पाठ 68 पौलुस कलीसिया को प्रभु के हाथों में सौंपता है

पिछले दो सप्ताह में, हमने घिस्सलुनीके के विषय में और किस प्रकार पौलुस ने प्रत्येक शहर में एक कलीसिया को जागृत किया, सीखा है। हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि पवित्र आत्मा द्वारा पौलुस को कौन से लक्ष्य दिए गए थे। वही आत्मा हमारे दिल में है, और परमेश्वर चाहता है कि हम भी उसी प्रकार जीएं! बिसनीके में पौलुस और सीलास की कहानी से आरंभ होकर अब हम प्रेरितों की पुस्तक में अगली कहानियों की ओर बढ़ेंगे। याद रखें, उनके बन्दीगृह में डाल दिए थे। जाने और पीटे जाने के बाद वे फिलिप्पी से चले गए।

पौलुस और सीलास ने फिलिप्पी की यात्रा बुरी तरह पीटे जाने और चोटिल अवस्था में पैदल यात्रा की वे मकिदुनिया प्रांत के राजधानी शहर विस्सलुनीके के लिए निकल गए। वहां एक यहूदी आराधनालय था, और हमेशा की तरह, पौलुस ने पहले यहूदी लोगों को यह बताया कि उनका मसीहा आया था। हर सब्त वह शासकों से बात करने के लिए आराधनालय में वापस जाता था, और उन्हें पुराने नियम से दिखाता था कि यीशु वास्तव में मसीह था। उन्होंने पुराने नियम की भविष्यवाणियों को बताते हुए उन्हें उस व्यक्ति के विषय में बताया जो कई लोगों के पापों को सहने के लिए आ रहा था। उसने दिखाया कि किस प्रकार बाइबल में उस आने वाले व्यक्ति के विषय में भविष्यवाणी की गई थी जो मरे हुओं में से जी उठेगा। कुछ यहूदियों ने माना कि पौलुस यीशु के विषय में सही बात बता रहा है। बहुत से परमेश्वर से डरने वाले यूनानी भी परमेश्वर के पास आए। उनमें से कुछ शहर के शक्तिशाली और अमीर परिवारों की महिलाएं थीं।

जब आराधनालय के कुछ यहूदी अगुओं ने देखा कि यीशु पर कितने लोग विश्वास कर रहे थे, तो उन्हें बहुत ईर्ष्या हुई। एक दिन वे उन लोगों को खोजने के लिए बाज़ार में चुपके से गए जो उनके साथ मिलकर मुसीबत खड़ी कर सकें। उन्होंने कुटिल, बुरे लोगों की एक भीड़ इकट्ठी की और शहर में दंगा करने लगे। लोग सड़कों पर चिल्लाने लगे और क्रोध से भर गए। सब जगह हिंसा और अराजकता फैली हुई थी। भीड़ ने पौलुस और सीलास को खोजा ताकि वे उन्हें सब लोगों के सामने खींचकर ला सकें यासोन पौलुस और सीलास के मित्रों में से एक था, इसलिए वे तुरंत उसके घर पहुंचे। जब उन्हें वहां प्रेरित नहीं मिले, तो वे यासोन और कुछ अन्य मसीही भाइयों को शहर के शासकों के सामने खींचकर ले आए। उथल-पुथल और प्रलोभन के बीचे वे चिल्लाने लगे कि, " ये लोग जिन्होंने सारी दुनिया में उथल पुथल मचा रखी है, अब यहाँ आये हैं। और यासोन सम्मान के साथ उन्हें अपने घर में ठहराये हुए हैं। और वे सभी कैंसर के आदेशों के विरोध में काम करते हैं और कहते है, एक राजा और है जिसे यीशु कहा जाता है।"

यह सुनकर भीड़ भड़क गई और नियंत्रण से बाहर हो गई। जिस महाराजा की वे देवता और राजा के रूप में पूजा करते हैं वह क्रोधित होगा यदि अन्य किसी राजा कि उसके शहर में पूजा की गई। वह अपनी सुरक्षा और आशीर्वाद प्रदान नहीं करेगा । चिमनीके की अमीरी और सुरक्षा नहीं रहेगी। हर कोई डर और भय में जी रहा

था। उन्हें विश्वास नहीं था कि यीशु ही वह एक सच्चा परमेश्वर था जो अन्य सभी देवताओं और मूर्तियों के ऊपर अधिकार रखता है। अंधकार का राज्य ज्योति के राज्य के विरुद्ध संघर्ष कर रहा था। वे उस सत्य को नहीं सुनना चाहते थे जिसके द्वारा वे बच सकते थे। उन्होंने यासोन और अन्य भाइयों को पैसे दिए और फिर उन्हें घर जाने दिया। परन्तु युद्ध अभी जारी था।

यह स्पष्ट था कि थिस्सलुनीके पौलुस और सीलास के लिए एक सुरक्षित स्थान नहीं था। जब रात हुई, तो उनके नए विश्वासी मित्रों ने उन्हें विरीया भेज दिया। पौलुस के लिए यह नई कलीसिया को छोड़ना बहुत कठिन था, उसने ऐसा लगा मानो उसे अलग किया जा रहा है (1 थिस्सलुनीकियों 2:17)। उन लोगों के लिए पौलुस का प्रेम बहुत महान था जिन्होंने उसके संदेश के द्वारा परमेश्वर को जाना था उसे लगा मानो वे उसके ही बच्चे थे। उसने बिस्मलुनिकियों को हमारी आशा, आनंद या बड़ाई का मुकुट जो अपने प्रभु यीशु के सम्मुख महिमा करते हैं... हां वास्तव में, तुम हमारी बड़ाई और हमारी आनंद हो, कहा (1 थिस्सलुनीकियों 2: 19-20)

पौलुस इस जीवन में धन या सोना या प्रसिद्धि नहीं चाहता था। वह उस सामर्थ को नहीं चाहता था जो यह दुनिया देती है। पौलुस के लिए सबसे बड़ा धन मसीह था, और जितना अधिक लोग मसीह के पास आते थे

वह उतना ही आनंदित होता था। उसे इतनी जल्दी छोड़ कर जाने से दुःख था। वह जानता था कि उसी भीड़ ने जिसने उसे ढूंढ निकाला था वे उन विश्वासियों को सताएँगे जिन्हें वह पीछे छोड़ कर जा रहा था।