बहुत लज्जा की बात थी।
धनवान नए विश्वासी शहर में बहुत ही प्रमुख लोग थे। मूर्तियों के धार्मिक समारोह में उनके लिए अपना पद बहुत महत्वपूर्ण था। भले ही वे विश्वासी थे, फिर भी वे मंदिरों में जाते रहे और मूर्तियों (क्लार्क 183) को चढ़ाये गए भोजन को खाते थे। दरिद्रों को आमंत्रित भी नहीं किया जाता था। जब कलीसिया सहभागिता करने के लिए इकट्ठी होती थी, तो वे अक्सर साथ भोजन खाते थे। समृद्ध कुरिन्दुम जल्दी पहुँच कर अच्छे भोजन का आनंद ले लेते थे जिस प्रकार वे मंदिरों में करते थे। मूर्तिपूजक धर्मों में, दरिद्रों को छोड़ देना ठीक माना जाता था। परन्तु यीशु नहीं चाहता है कि उसके अनुयायी एक-दूसरे के साथ ऐसा व्यवहार करें। कुरिन्धुस के धनवान यीशु के समान व्यवहार नहीं करते थे। जो दरिद्र विश्वासी पर्व को मनाने के लिए आते थे, धनवान विश्वासी उन्हें भूखा ही रहने देते थे (क्लार्क 183)। दरिद्र परिवारों को, धनवान, अभिमानी विश्वासियों को उनके बगैर पार्टी मनाते देख बुरा लगता था, लेकिन वे क्या कर सकते थे? तब कलीसिया मिलकर सहभागी होती थी। पौलुस ने इसके बारे में सुना और क्रोधित हुआ!
कुरिन्युस की कलीसिया के लोगों ने उद्धार के बहुमूल्य और शक्तिशाली उपहार को पाया था, परन्तु वे विकसित नहीं हो रहे थे। उन्हें परमेश्वर द्वारा पवित्र होने की आवश्यकता थी, ताकि परमेश्वर में छोटे और स्वार्थी बनने के बजाय वे शक्तिशाली और महान बन सके।