पाठ 85 मंदिर में पौलुस

पौलुस यरूशलेम के मंदिर में था। पूरा शहर उसके विरुद्ध आक्रोश में था। रोमी सैनिक वास्तव में पौलुस को अपने कंधों पर उठाकर ले गए ताकि भीड़ उसे मार न सके। तब पौलुस ने एक बहुत ही अजीब बात की। उसने पूछा कि क्या वह वापस जाकर भीड़ से बात कर सकता है। । प्रेरित पौलुस यरूशलेम के यहूदी लोगों को यह बताने का एक और मौका देना चाहता था कि उनका मसीहा आएगा, और उसका नाम यीशु था। ऐसा अनुरोध सरदार को बहुत अजीब तरह लग रहा था, परन्तु उसने अनुमति दे दी पौलुस सीडियों पर खड़े होकर उनसे इन्नानी भाषा में साहसपूर्वक बात करने लगा,

"हे भाइयो और पितृ तुल्य सज्जनो! मेरे बचाव में अब मुझे जो कुछ कहना है, उसे सुनो। मैं एक यहूदी व्यक्ति हूँ। किलिकिया के तरसुस में मेरा जन्म हुआ था और मैं इसी नगर में पल-पुस कर बड़ा हुआ। गमलिएल के चरणों में बैठ कर हमारे परम्परागत विधान के अनुसार बड़ी कड़ाई के साथ मेरी शिक्षा-दीक्षा हुई। परमेश्वर के प्रति में बड़ा उत्साही था। ठीक वैसे ही जैसे आज तुम सब हो। इस पंथ के लोगों को मैंने इतना मताया कि उनके प्राण तक निकल गये। मैंने पुरुषों और स्त्रियों को बंदी बनाया और जेलों में ठूस दिया।

"स्वयं महायाजक और बुजुर्गों की समूची सभा इसे प्रमाणित कर सकती है। मैंने दमिश्क में इनके भाइयों के नाम इनसे पत्र भी लिया था और इस पंथ के वहाँ रह रहे लोगों को पकड़ कर बंदी के रूप में यरूशलेम लाने के लिये मैं गया भी था ताकि उन्हें दण्ड दिलाया जा सके।

फिर ऐसा हुआ कि मैं जब यात्रा करते-करते दमिश्क के पास पहुँचा तो लगभग दोपहर के समय आकाश से अचानक एक तीव्र प्रकाश मेरे चारों ओर कौंध गया। मैं धरती पर जा पड़ा। तभी मैंने एक आवाज़ सुनी जो मुझसे कह रही थी, 'शाऊल, ओ शाऊल! तू मुझे क्यों सता रहा है?"

"तब मैंने उत्तर में कहा, 'प्रभु, तू कौन है?' वह मुझसे बोला, 'मैं वही नासरी यीशु हूँ जिसे तू मता रहा है।'

क्या पौलुस ने कभी यीशु को बन्दीगृह में फेंकने की कोशिश की थी? नहीं, पौलुस ने यीशु के अनुयायियों को बन्दीगृह में डाला था। यीशु ने क्यों कहा कि पौलुस यीशु को सता रहा था? क्योंकि जब कोई विश्वासी पर यीशु मसीह के प्रति विश्वास और आज्ञाकारिता के लिए हमला करता है, तो ऐसा लगता है कि वे हमारे परमेश्वर पर हमला कर रहे हैं। वह हमसे प्रेम करता है और हमारी पीड़ा, लज्जा और कठिनाईयों को अपने ऊपर ले लेता है। जब पौलुस को भीड़ ने मारा और चाहते थे कि उसे मार दिया जाये, तो यरूशलेम के यहूदी एक बार फिर से परमेश्वर के पुत्र को सता रहे थे। फिर भी परमेश्वर की अद्भुत कृपा के द्वारा, पौलुस के माध्यम से वह अपने उदार, निरंतर प्रेम के साथ उनके पीछे पड़ा रहा। पौलुस साहसपूर्वक बोलता रहा:

'जो मेरे साथ थे, उन्होंने भी वह प्रकाश देखा किन्तु उस ध्वनि को जिस ने मुझे W सम्बोधित किया था, वे समझ नहीं पाये।

"मैंने पूछा, 'हे प्रभु, मैं क्या करूँ?' इस पर प्रभु ने मुझसे कहा, 'खड़ा हो, और दमिश्क को चला जा । वहाँ तुझे वह सब बता दिया जायेगा, जिसे करने के लिये तुझे नियुक्त किया गया है।' क्योंकि मैं उस तीव्र प्रकाश की चौंध के कारण कुछ देख नहीं पा रहा था, सो मेरे साथी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे ले चले और मैं दमिश्क जा पहुँचा।

"वहाँ हनन्याह नाम का एक व्यक्ति था। वह व्यवस्था का पालन करने वाला एक भक्त था। वहाँ के निवासी सभी यहूदियों के साथ उसकी अच्छी बोलचाल थी। वह मेरे पास आया और मेरे निकट खड़े होकर बोला, 'भाई शाऊल, फिर से देखने लग और उसी क्षण में उसे देखने योग्य हो गया।

"उसने कहा, 'हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने तुझे चुन लिया है कि तू उसकी इच्छा को जाने, उस धर्म-स्वरूप को देखे और उसकी वाणी को सुने। क्योंकि तूने जो देखा है. और जो सुना है, उसके लिये सभी लोगों के सामने तू उसकी साक्षी होगा। सो अब तू और देर मत कर, खड़ा हो बपतिस्मा ग्रहण कर और उसका नाम पुकारते हुए अपने पापों को धो डाल।'

"फिर ऐसा हुआ कि जब मैं यरूशलेम लौट कर मन्दिर में प्रार्थना कर रहा था तभी मेरी समाधि लग गयी। और मैंने देखा वह मुझसे कह रहा है, 'जल्दी कर और तुरंत यरूशलेम से बाहर चला जा क्योंकि मेरे बारे में वे तेरी साक्षी स्वीकार नहीं करेंगे।'

"सो मैंने कहा, 'प्रभु ये लोग तो जानते हैं कि तुझ पर विश्वास करने वालों को बंदी बनाते हुए और पीटते हुए मैं यहूदी आराधनालयों में घूमता फिरा है। और तो और जब तेरे साक्षी स्तिफनुस का रक्त बहाया जा रहा था, तब भी मैं अपना समर्थन देते हुए वहीं खड़ा था। जिन्होंने उसकी हत्या की थी, मैं उनके कपड़ों की रखवाली कर रहा था।"

" फिर वह मुझसे बोला, 'तू जा, क्योंकि मैं तुझे विधर्मियों के बीच दूर-दूर तक भेजूँगा।'

जब पौलुस ने बोलने लगा, तो उसने यहूदी राष्ट्र की उस समय की भाषा इब्रानी में बात की। जब भीड़ ने उसे अपनी भाषा बोलते सुना, तो वे शांत हो गए। लेकिन अब वे फिर से उन्माद में उमड़ गए। वे यह नहीं सुनना चाहते थे कि उन्हें क्या बोलना चाहिए।" ऐसे मनुष्य से धरती को मुक्त करो। यह जीवित रहने योग्य नहीं है।" वे चिल्लाने लगे। कल्पना कीजिए कि हजारों की एक भीड़ आपके ऊपर चिल्ला रही है। पौलुस का साहस विस्मयकारी है।