पौलुस और सीलास मार्ग से होते हुए बिरीया नामक एक शहर में पहुंचे। जब वे वहां पहुंचे, तो वे यहूदी आराधनालय में गए। क्या वे बहादुर नहीं हैं? लगभग हर शहर में, वे पहले आराधनालय में गए, लेकिन लगभग हर बार यहूदी उनके लिए परेशानी पैदा कर देते थे! फिर भी, जहाँ भी वे गए, कुछ यहूदी यीशु को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में जान जाते थे थिस्सलुनीके के लोगों की तुलना में विरीया के लोग अपने चरित्र में अधिक सम्मानजनक और महान थे।
Read Moreपौलुस अपने मित्रों के लिए एथेंस में प्रतीक्षा कर रहा था। एथेंस पौलुस के समय में भी एक महान, प्राचीन शहर था। जब पौलुस एथेंस की जीवन शैली को देखकर बहुत परेशान हुआ सब जगह मूर्तियाँ थीं! उसे आराधनालय में जाकर यहूदियों को बताना होगा कि उनका मसीहा आ गया था।
Read Moreपौलुस एथेंस में नए विश्वासियों को छोड़ कर कुरिन्थुस नामक शहर में चला गया। उस शहर में विभिन्न देवताओं के नाम कम से कम बारह मंदिर थे। यह एक ऐसा शहर था जहां गंदी अनैतिकता एक सामान्य बात थी और पूरे यूनान में "कुरिन्थुस" शब्द के दो अर्थ जाने जाते थे। इस शहर में सब कुछ बहुत बुरा (एनआईवीएसटी 1774 ) होता था।
Read Moreसीरिया जाने के डेढ़ साल पहले पौलुस कुरिन्दुस में रहता था। उसके प्रिय मित्र प्रिस्किल्ला और अक्किला उसके साथ गए। जब वे किंखिया नामक एक शहर में थे, पौलुस ने शपथ अनुसार सिर मुंडाया।
Read Moreजब प्रिस्किल्ला और अकिला अभी भी कुरिन्युस में अपुल्लोस की सेवा कर रहे थे, तब पौलुस सारे प्रदेश से होकर समुद्र से दूर के क्षेत्र में लम्बी यात्रा पर था। वह इफिस के रास्ते जा रहा था, लेकिन यह पहले की तुलना में एक अलग मार्ग था। इस मार्ग पर जाने से वह कुछ पुरुषों के एक समूह से मिला जिन्होंने कहा कि वे शिष्य थे।
Read Moreजब पौलुस इफिसुस में था, उसने जाना कि कुरिन्थुस की कलीसिया में समस्याएं थीं। उसके लिए उनसे मिलना असंभव था, जिस प्रकार कुरिन्दुस में रहते हुए वह थिस्सलुनीकियों की यात्रा नहीं कर सका। इसलिए जिस प्रकार उसने थिस्सलुनीकियों को पत्र लिखे थे वैसे ही उसने उन्हें भी पत्र लिखे ।
Read Moreकुरिन्युस की कलीसिया उसी भ्रष्ट, दुष्ट तरीके से पेश आ रही थी जिस प्रकार बाकी दुनिया करती थी। यीशु ने कहा कि सबसे बड़ी आज्ञा परमेश्वर से अपने सारे मन, आत्मा, और बल से प्रेम करना है। उसने कहा कि एक दूसरे से प्रेम करना दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा दी।
Read Moreपौलुस इफिसुस में ढाई वर्ष तक रहा। यह संभवतः वर्ष 53 ईस्वी में सितंबर के महीने से 56 वर्ष के वसंत की शुरुआत का समय था। उसने पूरे क्षेत्र के पुरुषों को तुरन्नुस की पाठशाला में शिक्षा दी। वे दूर यात्रा करके उन तथ्यों को सुनने के लिए आते थे जो पौलुस उन्हें बताता था कि किस प्रकार यीशु का आना पुराने नियम की भविष्यवाणियों के अनुसार था।
Read Moreलगभग उसी समय पौलुस ने जब तीमुथियुस और इरास्तुस को कुरिन्य भेजा ताकि वे उसकी प्रतीक्षा करें और यरूशलेम जाने की योजना बनायें, इफिसुस में कलीसिया के लिए बड़ी परेशानियां शुरू हो गयीं। इफिसुस एक बड़ा शहर था जिसमें रोम की अरतिमिस नाम की देवी के लिए एक विशाल मंदिर बनाया गया था। यह शहर का गौरव था।
Read More"इफिसियों का अरतिमिस महान है।" इफिसुस के लोग उस महान रंगशाला में चिल्ला रहे थे वे यीशु मसीह के नाम के विरूद्ध विद्रोह में अपनी देवी अरतिमिस के नाम को ले रहे थे। जब इफिसुस के लोग मसीह पर विश्वास करने लगे तब अरतिमिस की मूर्तियों की बिक्री बहुत कम हो गई।
Read Moreत्रोआस में जोखिम भरी शाम के बाद, पौलुस के साथी एक जहाज़ पर चढ़कर अस्सुस के लिए रवाना हुए। लूका उनके साथ था। वे वहां पौलुस से मिलने जा रहे थे, परन्तु वह वहां आप ही पैदल जाने वाला था। पौलुस असोस में नाव पर अपने मित्रों से जुड़ गया और वे लेस्बोस द्वीप पर स्थित मिलेस के बंदरगाह कि ओर गए।
Read Moreइफिस की कलीसिया के प्राचीनों को जो कुछ पौलुस के हृदय में था उन्हें बताने के बाद, उसने उनके साथ घुटने टेके और मिलकर प्रार्थना की। जब वे विदा हो रहे थे, वे गले लग कर बहुत रोये और चुंबन देकर विदा हुए। वे यह सुनकर बहुत दुखी थे कि वे अब कभी पौलुस को नहीं देख पाएंगे।
Read Moreसूर से निकलकर शिष्य जलयात्रा करके पतुलिमयिस में उतरे। वहां कुछ विश्वासी भाई थे, और इसलिए वे वहां गए। क्या यह अद्भुत बात नहीं कि जहाँ कहीं भी यरूशलेम में पौलुस उतरता था वहां भेंट करने के लिए मसीही भाई और बहन होते थे? प्रेरितों की किताब की शुरुआत में लिखा है कि, दुनिया में एक सौ बीस विश्वासी थे।
Read Moreयरूशलेम में मसीही भाइयों ने पौलुस और लूका और अन्यों को प्रेम से मिले। दूसरे दिन पहुँचने के बाद, वे यीशु के भाई याकूब के पास गए, जो यरूशलेम की कलीसिया का मुखिया था। कलीसिया के प्राचीन भी वहां थे। यह एक विशेष समय होगा।
Read Moreपौलुस ने अपने प्रिय मित्र लूका के साथ यरूशलेम की यात्रा की। पवित्र आत्मा ने उसे विभिन्न कलीसियाओं में उसके मित्रों के माध्यम से चेतावनी दी कि उसके पहुँचने पर उसे बंधी बनाया जाएगा। उसके आने के एक दिन बाद, यहूदा और प्राचीन ने उससे भेंट की। उन्हें कितना अजीब लग रहा होगा।
Read Moreपौलुस यरूशलेम के मंदिर में था। पूरा शहर उसके विरुद्ध आक्रोश में था। रोमी सैनिक वास्तव में पौलुस को अपने कंधों पर उठाकर ले गए ताकि भीड़ उसे मार न सके। तब पौलुस ने एक बहुत ही अजीब बात की। उसने पूछा कि क्या वह वापस जाकर भीड़ से बात कर सकता है।
Read Moreजब पौलुस बोल रहा था, तब भीड़ चिल्लाने और कपड़े फेंकने और आकाश में धूल उड़ाने लगी। इसे अपने दिमाग में चित्रित कीजिये। एक अकेला व्यक्ति, उस कोधित भीह के सामने साहसपूर्वक खड़ा हुआ है, जो बहुत क्रोधित दिख रही है। कल्पना कीजिए कि रोमी सैनिक क्या सोच रहे थे।
Read Moreजब रोमी सरदार ने देखा कि धोखाधड़ी की भीड़ का क्रोध और बढ़ता जा रहा था, तो उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वे पौलुस को बैरकों में से लाकर उसे कोड़े लगायें। सरदार यह जानना चाहता था कि पौलुस ने ऐसा क्या कहा जिससे यरूशलेम का पूरा शहर क्रोधित हो गया था।
Read Moreसरदार को सोचना होगा कि पौलुस नामक इस व्यक्ति को कैसे संभाला जाए। वह एक रोमी नागरिक था जिसने यूनानी और एक यहूदी से बात की जो इब्रानी भाषा बोलते थे ।
Read Moreयहूदी अभी भी उस संदेश को लेकर क्रोधित थे जिसे पौलुस यरूशलेम में वापस ले आया था। उस सुबह के बाद जिस दिन जीवित परमेश्वर के पुत्र ने पौलुस के साथ भेंट की थी, चालीस से अधिक लोगों ने पौलुस को मारने का षड्यंत्र रचा। यह केवल एक सांसारिक लड़ाई नहीं थी। यह आध्यात्मिक थी।
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