पाठ 69 पौलुस के सन्देश का परिणाम और अंतिम समय

पौलुस और सीलास रात को चित्रालुनीके से बिरीया शहर को गए। यह बहुत लम्बी पैदल यात्रा थी। उनके मस्तिष्क में कितने विचार आ रहे होंगे। वे शिष्य जिनमें से प्रेम करते थे और जिन्हें पीछे छोड़ दिया था, वह कोशित भीड, जल्दी से बच निकलना, यह सब । वे यहूदी जिन्होंने उथल-पुथल मचाई थी उनके द्वारा संसार में मसीहा आने वाला था!

पौलुस के लिए, यह सबसे बड़ा दुख था कि इस्राएल देश ने, जो उसके अपने लोग थे, मसीहा पर विश्वास नहीं किया। उसने इस पर विचार किया कि किस प्रकार परमेश्वर ने उन्हें अपने नियम दिए थे, कैसे उसने उनके पूर्वजों को बुलाया था: इब्राहीम, इसहाक और याकूब, और कैसे उनके साथ उसके मंदिर में परमेश्वर की विशेष उपस्थिति थी, और किस प्रकार उन्हें परमेश्वर के महान वादे दिए गए थे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परमेश्वर का पुत्र उनके पूर्वजों के माध्यम से पैदा हुआ था (रोमियों 9:4-5 ) । इतिहास में सबसे बड़ा विशेषाधिकार उनके पास था, सबसे बड़ा सम्मान, अनंत काल का महान सम्मान! और फिर भी वे इसके विरुद्ध गए। जब यहूदियों ने पौलुस को अस्वीकार किया तब पौलुस पाप के उस बड़े परिमाण को समझ गया। वह परमेश्वर का संदेशवाहक था, संदेश बहुमूल्य, भव्य और स्थायी था। वे केवल एक प्रवक्ता को अस्वीकार नहीं कर रहे थे जो उनके आराधनालय में आया था। वे उसे अस्वीकार कर रहे थे जिसका कोई मूल्य था। वे परमेश्वर के पुत्र रह चुके थे।

पौलुस जानता था कि समस्या यह थी कि इस्राएल ने अपनी धार्मिकता को अपने बल से स्थापित करने की कोशिश की थी। बजाय विश्वास के द्वारा, वे इसे नियम के द्वारा पाना और मानना चाहते थे। परमेश्वर चाहता है कि उसके लोग उसके नाम से उसे पुकारें, मुक्ति के लिए प्रेम के द्वारा उस पर निर्भर करें। यहूदी परमेश्वर के लिए इस प्रकार काम करने की कोशिश कर रहे थे ताकि वे अच्छे दिखें और उनकी अच्छाई का बड़ा प्रदर्शन हो। यदि वे अपने परमेश्वर के निकट रहना चाहते थे, तो वे यह सुनकर प्रसन्न होंगे कि किस प्रकार यीशु उनके और परमेश्वर के बीच की सभी बाधाओं को नष्ट करने के लिए आया था। परन्तु वे वैसे ही रहना चाहते थे ताकि सबकुछ उनके नियंत्रण और अधिकार में रहे। वे परमेश्वर की चीजों का उपयोग कर रहे थे, परन्तु वे उससे प्रेम नहीं करते थे। उनके हृदय कठोर थे।

अपने लोगों को इतनी महान मुक्ति से दूर जाते देख पौलुस बहुत दुखी हुआ। जो विश्वास करने वाले कुछ लोग थे उन्हें देख कर उसका हृदय कितना आनंदित हुआ ! पौलुस इस्राएल के लिए प्रार्थना करता रहा (रोमियों 10:1), इस विश्वास से कि परमेश्वर के घर से एक विशेष समूह, एक अवशेष था, जो मुक्ति के विषय में परमेश्वर की ऐतिहासिक योजना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह इस युग में नहीं होगा, क्योंकि यही वह समय था जिसे परमेश्वर ने अन्यजातियों के उद्धार के लिए अलग किया था। परन्तु एक दिन कुछ विश्वासयोग्य इसरायली यह जानेंगे कि वे परमेश्वर के सच्चे लोग थे।

परमेश्वर प्रकाशितवाक्य की किताब में हमें प्रेरित युहन्ना के द्वारा बताता है कि अंतिम दिनों में यहूदी यीशु पर विश्वास लायेंगे। वे देशों को यीशु मसीह पर विश्वास दिलाने में एक शक्तिशाली भूमिका निभाएंगे। उन दिनों में, यरूशलेम दुनिया का सबसे शक्तिशाली शहर बन जाएगा। मसीह स्वयं पूरी धरती पर शासन करेगा और राज करेगा, और यहूदी लोग उसके साथ राज करेंगे! वाह वह समय एक हज़ार वर्ष तक चलेगा। इसे मिलेनियम कहा जाता है।

सहस्राब्दी युग के बाद, मसीह जीवित और मरे हुओं का न्याय करेगा। इसे ग्रेट व्हाइट थ्रोन जजमेंट कहा जाता है। परमेश्वर का भड़का हुआ क्रोध हर उस व्यक्ति पर होगा जिसने प्रभु यीशु पर अपना विश्वास नहीं रखा है। जो लोग पश्चाताप करते हैं और उस पर भरोसा रखते हैं वे उस बलिदान द्वारा बचाए जाएँगे जो क्रूस पर दिया गया था। जो क्रोध हमें सहना चाहिए था उसे पहले ही यीशु ने क्रूस पर बड़ी पीड़ा के साथ सह लिया। वह न्याय करेगा, और फिर वह शैतान और उसके पीछे चलने वाली सभी विद्रोही मानवता को नरक में जो अनंतकाल की आग की झील है, डाल देगा। तब यीशु पृथ्वी और सारे स्वर्ग को नष्ट कर देगा। यह शापित दुनिया आग की तरह जल जाएगी। तब यीशु एक नया स्वर्ग और एक नई पृथ्वी बनायेगा जहां हम सभी हमेशा के लिए परमेश्वर के साथ पूर्ण आनंद और शांति के साथ रहेंगे। वह समय अभी तक नहीं आया है, लेकिन ऐसा होगा!

यह कितना एक अद्भुत भविष्य है। जब कोई यीशु को चुनता है, तो वह इसी को ही चुनता है। जब वह यीशु को अस्वीकार करता है, तो वह सब कुछ खो देता है। वह हमेशा के लिए नरक में होगा। ऐसा कोई भी निर्णय कोई भी व्यक्ति अपने जीवनभर में नहीं ले सकता जो इससे अधिक महत्वपूर्ण हो। पौलुस इसे एक शहर से दूसरे शहर में जाते हुए समझ गया था। वह जानता था कि स्वर्ग के राजा के एक दूत के रूप में, उसके ऊपर गंभीर जिम्मेदारी थी।