पाठ 61 एक नए शहर की जीवनशैली

पौलुस ने उन कलीसियाओं को कई पत्र लिखे जिन्हें परमेश्वर ने उसकी सेवकाई के माध्यम से स्थापित किया था। उनमें से कई अब नए नियम का हिस्सा हैं। रोमियों, पहला और दूसरा कुरिन्थियों, गलातियों, इफिसियों, फिलिप्पियों, कुलुस्सियों, और पहला और दूसरा थिस्सलुनीकियों, ये सभी पत्र हैं जिन्हें पौलुस ने विभिन्न कलीसियाओं को लिखे थे ।

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पाठ 62 एक नए अजीब प्रकार के लोग: कलेमेंस की कहानी -भाग 1

अगले पांच पाठों के लिए, हम कलेमेंस नाम के एक व्यक्ति के बारे में एक मनगठन कहानी को पढ़ेंगे। हम यह दिखाने का नाटक कर रहे हैं कि वह एक वास्तविक व्यक्ति था जो थिस्सलोनिका में रहता था जब पौलुस सुसमाचार का प्रचार करने आया था।

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पाठ 63 एक नए अजीब प्रकार के लोग: कलेमेंस की कहानी भाग II

मेरा डर और मेरी परेशानियाँ मुझे भीतर से खाई जा रहीं थीं। मेरी पत्नी बंजर थी और मेरे मालिक के पूरे परिवार के सामने उसका अपमान किया जा रहा था। वह तनाव के कारण दुर्बल होती जा रही थी। मुझे यकीन था कि दिमेत्रियस ने मुझ पर शाप डाला है, और मैंने भी उसे कई शाप दिए थे।

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पाठ 64 एक नए अजीब प्रकार के लोग: कलेमेंस की कहानी- भाग 1/1

प्रेरित पौलुस की कार्यशाला में वे पहले कुछ घंटे पूरे जीवन के पहले कदम थे। मैं दिल से यीशु को चाहता था। उन्होंने मुझे बताया कि मुझे विश्वास का दान दिया गया है, कि मेरे पाप पूरी तरह से क्षमा हुए हैं, और मैं मसीह में एक नई सृष्टि था. मेरा दिल जो पाप से भरा हुआ था वह शुद्ध पानी की तरह यीशु के लहू द्वारा शुद्ध किया गया था! मैं राजा का पुत्र था।

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पाठ 65 एक अजीब नए प्रकार के लोग: कलेमेंस की कहानी भाग V

मसीह में मेरी पत्नी और मेरे जीवन में बहुत अद्भुत परिवर्तन आए। उसे अब निःसंतान होने के लिए लज्जित नहीं होना पड़ेगा। मैं अब उन दुष्ट देवताओं से नहीं डरता था जो बाकी शहर पर शासन करते थे। हमारे पास यीशु मसीह के नाम की सामर्थ थी! और यद्यपि इसके कारण मुझे जैविक परिवार के साथ बहुत पीड़ा सहना पड़ा, फिर भी परमेश्वर ने हमें एक कलीसिया का परिवार दिया था जिन्होंने हमसे इस तरह प्रेम किया जिसकी हमने पहले कभी आशा नहीं की थी।

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पाठ 66 एक अजीब नए प्रकार के लोग: कलेमेंस की कहानी भाग 4

पूरे घर में यह बात फैल गई कि मेरी पत्नी और मैं यहूदी धर्म के नए संप्रदाय में शामिल हो गए हैं। शहर में हर कोई पौलुस और सीलास के बारे में जानता था। मेरे मालिक की पत्नी, एंड्रोमेडा, कई वर्षों से यहूदी आराधनालय में जा रही थी। पहले कुछ सप्ताह तक उसे पौलुस और सीलास द्वारा बताई गयीं बातें अच्छी लगती रहीं। तब आराधनालय के यहूदी अगुए उनके विरुद्ध होने लगे। उन्होंने यीशु के संदेश को अस्वीकार किया।

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पाठ 67 एक नए अजीब प्रकार के लोग: कलेमेंस की कहानी- भाग 5

पौलुस और सीलास के चले जाने से एक बड़ा खालीपन आ गया था, लेकिन इससे हम बलपूर्वक मसीह यीशु में एक साथ खड़े रहे। रात के अंधेरे में उनके छिप कर चले जाने के कुछ महीनों बाद, पौलुस और सीलास ने तीमुथियुस को हमें दृढ़ करने के लिए वापस भेज दिया। हम उसके नेतृत्व से कितने प्रसन्न थे! हम ऐसी युवा कलीसिया थे, हमें लगा कि हमें अभी भी बाइबिल को समझने में और जीने में सहायता की आवश्यकता थी।

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पाठ 68 पौलुस कलीसिया को प्रभु के हाथों में सौंपता है

पिछले दो सप्ताह में, हमने घिस्सलुनीके के विषय में और किस प्रकार पौलुस ने प्रत्येक शहर में एक कलीसिया को जागृत किया, सीखा है। हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि पवित्र आत्मा द्वारा पौलुस को कौन से लक्ष्य दिए गए थे। वही आत्मा हमारे दिल में है, और परमेश्वर चाहता है कि हम भी उसी प्रकार जीएं! बिसनीके में पौलुस और सीलास की कहानी से आरंभ होकर अब हम प्रेरितों की पुस्तक में अगली कहानियों की ओर बढ़ेंगे। याद रखें, उनके बन्दीगृह में डाल दिए थे।

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पाठ 69 पौलुस के सन्देश का परिणाम और अंतिम समय

पौलुस और सीलास रात को चित्रालुनीके से बिरीया शहर को गए। यह बहुत लम्बी पैदल यात्रा थी। उनके मस्तिष्क में कितने विचार आ रहे होंगे। वे शिष्य जिनमें से प्रेम करते थे और जिन्हें पीछे छोड़ दिया था, वह कोशित भीड, जल्दी से बच निकलना, यह सब । वे यहूदी जिन्होंने उथल-पुथल मचाई थी उनके द्वारा संसार में मसीहा आने वाला था!

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पाठ 70 बिरीया के माननीय लोग

पौलुस और सीलास मार्ग से होते हुए बिरीया नामक एक शहर में पहुंचे। जब वे वहां पहुंचे, तो वे यहूदी आराधनालय में गए। क्या वे बहादुर नहीं हैं? लगभग हर शहर में, वे पहले आराधनालय में गए, लेकिन लगभग हर बार यहूदी उनके लिए परेशानी पैदा कर देते थे! फिर भी, जहाँ भी वे गए, कुछ यहूदी यीशु को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में जान जाते थे थिस्सलुनीके के लोगों की तुलना में विरीया के लोग अपने चरित्र में अधिक सम्मानजनक और महान थे।

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पाठ 71 अज्ञात परमेश्वर का प्रकट होना।

पौलुस अपने मित्रों के लिए एथेंस में प्रतीक्षा कर रहा था। एथेंस पौलुस के समय में भी एक महान, प्राचीन शहर था। जब पौलुस एथेंस की जीवन शैली को देखकर बहुत परेशान हुआ सब जगह मूर्तियाँ थीं! उसे आराधनालय में जाकर यहूदियों को बताना होगा कि उनका मसीहा आ गया था।

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पाठ 72 पौलुस का कुरिन्युस में लम्बा ठहरना

पौलुस एथेंस में नए विश्वासियों को छोड़ कर कुरिन्थुस नामक शहर में चला गया। उस शहर में विभिन्न देवताओं के नाम कम से कम बारह मंदिर थे। यह एक ऐसा शहर था जहां गंदी अनैतिकता एक सामान्य बात थी और पूरे यूनान में "कुरिन्थुस" शब्द के दो अर्थ जाने जाते थे। इस शहर में सब कुछ बहुत बुरा (एनआईवीएसटी 1774 ) होता था।

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पाठ 73 सीरिया को जाना

सीरिया जाने के डेढ़ साल पहले पौलुस कुरिन्दुस में रहता था। उसके प्रिय मित्र प्रिस्किल्ला और अक्किला उसके साथ गए। जब वे किंखिया नामक एक शहर में थे, पौलुस ने शपथ अनुसार सिर मुंडाया।

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पाठ 74 इफिसुस को जाने वाला मार्ग

जब प्रिस्किल्ला और अकिला अभी भी कुरिन्युस में अपुल्लोस की सेवा कर रहे थे, तब पौलुस सारे प्रदेश से होकर समुद्र से दूर के क्षेत्र में लम्बी यात्रा पर था। वह इफिस के रास्ते जा रहा था, लेकिन यह पहले की तुलना में एक अलग मार्ग था। इस मार्ग पर जाने से वह कुछ पुरुषों के एक समूह से मिला जिन्होंने कहा कि वे शिष्य थे।

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पाठ 75 कुरिन्थियों के नाम पत्री

जब पौलुस इफिसुस में था, उसने जाना कि कुरिन्थुस की कलीसिया में समस्याएं थीं। उसके लिए उनसे मिलना असंभव था, जिस प्रकार कुरिन्दुस में रहते हुए वह थिस्सलुनीकियों की यात्रा नहीं कर सका। इसलिए जिस प्रकार उसने थिस्सलुनीकियों को पत्र लिखे थे वैसे ही उसने उन्हें भी पत्र लिखे ।

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पाठ 76 कुरिन्थियों के नाम पत्रियाँ

कुरिन्युस की कलीसिया उसी भ्रष्ट, दुष्ट तरीके से पेश आ रही थी जिस प्रकार बाकी दुनिया करती थी। यीशु ने कहा कि सबसे बड़ी आज्ञा परमेश्वर से अपने सारे मन, आत्मा, और बल से प्रेम करना है। उसने कहा कि एक दूसरे से प्रेम करना दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा दी।

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पाठ 77 स्किवा के सात पुत्र और जलते हुए सूचीपत्र

पौलुस इफिसुस में ढाई वर्ष तक रहा। यह संभवतः वर्ष 53 ईस्वी में सितंबर के महीने से 56 वर्ष के वसंत की शुरुआत का समय था। उसने पूरे क्षेत्र के पुरुषों को तुरन्नुस की पाठशाला में शिक्षा दी। वे दूर यात्रा करके उन तथ्यों को सुनने के लिए आते थे जो पौलुस उन्हें बताता था कि किस प्रकार यीशु का आना पुराने नियम की भविष्यवाणियों के अनुसार था।

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पाठ 78 इफिस में उपद्रव

लगभग उसी समय पौलुस ने जब तीमुथियुस और इरास्तुस को कुरिन्य भेजा ताकि वे उसकी प्रतीक्षा करें और यरूशलेम जाने की योजना बनायें, इफिसुस में कलीसिया के लिए बड़ी परेशानियां शुरू हो गयीं। इफिसुस एक बड़ा शहर था जिसमें रोम की अरतिमिस नाम की देवी के लिए एक विशाल मंदिर बनाया गया था। यह शहर का गौरव था।

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पाठ 79 तूफ़ान को शांत करना

"इफिसियों का अरतिमिस महान है।" इफिसुस के लोग उस महान रंगशाला में चिल्ला रहे थे वे यीशु मसीह के नाम के विरूद्ध विद्रोह में अपनी देवी अरतिमिस के नाम को ले रहे थे। जब इफिसुस के लोग मसीह पर विश्वास करने लगे तब अरतिमिस की मूर्तियों की बिक्री बहुत कम हो गई।

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पाठ 80 पौलुस और उसके मित्रों की आगे यात्रा

त्रोआस में जोखिम भरी शाम के बाद, पौलुस के साथी एक जहाज़ पर चढ़कर अस्सुस के लिए रवाना हुए। लूका उनके साथ था। वे वहां पौलुस से मिलने जा रहे थे, परन्तु वह वहां आप ही पैदल जाने वाला था। पौलुस असोस में नाव पर अपने मित्रों से जुड़ गया और वे लेस्बोस द्वीप पर स्थित मिलेस के बंदरगाह कि ओर गए।

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