पाठ 86 खोये हुओं के प्रति पौलुस में यीशु का प्रेम

जब पौलुस बोल रहा था, तब भीड़ चिल्लाने और कपड़े फेंकने और आकाश में धूल उड़ाने लगी। इसे अपने दिमाग में चित्रित कीजिये। एक अकेला व्यक्ति, उस कोधित भीह के सामने साहसपूर्वक खड़ा हुआ है, जो बहुत क्रोधित दिख रही है। कल्पना कीजिए कि रोमी सैनिक क्या सोच रहे थे। वह ऐसा क्या कह रहा था जिसके कारण लोग इतने क्रोधित हो गए? और उसे पीटने और मारने की कोशिश करने के बावजूद वह क्यों इतना प्रयास कर रहा था?

सैनिकों का काम था कि वे यह सुनिश्चित करें कि यरूशलेम में शांति बनी रहे। पौलुस निश्चित रूप से मदद नहीं कर रहा था। वह स्वयं को इस भयानक अस्वीकृति और खतरे के अधीन क्यों करना चाहेगा? शायद पौलुस के संदेश के प्रति भक्ति ने सरदार को उत्सुक बना दिया था। पौलुस जैसा व्यक्ति ऐसा क्यूँ करेगा?

क्रूरता और घृणा के सामने पौलुस का दृढ़ संकल्प इस बात का सुंदर सबूत है कि कुछ अद्भुत और सत्य था जिसकी वह प्रतीक्षा कर रहा था। उसने कुरिन्थियों को लिखे अपने पत्र में इस प्रकार वर्णित किया, "हमारा पल भर का यह छोटामोटा दुःख - पैदा कर रहा है। एक अनन्त अतुलनीय महिमा जो कुछ देखा जा सकता है, हमारी आँखें उस पर नहीं टिकी हैं, बल्कि अदृश्य पर टिकी हैं। क्योंकि जो देखा जा सकता है, वह विनाशी है, जबकि जिसे नहीं देखा जा सकता, वह अविनाशी है।" (2 कुरिन्थियों 4: 17-18)।

पौलुस समझ गया कि परमेश्वर का शत्रु शैतान ने, जो इस अंधकार की दुनिया का राजकुमार है, मानवता को धोखा देने के लिए कड़ी मेहनत की थी। जब उसने कुरिन्थियों को लिखा, तो उसने इस तरह समझाया, " इस युग के स्वामी ने इन अविश्वासियों की बुद्धि को अंधा कर दिया है (शैतान) ताकि वे परमेश्वर के साक्षात प्रतिरूप मसीह की महिमा के सुसमाचार से फूट रहे प्रकाश को न देख पायें। हम स्वयं अपना प्रचार नहीं करते बल्कि प्रभु के रूप में मसीह यीशु का उपदेश देते हैं।... " (2 कुरिन्थियों 4: 4-5 अ)। क्रोधित भीड़ अपने पापों के कारण उकसा गई थी। परन्तु इस युग का देवता शैतान, यीशु की कहानी बताने के लिए पौलुस के मौके को लोगों की कमजोरियों और पापों का उपयोग करके नष्ट कर रहा था।

शैतान, जो मनुष्य की आत्माओं का शत्रु है, पौलुस के संदेश से घृणा करता था। पौलुस राजा का दूत था। राजा यीशु स्वर्ग में गया और परमेश्वर के दाहिने हाथ पर बैठ गया । जब भी कोई यीशु को अपना जीवन देता था, यीशु अपनी बात्मा उनके हृदय में डाल देता था और वे स्वर्ग के शाश्वत नागरिक बन जाते थे। एक और व्यक्ति धरती पर राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु द्वारा सशक्त होकर चल रहा था, और स्वर्ग का राज्य धरती पर फैलाया जा रहा था। पौलुस का सुसमाचार की घोषणा करना शत्रु के क्षेत्र पर आक्रमण था! शैतान पौलुस को चुप करने के लिए जो कुछ भी कर सकता था वह कर रहा था। इस पत्र में कुछ वाक्यों के बाद, पौलुस ने लिखा, " हम सदा अपनी देह में यीशु की मृत्यु को हर कहीं लिये रहते हैं। ताकि यीशु का जीवन भी हमारी देहों में स्पष्ट रूप से प्रकट हो । यीशु के कारण हम जीवितों को निरन्तर मौत के हाथों सौंपा जाता है ताकि यीशु का जीवन भी नाशवान शरीरों में स्पष्ट रूप से उजागर हो। इसी से मृत्यु हममें और जीवन तुममें सक्रिय है।" पौलुस के लिए, इस तरह के पीड़ा के कारण आज्ञाकारिता को सहना योग्य था यदि यह मसीह में विश्वास रखने वालों के लिए जीवन और परिवर्तन को लेकर आता है। जिस प्रकार यीशु ने अपने पिता की आज्ञा को माना और पीड़ा को सहा ताकि वह मुक्ति को ला सके, पौलुस मसीह के संदेश को लाने के लिए पीड़ा सहने के लिए तैयार था। पौलुस यीशु के समान बन रहा था! जिस प्रकार वह सुसमाचार सुनाकर कई लोगों के लिए परिवर्तन को ला रहा था, तो वह भी परिवर्तित हो रहा था। पौलुस के पास पहले से ही अनन्त जीवन था, और अब वह दूसरों को मसीह के द्वारा आत्मा में दूसरों को उस जीवन की और ला रहा था।

उसने इसका वर्णन इस प्रकार किया, "किन्तु जब किसी का हृदय प्रभु की ओर मुड़ता है तो वह पर्दा हटा दिया जाता है। देखोजिस प्रभु की ओर मैं इंगित कर रहा ! हूँ, वही आत्मा है। और जहाँ प्रभु की आत्मा है, वहाँ छुटकारा है। सो हम सभी अपने खुले मुख के साथ दर्पण में प्रभु के तेज का जब ध्यान करते हैं तो हम भी वैसे ही होने लगते हैं और हमारा तेज अधिकाधिक बढ़ने लगता है। यह तेज उस प्रभु से ही प्राप्त होता है। यानी आत्मा से "(2 कुरिन्थियों 3: 16-18)। जब पौलुस ने क्रोधित यहूदी भीड़ को देखा, तो उसने कई लोगों की आँखों में धूर्ता देखी। वे उस आशा की उम्मीद को ने देख पाए और न ही समझ पाए जिसके विषय में वह उन्हें

बता रहा था। शैतान को इसका ध्यान था। परन्तु पौलुस को हमेशा आशा थी कि उनमें से कुछ लोग उद्धार पाएंगे। जिन्हें परमेश्वर ने यीशु के विषय में सुनने के लिए चुना था उनके लिए उस क्रोधित भीड़ का सामना करना योग्य था।