पाठ 74 इफिसुस को जाने वाला मार्ग
जब प्रिस्किल्ला और अकिला अभी भी कुरिन्युस में अपुल्लोस की सेवा कर रहे थे, तब पौलुस सारे प्रदेश से होकर समुद्र से दूर के क्षेत्र में लम्बी यात्रा पर था। वह इफिस के रास्ते जा रहा था, लेकिन यह पहले की तुलना में एक अलग मार्ग था। इस मार्ग पर जाने से वह कुछ पुरुषों के एक समूह से मिला जिन्होंने कहा कि वे शिष्य थे। उसने उनसे पूछा, "क्या जब तुमने विश्वास धारण किया था तब पवित्र आत्मा को ग्रहण किया था?" उन्होंने कहा, हमने तो सुना तक नहीं है कि कोई पवित्र आत्मा है भी।" वाह! यह तस्वीर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
पौलुस ने उनसे पूछा कि यदि यह आत्मा के द्वारा नहीं था तो उन्हें कौन सा बपतिस्मा मिला था। उन्होंने कहा कि उन्हें केवल युहन्ना बसिस्मा देने वाले का बपतिस्मा मिला है! ये पुरुष अपुल्लोस की तरह थे। उन्होंने युहन्ना बप्तिस्मा देने वाले से सुना कि कोई और आ रहा था, परन्तु कहानी के शेष भाग में वह वहां नहीं था! पौलुस ने उन्हें समझाया, "युहना बतिस्मा देने वाले का बपतिस्मा पश्चाताप का बपतिस्मा था। उसने लोगों को उसके बाद आने वाले व्यक्ति पर विश्वास करने के लिए कहा, यानी यीशु पर।" जब उन पुरुषों ने यह सुना, तो वे तुरंत यीशु के नाम पर बपतिस्मा लेना चाहते थे! पौलुस ने वैसा ही किया। जब उसने उन पुरुषों पर अपना हाथ रखा, तो वे आत्मा से भर गए। वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे। वे भविष्यवाणी करने लगे! वहां लगभग बारह पुरुष थे। कितना यह एक रोमांचक समय है।
जब पौलुस इफिस पहुंचा, तो वह आराधनालय में गया और साहसपूर्वक परमेश्वर के राज्य की सच्चाई का प्रचार करने लगा। वह तीन महीनों तक यहूदियों के बीच रहकर परमेश्वर की महान योजना को दिखाने के लिए उन्हें समझाता रहा उसने दिखाया कि पुराने नियम में किस प्रकार यीशु के विषय में भविष्यवाणी की गई है। उसने उन्हें मसीह के जीवन के विषय में सिखाया। उसने यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान और उसके स्वर्ग में जाने के विषय में समझाया। उसने पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा की शक्ति के विषय में बताया। उन्हें अब परमेश्वर की उपस्तिथि यरूशलेम के पुराने मंदिर में खोजने कि आवश्यकता नहीं थी। अब परमेश्वर की उपस्थिति उन सभी के हृदय में थी जिन्होंने यीशु के नाम पर विश्वास किया था। पवित्र आत्मा उतार आई थी और हर एक जन उससे भर गया! प्रत्येक विश्वासी पवित्र आत्मा का एक मंदिर था। मसीहा आ गया था!
जब पौलुस इस शक्तिशाली और शुद्ध संदेश का प्रचार कर रहा था, तो कई यहूदियों ने इस वचन का विरोध किया। वे विश्वास नहीं करते थे। इसके बजाए, उन्होंने सार्वजनिक स्थानों में जा जाकर वचन के विरुद्ध बोलना शुरू कर दिया! पौलुस ने उन्हें छोड़ने का फैसला किया। परमेश्वर के सच्चे शिष्य विश्वास करते थे। वे आराधनालय छोड़कर पौलुस के साथ हो लिए। वे प्रति दिन तुरन्नुस नामक व्यक्ति की पाठशाला में विचार विमर्श करने के लिए मिलने लगे। वह शायद एक दार्शनिक (एनआईवी एसबी 1723 नोट्स) था। पौलुस वहां दो और वर्षों तक पढ़ाता रहा! पौलुस बहुत लम्बे समय के लिए रुका। वास्तव में, उसकी सेवकाई में पहले कि तुलना में थोड़ा परिवर्तन आ गया था। इससे पहले, पौलुस एक शहर से दूसरे शहर में सुसमाचार सुनाने के लिए गया था जहाँ किसी ने पहले नहीं सुना था । अब हर शहर में कम से कम एक छोटी कलीसिया थी। पूरे क्षेत्र में विश्वासियों में मसीह का देह उपस्थित था। पौलुस के हर किसी के पास जाने के बजाय, एशिया का पूरा प्रांत उसे सुनने के लिए आया। बाइबिल कहती है कि पूरे प्रांत में सभी यहूदियों और यूनानियों ने सुसमाचार गुना !
परमेश्वर ने पौलुस को अद्भुत चमत्कार करने के लिए सक्षम किया। उसकी शक्ति इतनी महान थी कि यदि कोई उस वस्त्र को छू लेता था जिसे उसने छुआ हो, जैसे एक रुमाल या एप्रन, तो वह किसी भी शाप या बीमारी से चंगा हो जाता था। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? यहां तक कि दुष्ट आत्माएं भी पौलुस द्वारा छुई हुई चीज़ से दूर हो जाती थीं।