पाठ 64 एक नए अजीब प्रकार के लोग: कलेमेंस की कहानी- भाग 1/1
प्रेरित पौलुस की कार्यशाला में वे पहले कुछ घंटे पूरे जीवन के पहले कदम थे। मैं दिल से यीशु को चाहता था। उन्होंने मुझे बताया कि मुझे विश्वास का दान दिया गया है, कि मेरे पाप पूरी तरह से क्षमा हुए हैं, और मैं मसीह में एक नई सृष्टि था. मेरा दिल जो पाप से भरा हुआ था वह शुद्ध पानी की तरह यीशु के लहू द्वारा शुद्ध किया गया था! मैं राजा का पुत्र था। फिर भी मुझे अभी भी बहुत कुछ सीखना था। कार्यशाला में जब वे सिखा रहे थे, मैं बहुत अभिभूत हुआ। मैं बहुत सी बातें नहीं जानता था! मैं इस यीशु को कैसे प्रसन्न कर पाउँगा ? जब मैंने उन्हें बताया कि मैं कैसा महसूस कर रहा हूँ, तो मुझे दूसरा सबसे महान दान दिया गया। पौलुस ने मुझे वह पुस्तक दिखायी। बाइवल । यह मुझे अपने परमेश्वर के विषय में सब कुछ बताती है। वह अजनबी नहीं है, वह कभी नहीं बदलता है। जो कुछ वह करता है वह अच्छा, शुद्ध, और सिद्ध होता है। और उसने स्वयं को उस बहुमूल्य वचन में प्रकट किया है ताकि मैं उसे वास्तव में जान सकूं। मैं समझ गया कि मैं उसे कैसे प्रसन्न कर सकता हूँ! भ्रम और अंधकार के दिन समाप्त हो गए थे। मैं अपने परमेश्वर को जान सकता था!
प्रेरितों ने मुझे बताया कि मुझे अन्य सभी देवताओं को त्यागना होगा और यीशु मसीह के परमेश्वर के अलावा किसी अन्य की उपासना करने से पश्चाताप करना होगा। बाइबल भी यही कहती है। वास्तव में, यह इसके विषय में बहुत बताती है। । इससे कोई बच नहीं सकता था। मुझे यह समझने में बहुत समय लगा कि वास्तव में केवल एक ही परमेश्वर था। मेरा परिवार सैकड़ों वर्षों से हमारे देवताओं की पूजा कर रहा था। सबसे पहले, मैंने सोचा कि परमेश्वर वास्तव में लालची होगा क्यूंकि वह चाहता था कि मैं केवल उसी की उपासना करूँ ।
मुझे कुछ दर्दनाक और डरावने निर्णय लेने थे। मेरा उद्धारकर्ता जितना सुंदर था, मैं अभी भी उसकी भव्यता और महिमा की महानता को समझ नहीं पाया। मैं उसके बचाने की शक्ति को नहीं समझ पाया। मैं यह पूरी तरह से नहीं समझ पाया कि वह पूरे ब्रह्मांड की अन्य सब शक्तियों पर शासन करता है। मैंने कभी इस तरह के एक महाप्रतापी परमेश्वर की कल्पना नहीं की थी! मैं उन अन्य देवताओं के बारे में चिंतित था, जिन्हें मैंने पीछे छोड़ दिया था। उनके मंदिरों में न जाने से क्या वे मुझे शाप देंगे? मैं इतने लंबे समय से इतने सारे देवताओं से प्रार्थना कर रहा था। मेरे कुछ देवता मेरे मृत रिश्तेदार थे, और उन्हें छोड़ना विश्वासघात की तरह था। परन्तु परमेश्वर ने कहा कि सारी महिमा और आराधना उसी की होनी चाहिए।
सबसे पहले, मैंने जो परिवर्तन किया वह केवल यीशु मसीह से प्रार्थना करना था। मैं अभी भी मंदिरों में जा रहा था और मैंने अपने माता-पिता और अन्य परिवार के सदस्यों को अपने अन्दर इस बड़े परिवर्तन के बारे में नहीं बताया था। लेकिन पवित्र आत्मा मेरे दिल में कार्य कर रही थी, और मेरे विश्वासी परिवार ने मुझे यह बताया कि मुझे अपने जीवन के हर हिस्से के द्वारा मसीह का आदर करना है। मुझे सम्राट और मेरे परिवार के पंथ ईश्वर से प्रार्थना और बलि चढ़ाना बंद करना होगा। अंत में मैंने ऐसा ही किया।
मेरा परिवार क्रोधित था। मेरे माता-पिता ने मुझसे दो साल तक बात नहीं की। मेरी बहनों में से एक कि शादी अस्वीकार हुई क्योंकि वह मुझसे संबंधित थी। उस समय मेरे परिवार और मेरे रिश्तेदारों के साथ जो कुछ भी बुरा हुआ, उसके लिए मुझ पर दोष लगाया गया। यह भयानक था, क्योंकि मुझे मालूम था कि यह आंशिक रूप से सच था। मेरे छोड़ने के कारण मेरे परिवार को नियंत्रित करने वाली दुष्ट शक्तियां क्रोधित थीं, और वे अब मेरे बाकि के परिवार पर हावी हो रहीं थीं ताकि वे उन्हें उन बातों से डरा सकें जो मैंने यीशु के बारे में सीखी थीं। मैं अभी भी प्रार्थना कर रहा हूं कि वे यीशु पर विश्वास करें।
मेरी पत्नी एक पूरी अलग कहानी है। जब मैंने उसे यीशु के बारे में बताया, तो उसका टूटा हुआ दिल पहले से ही नम्र और दीन था। वह आशा के संदेश को सुनने के लिए तैयार थी। बाद में हमने सोचा कि शायद परमेश्वर ने हमें इसलिए संतान नहीं दी ताकि हम कुछ और की खोज करें। यह देवताओं का बदला लेने या हमारे पाप के नतीजे से परे, हमारा ध्यान पाने का परमेश्वर का तरीका था! हमारे नुकसान में, हमें सबसे बड़ा दान मिला! मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं पीड़ा के उस समय के लिए आभारी हूंगा, लेकिन मैं हूँ ।
हम तुरंत प्रेरितों से मिलने लगे। हम परमेश्वर की कृपा और क्षमा के बारे में अधिक जानने के लिए भूखे और प्यासे थे। मेरे जीवन में इतना पाप और क्रोध था जिसे परमेश्वर की मदद की आवश्यकता थी! हम अपने संघर्षो को अपने नए भाइयों और बहनों के पास लाकर उनका आसुओं के साथ पश्चाताप करेंगे। तब हम मिलकर परमेश्वर से, जो हमारे लिए मरा, प्रार्थना करेंगे कि वह हमें ऐसा जीवन जीने में हमारी मदद करे जो उसे प्रसन्न और सम्मानित करे। यह अद्भुत था कि आत्मा ने किस प्रकार हमें उन पापों के बंधन से छुड़ाया जिसमें हम वर्षों से फंसे हुए थे।
एक दिन मुझे एहसास हुआ कि मैं दिमेत्रियुग से जो पर में मेरा पद हासिल करना चाहता था, बहुत घृणा करता हूँ। उससे प्रतिस्थापित किये जाने के भय को मैंने अपने विश्वासयोग्य साथी विश्वासियों के सामने स्वीकार किया। मैंने स्वीकार किया कि मैंने उसे बहुत शाप दिए थे। मैंने स्वीकार किया कि मैंने किस प्रकार दूसरों को उसके बारे में बुरी बातें कहीं। मेरे प्रायश्चित के बाद, भाइयों में से एक मुझसे बात करने के लिए अलग ले गया। उसने कहा कि मुझे इन पापों को दिमेत्रियुस के सामने स्वीकार करने की भी आवश्यकता है! मैंने पूरी तरह से इस विचार का विद्रोह किया। बिल्कुल नहीं। वह एक विश्वासी भी नहीं था! और उसने मेरे साथ भी बुरा किया था। कई हफ्तों तक मैं अपने दिल में इसके विरुद्ध संघर्ष करता रहा। फिर भी मुझे अपने दिल पर परमेश्वर से दबाव महसूस होता रहा। मुझे अपने पाप का दोष महसूस हुआ। अपने पाप को न मानना पाप था।