पाठ 73 सीरिया को जाना
सीरिया जाने के डेढ़ साल पहले पौलुस कुरिन्दुस में रहता था। उसके प्रिय मित्र प्रिस्किल्ला और अक्किला उसके साथ गए। जब वे किंखिया नामक एक शहर में थे, पौलुस ने शपथ अनुसार सिर मुंडाया। हमें नहीं मालूम वह शपथ क्या थी, परन्तु ये प्रतिज्ञा अक्सर परमेश्वर को धन्यवाद देने का एक विशेष तरीका था। अक्सर वे किसी तरह के संकट से बचने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते थे। क्या आपको उन संकटों के विषय में मालूम है जिनसे बचने के बाद पौलुस ने धन्यवाद दिया था?
वे जहाज़ से इफिमुस नामक एक बड़े शहर पहुंचे। जब वे वहां पहुंचे, तो पौलुस पहले कहाँ गया? हा आराधनालय । वह यहूदियों को यीशु के विषय में बताने लगा और यह भी कि वही मसीहा था। उन्होंने सुना और चाहते थे कि वह और लंबे समय तक रुके ताकि वे और जान सके । परन्तु पौलुस ने इंकार कर दिया। वह कुछ और यात्राएं करना चाहता था। उसने वादा किया कि यदि परमेश्वर की इच्छा है तो वह वापस आएगा।
इफिस से निकलने के बाद पौलुस कैसरिया पहुंचा । वह वहां की कलीसिया में गया और फिर अन्ताकिया चला गया। यह वह कलीसिया थी जहाँ पौलुस और बरनबास ने बहुत आरंभ में काम किया था, और वहां उसके बहुत से पुराने मित्र थे। यात्रा के दौरान शायद पौलुस गलातिया जाते हुए यरूशलेम में रुका होगा। वह हर कलीसिया में जा जाकर, प्रभु यीशु का प्रचार करता गया और संतों को शुद्धता और पवित्रता का जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करता रहा। वहां संभावित संकटों का सामना करते हुए वह लम्बी यात्रा करके फ्रिगिया पहुंचा। उसे खतरे की परवाह नहीं थी क्योंकि उसने परमेश्वर को अपना जीवन दे दिया था! गलातियों को उसने अपनी पत्री में यूँ कहा, "मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ, अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है, और मैं शरीर में अब जो जीवित हूँ तो केवल उस विश्वास से जीवित हूँ जो परमेश्वर के पुत्र पर है, जिस ने मुझ से प्रेम किया और मेरे लिए अपने आप को दे दिया। "(गलातियों 2:20)।
जब पौलुस यात्रा पर था, एक व्यक्ति इफिसुस आया जहां अक्किला और प्रिस्किल्ला रहते थे। उसका नाम अपुल्लोस था, और वह मिस्र के एक बड़े शहर सिकंदरिया से था। वह बहुत शिक्षित था। वह बाइबल को बहुत अच्छी तरह से जानता था और उसने परमेश्वर के मार्ग को जाना था। वह परमेश्वर के विषय में बहुत उत्साही था और मसीह के बारे में बहुत अच्छी तरह से समझा सकता था, हालांकि उसने केवल यहुन्ना के द्वारा बपतिस्मा लिया था। यहुन्ना बपतिस्मा देने वाले ने लोगों को पश्चाताप करने के लिए कहा क्योंकि मसीहा आने वाला था। अपुल्लोस ने अपने पापों से पश्चाताप किया था, परन्तु यीशु के बारे में कभी नहीं सुना था। वह क्रूस और पुनरुत्थान की कहानी को नहीं जानता था और उसे पवित्र आत्मा नहीं मिली थी। जब अपुल्लोस इफिसुस पहुंचा, तो वह आराधनालय में गया और जितना हो सके उसने सुसमाचार का प्रचार किया। उसने उन्हें पश्चाताप करने के लिए कहा क्योंकि मसीहा आने वाला था!
एक दिन, प्रिस्किल्ला और अक्किला ने अपुल्लोस को आराधनालय में प्रचार करते सुना। वे चकित रह गए। उन्हें पता था कि इस व्यक्ति के लिए यह जानना आवश्यक है कि कहानी कैसे समाप्त हुई। वे उसके पास गए और उसे अपने घर में आमंत्रित किया। उन्होंने उसे सब बातों के विषय में समझाया जो तब से होती आ रही थीं जब युहन्ना बप्तिस्मा देने वाला यरदन नदी में प्रचार कर रहा था और बपतिस्मा दे रहा था। वह एक अद्भुत कहानी थी! क्या आप इसे बता सकते हैं? आइये इसे मिलकर स्मरण करें।
हन्ना बप्तिस्मा देने वाला यीशु का चचेरा भाई था, जो इस्राएल के आने वाले मसीहा का प्रचार करने वाला अंतिम भविष्यद्वक्ता कहा जाता है। यीशु उसके पास बपतिस्मा लेने गया, और जब उसने यीशु को बप्तिस्मा दिया, तो पवित्र आत्मा उसके ऊपर कबूतर के समान उतार कर आई। पिता ने स्वर्ग से कहा, "यह मेरा पुत्र है, जिसे मैं प्यार करता हूं; जिससे मैं अत्यंत प्रसन्न हूं "(मत्ती 3: 17 बी)। यह पृथ्वी पर यीशु की सेवा की शुरुआत थी। यह तीन या चार वर्ष तक चला। उसने बारह शिष्यों को चुना जो हर जगह उसके साथ जाते थे। उसने पूरे गलील और यरूशलेम में स्वर्ग के राज्य का सुसमाचार का प्रचार किया। उसने बीमारों को चंगा किया। उसने अंधों को आँखें दीं, लंगड़ों को चलाया और मृतकों को जिलाया। उसने सच्चाई और अद्भुत चमत्कारों के द्वारा बहूदियों को दिखाया कि वही मसीहा था। बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली और सभी ने सोचा कि शायद यही मसीहा था। परन्तु धार्मिक अगुओं ने उसे पसंद नहीं किया। वे परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य नहीं थे। उसके शुद्ध और सही शिक्षण के कारण वे क्रोधित हो गए, और इसलिए उन्होंने उसका विरोध किया। उन्होंने रोमियों के सामने उस पर मुकदमा चलाया। उसे क्रूस पर चढ़ाया गया। उसके मृत्यु के तीसरे दिन वह मृतकों में से जी उठा । मौत उसे हरा न सकी! वह अपने शिष्यों को चालीस दिनों तक प्रकट होता रहा, और उन्हें राज्य के बारे में सिखाता रहा। तब वह स्वर्ग पर चढ़ गया, जहां वह पिता परमेश्वर के दाहिने हाथ पर बैठ गया। तब से वह सारी सृष्टि पर शासन और राज कर रहा है।
यीशु के जाने से पहले, उसने अपने शिष्यों से वादा किया कि वह उन्हें मार्गदर्शन करने के लिए अपनी पवित्र आत्मा भेजेगा जो उन्हें पृथ्वी पर उसके कार्य को जारी रखने के लिए सशक्त करेगी। यीशु के स्वर्ग में जाने के दस दिन बाद, एक सौ बीस मसीह के अनुयायी यरूशलेम के एक कमरे में बैठे हुए थे। अचानक, वह कमरा एक महान ध्वनी से भर गया। अचानक हर किसी के सिर पर आग की सी जीमें फटती हुई दिखाई दीं। पवित्र आत्मा उतर आई थी। वे सब सहस से भर गए। वे सड़कों पर उतर आए और उस यीशु के विषय में सुसमाचार सुनाने लगे जो मृतकों में से जी उठा था! कुछ सप्ताह के भीतर, पांच हज़ार से अधिक लोगों ने परमेश्वर के पुत्र यीशु पर विश्वास किया। अब पूरी दुनिया में सुसमाचार सुनाया जा रहा था। रोम तक कई कलिसियाएं विकसित हो रही थीं! वाह! मुझे यकीन है कि प्रिस्किल्ला और अक्विला इस कहानी को उत्सुकता के साथ दोहरा रहे होंगे। अल्लोस के लिए वह सुनना कितना आश्चर्यजनक रहा होगा! पूरा सुसमाचार सुनने के बाद, अपुल्लोस रोम प्रान्त के अखाया देश को जाना चाहता था। वह उस कहानी को बताना चाहता था जिसे उसने अभी सीखा था! अन्य शिष्यों ने सोचा कि यह एक अच्छा विचार था। उन्होंने अखाया की कलीसिया को अल्लोस का स्वागत मसीह में एक साथी भाई के रूप में करने के लिए लिखा। जब वह वहां पहुंचा, तो वह वहां के विश्वासियों के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन बना। उसने बहुत साहस के साथ उस कहानी का वर्णन किया जिसके द्वारा उसने अपने बहुमूल्य उद्धारकर्ता के विषय में जाना था।